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Monday, September 10, 2012

पाकिस्तान के साथ ठंडा-गरम

पाकिस्तान से जुड़ी इस हफ्ते की दो बड़ी खबरें हैं। एक, पाकिस्तान के साथ सार्थक बातचीत और दूसरे हक्कानी नेटवर्क पर कसता शिकंजा। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा की पाकिस्तान यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि है नई वीज़ा व्यवस्था। पर इसे आंशिक उपलब्धि कहा जाना चाहिए। मई में यह समझौता तैयार था। दोनों देशों के विदेश सचिव इसपर दस्तखत करने वाले थे कि पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने कहा कि इसपर दस्तखत राजनीतिक स्तर पर होने चाहिए। अलबत्ता यह उपलब्धि है, क्योंकि दोनों देशों के लोग बड़ी संख्या में आना-जाना चाहते हैं। तमाम रिश्तेदारियाँ हैं, सांस्कृतिक रिश्ते हैं, मीडिया का संवाद है और नया व्यापारिक माहौल है। दोनों देशों के बीच एक सांस्कृतिक समझौते के आशय पत्र पर भी दस्तखत हुए हैं। एक लिहाज़ से हम एक एक कदम आगे बढ़े हैं। 26 नवम्बर 2008 के बाद से रिश्तों में तल्खी आ गई थी, उसमें कुछ कमी हुई है। पर कुछ बुनियादी सवाल सामने आते हैं। एक, क्या भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी खुशनुमा हो पाएंगे? क्या दोनों देशों की सरकारों में इतनी सामर्थ्य है कि वे बुनियादी सवालों पर समझौते कर सकें? और क्या अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के बाद इस इलाके में अस्थिरता और नहीं बढ़ेगी?

Monday, September 3, 2012

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में उम्मीदें और उलझाव

तेहरान में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं पाकिस्तान यात्रा पर ज़रूर जाना चाहूँगा, पर उसके पहले माहौल बेहतर बनना चाहिए। व्यावहारिक रूप में इसका मतलब यह है कि मुम्बई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर इस मामले से जुड़े सात अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तानी अदालत में कारवाई बेहद सुस्ती से चल रही है। रावलपिंडी की अडियाला जेल में सुनवाई कर रही अदालत में पाँच जज बदले जा चुके हैं। अभियुक्तों के खिलाफ साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी भारत की है। पाकिस्तान के वकील और जज सातों अभियुक्तों से हमदर्दी रखते हैं। यह अदालत इंसाफ करे तो भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कदम कोई नहीं हो सकता। भारत की सबसे बड़ी निराशा इस कारण है कि लश्करे तैयबा का प्रमुख हफीज़ सईद खुले आम घूम रहा है। पाकिस्तानी अदालतों को उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।

Tuesday, August 28, 2012

देश चाहता है हर कालिख पर खुली बहस हो


लोकतंत्र के माने अराजकता, असमंजस, अनिश्चय और अस्थिरता है तो वह हमारे यहाँ सफल है। संसद के मौजूदा सत्र में प्रस्तावित 20 बैठकों में से आधी के आसपास गुज़र चुकीं हैं और काम-काज के नाम अ आ इ ई भी नहीं है। पहले असम और म्यामार से जुड़ी अफवाहों का बाज़ार गर्म था, फिर दक्षिण भारत के शहरों से भगदड़ की खबरें आईं। अब कोयले के काले धंधे की वजह से संसद ठप है। पिछले दो साल में तीसरी या चौथी बार संसद इस तरीके से ठप हुई है। सम्भव है आज की सर्वदलीय बैठक में कोई रास्ता निकल आए, पर हालात अच्छे नहीं हैं। देश पर सूखे की मार है। विकास-दर लगातार नीचे जा रही है। ऐसा चलता रहा तो रोजगार की स्थितियाँ बिगड़ जाएंगी। मुफलिसो-मज़लूम के सामने खड़ी मुश्किलों के पहाड़ बढ़ते ही जाएंगे।

Monday, August 20, 2012

विकीलीक्स की साख पर राजनीति का साया

विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को जानने वालों की संख्या हमारे देश में ज्यादा नहीं है, पर जो जानते हैं वे उनके साहस की तारीफ करते हैं। विकीलीक्स धीरे-धीरे एक वैश्विक शक्ति बनता जा रहा है। यह पत्रकारिता वह मिशनरी पत्रकारिता है, जो इस कर्म का मर्म है। जिस तरह से विकीपीडिया ने ज्ञान की राह खोली है उसी तरह विकीलीक्स ने इस ज़माने की पत्रकारिता का रास्ता खोला है। पर यह रास्ता बेहद खतरनाक है। इसमें मुकाबला दुनिया की ताकतवर सरकारों से है। पर उसे यह भी साबित करना होगा कि यह न तो कोई खुफिया संस्था है और न अमेरिका-विरोधी। यह सिर्फ अनाचार और स्वयंभू सरकारों के विरुद्ध है। इसने अमेरिका, चीन, सोमालिया, केन्या और आइसलैंड तक हर जगह असर डाला है। कुछ समय पहले तक कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे कौन है। बाद में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जूलियन असांज सामने आए। दुनिया की सबसे ताकतवर सरकारों के बारे मे निगेटिव सामग्री का प्रकाशन बेहद खतरनाक है। विकीलीक्स के पास न तो इतना पैसा है और न ताकत। अदालतें उसके खिलाफ कार्रवाई करतीं है। पर धीरे-धीरे इसे दुनिया के सबसे अच्छे वकीलों की सेवाएं मुफ्त मिलने लगीं हैं। जनता के दबाव के आगे संसदें झुकने लगीं हैं।

Monday, August 13, 2012

खेलों को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ पाए हैं हम

लंदन ओलिम्पिक खेल भारत के लिए अब तक के सफलतम ओलिम्पिक्स थे। इससे पहले बीजिंग में हमने तीन मेडल जीते थे। इस बार उससे ज्यादा जीतने में सफल रहे। पर हम उतनी सफलता हासिल नही कर पाए, जिसकी उम्मीद थी। खास तौर से हमारी हॉकी टीम का प्रदर्शन बेहद खराब था। अभी तक हॉकी में हमारी टीम की स्थिति दुनिया में दसवें नम्बर पर थी जो इस बार उससे भी नीचे चली गई। पर इस लेख का उद्देश्य खेल-समीक्षा नहीं है, बल्कि इस ओलिम्पिक के बहाने खेल और समाज के रिश्तों को समझना है। ओलिम्पिक खेल राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से जुड़ते हैं। पर मामला केवल प्रतिष्ठा का नहीं है। सामाजिक, सांस्कृतिक संरचना का परिचय भी खेलों से मिलता है।

Monday, August 6, 2012

पाकिस्तान के साथ कारोबारी राह पर चलने में समझदारी है

पिछले बुधवार को भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटा ली। अब पाकिस्तानी निवेशक रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश कर सकेंगे। हालांकि यह घोषणा अचानक हुई लगती है पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में कर लिया गया था। परोक्ष रूप में यह आर्थिक निर्णय लगता है और इसके तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं भी। फिर भी यह फैसला राजनीतिक है। उसी तरह जैसे पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को भारत बुलाने का फैसला। दोनों देशों के रिश्ते बहुत मीठे न भी नज़र आते हों, पर ऐसा लगता है कि दोनों नागरिक सरकारों के बीच संवाद काफी अच्छे स्तर पर है। पाकिस्तान में एक बड़ा तबका भारत से रिश्ते बनाने के काम में लगातार अड़ंगे लगाता है। पर लगता है कि खेल, संगीत और कारोबारी रिश्ते दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने में मददगार होंगे।

Monday, July 16, 2012

इस बार भी वक्त से पहले दम तोड़ेगी पाकिस्तान की नागरिक सरकार

पाकिस्तान की संसद ने पिछले सोमवार को अदालत की अवमानना के जिस नए कानून को पास किया उसपर गुरुवार को राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी के दस्तखत हो गए। उसी रोज़ देश के सुप्रीम कोर्ट ने नए प्रधानमंत्री राजा परवेज़ को निर्देश दिया कि वे स्विट्ज़रलैंड के अधिकारियों को चिट्ठी लिखकर आसिफ अली ज़रदारी के खिलाफ मुकदमों को फिर से खोलने का अनुरोध करें। अदालत ने यह चिट्ठी लिखने के लिए 25 जुलाई तक का वक्त दिया है। अदालती अवमानना के कानून में संशोधन होते ही अदालत में उसके खिलाफ याचिका दायर हो गई और प्रधानमंत्री, अटॉर्नी जनरल सहित दस प्रतिवेदकों के नाम शुक्रवार की शाम नोटिस ज़ारी हो गए। इस मामले में सुनवाई 23 जुलाई को होगी। प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने की समय सीमा के दो दिन पहले। सुप्रीम कोर्ट ने राजा परवेज़ अशरफ को दिए निर्देश में इस बात का हवाला भी दिया है कि पिछले प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी इस मामले की वज़ह से हटाए जा चुके हैं। साथ ही यह भी कि फैसले पर अमल नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई होगी। अदालत और नागरिक शासन के बीच सीधे टकराव को टालने का अब कोई रास्ता नहीं बचा है। न्यायपालिका के आक्रामक रुख को देखते हुए सरकार के पास अब न तो वक्त बचा है और न सियासी हालात उसके पक्ष में हैं। पाकिस्तान में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया और न किसी संसद ने। इस संसद का कार्यकाल अभी आठ महीने बाकी है। लगता नहीं कि यह पूरा होगा। और हो भी जाए, तो स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्पराएं बुरी तरह घायल हो चुकी होंगी।

Monday, July 9, 2012

नया वैश्विक सत्य, उन्माद नहीं सहयोग

दिफाए पाकिस्तान कौंसिल ने रविवार को लाहौर से लांग मार्च शुरू किया है, जिसका उद्देश्य नेटो सेनाओं की रसद सप्लाई पर लगी रोक हटाने के खिलाफ नाराज़गी जताना है। इस बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान को गैर-नेटो देशों में अपने सामरिक साझीदारों की सूची में शामिल करके आने वाले समय में इस इलाके के सत्ता संतुलन का संकेत दिया है। पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को समझ में आने लगा है कि यह वक्त आर्खिक सहयोग का है, टकराव का नहीं, पर वहाँ का कट्टरपंथी तबका इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है

हाल में भारत आए पाकिस्तान के विदेश सचिव जलील अब्बास जीलानी और भारत के विदेश सचिव रंजन मथाई के बीच दो दिन की बातचीत के बाद हुई प्रेस कांफ्रेस में दोनों सचिवों ने मीडिया से अपील की कि वह दोनों देशों के बीच टकराव का माहौल न बनाए। इस बातचीत का मकसद दोनों देशों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाना था, जिसमें जम्मू-कश्मीर, आतंकवाद और भरोसा बढ़ाने वाले कदम (सीबीएम) शामिल हैं। दोनों देशों के रिश्ते जिस भावनात्मक धरातल पर हैं, उसमें सबसे बड़ा सीबीएम मीडिया के हाथ में है। जब भी भारत और पाकिस्तान का मैच खेल के मैदान पर होता है मीडिया में ‘आर्च राइवल्स’, परम्परागत प्रतिद्वंदी, जानी दुश्मन जैसे शब्द हवा में तैरने लगते हैं। किसी एक की विजय पर उस देश में जिस शिद्दत के साथ समारोह मनाया जाता है तकरीबन उसी शिद्दत से हारने वाले देश में शोक मनाया जाता है। इसके विपरीत दोनों देशों के बीच की सरकारी शब्दावली पर जाएं तो उसमें काफी बदलाव आ गया है। ताजा संयुक्त वक्तव्य को पढ़ें तो यह फर्क समझ में आएगा। पर दोनों विदेश सचिवों के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बातें बार-बार अबू जुंदाल पर जा रहीं थीं। 

Tuesday, July 3, 2012

मसाज़ तक ठीक, मज़ाक तो न बने मीडिया

अखबार के दफ्तरों में हाल में नए आए पत्रकारों में एक बुनियादी फर्क उनके काम की शैली का है। आज के पत्रकार को जो तकनीक उपलब्ध है वह बीस साल पहले उपलब्ध नहीं थी। बीस साल पहले फोटो टाइप सैटिंग शुरू हो गई थी, पर सम्पादकों ने पेज बनाने शुरू नहीं किए थे। कम से कम हमारे देश में नहीं बनते थे। 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था। उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं। 1987 में माइक्रोसॉफ्ट की विंडोज़ 1.0 आ गई थी। 1987 में ही क्वार्क इनकॉरपोरेटेड ने क्वार्कएक्सप्रेस का मैक और विंडो संस्करण पेश कर दिया। यह पेज बनाने का सॉफ्टवेयर था, पर सूचना और संचार की तकनीक का विस्तार उसके पहले से चल रहा था। टेलीप्रिंटर, लाइनो-मोनो टाइपसैटिंग, फैक्स और जैरॉक्स जैसी तमाम तकनीकों का वैश्विक-संवाद में क्या स्थान है इसे समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। आज से तीस साल पहले वेस्ट इंडीज़ में हो रहे क्रिकेट मैच की खबर तीसरे रोज़ अखबारों में पढ़ने को मिलती थी। कुछ समर्थ अखबार ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो भी छापते थे। पर 1996 के एटलांटा ओलिम्पिक के रंगीन टीवी प्रसारण से फोटो ग्रैब करके एक हिन्दी अखबार ने जब छापे तब लगा कि क्रांति तो हो गई। पर इस लेख का उद्देश्य अखबारों की तकनीकी क्रांति पर रोशनी डालना नहीं है।

Monday, June 25, 2012

तख्ता पलट बतर्ज पाकिस्तान-पाकिस्तान


सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

पाकिस्तान में इन दिनों अफवाहों का बाज़ार गर्म है। कोई कहता है कि फौज टेक ओवर करेगी। दूसरा कहता है कि कर लिया। युसुफ रज़ा गिलानी से शिकायत बहुत से लोगों को थी, पर जिस तरीके से उन्हें हटाया गया, वह बहुतों को पसंद नहीं आया। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें हटाने में फौज की भूमिका भी है। भूमिका हो या न हो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सहयोगी दल एमक्यूएम ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि फौज को बुला लेना चाहिए। फिलहाल सवाल यह है कि मुल्क में जम्हूरियत को चलना है या नहीं। बहरहाल राजा परवेज़ अशरफ को चुनकर संसदीय व्यवस्था ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। इसके पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने मख्दूम शहाबुद्दीन को इस पद के लिए प्रत्याशी बनाया था। पर अचानक एक अदालत ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी कर दिया और प्रत्याशी बदल दिया। क्या यह सिर्फ संयोग था? इस विषय पर कुछ देर बाद बात करेंगे।

Monday, June 18, 2012

समय से सबक सीखो ममता दी

पिछले बुधवार सोनिया गांधी के साथ मुलाकात करने के बाद ममता बनर्जी जितनी ताकतवर नज़र आ रहीं थीं, उतनी ही कमज़ोर आज लग रहीं हैं। राजनीति में इस किस्म के उतार-चढ़ाव अक्सर आते हैं, पर पिछले एक अरसे से ममता बनर्जी का जो ग्राफ क्रमशः ऊपर जा रहा था, वह ठहर गया है। एक झटके में उनकी सीमाएं भी सामने आ गईं। अभी तक कांग्रेस मुलायम सिंह के मुकाबले ममता को ज्यादा महत्व दे रही थी, क्योंकि उसे पता है कि मुलायम सिंह अपनी कीमत वसूलना जानते हैं। ममता बनर्जी ने जो बाज़ी चली वह कमजोर थी। जिन एपीजे अब्दुल कलाम को वे प्रत्याशी बनाना चाहती थीं उनकी रज़ामंदी उनके पास नहीं थी। बहरहाल वे अब अकेली और मुख्यधारा की राजनीति से कटी नज़र आती हैं। बेशक उनके पास विकल्प खुले हैं। पर एक साल के मुख्यमंत्री पद और पिछले छह महीने में राष्ट्रीय राजनीति से प्राप्त अनुभवों का लाभ उन्हें उठाना चाहिए। वे देश की उन कुछ नेताओं में से एक हैं जो सिर्फ अपने दम पर राजनीति की राह बदल सकते हैं। देखना यह है कि बदलते वक्त से वे कोई सबक सीखती हैं या नहीं।

Monday, June 11, 2012

अफगानिस्तान को लेकर बढ़ती तल्खियाँ

पिछले हफ्ते भारत-पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संदर्भ में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। पहली थी अमेरिका के रक्षामंत्री लियन पेनेटा का अफगानिस्तान और भारत का दौरा। और दूसरी थी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की पेइचिंग में हुई बैठक। आप चाहें तो दोनों में कोई सूत्र न ढूँढें पर खोजने पर तमाम सूत्र मिलेंगे। वस्तुतः पेनेटा की भारत यात्रा के पीछे इस वक्त कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं था, सिर्फ अमेरिका की नीति में एशिया को लेकर बन रहे ताज़ा मंसूबों से भारत सरकार को वाकिफ कराना था। इन मंसूबों के अनुसार भारत को आने वाले वक्त में न सिर्फ अफगानिस्तान में बड़ी भूमिका निभानी है, बल्कि हिन्द महासागर से लेकर चीन सागर होते हुए प्रशांत महासागर तक अमेरिकी सुरक्षा के प्रयत्नों में शामिल होना है। अमेरिका की यह सुरक्षा नीति चीन के लिए परेशानी का कारण बन रही है। वह नहीं चाहता कि भारत इतना खुलेआम अमेरिका के खेमे में शामिल हो जाए।

Monday, June 4, 2012

नेपाल के आकाश पर असमंजस के मेघ

नेपाल के गणतांत्रिक लोकतंत्र का सपना अचानक टूटता नज़र आ रहा है। सारे रास्ते बन्द नहीं हुए हैं, पर मई के पहले हफ्ते में जो उम्मीदें बनी थीं, वे बिखर गई हैं। देश के पाँचवें गणतंत्र दिवस यानी 27 मई को समारोहों की झड़ी लगने के बजाय, असमंजस और अनिश्चय के बादल छाए रहे। उम्मीद थी कि उस रोज नया संविधान लागू हो जाएगा और एक नई अंतरिम सरकार चुनाव की घोषणा करेगी। ऐसा नहीं हुआ, बल्कि संविधान सभा का कार्यकाल खत्म हो गया। और एक अंतरिम प्रधानमंत्री ने नई संविधान सभा के लिए चुनाव की घोषणा कर दी। पिछले चार साल की जद्दो-जेहद और तकरीबन नौ अरब रुपए के खर्च के बाद नतीज़ा सिफर रहा। चार साल के विचार-विमर्श के बावजूद तमाम राजनीतिक शक्तियाँ सर्व-स्वीकृत संविधान बनाने में कामयाब नहीं हो पाईं हैं। यह संविधान दो साल पहले ही बन जाना चाहिए था। दो साल में काम पूरा न हो पाने पर संविधान सभा का कार्यकाल दो साल के लिए और बढ़ाया गया। इन दो साल यानी 730 दिन में संविधान सभा सिर्फ 101 दिन ही बैठक कर पाई। विडंबना यह है कि मसला बेहद मामूली जगह पर जाकर अटका। मसला यह है कि कितने प्रदेश हों और उनके नाम क्या हों, इसे लेकर आम राय नहीं बन पाई।

Monday, May 14, 2012

यूरोज़ोन और पूँजीवाद का वैश्विक संकट

यूरोपीय संघ अपने किस्म का सबसे बड़ा राजनीतिक-आर्थिक संगठन है। इरादा यह था कि यूरोप के सभी देश आपसी सहयोग के सहारे आर्थिक विकास करेंगे और एक राजनीतिक व्यवस्था को भी विकसित करेंगे। 27 देशों के इस संगठन की एक संसद है। और एक मुद्रा भी, जिसे 17 देशों ने स्वीकार किया है। दूसरे विवश्वयुद्ध के बाद इन देशों के राजनेताओं ने सपना देखा था कि उनकी मुद्रा यूरो होगी। सन 1992 में मास्ट्रिख्ट संधि के बाद यूरोपीय संघ के भीतर यूरो नाम की मुद्रा पर सहमति हो गई। इसे लागू होते-होते करीब दस साल और लगे। इसमें सारे देश शामिल भी नहीं हैं। यूनाइटेड किंगडम का पाउंड स्टर्लिंग स्वतंत्र मुद्रा बना रहा। मुद्रा की भूमिका केवल विनिमय तक सीमित नहीं है। यह अर्थव्यवस्था को जोड़ती है। अलग-अलग देशों के बजट घाटे, मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें इसे प्रभावित करती हैं। समूचे यूरोप की अर्थव्यवस्था एक जैसी नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था इन दिनों दो प्रकार के आर्थिक संकटों से घिरी है। एक है आर्थिक मंदी और दूसरा यूरोज़ोन का संकट। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं।

Monday, May 7, 2012

एक और झंझावात से गुजरता नेपाल


दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर बर्मा तक और मालदीव से नेपाल तक तकरीबन हर देश में राजनीतिक हलचल है। हालांकि बर्मा को भू-राजनीतिक भाषा में दक्षिण पूर्व एशिया का देश माना जाता है, पर वह अनेक कारणों से हमेशा हमारे करीब रहेगा। भारत इन सभी देशों के बीच में पड़ता है और इस इलाके का सबसे बड़ा देश है। पर हमारा महत्व केवल बड़ा देश होने तक सीमित नहीं है। इन सभी देशों की समस्याएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती हैं।

Monday, April 30, 2012

पाकिस्तानी लोकतंत्र की परीक्षा

जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी पाया। उन्हें कैद की सज़ा नहीं दी गई। पर अदालत उठने तक की सज़ा भी तकनीकी लिहाज से सजा है। पहले अंदेशा यह था कि शायद प्रधानमंत्री को अपना पद और संसद की सदस्यता छोड़नी पड़े, पर अदालत ने इस किस्म के आदेश जारी करने के बजाय कौमी असेम्बली के स्पीकर के पास अपना फैसला भेज दिया है। साथ ही निवेदन किया है कि वे देखें कि क्या गिलानी की सदस्यता खत्म की जा सकती है।

Sunday, April 22, 2012

अग्नि ज़रूरी है उसकी तपिश ज़रूरी नहीं

पिछले बुधवार को भारतीय मीडिया में सुबह से ही अग्नि-5 के परीक्षण की तैयारियों का विवरण जिस तरह आ रहा था उससे लगता है कि किसी स्तर पर इस खबर को सायास ओवरप्ले करने का फैसला किया गया था। पिछले कुछ समय से सेना और रक्षा व्यवस्था को लेकर नकारात्मक बातें मीडिया में आ रही थीं। शायद इस परीक्षण से उनका असर कुछ कम हो। बुधवार की शाम परीक्षण नहीं हो पाया, क्योंकि मौसम साथ नहीं दे रहा था, पर गुरुवार की सुबह परीक्षण सफल हो गया। उसके बाद दिनभर अग्नि की खबरें छाई रहीं।

Monday, April 16, 2012

उत्तर कोरिया के नए शासन को झटका


उत्तर कोरिया के चीन से सटे पश्चिमोत्तर इलाके में पिछले शुक्रवार को विफल हुए रॉकेट टेस्ट के बाद दुनिया की निगाहें सुदूर पूर्व के इस देश की ओर घूम गई हैं। किम वंश के तीसरे शासक की यह पहली परीक्षा थी। इस परीक्षण को उनकी उपलब्धि के रूप में पेश किया जा रहा था। सन 2009 में भी इसी किस्म का एक परीक्षण विफल हो चुका है। 17 दिसम्बर 2011 को किम जोंग इल के निधन के बाद उनके सबसे छोटे बेटे किम जोंग-उन को गद्दी मिली है। वे किम वंश के उत्तराधिकारी हैं। क्वांगम्योंगसांग यानी चमकता सितारा नाम के जिस उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जा रहा था, उसे तकरीबन 45 करोड़ डॉलर यानी करीब करीब सवा दो हजार करोड़ के खर्च से तैयार किया गया था। खर्चे का विवरण इसलिए ज़रूरी है कि यह देश भयानक गरीबी का सामना कर रहा है। फरवरी में इसे अमेरिका ने 2,40,000 टन की खाद्य सामग्री देने का वादा किया था। इसे बाद में रद्द कर दिया गया क्योंकि यह रॉकेट परीक्षण संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा था।

Monday, April 9, 2012

असमंजस के दौर में पाकिस्तान



इस शुक्रवार को लाहौर की ज़मिया-मरक़ज़-अल-क़सिया मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद जमात-उद-दावा या लश्करे तैयबा के चीफ हफीज़ सईद ने कहा, पाकिस्तान और इस्लाम को बचाने के लिए अमेरिका के खिलाफ जेहाद छेड़ दिया गया है। इसी जेहाद की वज़ह से सोवियत संघ टूट गया था और सबको मालूम है कि उस मुल्क का क्या हुआ। और अब अमेरिका की शिकस्त हो रही है। मीडिया एक्सपर्ट और जर्नलिस्टों को अमेरिका की शिकस्त नज़र नहीं आती। मस्जिद के दरवाज़े पर बड़ा सा बक्सा रखा था। बहर जाने वालों से कहा जा रहा था कि जेहाद के लिए पैसा दें। हाल में अमेरिका ने हफीज़ सईद पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है। शायद उसी वजह से या दिखावे के लिए उसके चारों ओर हथियारबंद अंगरक्षक तैनात थे।