मुम्बई में 102वीं साइंस कांग्रेस के दौरान वैदिक विमानन तकनीक पर अपने पर्चे में कैप्टन आनंद जे बोडास ने कहा, 'भारत में सदियों पहले भी विमान मिथक नहीं थे, वैदिक युग में भारत में विमान ना सिर्फ एक से दूसरे देश, बल्कि एक दूसरे ग्रह से दूसरे ग्रह तक उड़ सकते थे, यही नहीं इन विमानों में रिवर्स गियर भी था, यानी वे उल्टा भी उड़ सकते।' केरल में एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए कैप्टन बोडास ने अपने पर्चे में कहा, 'एक औपचारिक इतिहास है, एक अनौपचारिक। औपचारिक इतिहास ने सिर्फ इतना दर्ज किया कि राइट बंधुओं ने 1903 में पहला विमान उड़ाया। उन्होंने भारद्वाज ऋषि के वैमानिकी तकनीक को अपने पर्चे का आधार बताया। साइंस कांग्रेस के 102 सालों में पहली बार संस्कृत साहित्य से वैदिक विज्ञान के ऊपर परिचर्चा का आयोजन हुआ है। आयोजकों के मुताबिक यह विषय रखने का मकसद था कि संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखा जा सके। इस परिचर्चा में वैदिक शल्य चिकित्सा का भी ज़िक्र हुआ। इस बात के दो पहलू हैं। केप्टेन बोडास की बात मुझे समझ में नहीं आती। सदियों पहले हमारे पूर्वज विमान बनाना जानते थे तो बाद में वे विमान गायब क्यों हो गए? जो समाज विज्ञान के लिहाज से इतना उन्नत था तो वह समाज विदेशी हमलों का सामना क्यों नहीं कर पाया? आर्थिक रूप से पिछड़ा क्यों रह गया वगैरह। विज्ञान कांग्रेस में बोडास का यह पर्चा पेश न किया जाए इसके लिए नासा में भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ राम प्रसाद गांधीरामन ने एक मुहिम भी शुरू की थी। यह पर्चा चूंकि पढ़ा जा चुका है इसलिए अब विज्ञान से जुड़े लोगों को विचार करना चाहिए कि वे कह क्या रहे हैं।
Monday, January 5, 2015
Sunday, January 4, 2015
‘नीति आयोग’ की राजनीति
नए साल पर सरकार ने
योजना आयोग की जगह ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग
इंडिया’ यानी संक्षेप में ‘नीति’ आयोग बनाने की घोषणा की है। पहले कहा जा रहा था कि नई
संस्था का नाम 'व्यय आयोग' होगा। उसके बाद इसका नाम
नीति आयोग सुनाई पड़ा, जिसमें नीति माने पॉलिसी था। अब नीति को ज्यादा परिभाषित
किया गया है। मोटे तौर पर यह छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की
समाप्ति की घोषणा है। इसका असर क्या होगा और नई व्यवस्था किस रूप में काम करेगी
अभी स्पष्ट नहीं है। फिलहाल यह कदम प्रतीकात्मक है और व्यावहारिक रूप से संघीय
व्यवस्था को रेखांकित करने की कोशिश भी है। कुछ लोगों ने इसे ‘राजनीति
आयोग’ बताया है। बड़ा फैसला है, जिसके राजनीतिक फलितार्थ भी होंगे।
कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि इसका नाम न बदले, भले ही काम बदल जाए।
Saturday, January 3, 2015
भारत सौर ऊर्जा पर 100 अरब डॉलर खर्च करेगा
राजस्थान में जयपुर के पास सांभर झील के निकट प्रस्तावित विश्व का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट |
इस दिशा में जो महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है उसे देखते हुए भारत सौर ऊर्जा के मामले में दुनिया के ज्यादातर देशों से आगे जाना चाहता है। खासतौर से हमें जर्मनी से प्रेरणा मिल रही है, जिसने अपना परमाणु ऊर्जा का कार्यक्रम पूरी तरह समाप्त करने का ऐलान किया है। हाल में हरियाणा सरकार ने बड़े प्लॉटों और मॉल में सौर बिजली संयंत्र लगाना अनिवार्य कर दिया है। पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों ने इस मामले में पहल की है। पिछले साल मध्य प्रदेश के नीमच की जावद तहसील के भगवानपुरा (डिकेन) में शुरू हुआ सौर एनर्जी प्लांट एशिया का सबसे बड़ा सौर एनर्जी प्लांट बताया जाता है। इस सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना का शुभारंभ 26 फरवरी 2014 को हुआ था। इसी तरह राजस्थान में सांभर झील इलाके में दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट लगाया जा रहा है।
सौर ऊर्जा संयंत्र महंगे होते हैं, पर भारत सरकार को लगता है कि जब बड़े स्तर पर उन्हें लगाया जाएगा तो एक समय के बाद वे सस्ते पड़ेंगे। अनुमान है कि इतने बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने से तीन साल के भीतर ताप बिजलीघरों के मुकाबले उनकी लागत का अंतर खत्म हो जाएगा। उनसे उत्पादित बिजली की लागत कम होगी और यह बिजली पर्यावरण-मित्र भी होगी। रायटर की खबर के अनुसार Solar energy in India costs up to 50 percent more than power from sources like coal. But the government expects the rising efficiency and falling cost of solar panels, cheaper capital and increasing thermal tariffs to close the gap within three years.,,,Foreign companies say they are enthused by Modi's personal interest, but red tape is still an issue. "The policy framework needs to be improved vastly. Documentation is cumbersome. Land acquisition is time-consuming. Securing debt funding in India and financial closures is a tough task," said Canadian Solar's Vinay Shetty, country manager for the Indian sub-continent.
पूरी खबर पढ़ें रायटर्स की वैबसाइट पर
Thursday, January 1, 2015
कैलेंडर नहीं, समय की चाल को देखिए
देश की सवा अरब की आबादी में पाँच से दस करोड़ लोगों ने कल
रात नए साल का जश्न मनाकर स्वागत किया. इतने ही या इससे कुछ ज्यादा लोगों को पता
था कि नया साल आ गया है, पर वे इस जश्न में शामिल नहीं थे. इतने ही लोगों ने किसी
न किसी के मुँह से सुना कि नया साल आ गया है और उन्होंने यकीन कर लिया. इतने ही और
लोगों ने नए साल की खबर सुनी, पर उन्हें न तो यकीन हुआ और न अविश्वास. इस पूरी
संख्या से दुगनी तादाद ऐसे लोगों की थी, जिन्हें किसी के आने और जाने की खबर नहीं
थी. उनकी यह रात भी वैसे ही बीती जैसे हर रात बीतती थी.
Wednesday, December 31, 2014
बच्चों के सवाल पूछने को बढ़ावा दें
लेखक मंच’ प्रकाशन की चौथी पुस्तक ‘अपने बच्चे को दें विज्ञान दृष्टि’ अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद है। इस किताब में लेखिका ने लिखा है कि बच्चों को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। एकबार नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकविद इसीडोर आई राबी से उनके एक दोस्त ने पूछा, आप अपने आस-पड़ोस के बच्चों की तरह डॉक्टर, वकील, या व्यापारी बनने के बजाय वैज्ञानिक क्यों बने?
राबी ने जवाब दिया, मेरी माँ ने अनजाने में ही मुझे वैज्ञानिक बना दिया। ब्रुकलिन में रहने वाली हर यहूदी माँ स्कूल से लौटने वाले अपने बच्चे से पूछती थी, तो तुमने आज स्कूल में कुछ सीखा कि नहीं? लेकिन मेरी माँ ऐसा नहीं करती थी। वह हमेशा एक अलग तरह का सवाल मुझसे पूछती थी, इज्जी क्या तुमेन आज क्लास में कोई अच्छा सवाल पूछा? दूसरी माताओं से उनके इस फर्क यानी अच्छे सवाल को महत्व देने की उनकी खूबी ने मुझे वैज्ञानिक बना दिया।
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