जनरल वीके सिंह को लेकर विवाद आने वाले समय में बड़ी शक्ल लेगा.
जाने-अनजाने राजनीति ने रक्षा व्यवस्था को अपने घेरे में ले लिया है, जिसके दुष्परिणाम
भी होंगे. हमारी सेना पूरी तरह अ-राजनीतिक है और इसे विवादों से बाहर रखने की परम्परा
है. फिर भी यह विवाद के घेरे में आ रही है तो जिम्मेदार कौन है? क्या हम सीबीआई या किसी दूसरी जाँच एजेंसी की मदद से ऐसे मामलों
की जाँच करा सकते हैं? हाल में इशरत जहाँ मामले को लेकर खुफिया
एजेंसियों और जाँच एजेंसियों की टकराहट सामने आई है, जिसके दुष्परिणाम सामने हैं. यह
सब क्या व्यवस्था को साफ करने में मदद करेगा या हालात और बिगड़ेंगे? जनरल वीके सिंह का मामला सन 2004 के बाद दिल्ली में बनी यूपीए सरकार के साथ
शुरू हुआ है. उसके पहले एनडीए के शासन में रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और नौसेनाध्यक्ष
विष्णु भागवत के बीच भी विवाद हुआ था, जिसकी परिणति विष्णु भागवत की बर्खास्तगी में
हुई थी. वर्तमान विवाद सन 2005 में जनरल जेजे सिंह की थल सेनाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति
के बाद शुरू हुआ. इसका प्रस्थान बिन्दु वही नियुक्ति है और इसके पीछे सेना के भीतर
बैठी गुटबाजी है.
आगामी विधानसभा चुनावों में चार राज्यों की तस्वीर क्या होगी इसे लेकर क़यास शुरू हो गए हैं.
इन क़यासों को हवा दे रहे हैं चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण जिनपर भले ही यक़ीन कम लोगों को हो पर वे चर्चा के विषय बनते हैं.
हालांकि चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं लेकिन सर्वेक्षण करने वालों ने सारा ध्यान चार राज्यों पर केंद्रित कर रखा है.
हाल में जो सर्वेक्षण सामने आए हैं वे क्लिक करेंकांग्रेस के ह्रास और भारतीय जनता पार्टी के उदय की एक धुंधली सी तस्वीर पेश कर रहे हैं.
सर्वेक्षणों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीगढ़ के बारे में कमोबेश साफ़ लेकिन दिल्ली के बारे में भ्रामक तस्वीर बनाई है.
इसकी एक वजह आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ की उपस्थिति है जो एक राजनीतिक समूह है. उसकी ताक़त और चुनाव को प्रभावित करने के सामर्थ्य के बारे में क़यास इस भ्रम को और भी बढ़ा रहे हैं.
तीन सर्वेक्षण तीन तरह के नतीजे दे रहे हैं जिनसे इनकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह पैदा होते हैं. सर्वेक्षणों के बुनियादी अनुमानों में इतना भारी अंतर है कि संदेह के कारण बढ़ जाते हैं.
दिल्ली का महत्व
दिल्ली भारत के मध्य वर्ग का प्रतिनिधि शहर है. यहाँ पर होने वाली राजनीतिक हार या जीत के व्यावहारिक रूप से कोई माने नहीं हों पर प्रतीकात्मक अर्थ गहरा होता है. यहाँ से उठने वाली हवा के झोंके पूरे देश को प्रभावित करते हैं.
हाल में दिल्ली गैंगरेप के ख़िलाफ़ और उसके पहले अन्ना हज़ारे के आंदोलन की ज़मीन देश-व्यापी नहीं थी पर दिल्ली में होने के कारण उसका स्वरूप राष्ट्रीय बन गया. इसकी एक वजह वह क्लिक करेंख़बरिया मीडिया है, जो दिल्ली में निवास करता है.
दिल्ली की इसी प्रतीकात्मक महत्ता के कारण यहाँ के नतीजे महत्वपूर्ण होते हैं भले ही वे दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघों के हों या दिल्ली विधानसभा के.
हाल में भाजपा के मंच पर प्रधानमंत्री के प्रत्याशी का नाम घोषित करने की प्रक्रिया पर जो ड्रामा शुरू हुआ था उसका असर दिखाई पड़ने लगा है और इसमें भी पहल दिल्ली की है.
नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही उनकी रैलियों का कार्यक्रम बन रहा है.