Sunday, February 2, 2020

निराशा दूर करने की कोशिश


अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने और गाँवों से लेकर शहरों तक फैली निराशा के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी घोषणाएं करके बताने की कोशिश की है कि सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इस बजट में उन्होंने कोई सेक्टर नहीं छोड़ा. उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि में निवेश घोषणाएं की हैं, साथ ही आय के नए तरीके भी खोजने का प्रयास किया है. मध्य वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाने के नए तरीके खोजे गए हैं, ताकि वे खर्च करें और उपभोक्ता वस्तुओं का माँग बढ़े. करदाताओं और कम्पनियों को परेशान न किया जाए, इसके लिए कम्पनी कानून में बदलाव होगा, वहीं टैक्स-पेयर चार्टर बनाने की घोषणा भी की गई है.
सरकार ने धनार्जन को उचित मानते हुए कारोबारियों को संतुष्ट करने की कोशिश की है. खर्च बढ़ाने के बावजूद सरकार ने अगले वित्तवर्ष में राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.8 फीसदी तक रखने का वायदा किया है. यह वायदा पूरा होगा या नहीं, यह अगले साल ही पता लगेगा. अलबत्ता सरकार पूरे हौसले के साथ मैदान में उतरी है. वित्तमंत्री ने जो बड़ी घोषणाएं की हैं, उनमें जीवन बीमा निगम और रेलवे के आंशिक निजीकरण से जुड़े फैसले हैं. आयकर और कम्पनी कर ढाँचे में व्यापक सुधार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है. जीएसटी के और सरलीकरण का वायदा है. सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पाँच करोड़ तक के कारोबारियों को लेखा परीक्षा से छूट देने की घोषणा की है.

पुरज़ोर इरादों का बजट


पहली नजर में निर्मला सीतारमण का बजट अर्थव्यवस्था की जड़ता और निराशा को दूर करने का प्रयास करता नजर आता है। इसमें जीडीपी की सुस्ती तोड़ने के सभी फॉर्मूलों को एकसाथ लागू करने की कोशिश की गई है। इसमें उपभोक्ता की क्रय शक्ति को बढ़ाने, बाजार में उपलब्ध की माँग बढ़ाने, कारोबारियों को निवेश बढ़ाने और आयात तथा निर्यात दोनों की माँग बढ़ाने का प्रयास है। सरकार चाहती है कि मेक इन इंडिया के साथ-साथ असेम्बल इन इंडिया की अवधारणा को अपना संबल बनाया जाए। विदेशी माल खरीदें और मूल्य-वर्धन कर उसका निर्यात करें। यह उम्मीदों भरा बजट है, फिर भी सवाल अपनी जगह है कि तब शेयर बाजार ने डुबकी क्यों लगाई? शायद शेयर बाजार की दिलचस्पी रियलिटी और विनिर्माण सेक्टर के सिलसिले में बड़ी घोषणाओं तक सीमित थी।
बजट का सकारात्मक प्रभाव होगा, तो सोमवार के बाद शेयर बाजार में भी बदलाव नजर आने लगेगा। बजट को दो नजरियों से देखना चाहिए। एक, सामान्य आर्थिक गतिविधियों और नीतियों के संदर्भ में और दूसरे अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन स्वास्थ्य को पुष्ट करने में इसके योगदान के नजरिए से। छह महीनों से देश में आर्थिक संवृद्धि को लेकर बहस है। पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी के आंकड़ों में तेज गिरावट है। अब इस बजट में अगले साल जीडीपी की निवल (नॉमिनल) संवृद्धि 10 फीसदी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा में सकल संवृद्धि 6 से 6.5 फीसदी होने का अनुमान बताया गया है। वापसी हुई, तो मतलब होगा कि सरकार नैया को मँझधार से बाहर निकालने में कामयाब हुई है।

Thursday, January 30, 2020

वैश्विक-विमर्श का ज़रिया बनेंगे जनांदोलन


नए साल की शुरुआत आंदोलनों से हो रही है। शिक्षा संस्थानों के परिसर आंदोलनों की रणभूमि बने हैं। मोहल्लों और सड़कों में असंतोष और विरोध के स्वर हैं। देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षितिज पर आए बदलावों के अंतर्विरोध मुखर रहे हैं। असंतोष के पीछे व्यवस्था के प्रति नाराजगी है। यह विश्वव्यापी नाराजगी है। वैश्वीकरण केवल आर्थिक अवधारणा नहीं है, वैचारिक भी है।
जनवरी 2011 में हमें मिस्र और ट्यूनीशिया के मध्यवर्ग में असंतोष की खबरें मिलीं थीं। उसी साल गांधी के निर्वाण दिवस यानी 30 जनवरी को भारत में बगैर किसी योजना के अनेक शहरों में भ्रष्टाचार-विरोधी रैलियाँ में भीड़ उमड़ पड़ी। उसी साल सितम्बर में अमेरिका में ऑक्युपाई वॉलस्ट्रीट आंदोलन शुरू हुआ। वह नौजवानों के प्रतिरोध का आंदोलन था। यूरोप के अनेक शहरों में ऐसे आंदोलन खड़े हो गए। चिली, ब्रिटेन, अल्जीरिया, अमेरिका, फ्रांस, कैटालोनिया, इराक, लेबनॉन से लेकर हांगकांग की सड़कों पर आंदोलनकारी नौजवानों के जुलूस निकल रहे हैं।  

आंतरिक उमड़-घुमड़, जो हमारी वैश्विक छवि को बनाती या बिगाड़ती है


अमेरिकी विदेश विभाग ने जम्मू-कश्मीर में 15 देशों के राजदूतों की यात्रा को महत्वपूर्ण कदम बताया है। साथ ही यह भी कहा है कि राज्य के राजनीतिक नेताओं का जेल में रहना और इलाके में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदियाँ परेशान करती हैं। पिछले साल 5 अगस्त के बाद पहली बार 15 देशों के राजनयिकों ने 9 जनवरी को जम्मू-कश्मीर यात्रा की जिसमें अमेरिकी राजदूत कैनेथ आई जस्टर भी शामिल थे। इन राजनयिकों ने कश्मीर में कई राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों, नागरिक संस्थाओं के सदस्यों और सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ मुलाकात की। इस यात्रा को लेकर सरकार पर आरोप लगे हैं कि यह ‘गाइडेड टूर’ है। बहरहाल अमेरिका की दक्षिण एवं मध्य एशिया की कार्यवाहक सहायक सचिव एलिस जी वेल्स ने 11 जनवरी को उम्मीद जताई कि इस क्षेत्र में स्थिति सामान्य होगी।
वेल्स इस हफ्ते 15 से 18 जनवरी तक भारत में थीं और उन्होंने रायसीना संवाद में भी भाग लिया, जो विदेश-नीति के संदर्भ में भारत का सबसे महत्वपूर्ण अनौपचारिक मंच बनता जा रहा है। इस मंच में ईरानी विदेशमंत्री जव्वाद जरीफ भी शामिल हुए। स्वाभाविक है कि इस वक्त दुनिया का ध्यान अमेरिका-ईरान मामलों पर है, पर जम्मू-कश्मीर के बरक्स भी घटनाक्रम बदल रहा है। एलिस वेल्स भारत-यात्रा पूरी करने के बाद पाकिस्तान जाने वाली हैं।

Monday, January 27, 2020

बजट जो भरोसा बहाल करे


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को जो बजट पेश करेंगी, वह मोदी सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण बजट होगा। हरेक क्षेत्र को कुछ फैसलों की आशा है। औद्योगिक माहौल ठंडा है, गाँवों में निराशा है और नौजवान चेहरों की चमक गायब हो रही है। फिर भी देश को आशा है। बेशक अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी नहीं है, पर उसकी गति भरोसा पैदा करने वाली भी नहीं है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि माँग और निवेश दोनों बढ़ाने की जरूरत है। दोनों ही मोर्चों पर संकट है।
बावजूद इसके निराश होने और हारकर बैठ जाने की जरूरत भी नहीं है। बजट ऐसा होना चाहिए जो देश की अर्थव्यवस्था में भरोसा बहाल करे और निवेशकों तथा देश के उद्यमी जगत को आश्वस्त करे। उन्हें भरोसा होना चाहिए कि सुधार सरकार की प्राथमिकता में हैं। चिंता इसलिए बढ़ी, क्योंकि हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष की आर्थिक संवृद्धि दर का अपना अनुमान घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है। यह अनुमान भारत सरकार के आधिकारिक अग्रिम वृद्धि अनुमान 5 प्रतिशत से भी कम है। भारत की संवृद्धि में कमी के असर से विश्व की संवृद्धि दर नीचे जा रही है।