Thursday, October 27, 2022

शी की ताकत और चीन की आक्रामकता बढ़ी


शी चिनफिंग के अलावा चीनी पोलितब्यूरो की नई स्थायी समिति के सदस्य (ऊपर बाएं से दाएं) वांग हूनिंग, काई ची, झाओ लेजी, (नीचे बाएं से दाएं) ली शी, ली छ्यांग और दिंग श्वेशियांग। 

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने तीसरे और संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की है. अपने प्रतिस्पर्धियों को हाशिए पर डालते हुए उन्होंने वफादारों की एक नई टीम की घोषणा भी की है. शीर्ष स्तर पर तरक्कियों और तनज़्ज़ुली को देखते हुए साफ है कि वे अलग राय रखने वालों को मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे.     

शी की आर्थिक, विदेश और सैनिक नीतियों का पता आने वाले समय में ही लग पाएगा, अलबत्ता रविवार 16 अक्तूबर को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के बीसवें अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने हांगकांग में लोकतांत्रिक आंदोलन के दमन को उचित ठहराया और ताइवान पर क़ब्ज़ा करने के लिए ताकत के इस्तेमाल का भी समर्थन किया.

इस महा-सम्मेलन के चार बड़े संदेश हैं. पहला, शी चिनफिंग अब उम्रभर के लिए सर्वोच्च नेता बन गए हैं. दूसरे नंबर के नेता ली खछ्यांग हटाए गए और तीसरा है पोलितब्यूरो के सात में से चार पुराने सदस्यों को हटाकर चार नए नेताओं को पदोन्नति दी गई. और चौथा, भविष्य की आर्थिक-सामाजिक नीतियाँ.    

नेतृत्व-परिवर्तन नहीं

माओ ज़ेदुंग आजीवन महासचिव थे, पर 1976 में उनके निधन के बाद आए देंग श्याओ पिंग ने देश में सत्ता परिवर्तन की एक अनौपचारिक व्यवस्था बनाई थी कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दो कार्यकाल से ज्यादा काम नहीं करेगा. देंग के दो पसंदीदा उत्तराधिकारियों जियांग ज़ेमिन और हू जिनताओ ने इस नियम को अपने ऊपर लागू किया था.

शी चिनफिंग ने न केवल इस व्यवस्था को खत्म कर दिया है. साथ ही अपने किसी उत्तराधिकारी को भी तैयार नहीं किया है. चीन में शीर्ष नेताओं के रिटायर होने की उम्र अभी तक 68 वर्ष थी, पर 69 के शी रिटायर होने को तैयार नहीं हैं और उनकी टीम में 60 से कम का कोई भी नेता नहीं है.

वफादारों को इनाम

पार्टी की बीसवीं कांग्रेस शनिवार को खत्म हो गई थी. रविवार को शी चिनफिंग के साथ पोलितब्यूरो की स्थायी-समिति के शेष छह सदस्य पेश हुए. इनमें शी चिनफिंग, झाओ लेजी और वांग हूनिंग तीन सदस्य पुराने हैं. ये सब उनके वफादार हैं.

जो चार नए सदस्य जोड़े गए हैं उनके नाम हैं ली छ्यांग, काई ची, दिंग श्वेशियांग और ली शी. यह पोलितब्यूरो ही चीन की सत्ता का सर्वोच्च निकाय है. अब सभी सदस्य शी के पक्के वफादार हैं. दूसरे नंबर के नेता प्रधानमंत्री ली खछ्यांग और एक अन्य महत्वपूर्ण सदस्य वांग वांग हटा दिए गए हैं.

दोनों की उम्र 67 वर्ष है, जो चीन में सेवानिवृत्ति की उम्र 68 से एक साल कम है. इसके विपरीत शी चिनफिंग इस आयु सीमा से एक साल ज्यादा 69 वर्ष के हो चुके हैं. प्रधानमंत्री ली खछ्यांग का कार्यकाल मार्च 2023 में खत्म होगा. संभवतः शंघाई गुट के ली छ्यांग तब उनके स्थान पर प्रधानमंत्री बनाए जाएंगे.

शी के छह सहयोगी वरीयता क्रम से इस प्रकार हैं, 1.ली छ्यांग, जो शंघाई में पार्टी प्रमुख रह चुके हैं, 2.झाओ लेजी, जो केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग के प्रमुख रह चुके हैं, 3.विचारधाराविद वांग हूनिंग, 4.बीजिंग के पूर्व पार्टी प्रमुख काई ची, 5.शी के चीफ ऑफ स्टाफ दिंग श्वेशियांग और 6.आर्थिक गतिविधियों के केंद्र ग्वांगदोंग प्रांत के पूर्व पार्टी प्रमुख ली शी.

मध्यमार्गी हाशिए पर

स्थायी समिति पोलित ब्यूरो के 24 सदस्यों के बीच से चुनी जाती है. पोलित ब्यूरो के जो 24 सदस्य घोषित किए गए हैं, उनमें एक भी महिला नहीं है. ऐसा पिछले 25 साल में पहली बार हुआ है. बहरहाल एक बात स्पष्ट है कि शी चिनफिंग अब पूरी तरह से चीन की सत्ता पर काबिज़ हो गए हैं और वे मध्यमार्गियों के लिए कहीं भी जगह छोड़ने वाले नहीं हैं.

इन सब बातों को लेकर चीन के बाहर शी विरोधियों ने आवाज़ बुलंद की ही है, चीन के अंदर भी कुछ जगह सत्ता विरोधी पोस्टर लगे हैं, जिन्हें फौरन हटा दिया गया.

हू जिनताओ प्रकरण

पूर्व राष्ट्रपति हू जिनताओ को जिस तरह से मंच से हटाया गया, वह भी चर्चा का विषय बना है. अंतिम दिन का सत्र मीडिया के लिए खुला हुआ था. मीडिया ने खुली कवरेज की, पर हू प्रकरण से जुड़े सीएनएन के प्रसारण को चीन ने सेंसर कर दिया. चीन में उसे देखा नहीं जा सका. चीनी मीडिया यों भी सरकारी है.

सम्मेलन के आखिरी दिन विशाल सभागार के मंच पर राष्ट्रपति शी के बाईं ओर पूर्व हू जिनताओ बैठे थे. पश्चिमी मीडिया की कवरेज इशारा कर रही है कि हू जिनताओ को अनिच्छा से मंच छोड़कर जाना पड़ा.

दावेदार बाहर  

स्थायी समिति में 59 वर्षीय हू चुनहुआ भी नहीं हैं, जो अभी उप प्रधानमंत्री हैं और हू जिनताओ और ली खछ्यांग के करीबी माने जाते हैं. कुछ साल पहले माना जाता था कि हू चुनहुआ भविष्य के राष्ट्रपति हैं, पर पाँच साल पहले से ही उनपर गाज गिरने लगी थी. 2017 में उन्हें 24 सदस्यीय पोलितब्यूरो से प्रोन्नत करके सात सदस्यीय सर्वोच्च स्थायी समिति में नहीं लाया गया.

इसबार उन्हें पोलितब्यूरो से भी बाहर कर दिया गया. अतीत में उनकी संभावना इसलिए बनी थी, क्योंकि वे अब भी सबसे कम उम्र नेता हैं, पर अब स्थायी समिति में 60 साल से कम उम्र का कोई भी सदस्य नहीं है और शी खुद 68 की सीमा से एक साल आगे निकल कर अनंत काल के लिए सत्ता पर काबिज़ हो गए हैं.

सत्ता की पहेली

वैश्विक अनुभव है कि शी जिस प्रकार के निरंकुश नेता का रूप धारण करते हैं, वे सामान्य प्रक्रिया से नहीं हटते हैं. अब सवाल है कि शी कब और कैसे हटेंगे? और वे नए नेतृत्व को क्यों नहीं आने देना चाहते हैं? सत्ता पर शी का कुंडली मार कर बैठना चीनी अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं विश्व-व्यवस्था के लिए भी जटिल पहेलियाँ बनकर उभरा है.

मतलब साफ है कि चीन में वैचारिक लड़ाई देखने को मिल सकती है. अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण और निजी क्षेत्र के बीच टकराव होगा. शी चिनफिंग फौजी तैयारियों पर भी बड़ा निवेश करने को उत्सुक हैं. इससे आने वाले समय में चीन की भूमिका को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.

आर्थिक विसंगतियाँ

चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार ने विसंगतियों को जन्म दिया है. देश में असमानता का स्तर बढ़ा है. एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं दूसरी तरफ एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो अब सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है. निजी कारोबार ने लोगों की आमदनी को बढ़ाया है.

ऐशो-आराम और मौज-मस्ती पसंद यह समूह कम्युनिस्ट-व्यवस्था से मेल नहीं खाता. जनवरी 2021 में पोलित ब्यूरो की बैठक में ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने’ ज़ोर दिया गया. राष्ट्रपति शी चिनफिंग कई मौकों पर ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार’ को रोकने का जिक्र कर चुके हैं.

चीन के आर्थिक विकास के साथ एक नया मध्यवर्ग उभर कर आ रहा है, जो साम्यवादी व्यवस्था के परंपरागत तरीकों को खत्म करना चाहता है. पार्टी से जुड़े लोगों के पास बेहतर संसाधन हैं और सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार भी है. शी चिनफिंग अपने विरोधियों का दमन करने के प्रयास में सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित करते जा रहे हैं.

गुटबाजी का उभार

चीनी पार्टी में गुटबाजी हमेशा से रही है, पर वह अब उभर कर सामने आ रही है. सामान्य पृष्ठभूमि के लोग चीन में शीर्ष पर नहीं पहुंच सकते. नीचे से ऊपर तक व्यवस्था ऐसी है कि जबतक सिर पर किसी संरक्षक या गॉडफादर का हाथ नहीं हो, व्यक्ति ऊँचे स्थान तक नहीं पहुँच सकता.

इस प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धी गुट बन गए हैं. एक है तुआनपाई और दूसराप्रिंसलिंग. हू जिनताओ कम्युनिस्ट यूथ लीग के ज़रिए देश के शीर्ष पद तक पहुंच सके. इसे तुआनपाई कहते हैं. शी चिनफिंग का वास्ता प्रिंसलिंग से है और ली खछ्यांग का तुआनपाई से.

ऊँचे बनाम आम

प्रिंसलिंग सामान्यतः कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की संतानें हैं. अब उन्हें ऊँचे घरानों के प्रतिनिधि मान सकते हैं. वे माओ के पुराने तौर-तरीकों के समर्थक हैं. तुआनपाई अपेक्षाकृत हाशिए के लोग हैं, जो दूर-दराज से आए हैं. किसानों, प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों की संतानें. आर्थिक प्रगति का लाभ इन्हें मिला है.

इनके अलावा शंघाई गैंग औरचिंग्वा क्लिक हैं. हू जिनताओ से पहले वाले पूर्व राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन शंघाई गैंग से जुड़े थे. छिंग्वा विश्वविद्यालय के छात्रों का समूह छिंग्वा क्लिक कहलाता है. यह सुधारवादी और लोकतंत्र समर्थक गुट है.

शंघाई गैंग का कोई वैचारिक आधार नहीं है. चूंकि जियांग ज़ेमिन का मुख्यालय शंघाई था, इसलिए इसका नाम इस तरह पड़ गया. कुछ नेताओं को एक से ज्यादा गुटों के साथ जोड़ा जा सकता है. मसलन शी चिनफिंग छिंग्वा विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं, इसलिए उन्हें इस गुट से भी जोड़ा जाता है.

लिबरल समूह

सभास्थल से हू जिनताओ के हटने के कुछ समय बाद ही प्रधानमंत्री ली खछ्यांग और वांग वांग के सेंट्रल कमेटी से हटने की घोषणाएं हुईं. दोनों तुआनपाई गुट से हैं. इन दोनों को आर्थिक एजेंडे में 'लिबरल' माना जाता है. हू को हटाने के कारण बताए भी नहीं गए. बाद में विदेश मंत्रालय के संवाददाता सम्मेलन में जब इससे जुड़ा सवाल किया गया तब कहा गया कि उनकी तबीयत खराब हो गई थी. ​

वीडियो को देखने पर लगता है कि हू जिनताओ बाहर जाने को तैयार नहीं थे. चलते-चलते उन्होंने शी जिनपिंग से कुछ कहा. फिर प्रधानमंत्री ली खछ्यांग का कंधा छूकर कुछ बोला. इस प्रसंग से जुड़े तमाम सवाल अब पूछे जा रहे हैं.

सबसे बड़ा सवाल है कि उन्हें हटना क्यों पड़ा? कांग्रेस के अंतिम दिन उन्होंने बंद कक्ष में हुई बैठक में भाग लिया, पर जब कैमरों से प्रसारण की अनुमति दी गई, उन्हें बाहर भेज दिया गया.

हू जिनताओ के कार्यकाल में सामूहिक भावना बेहतर थी और वे पोलितब्यूरो में प्रतिनिधित्व देते समय विभिन्न गुटों का ध्यान रखते थे. 2008 के बीजिंग ओलिंपिक खेल उनकी उपलब्धि थे और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना उनकी सफलता. उनके दौर मे देश का आर्थिक विकास लगातार दस प्रतिशत से ऊपर हो रहा था.

आक्रामकता बढ़ेगी

चीन अब आक्रामक देश के रूप में उभरेगा. शी जिनपिंग की सरकार यह कह रही है कि अब ज़माना चीन का है. देंग श्याओ पिंग, जियांग ज़ेमिन और हू जिनताओ के शासन में चीन ने शेष विश्व के साथ मधुर संबंध बनाने के प्रयास किए थे. भारत के साथ रिश्तों में भी सुधार आया था.

शी जिनपिंग जब से पार्टी महासचिव बने हैं, तब से वे ख़ुद प्रसिद्धि के केंद्र में हैं और उन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती. लगता है कि चीन की आक्रामकता अब और बढ़ेगी. इस कांग्रेस में विदेश और सैनिक कार्यों से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों को प्रोन्नति मिली है. शी के विश्वस्त विदेशमंत्री वांग यी को पोलितब्यूरो में जगह दी गई है, जबकि वे 69 वर्ष के हो चुके हैं, सेवानिवृत्ति की आयु से एक वर्ष ज्यादा.

लद्दाख सीमा विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीन जनरलों को भी प्रोन्नति मिली है. पश्चिमी थिएटर कमांड के पूर्व प्रमुख जनरल हे वेदोंग को केंद्रीय सैनिक आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है. उनके अलावा दूसरे उपाध्यक्ष जनरल झांग यूशिया होंगे, जो 72 वर्ष के हो चुके हैं, फिर भी उन्हें सेवा विस्तार दिया गया है. वे सैनिक मामलों में शी के दाएं हाथ की तरह काम करते हैं.

पसंदीदा सेनाधिकारियों के सेवा विस्तार और नापसंद अफसरों को हाशिए पर डाले जाने के विवरणों का विश्लेषण अभी चल ही रहा है. पर एक बात तय है कि शी चिनफिंग अब खुलकर खेलने के मूड में नजर आ रहे हैं.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

 

 

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