मंगलवार 17 मार्च को स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस ने वायुसेना के बेड़े
में शामिल होने के आखिरी पड़ाव को भी पार कर लिया. इस विमान के एफओसी मानक संस्करण
एसपी-21 ने सफलता के साथ उड़ान भरी. अब इस वित्त वर्ष
में एचएएल ऐसे 15 विमान और बनाएगा. इस सफलता के चार दिन पहले
एचएएल और सीएसआईआर-नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज़ ने सारस मार्क-2 विमान के डिजाइन, विकास, उत्पादन और मेंटीनेंस के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. 19 सीटों वाले इस विमान को वायुसेना खरीदेगी. इसका इस्तेमाल
नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में भी होगा. साथ ही इसके निर्यात की संभावनाएं भी काफी
अच्छी हैं.
ये दोनों विमान
दो तरह की संभावनाओं बता रहे हैं. तेजस लड़ाकू विमानों के मामले में और सारस
परिवहन विमानों की दिशा में पहला कदम है. दोनों अपनी श्रेणियों के हल्के विमान हैं, पर दोनों कार्यक्रमों के विस्तार की संभावनाएं हैं. हमारी
एयरलाइंस बोइंग या एयरबस के विमानों के सहारे हैं, जबकि चीन ने अपना
नागरिक उड्डयन विमान विकसित कर लिया है. उपरोक्त दोनों घटनाएं बढ़ते भारतीय
आत्मविश्वास को व्यक्त करती हैं.
स्टॉकहोम
इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने हाल में ‘शस्त्रास्त्र के वैश्विक हस्तांतरण
रुझान-2019’ रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार भारत अब भी दुनिया में हथियारों के दूसरा सबसे
बड़ा आयातक है. गत 9 मार्च को जारी सिपरी के आँकड़ों के अनुसार
सऊदी अरब इस सूची में सबसे ऊपर है. एक समय में चीन और भारत इस सूची में सबसे ऊपर
रह चुके हैं. चीन ने इस दौरान अपने औद्योगिक विस्तार पर काफी बड़े स्तर पर निवेश
किया और अब वह पाँचवें नम्बर का शस्त्र निर्यातक देश है.
पिछले कुछ वर्षों
से भारत ने इस दिशा में सोचना शुरू किया है और उसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं.
सिपरी की इस रिपोर्ट को गौर से पढ़ें तो पाएंगे कि भारत का आयात भी कम होता जा रहा
है और निर्यात में वृद्धि हो रही है. विश्व के शीर्ष 25 निर्यातक देशों में भारत का नाम भी शामिल हो गया है. इनमें
भारत का स्थान 23वाँ है. इससे हालांकि हमारी तस्वीर बड़े शस्त्र
निर्यातक की नहीं बनती, पर आने वाले समय में देश
के रक्षा उद्योग की तस्वीर जरूर उभर कर आती है. सिपरी के आँकड़े बता रहे हैं कि सन
2015 के बाद से भारतीय रक्षा आयात में 32 फीसदी की कमी आई है. इसका अर्थ है कि ‘मेक इन इंडिया’
कार्यक्रम को सफलता मिल रही है.
भारत सरकार अब
खुलकर शस्त्र निर्यात के क्षेत्र में उतरने का निश्चय कर चुकी है. इसके लिए
प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव भी किया गया है. हाल में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह
ने कहा कि हमने सन 2025 तक स्वदेशी एयरोस्पेस, रक्षा-उपकरणों और सेवाओं के कारोबार को 26 अरब डॉलर के स्तर तक पहुँचाने का निश्चय कर रखा है. इसमें
से पाँच अरब डॉलर के शस्त्रास्त्र का हम निर्यात करेंगे. रक्षा उद्योग पर 10 अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश की व्यवस्था की जा रही है, जिससे 20 से 30 लाख लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
वैश्विक शस्त्र
बाजार में विक्रेता के रूप में भारत की भागीदारी इस समय केवल 0.2 प्रतिशत की है. भारत ने म्यांमार, श्रीलंका और मॉरिशस को मुख्यतः हथियार बेचे हैं. अब वियतनाम
और फिलीपींस के अलावा अफ्रीकी देशों के साथ कुछ बड़े सौदे संभव हैं. भारत सरकार
अगले पाँच वर्षों में कुछ मित्र देशों की क्रेडिट लाइन बढ़ाने जा रही है. हाल में
रक्षामंत्री ने बताया कि भारत 18 देशों को बुलेटप्रूफ
जैकेटों की सप्लाई कर रहा है. देश के रक्षा अनुसंधान संगठन ने बुलेटप्रूफ जैकेटों
की बेहतर तकनीक विकसित की है. निजी क्षेत्र की 15 कंपनियों को इस
कार्य के लिए लाइसेंस दिए गए हैं. मोटे तौर पर डीआरडीओ ने कई प्रकार की तकनीकों के
करीब 900 लाइसेंस निजी कम्पनियों को दिए हैं. इस तकनीकी
हस्तांतरण से ये कंपनियाँ स्वदेशी माँग को पूरा करने के साथ-साथ निर्यात आदेशों को
भी पूरा करेंगी.
हथियारों का सौदा
सरल नहीं होता. हथियार बेचने के पहले सम्बद्ध देश के साथ अपने रिश्तों को भी देखना
होता है. सरकार ने हाल में संसद को बताया कि भारत 42 देशों को
रक्षा-उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है. इस दिशा में कुछ तकनीक भारत में ही विकसित की
जा रही है और कुछ के लिए हमें विकसित देशों की मदद लेनी होगी. अमेरिका की लॉकहीड
मार्टिन और बोइंग जैसी कम्पनियाँ अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भारत में कारखाने लगा
चुकी हैं. फ्रांस और रूस की दिलचस्पी भारत में है.
हाल में खबर थी
कि बाजार खोजने की दिशा में एचएएल मलेशिया,
वियतनाम, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में अपने लॉजिस्टिक बेस
बनाने पर विचार कर रहा है. इसके पीछे मूलतः तेजस विमान के लिए वैश्विक सम्भावनाएं
तलाश करने की कामना है. भारत की दिलचस्पी तेजस,
अटैक हेलिकॉप्टर ‘रुद्र’ और एडवांस्ड लाइट
हेलिकॉप्टर ‘ध्रुव’ के लिए दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और उत्तरी
अफ्रीका में बाजार की तलाश करने में है. हमारी ब्रह्मोस मिसाइलों, हवाई रक्षा प्रणाली ‘आकाश’ और हवा से हवा में मार करने वाली ‘अस्त्र’ मिसाइल पर भी दुनिया की नजरें हैं.
पिछले साल
मलेशिया ने तेजस में दिलचस्पी दिखाई थी और उसका विशेष हवाई प्रदर्शन भी मलेशिया के
आकाश पर हुआ था. हाल में आर्मेनिया ने भारत से चार स्वाति वैपन लोकेटिंग रेडार
खरीदने का निश्चय किया है. इस सौदे का उत्साहवर्धक पहलू यह है कि आर्मेनिया की
सेना ने रूस और पोलैंड के रेडारों से साथ स्वाति का भी परीक्षण किया था और उसे
बेहतर पाया. आर्मेनियाई की दिलचस्पी भारत के मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम ‘पिनाक’ में भी है. भारतीय डॉकयार्ड अब मित्र देशों के लिए
युद्धपोत भी बना रहे हैं.