अस्सी के दशक में
जब अफ़ग़ान मुज़ाहिदीन रूसी सेना के खिलाफ लड़ रहे थे, तब अमेरिका उनके पीछे था।
अमेरिका के ‘डिक्लैसिफाइड’ खुफिया दस्तावेजों के
अनुसार 11 सितंबर 2001 के अल कायदा हमले के कई बरस पहले बिल क्लिंटन प्रशासन का
तालिबान के साथ राब्ता था। वहाँ अंतरराष्ट्रीय सहयोग से नई सरकार बनने के बाद सन
2004 और 2011 में भी तालिबान के साथ बातचीत हुई थी। सन 2013 में तालिबान ने कतर में
दफ्तर खोला। चूंकि उन्होंने निर्वासित सरकार के रूप में खुद को पेश किया था, इसलिए
काबुल सरकार ने उसे स्वीकार नहीं किया। इस संवाद में पाकिस्तान की भी महत्वपूर्ण
भूमिका रही। सन 2015 में पाकिस्तान की कोशिशों से अफगान सरकार और तालिबान के बीच
आमने-सामने की बात हुई। उन्हीं दिनों खबर आई कि तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर की
मौत तो दो साल पहले हो चुकी है। इस तथ्य को तालिबान और पाकिस्तान दोनों ने छिपाकर
रखा था। सन 2018 में ईद के मौके पर तीन दिन का युद्धविराम भी हुआ। सितंबर 2018 में
अमेरिका ने ज़लमय खलीलज़ाद को तालिबान के साथ बातचीत के लिए अपना दूत नियुक्त
किया। उनके साथ दोहा में कई दौर की बातचीत के बाद समझौते के हालात बने ही थे कि
बातचीत टूट गई। क्या यह टूटी डोर फिर से जुड़ेगी?
फिलहाल अमेरिका और तालिबान के बीच एक अरसे से चल रही शांति-वार्ता एक झटके में
टूट गई है, पर यह भी लगता है कि संभावनाएं पूरी तरह खत्म नहीं हुईं हैं। बातचीत का
टूटना भी एक अस्थायी प्रक्रिया है। उम्मीद है कि इस दिशा में प्रगति किसी न किसी
दिशा में जरूर होगी। राष्ट्रपति ट्रंप के सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की अचानक बर्खास्तगी से संकेत
यही मिलता है कि विदेशमंत्री पॉम्पियो जो कह रहे हैं, वह ज्यादा विश्वसनीय है। यों
भी समस्या से जुड़े सभी पक्षों के पास विकल्प ज्यादा नहीं हैं और इस लड़ाई को
लंबा चलाना किसी के भी हित में नहीं है। अफगान समस्या के समाधान के साथ अनेक
क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान भी जुड़े हैं।
अफ़ग़ानिस्तान के
लिए नियुक्त अमेरिका के विशेष दूत ज़लमय ख़लीलज़ाद ने उससे पहले सोमवार 2 सितंबर को
तालिबान के साथ 'सैद्धांतिक तौर' पर एक शांति
समझौता होने का एलान किया था। प्रस्तावित समझौते के तहत अमेरिका अगले 20 हफ़्तों के भीतर अफ़ग़ानिस्तान से अपने 5,400 सैनिकों को वापस लेने वाला था। अमेरिका और तालिबान के बीच
क़तर में अब तक नौ दौर की शांति-वार्ता हो चुकी है। प्रस्तावित समझौते में
प्रावधान था कि अमेरिकी सैनिकों की विदाई के बदले में तालिबान सुनिश्चित करता कि
अफ़ग़ानिस्तान का इस्तेमाल अमेरिका और उसके सहयोगियों पर हमले के लिए नहीं किया
जाएगा।
कितनी मौतें?
अफ़ग़ानिस्तान
में सन 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में शुरू हुए सैनिक अभियान के बाद से
अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की सेना के करीब साढ़े तीन हजार सैनिकों की जान जा चुकी है।
इनमें 2300 अमेरिकी हैं। आम लोगों, चरमपंथियों और
सुरक्षाबलों की मौत की संख्या का अंदाज़ा लगाना कठिन है। अलबत्ता इस साल संयुक्त
राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वहाँ 32,000 से ज़्यादा आम लोगों की मौत
हुई है। वहीं ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट का कहना है कि वहाँ 58,000 सुरक्षाकर्मी और 42,000 विद्रोही मारे गए हैं।