Friday, February 4, 2011

क्या यह वैश्वीकरण की पराजय है?

आज एक अखबार में मिस्र के बारे में छपे आलेख को पढ़ते समय मेरी निगाहें इस बात पर रुकीं कि मिस्र का यह जनाक्रोश भूमंडलीकरण की पराजय का प्रारम्भ है। मुझे ऐसा नहीं लगता। मैं जनाक्रोश और उसके पीछे की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं से सहमत हूँ और मानता हूँ कि ऐसे जनांदोलन अभी तमाम देशों में होंगे। भारत में भी किसी न किसी रूप में होंगे। बुनियादी फर्क सिर्फ वैश्वीकरण की मूल अवधारणा को लेकर है।

आलेख के लेखक की निगाह में वैश्वीकरण अपने आप में समस्या है। मेरी निगाह में वैश्वीकरण समस्या नहीं एक अनिवार्य प्रक्रिया है। और उसमें ही अनेक समस्याओं के समाधान छिपे हैं। इससे तो गुज़रना ही है। वैश्वीकरण के बगैर तो समाजवाद भी नहीं आएगा। कार्ल मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद के लिए भी वैश्वीकरण अनिवार्य है। इस वैश्वीकरण को पूँजीवादी विकास और पूँजी का वैश्वीकरण लीड कर रहा है। पूँजीवाद और पूँजी के वैश्विक विस्तार पर आपत्ति समझ में आती है, पर संयोग से दुनिया में इस समय आर्थिक गतिविधियाँ पूँजी के मार्फत ही चल रहीं हैं। मिस्र में हुस्नी मुबारक की तानाशाही सरकार हटी भी तो जो व्यवस्था आएगी वह वर्तमान वैश्विक संरचना से अलग होगी यह मानने की बड़ी वजह दिखाई नहीं पड़ती।

Wednesday, February 2, 2011

क्या पाठक विचार पढ़ना नहीं चाहते?


सम्पादकीय पेज खत्म करने के बाद आज के डीएनए में उसके पाठकों की चिट्ठियाँ छपीं हैं। कुछ ने समर्थन किया है और कुछ ने असहमति जताई है। बेशक पाठक पसंद करें तो सब ठीक है, पर क्या अखबार ने सम्पादकीय पेज खत्म करने के पहले पाठकों से पूछा था?

कुछ लोग मानते हैं कि बाज़ार तय करता है कि सही क्या है और गलत क्या है। पर बाज़ार क्या सोचता है इसका पता कैसे लगता है? मुम्बई में बाज़ार का लीडर तो टाइम्स ऑफ इंडिया है। करीब दसेक साल पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ संस्करण में सम्पादकीय पेज खत्म कर दिया गया था। सिर्फ पेज खत्म किया था। सम्पादकीय किसी पेज में छपते थे, मुख्य लेख किसी और पेज में पाठकों के पत्र किसी और पेज में। खैर टाइम्स ने बाद में सम्पादकीय पेज अपनी जगह वापस कर दिया। टाइम्स के सम्पादकीय पेज आज भी श्रेष्ठ है।

Tuesday, February 1, 2011

सम्पादकीय पेज विहीन डीएनए


डीएनए ने हिम्मत दिखाई और घोषणा करके एडिट पेज बन्द कर दिया। साथ में यह कहा कि इसे बहुत कम लोग पढ़ते हैं, बोरिंग होता है, अपनी ज़रूरत खो चुका है, सिर्फ जगह भरने का काम हो रहा था।

Monday, January 31, 2011

पावरफुल 100

कल मैने इंडियन एक्सप्रेस के 100 मोस्ट पावरफुल इंडियंस की सूची में से केवल मीडिया से जुड़े 12 नाम छापे थे। बड़ी संख्या में मित्रों ने अखबार का वह सप्लीमेंट नहीं देखा। संयोग से इस साल एक्सप्रेस की साइट पर भी वह उपलब्ध नहीं है। इस सूची के पूरे नाम नीचे दे रहा हूं ताकि आप देख सकें कि एक्सप्रेस के पावरफुल कौन हैं।

1. एसके कपाडिया,
2. सोनिया गांधी,
3.मनमोहन सिंह,
4.सुषमा स्वराज,
5.राहुल गांधी,
6.नितीश कुमार,

Sunday, January 30, 2011

पत्रकारिता के पावरफुल


100'11


इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले कुछ वर्षों से देश के सबसे पावरफुल 100 लोगों की सूची छापनी शुरू की है। इस सूची को पढना रोचक है। देश के उच्च मध्यवर्ग के नज़रिए से बनी इस सूची के अनुसार सत्ता के गलियारों और बिजनेस हाउसों से जुड़े लोग देश के सबसे ताकतवर लोग होते हैं। सूची में पहला नाम सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया का है। उसके बाद सोनिया गांधी और फिर मनमोहन सिंह का नाम है। एक माने में यह सुप्रीम कोर्ट की ताकत है। पर पूरी सूची सूची में संसद की ताकत का प्रतिनिधि कोई नहीं है।