Friday, August 18, 2017

चुनाव सुधार पर कुछ खरी बातें

पिछले कुछ वर्षों का अनुभव है कि देश के राजनीतिक दलों ने वोटिंग मशीन के विरोध पर जितना वक्त लगाया है, उतना वक्त वे चुनाव सुधार से जुड़े मसलों पर नहीं लगाते। वे चाहें तो आसानी से संसद ऐसा कानून बना सकती है, जिसमें चंदे की व्यवस्था पारदर्शी बन जाए। सभी (खासतौर से बीजेपी -कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलों) की दिलचस्पी इस बात में होती है कि चंदा देने वाले का नाम छिपाया जाए। बहरहाल दिल्ली में गुरुवार को हुई दो गतिविधियाँ इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। 

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने गुरुवार 17 अगस्त 2017 को दिल्ली में हुई एक बैठक में कहा कि हमारी राजनीतिक नैतिकता में कुछ नई बातें शामिल होती जा रहीं हैं (creeping new normal of political morality)। अब हम किसी भी कीमत पर जीतने को सामान्य बात मानकर चलने लगे हैं। यह बैठक एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नामक संस्था ने बुलाई थी। बैठक का विषय था ‘Consultation on Electoral and Political Reforms।’  

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि सामान्य व्यक्ति ने कुछ बातों को स्वीकार कर लिया है, “In this narrative, poaching of legislators is extolled as smart political management; strategic introduction of money for allurement, tough-minded use of state machinery for intimidation etc. are all commended as resourcefulness.

“The winner can commit no sin; a defector crossing over to the ruling camp stands cleansed of all the guilt as also possible criminality. It is this creeping ‘new normal’ of political morality that should be the target for exemplary action by all political parties, politicians, media, civil society organisations, constitutional authorities and all those having faith in democratic polity for better election, a better tomorrow,” he added.

मुख्य चुनाव आयुक्त की इन बातों की ताजा पृष्ठभूमि गुजरात में हुए राज्यसभा के चुनाव हैं। इन चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस के 8 विधायकों ने पार्टी छोड़ने की घोषणा की। ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशी अहमद पटेल के सामने संकट पैदा हो गया। इसके बाद कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को कर्नाटक के एक लक्जरी रिजॉर्ट में पहुँचा दिया। 
मतदान के दिन दो विधायकों के वोटों को लेकर तकनीकी सवाल पैदा हुआ। चुनाव अधिकारी ने उन दो विधायकों (भोलाभाई गोहिल और राघवजीभाई पटेल) के वोटों को वैध माना, जिन्होंने वोट देने के पहले उनकी जानकारी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह को दी थी। अंततः मुख्य चुनाव आयुक्त ने संविधान के अनुच्छेद 324 का इस्तेमाल करते हुए उन वोटों को अवैध करार दिया और अहमद पटेल जीते। 
एडीआर की बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त ने सुझाव दिया कि पेड न्यूज को चुनाव प्रक्रिया के तहत अपराध घोषित किया जाना चाहिए, जिसमें दो साल की कैद की व्यवस्था हो। इसके अलावा उन्होंने सलाह दी कि राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च की सीमा तय होनी चाहिए। उन्होंने राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे के लिए प्रस्तावित बॉण्ड (electoral bonds ) को लेकर भी अपनी आपत्ति व्यक्त की। साथ ही जन प्रतिनिधित्व कानून में उस प्रस्तावित बदलाव से असहमति व्यक्त की, जिसमें चुनाव बॉण्ड के मार्फत चंदा देने वालों का विवरण सार्वजनिक नहीं करने की व्यवस्था होगी।  
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

इसके साथ एनडीटीवी इंडिया की इस खबर को भी पढ़ें

चुनावी ट्रस्टों ने राजनीतिक दलों को दिया करोड़ों का चंदा, एडीआर ने उठाए कई सवाल

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले छह चुनावी ट्रस्टों के ऊपर सवाल उठाया है। एडीआर इंडिया ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि देश के अंदर ऐसे छह चुनावी ट्रस्ट हैं, जो 2013 से पहले रजिस्टर हुए हैं और चुनावी ट्रस्टों के लिए 2013 में सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। एडीआर इंडिया ने यह भी सवाल उठाया है कि ये चुनावी ट्रस्ट सिर्फ कर-माफ़ी के लिए बनाए गए हैं या काला धन को सफेद धन में बदलने के लिए बनाए गए हैं, यह कहना मुश्किल है।  
क्या है चुनावी ट्रस्ट : राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच लेन-देन को लेकर कई बार सवाल उठाए जाते हैं। राजनीतिक दलों और कंपनी के बीच चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए 2013 में सरकार ने कंपनियों के द्वारा चुनावी ट्रस्टों को बनाने की अनुमति दे दी थी। सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियम के तहत यह बताया गया था कि जो भी कंपनी चुनावी ट्रस्ट बनाएगी वह अपने-अपने चुनावी ट्रस्ट और शेयर धारकों के योगदान के बारे में पूरी जानकारी चुनाव आयोग पास जमा कराएगी। इस नियम के तहत यह भी लिखा गया था कि इन ट्रस्टों को जितना भी चंदा मिलेगा, वह उसका 95 प्रतिशत राजनीतिक दलों को देंगे।  
2014 -15 में कैसे हुए राजनीतिक दल मालामाल : एडीआर ने जो रिपोर्ट पेश की है उसमें बताया गया है कि वर्ष 2014-15 में चुनावी ट्रस्टों ने 177.55 करोड़ चंदे के रूप में कमाए हैं और उनमें से 177.40 करोड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दिया है। अलग-अलग कंपनियों से इन ट्रस्टों को पैसा मिला है। इन ट्रस्टों से सबसे ज्यादा चंदा 111.35 करोड़ बीजेपी को मिला है, कांग्रेस को 31.658 करोड़ फिर एनसीपी को 6.783 करोड़, बीजू जनता दल को 5.256 करोड़, आम आदमी पार्टी को 3 करोड़, इंडियन लोक दल को 5.005 करोड़ और अन्य दलों को कुल मिलाकर 14.348 करोड़ मिले हैं।   
एडीआर क्यों उठा रहा है सवाल : एडीआर का कहना है कि 2013 से पहले ऐसे छह चुनावी ट्रस्ट बने हैं, जो 2013 में सीबीडीटी के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनको यह लगता है कि उनका ट्रस्ट 2013 से पहले बना है और इन नियम को मानना कोई जरूरी नहीं है, लेकिन इन छह ट्रस्टों को चंदा मिलता रहता है और वे राजनीतिक दलों का चंदा देते रहते हैं। एडीआर का कहना है कि इन छह चुनावी ट्रस्टों ने 2004-05 और 2011-12 में राजनैतिक दलों को कुल मिलाकर 105 करोड़ का चंदा दिया था।
इन कंपनियों में से एक ऐसी कंपनी भी है, जो 2014 -15 में सात राजनैतिक दलों को अकेले 131.65 करोड़ चंदा दे चुकी है, लेकिन इन चुनावी ट्रस्टों ने कोई जानकारी नहीं दी है कि उन्हें किन-किन कंपनियों से चंदा मिला है।

एडीआर क्या मांग कर रहा है : एडीआर यह मांग कर रहा है कि 2013 से पहले ये जो छह ट्रस्ट बने हैं, उनको चंदा देने वाली कंपनी का नाम जाहिर करना चाहिए। लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए इन कंपनियों को भी 2013 के नियम को पालन करना चाहिए और यह नियम उन पर भी लागू होना चाहिए। एडीआर का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी ट्रस्टों मूल कंपनी या कंपनियों के नाम पर बनाना चाहिए। एडीआर यह भी मांग कर रहा है कि जो भी चुनावी ट्रस्ट चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश का पालन नहीं कर रहा है उस पर करवाई होनी चाहिए।





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