अयोध्या मामले पर सत्तर साल से ज्यादा
समय से चल रहा कानूनी विवाद तार्किक परिणति तक पहुँचने वाला है। न्याय-व्यवस्था के
लिए तो यह मामला मील का पत्थर साबित होगा ही, देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए भी
युगांतरकारी होगा। मामले की सुनवाई के आखिरी दिन तक और अब फैसला आने के पहले इस
बात को लेकर कयास हैं कि क्या इस मामले का निपटारा आपसी समझौते से संभव है? ऐसा संभव होता तो अबतक हो चुका होता। न्यायिक
व्यवस्था को ही अब इसका फैसला करना है। अब मनाना चाहिए कि इस निपटारे से किसी किस्म की सामाजिक बदमज़गी पैदा न हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को
चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की लगातार सुनवाई के दौरान
यह बदमज़गी भी किसी न किसी रूप में व्यक्त हुई थी। अदालत में सुनवाई के आखिरी दिन
भी कुछ ऐसे प्रसंग आए, जिनसे लगा कि कड़वाहट कहीं न कहीं गहराई तक बैठी है। अदालत
के सामने अलग-अलग पक्षों ने अपनी बात रखी है। उसके पास मध्यस्थता समिति की एक
रिपोर्ट भी है। इस समिति का गठन भी अदालत ने ही किया था।