Thursday, February 11, 2021

मंगल ग्रह पर तीन देशों के यान


बुधवार 10 फरवरी को चीन ने दावा किया कि उसके अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ने शाम 7.52 बजे (बीजिंग के समयानुसार) मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर लिया। करीब साढे़ छह महीने का सफर पूरा करने के बाद मंगल की कक्षा में पहुँचा 240 किलोग्राम वजन का यह यान चीन का पहला स्वतंत्र अभियान है, जिसे मंगल पर रोवर लैंड कराने और वहां के भूजल व पुरातन समय में जिंदगी के संभावित चिन्हों का डेटा एकत्र करने के अभियान पर भेजा गया है। अभी इस अभियान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम बाकी है। वह है मंगल ग्रह पर रोवर को उतारना। मंगल पर यान उतारना खासा मुश्किल काम है। चीनी यान को उतारने के लिए पैराशूट, बैकफायरिंग रॉकेट और एयरबैग का इस्तेमाल किया जाएगा। अगले सप्ताह अमेरिकी यान पर्ज़वरेंस मंगल ग्रह पर उतरने वाला है, जिसे लेकर काफी उत्सुकता है।

इससे पहले 2011 में रूस के साथ मिलकर किया गया उसका संयुक्त प्रयास विफल हो गया था। तियानवेन-1 यान मई या जून में मंगल ग्रह पर रोवर का कैप्सूल उतारने का प्रयास करेगा। इसके बाद यह रोवर 90 दिन तक मंगल की सतह का अध्ययन करेगा। यदि चीनी रोवर मंगल पर उतरने में कामयाब हुआ, तो वह दुनिया का दूसरा ऐसा देश होगा। अब तक केवल अमेरिका ही आठ बार अपने रोवर मंगल पर उतारने में कामयाब हुआ है। मंगल ग्रह हरेक दो साल बाद पृथ्वी के करीब आता है। धरती से अभियान भेजने के लिए यह उपयुक्त समय होता है।

चीनी अंतरिक्ष यान से पहले मंगलवार को संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर मंगल की कक्षा में पहुंचा था। अगले सप्ताह 18 फरवरी को अमेरिका भी अपने पर्ज़वरेंस रोवर को मंगल ग्रह की सतह पर उतारने का प्रयास करेगा। तीनों मंगल अभियान पिछले साल जुलाई में भेजे गए थे। रूस की तरफ से 19 अक्तूबर, 1960 को भेजे गए पहले मंगलयान के बाद पिछले 61 साल में अब तक 8 देश 58 बार इस लाल ग्रह के अध्ययन के लिए यान भेज चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 29 बार अमेरिका ने और 22 बार रूस (पूर्व सोवियत संघ) और तीसरे नंबर पर ईयू ने 4 मिशन भेजे हैं। भारत, जापान, चीन और यूएई ने एक-एक मिशन भेजा है।

Wednesday, February 10, 2021

क्वांटम कंप्यूटिंग में अमेरिकी वर्चस्व को चीनी चुनौती


खबर है कि चीन के एक स्टार्टअप ने क्वांटम कंप्यूटर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है। इस खबर के दो मायने हैं। एक तो यह अमेरिका के तकनीकी वर्चस्व को चुनौती है और दूसरे इस प्रकार दुनिया में अगली पीढ़ी की तकनीक के विस्तार का दरवाजा खुल रहा है। इसके पहले दिसंबर 2020 में चीन ने क्वांटम कंप्यूटर की तकनीक के विकास और एक प्रोटोटाइप तैयार करने का दावा किया था। पर पिछले सोमवार 8 फरवरी को चीन के एनहुई प्रांत के स्टार्टअप ओरिजिन क्वांटम ने अपने इस ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रदर्शन किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि चीन ने क्वांटम सुप्रीमेसी के पहले चरण में प्रवेश कर लिया है।

पहले इस बात को समझें कि क्वांटम सुप्रीमेसी होती क्या है। यह कंप्यूटर विज्ञान का नया शब्द है। मोटे तौर पर समझें कि आज के सुपर कंप्यूटरों से भी लाखों गुना ज्यादा तेज कंप्यूटर। नवंबर 2019 में गूगल ने घोषणा की थी कि कंप्यूटिंग में क्वांटम सुप्रीमेसी हासिल कर ली गई है। साइंटिफिक जर्नल 'नेचर' में इस आशय से संबंधित एक लेख भी प्रकाशित हुआ। परंपरागत कंप्यूटर भौतिक शास्त्र के परंपरागत सिद्धांतों पर काम करते हुए वे विद्युत प्रवाह का इस्तेमाल करते हैं। क्वांटम कंप्यूटर उन नियमों के आधार पर काम करेगा, जो परमाणुओं और सबएटॉमिक पार्टिकल्स के व्यवहार को दर्शाते हैं। इतने महीन स्तर पर क्वांटम फिजिक्स के नियम काम करते हैं। ऐसे कंप्यूटर के विकास पर वैज्ञानिक पिछले चार दशक से लगे हुए हैं। सन 1981 में भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन ने लिखा, ‘प्रकृति की नकल करते हुए हमें क्वांटम मिकेनिक्स का विकास करना होगा, जो सरल नहीं है।’ परंपरागत कम्प्यूटर, सूचना को बाइनरी यानी 1 और 0 के तरीके से प्रोसेस करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर ‘क्यूबिट्स’ (क्वांटम बिट्स) में काम करेगा। इसमें प्रोसेसर 1और 0 दोनों को साथ-साथ प्रोसेस करेगा। ऐसा एटॉमिक स्केल में होता है। इस स्थिति को क्वांटम सुपरपोजीशन कहते हैं।

Tuesday, February 9, 2021

बाइडेन-मोदी वार्ता में चीनी दादागिरी रोकने पर सहमति


अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालने के बाद पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर जो बात की, उसमें केंद्रीय विषय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्‍वतंत्र और मुक्‍त आवागमन और चीनी दादागिरी था। दोनों नेताओं ने कहा कि क्वॉड के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय अखंडता और मजबूत क्षेत्रीय ढांचे को समर्थन दिया जाएगा। 

विश्‍लेषकों का मानना है कि भारतीय प्रधानमंत्री के साथ पहली ही बातचीत में क्‍वॉड पर जोर देकर अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। क्‍वॉड एक ऐसा समूह है जिसे लेकर चीन परेशान है। वह कई बार भारत को इससे दूर रहने के लिए धमका चुका है। 

द क्वॉड्रिलैटरल सिक्‍यॉरिटी डायलॉग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं और इसमें ब्रिटेन के भी शामिल होने की बात चल रही है। कनाडा ने भी इस संगठन की ओर सकारात्‍मक रुख दिखाया है। वहीं चीन की आक्रामकता झेल रहे कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देश जैसे वियतनाम भी इस संगठन में जुड़ सकते हैं। 

Monday, February 8, 2021

नाज़ुक दौर में म्यांमार का तख्ता-पलट


म्यांमार की फौज ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का तख्ता-पलट करके दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग के हाथों में है और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची तथा राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत अनेक राजनेता नेता हिरासत में हैं। सत्ताधारी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं या घरों में नजरबंद हैं। दूसरी तरफ सिविल नाफरमानी जैसे आंदोलन की आहट सुनाई पड़ने लगी है।

एक साल का आपातकाल घोषित करने के बाद सेना ने कहा है कि साल भर  सत्ता हमारे पास रहेगी। फिर चुनाव कराएंगे। विदेश-नीति से जुड़े अमेरिकी थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर जोशुआ कर्लांज़िक ने लिखा है कि सेना एक साल की बात कह तो रही है, पर अतीत का अनुभव है कि यह अवधि कई साल तक खिंच सकती है। सेना ने अपने लिखे संविधान में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता-पलट करके सैनिक शासन लागू करने की व्यवस्था कर रखी है।

सेना का अंदेशा

शायद सेना को डर था कि आंग सान सू ची के नेतृत्व में एनएलडी इतनी ताकतवर हो जाएगी कि हमारी ताकत को सांविधानिक तरीके से खत्म कर देगी। विडंबना है कि सू ची ने भी शक्तिशाली नेता होने के बावजूद सेना को हाशिए पर लाने और लोकतांत्रिक सुधारों को तार्किक परिणति तक पहुँचाने का काम नहीं किया। उन्होंने अपनी जगह तो मजबूत की, पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का तिरस्कार किया। रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार करने वाली सेना की तरफदारी की।

Sunday, February 7, 2021

ग्रेटा थनबर्ग की ‘टूलकिट’ के निहितार्थ

किसान-आंदोलन को लेकर बातें देश की सीमा से बाहर जा रही हैं। इसके अंतरराष्ट्रीय आयाम को लेकर सचिन, तेन्दुलकर और लता मंगेशकर से लेकर बॉलीवुड के कलाकारों ने आवाज उठाई है। उधर दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को एक एफआईआर दर्ज की है, जिसका दायरा सोशल मीडिया से जुड़ा होने के कारण देश के बाहर तक जाता है। केंद्र में है किसान आंदोलन से जुड़ी एक टूलकिट जिसे ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट में शेयर किया था। बाद में उन्होंने इसे डिलीट करके संशोधित ट्वीट जारी किया, पर उनके पिछले ट्वीट का विवरण छिप नहीं पाया।

बेशक एक ट्वीट से भारतीय राष्ट्र-राज्य टूट नहीं जाएगा, पर उसकी पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश भी की जानी चाहिए। ‘टूलकिट प्रकरण को किसान-आंदोलन से अलग करके देखना चाहिए। किसानों का आंदोलन अपनी कुछ माँगों को लेकर है। टूलकिट के विवरणों को ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि उनमें आंदोलन की माँग का केवल एक जगह जिक्र भर है। दूसरी तरफ इसमें भारत की छवि पर वैश्विक-प्रहार करने की कामना ज्यादा है। देश के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में जो प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उसपर भी ध्यान देना चाहिए।

विदेशी हस्तियों का प्रवेश

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, मेरा मानना है कि इसने बहुत कुछ सामने ला दिया है। हमें देखना है कि और क्या चीजें बाहर आती हैं। उन्होंने कहा, किसानों के प्रदर्शन पर विदेशी हस्तियों के हस्तक्षेप पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के पीछे वजह थी। विदेश मंत्रालय ने इन हस्तियों की टिप्पणी को गैर जिम्मेदार और गलत बताया था। जयशंकर ने कहा, ''आप देखिए कि विदेश मंत्रालय ने कुछ हस्तियों की ओर से ऐसे मुद्दे पर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया दी जिसके बारे में वह अधिक नहीं जानते हैं, इसके पीछे कोई वजह है।''

ज्यादातर लोग इस मामले को राजनीतिक नजरिए से ही देख रहे हैं या देखना चाहते हैं। मुझे लगता है कि इन विदेशी सेलिब्रिटियों को यह समझाया गया है कि यह व्यापक सामाजिक आंदोलन है। भारत की सामाजिक समझ बाहरी लोगों को देश के अंग्रेजी मीडिया, अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों और भारतीय सेलेब्रिटियों से बनती है। इस सिलसिले में मेरा ध्यान चेन्नई के मीडिया हाउस द हिंदू की अध्यक्ष मालिनी पार्थसारथी के एक ट्वीट पर गया। उन्होंने अमेरिकी गायिका रिहाना के एक ट्वीट के संदर्भ में लिखा, सेलिब्रिटियों का यह आक्रोश गलत जगह पर है, जिन्हें किसान-आंदोलन और सरकारी जवाब से जुड़े तथ्यों की जानकारी नहीं है। यह अमीर किसानों के नेतृत्व में बगावत है, जो खेती को बाजार की अर्थव्यवस्था से जोड़े जाने के विरुद्ध है। भारतीय लोकतंत्र को झटका नहीं।

मालिनी पार्थसारथी के इस ट्वीट पर काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। कुछ लोगों को लगा कि वे मोदी सरकार का बचाव कर रही हैं। ऐसी बात नहीं थी। 3 फरवरी के उपरोक्त ट्वीट के बाद 4 फरवरी को उन्होंने एक और ट्वीट किया, बेशक पॉप सितारा रिहाना भारत को बदनाम करने की किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा नहीं हैं। समस्या है किसान-आंदोलन का मानवाधिकार-संघर्ष के रूप में अंध-चित्रण. जबकि ऐसा है नहीं।इसके बाद 5 फरवरी के एक तीसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, सेलिब्रिटी ट्विटर-एक्टिविज्म एक जटिल मसले का सरलीकरण है।