Sunday, May 23, 2021

लालबत्ती पर खड़ी अर्थव्यवस्था


इस हफ्ते नरेंद्र मोदी सरकार के सात साल पूरे हो जाएंगे। किस्मत ने राजनीतिक रूप से मोदी का साथ दिया है, पर आर्थिक मोड़ पर उनके सामने चुनौतियाँ खड़ी होती गई हैं। पिछले साल टर्नअराउंड की आशा थी, पर कोरोना ने पानी फेर दिया। और इस साल फरवरी-मार्च में लग रहा था कि गाड़ी पटरी पर आ रही है कि दूसरी लहर ने लाल बत्ती दिखा दी। सदियों में कभी-कभार आने वाली महामारी ने बड़ी चुनौती फेंकी है। क्या भारत इससे उबर पाएगा? दुनिया के दूसरे देशों को भी इस मामले में नाकामी मिली है, पर भारत में समूची व्यवस्था कुछ देर के लिए अभूतपूर्व संकट से घिर गई।

बांग्लादेश से भी पीछे

बांग्लादेश के योजना मंत्री एमए मन्नान ने इस हफ्ते अपने देश की कैबिनेट को सूचित किया कि बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 2,064 डॉलर से बढ़कर 2,227 डॉलर हो गई है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,947 डॉलर से 280 डॉलर अधिक। पिछले साल अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ में यह सम्भावना व्यक्त की थी। हालांकि भारत की जीडीपी के आँकड़े पूरी तरह जारी नहीं हुए हैं, पर जाहिर है कि प्रति व्यक्ति आय में हम बांग्लादेश से पीछे  हैं। वजह है पिछले साल की पहली तिमाही में आया 24 फीसदी का संकुचन। शायद हम अगले साल फिर से आगे चले जाएं, पर हम फिर से लॉकडाउन में हैं। ऐसे में सवाल है कि जिस टर्नअराउंड की हम उम्मीद कर रहे थे, क्या वह सम्भव होगा?

पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि दूसरी लहर का असर अर्थव्यवस्था पर वैसा नहीं होगा, जैसा पिछले साल पहली लहर का हुआ था। देश के कारोबारियों और आम जनता ने भी लॉकडाउन की सीमाओं में काम करना सीख लिया है। अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि पिछले साल अर्थव्यवस्था को सप्लाई की ओर से झटका लगा था, जबकि इस वक्त माँग की ओर से धक्का लग रहा है।

उपभोग में गिरावट

पिछले साल लोगों ने शुरू में बचत की ओर ध्यान दिया था, पर जैसे ही स्थितियाँ सुधरीं खर्च करना शुरू किया, जिससे तीसरी तिमाही के बाद से अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया था। पर अब लॉकडाउनों से जुड़ी अनिश्चितता फिर परेशान कर रही है। हालांकि पर नए संक्रमणों में गिरावट से उम्मीद बंधी है। पिछले साल अर्थव्यवस्था सिकुड़ी थी, लेकिन इस साल विस्तार होगा। कितना होगा, इसे लेकर कई तरह के अनुमान हैं।

उम्मीदों के पीछे भी कारण हैं। हर हफ्ते जारी होने वाला सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) का उपभोक्ता मनोदशा (कंज्यूमर सेंटिमेंट) सूचकांक शहरों में 2 मई से 16 मई के बीच 40.83 से बढ़कर 48.17 पर पहुंच गया। ग्रामीण इलाकों में अभी नीचे ही है, और कुल मिलाकर इसमें 1.5 फीसदी की गिरावट है। फिर भी शहरों में सुधार उपभोक्ताओं की सकारात्मक मनोदशा का संकेत देता है।

रोजगार में कमी

कई कारणों से उपभोग में गिरावट आई है, जिसकी वजह है आय में गिरावट। सीएमआईई के ताजा आंकड़ों के अनुसार, शहरी भारत में 9 मई को रोजगार का प्रतिशत 33.56 था, जो 16 मई को घटकर 31.55 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण भारत में इस अवधि में इसमें गिरावट 39.84 प्रतिशत से 36.26 प्रतिशत की आई। ज्यादातर जगहों पर लागू लॉकडाउन का यह परिणाम है। मसलन 16 मई की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में काम पर जाने वालों के आवागमन में 68 प्रतिशत की गिरावट आई है। जब स्थानीय लॉकडाउन खत्म होगा तो लोग काम पर लौटेंगे। जिन लोगों की आय में कमी नहीं आई उनका उपभोग इसलिए कम हुआ है, क्योंकि खर्च के मौके कम हो गए हैं। पर्यटन, रेस्तरां और मनोरंजन वगैरह उपलब्ध नहीं हैं। यह स्थिति कुछ समय तक रहेगी।

भारत में माँग भले ही स्थिर है, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और व्यापार में तेजी आई है। मई के पहले सप्ताह में निर्यात में 80 फीसदी की वृद्धि है। उद्योग बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। महामारी से पहले के विदेशी निर्यात के आँकड़ों को आधार बनाएं, तो अप्रैल 2021 में विदेशी व्यापार की विकास दर 16 प्रतिशत है। घरेलू औद्योगिक गतिविधियों में कमी होने के बावजूद निर्यात में वृद्धि होती रही, क्योंकि वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ी है। लॉकडाउन में छूट मिलते ही घरेलू माँग बढ़ने पर कारोबार फिर तेजी पकड़ेंगे। अनिश्चितता को दूर करने में टीकाकरण की बड़ी भूमिका होगी। इसके लिए कामकाजी युवा-वर्ग के बड़े पैमाने पर टीकाकरण की जरूरत है।

अर्थव्यवस्था की रफ्तार

बिजली, रेल माल ढुलाई, जीएसटी संग्रह, इस्पात, दोपहिया उत्पादन वगैरह संकेत दे रहे हैं कि पिछले साल के लॉकडाउन और यातायात पर पाबंदी का असर पीछे छूट चुका है और अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। सितंबर 2020 तक बिजली उत्पादन पूरी तरह सुधर चुका था। अगस्त 2020 तक रेलमार्ग से होने वाली माल ढुलाई भी पूरी गति पकड़ चुकी थी। सितंबर 2020 तक जीएसटी संग्रह भी बढऩे लगा था। अगस्त 2020 तक तैयार इस्पात और दोपहिया वाहनों के उत्पादन के आंकड़े भी सुधरने लगे थे, पर दूसरी लहर ने ब्रेक लगा दिए। इससे अंग्रेजी के वी के आकार में हो रहे सुधार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इसपर काबू पा लें, तो सारे अनुमान सही साबित हो सकते हैं।

पहली लहर के शुरुआती महीनों में संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों पर खराब असर था, पर बाद के महीनों में संगठित क्षेत्र ने खुद को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लिया। असंगठित क्षेत्र, लड़खड़ाते हुए खड़ा होने की कोशिश कर रहा है, जिसे दूसरी लहर ने धक्का दिया है। संगठित क्षेत्र में केवल चार महीनों में ही देश की दर्जन भर स्टार्ट अप कंपनियां यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो गईं। यानी उनकी हैसियत एक अरब डॉलर से ऊपर की हो गई। पूँजी बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइज़ेशन अप्रैल 2021 में अप्रैल 2020 की तुलना में 60 प्रतिशत बढ़ गया। पिछले सात महीनों से जीएसटी संग्रह लगातार एक लाख करोड़ रुपये के स्तर से ऊपर है। अप्रैल में सबसे ज्यादा 1.41 लाख करोड़ रुपये का था। यह सब वैश्विक प्रक्रिया का हिस्सा है।

बेरोजगारी बढ़ी

सीएमआईई के मुताबिक़, मई 2020 में बेरोज़गारी की दर 24 प्रतिशत थी, जो  जनवरी 2021 तक घटकर 7 प्रतिशत पर आ गई, पर दूसरी लहर के लॉकडाउनों के कारण मई में फिर बढ़कर 9 फ़ीसदी हो गई है। गूगल मोबिलिटी इंडेक्स के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार काम की जगह पर देश में लोगों की आवाजाही -55 फीसदी हो गई है। इसकी तुलना में लोगों के घर जाने की आवाजाही +24 फीसदी है। ऑक्सफोर्ड का स्ट्रिंजेंसी इंडेक्स लॉकडाउनों की सख्ती को दिखाता है। भारत में मार्च से मई 2021 के दौरान लॉकडाउन की सख़्ती 58 से बढ़कर 82 तक पहुंच गई। पिछले साल 22 मार्च को यह 100 यानी पूर्ण थी। इन प्रतिबंधों का प्रभाव लोगों की आमदनी पर और फिर उसका असर वस्तुओं के उपभोग पर पड़ा है। आवागमन और रोजगार से जुड़े इन जोखिमों को ख़ारिज नहीं कर सकते। सुस्ती से उबरती अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ा है।

वैक्सीनेशन की गति का धीमा पड़ना आड़े आ रहा है। अब लगता है कि 2022 की पहली तिमाही में ही हम अधिकतर लोगों को टीका दे पाएंगे। उसके बाद ही अर्थव्यवस्था में नई जान पड़ेगी। वैज्ञानिक अब तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे हैं। शायद वह आ भी गई है और उसका रुख गाँवों की ओर है। गाँवों से आँकड़े नहीं मिलते, इसलिए उसकी भयावहता का पता नहीं। आप जागे हैं, तो उधर ध्यान दीजिए।  

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

2 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (23-05-2021 ) को 'यह बेमौसम बारिश भली लग रही है जलते मौसम में' (चर्चा अंक 4074) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. विचारोत्तेजक शानदार लेख ! कोरोना और बिगड़ी अर्थव्यवस्था के हर पहलू पर प्रकाश डालता सुंदर लेख।

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