इन दिनों सोशल मीडिया पर इस मसले पर खबरें खूब शेयर की जा रही हैं. इस तरह की खबरों के आने से बैंकिंग सिस्टम से अनजान हम जैसे मिडिल क्लास लोग परेशान होने लगते हैं, क्योंकि हमारी छोटी सी जमा-पूंजी बैंकों में ही रहती है. सोशल मीडिया में इन मसलों को लेकर लगातार लिखने वाले शरद श्रीवास्तव ने इस संबंध में वैबसाइट 'बिहार कवरेज' तथ्यपरक आलेख लिखा है, जिसमें उन्होंने इस बिल से जुड़े तमाम छोटे-बड़े मसले की ओर इशारा किया है.शरद श्रीवास्तव
जब तक रुपया हमारी जेब में रहता है, हमारी तिजोरी पर्स में रहता है. वो हमारा होता है, हम उसके मालिक होते हैं. लेकिन जब यही पैसा हम बैंक में जमा करते हैं तो हम बैंक की बुक्स में एक सनड्राई क्रेडिटर हो जाते हैं. एक अनसिक्योर्ड क्रेडिटर. एक नाम. सिक्योर्ड क्रेडिटर होते हैं अन्य बैंक, सरकार. अगर एक बैंक दिवालिया होता है तो बैंक में जो पैसा बचा होता है, उस पर पहला हक़ सिक्योर्ड क्रेडिटर्स का होता है. उनका पैसा चुकाने के बाद जो बचा खुचा होता है वो अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स यानी डिपॉजिटर्स यानी की आम आदमी को मिलता है.
सन 1958 में दो बड़े बैंक फेल हुए. उनमे से एक अवध कमर्शियल बैंक था. आम जनता को बड़ा नुक्सान हुआ. नेहरू जी ने 1961 में एक कानून बनाया जिसमे आम जनता के जमा पैसे को सुरक्षित करने के लिए इंश्योरेंस का प्रावधान किया गया. लेकिन ये इंश्योरेंस केवल 5000 का था. भले बैंक में आपके करोड़ों रूपये जमा होते, लेकिन दिवालिया बैंक घोषित होने के बाद आपको केवल 5000 मिलते. यह राशि 1993 तक चार बार बढ़ा कर 30000 रुपये की गयी.
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एफआरडीआई विधेयक देगा सुरक्षा
ईशान बख्शी / नई दिल्ली December 08, 2017
वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक (एफआरडीआई) में जमा बीमा नियम के तहत जमा की सुरक्षा की बात की गई है। बहरहाल भुगतान की जाने वाली राशि के बारे में विधेयक में कुछ नहीं कहा गया है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ समाधान निगम के बातचीत के बाद इसे तय किया जाएगा। इस समय मंदी की स्थिति में एक लाख रुपये तक की जमा राशि बीमित है।
विधेयक में गैर बीमित जमा दावों को भी प्राथमिकता की सूची में उच्च प्राथमिकता पर रखा गया है, जबकि मौजूदा ढांचे के तहत ऐसा नहीं है। इसके अलावा बेल इन के मामले में सिर्फ वे देनदारियां निरस्त की जाएंगी, जिन पर जमाकर्ता सहित सभी पक्ष सहमत होंगे। एफआरडीआई विधेयक 2017 लोकसभा में अगस्त महीने में पेश किया गया था, जिसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। इस विधेयक में वित्तीय सेवा प्रदाताओं जैसे बैंकों के दिवालिया होने जैसी स्थिति से निपटने के लिए समाधान पेश किया गया है। इसमेंं समाधान निगम का प्रावधान है, जिसे कमजोर बैंकों की निगरानी का अधिकार होगा और वह व्यवस्थित तरीके से दिवालिया मामलों में कदम उठा सकेगा।
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बिजनेस स्टैंडर्ड का सम्पादकीय
सुरक्षित हो जमा
संपादकीय / December 07, 2017
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंकों में अपना पैसा जमा करने वाले लोगों को उनकी जमा सुरक्षित रहने का आश्वासन देते हुए कहा है कि फाइनैंशियल रेजॉल्यूशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) विधेयक, 2017 अभी मसौदे के रूप में है और सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जमाकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा हो। विधेयक को इस वर्ष अगस्त में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया और यह संसद की एक स्थायी समिति के पास है। पहले माना जा रहा था कि इसे शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कर दिया जाएगा। यह विधेयक बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य वित्तीय प्रतिष्ठानों की दिवालिया प्रक्रिया को हल करने के लिए एक नया ढांचा तैयार करने से संबंधित है। इसके लिए एक निस्तारण निगम गठित किया जाएगा जो यह निर्धारित करेगा कि बैंकों के विफल होने का खतरा तो नहीं है और अगर है तो इसके लिए सही उपचार क्या होगा।
वित्त मंत्री का आश्वासन स्वागतयोग्य है, लेकिन जमाकर्ता और स्पष्ट तरीके से यह जानना चाहेंगे कि सरकार प्रस्तावित विधान में और क्या बदलाव लाना चाहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने मौजूदा स्वरूप में विधेयक में इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है कि फंसे कर्ज वाले बैंकों तथा अन्य संस्थानों के जमाकर्ताओं का पैसा कैसे सुरक्षित होगा। फिलहाल एक बैंक का जमाकर्ता इस बात से आंशिक राहत पा सकता है कि सन 1961 में गठित जमा बीमा एवं ऋण गारंटी निगम के अधीन उसका जमा कम से कम एक लाख रुपये तक तो सुरक्षित है। परंतु अपने मौजूदा स्वरूप में एफआरडीआई विधेयक कई बड़े बदलाव लाता है। विधेयक निस्तारण निगम को यह अधिकार देता है कि वह हर जमाकर्ता की सुरक्षित जमा का निर्धारण करे। इससे इस राशि की सीमा को लेकर संदेह पैदा हो रहा है। सैद्घांतिक तौर पर यह भी संभव है कि बीमित जमा अलग-अलग बैंकों के ग्राहकों के लिए अलग-अलग हो। बल्कि एक ही बैंक में अलग-अलग ग्राहकों के लिए यह अलग हो सकती है।
एफआरडीआई विधेयक किसी भी तरह से बैंकों को वित्तीय और निस्तारण सहायता देने के सरकार के अधिकार को सीमित करने का प्रस्ताव नहीं रखता और सरकारी बैंकों को मिलने वाली अंतर्निहित गारंटी भी अक्षुण्ण रहेगी। परंतु अवधारणा के स्तर पर समस्या है। उदाहरण के लिए 'बेल इन' प्रावधान के आने से यह डर पैदा हुआ है कि नया कानून बैंकों को यह अधिकार दे देगा कि वे अपने ग्राहकों की जमा का मूल्य कम कर सकें या उसे घटा सकें। हालांकि विधेयक में स्पष्टï तौर पर उन श्रेणियों का जिक्र है जिनको बेल इन में शामिल नहीं किया जाएगा। इसमें बीमित जमा का जिक्र है लेकिन गारंटीड राशि का उल्लेख न होने से भ्रम हो रहा है। उन परिस्थितियों के बारे में भी और अधिक स्पष्टïीकरण होना चाहिए जिनके अधीन बेल इन प्रावधान लागू होंगे।
ऐसा करना आवश्यक है क्योंकि हाल ही में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा आयोजित एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश के आम परिवारों में 95 फीसदी से ज्यादा अपने पैसों को बैंकों में जमा करने को ही प्राथमिकता देते हैं। जबकि 10 फीसदी से भी कम लोग म्युचुअल फंड या बैंक जमा में निवेश करते हैं। इसके अलावा हाल की वित्तीय समावेशन संबंधी पहल, मसलन जन धन योजना आदि ने भी देश के लाखों लोगों को औपचारिक बैंकिंग का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया है। सरकार का यह आश्वासन देना काफी नहीं है कि एफआरडीआई विधेयक के आगमन के बाद कुछ नहीं बदलेगा और लोगों का धन पहले की तरह सुरक्षित रहेगा। जरूरत इस बात की है कि विधेयक के संदर्भित प्रावधानों को और अधिक स्पष्ट किया जाए ताकि बैंकों में अपना पैसा जमा करने वाले लोग सुरक्षित महसूस कर सकें।
बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट
क्या है मोदी की 'दूसरी नोटबंदी' की ख़बरों का सच?
विकास त्रिवेदी
बीबीसी संवाददाता, 8 दिसंबर 2017
बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर ये चर्चा शुरू हुई है कि मोदी सरकार नया क़ानून लाने जा रही है. कुछ लोग इसे 'दूसरी नोटबंदी' तक क़रार दे रहे हैं.
इन ख़बरों का आधार वो मीडिया रिपोर्ट्स हैं, जिनमें फ़ाइनेंशियल रेज़ोल्यूशन एंड डिपॉज़िट इंश्योरेंस बिल (FRDI) को लेकर कई तरह के शक़ ज़ाहिर किए जा रहे हैं.
कहा ये भी जा रहा है कि इस बिल के पास होने के बाद बैंकों के डूबने की स्थिति में जमाकर्ताओं की बैंक में जमा रकम को लेकर जो पुराना नियम है, उसे बदला जा सकता है.
मौजूदा नियम के मुताबिक, अगर कोई सरकारी बैंक दिवालिया होता है, तो किसी भी खाताधारक को सरकार कम से कम एक लाख रुपये लौटाने के लिए प्रतिबद्ध है. यानी अगर किसी व्यक्ति का बैंक में दो लाख रुपये जमा है तो बैंक के दिवालिया होने की सूरत में उसे कम से कम एक लाख रुपये तो मिलने की गारंटी है.
ये बिल मॉनसून सत्र में पेश किया गया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को लेकर विशेषज्ञों से लेकर सांसदों तक की राय इसके हक़ में नहीं थी, लिहाजा सरकार को एफ़आरडीआई बिल का मसौदा पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजना पड़ा.
अब कहा जा रहा है कि शीतकालीन सत्र में ये कमेटी अपनी रिपोर्ट जमा कर सकती है.
पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ
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