हिग्स बोसोन की खोज निश्चित रूप से इनसान का एक लम्बा कदम है, पर इससे सृष्टि की सारी पहेलियाँ सुलझने वाली नहीं हैं। केवल पार्टिकल फिजिक्स की एक श्रृंखला की अप्राप्त कड़ी मिली है। हमें एक अरसे से मालूम है कि सृष्टि में कुछ है, जिसे हम देख नहीं पा रहे हैं। उसे हमने पा लिया है, भले ही उसे देखना आज भी असम्भव है। क्या इससे एंटी मैटर या ब्लैक मैटर के स्रोत का भी पता लग जाएगा? क्या इससे सृष्टि के जन्म की कहानी समझ में आ जाएगी, कहना मुश्किल है। इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक फिजिक्स ने जबर्दस्त प्रगति की है, पर अभी हम ज्ञान की बाहरी सतह पर हैं। प्रायः वैज्ञानिकों की राय एक होती है, क्योंकि वे अपने निष्कर्ष प्रयोगिक आधार पर निकालते हैं। पर सृष्टि से जुड़े अधिकतर निष्कर्ष अवधारणाएं हैं। बिंग बैंग भी एक अवधारणा है वैज्ञानिक समुदाय इस अवधारणा के पक्ष में एकमत नहीं है। खगोलविज्ञान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर का कहना है कि हिग्स बोसोन को लेकर जो मीडिया ने हाइप बनाया है, उसमें कुछ दोष हैं। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर में प्रति कण जो ऊर्जा तैयार की गई वह उस ऊर्जा के अरबवें अंश के हजारवें अंश के बराबर भी नहीं हैं, जो सृष्टि के स्फीति-काल में रही होगी। इसी तरह हम उपलब्ध तकनीक और उपकरणों के सहारे पदार्थ का केवल चार फीसदी ही देख पाते हैं। शेष 96 फीसदी के बारे में अनुमान हैं और उन्हें प्रयोगशाला में साबित नहीं किया जा सकता।
नार्लीकर बिंग बैंग थ्योरी के समर्थक नहीं हैं, पर वैज्ञानिक हैं और उन्हें भी इस उपलब्धि पर खुशी हुई होगी। वस्तुतः विज्ञान में एक खोज बीसियों नई खोजों का रास्ता खोलती है। कुछ वैज्ञानिकों को इसे गॉड पार्टिकल कहना उचित नहीं लगता, क्योंकि इससे इसके महत्व को लेकर एक अलग अवधारणा बनती है। इसके महत्व को वे लोग बेहतर समझ पाएंगे, जो विज्ञान की दृष्टि से सोचते हैं। महत्वपूर्ण है विज्ञान की दृष्टि और इनसान की सच तक पहुँचने की अदम्य आकांक्षा। इस प्रयोग के लिए जिस स्तर की प्रयोगशाला बनाई गई वह अभूतपूर्व है, पर सृष्टि के अध्ययन के लिए इससे भी बड़ी प्रयोगशालाओं की ज़रूरत होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रयोग में 111 देशों के वैज्ञानिक जुड़े। यह समूची इनसानियत का एक लम्बा कदम है।
एक अरसे से हम स्विट्ज़रलैंड की सर्न प्रयोगशाला में हो रहे इस प्रयोग के बारे में सुनते थे कि दुनिया के वैज्ञानिक हिग्स बोसन नाम के कण की खोज में लगे हैं। बुधवार को वैज्ञानिकों ने दावा किया कि ऐसे कणों को पहचान लिया गया, जिनमें द्रव्यमान होता है। सामान्य व्यक्ति को यह खोज खासी रहस्यमय लगेगी। दूसरी ओर मीडिया के हाइप को देखते हुए लगेगा कि शायद सृष्टि के अंतिम सत्य का पता लग गया है। इसे अंग्रेजी में 'गॉड पार्टिकल' भी कहा जा रहा है। इसका मतलब कुछ लोगों को लगता है कि अत्यंत सूक्ष्म रूप में विचरण करने वाले ईश्वर को देख लिया गया है। जैसा कि सबसे सहज है तमाम लोगों ने अपनी धार्मिक समझ को इससे भिड़ाना शुरू कर दिया है। तमाम समझदार लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इस खोज से क्या हासिल हो गया है। और इसका पता लग जाने के बाद हमारी ज़िन्दगी में क्या बदलाव आ जाएगा।
गॉड पार्टिकल की खोज का फौरी तौर पर फायदा यह होगा कि वैज्ञानिकों का 60 साल पुराना यह असमंजस खत्म हो जाएगा कि किसी चीज को आकार और द्रव्यमान कैसे मिलता है? इसके अलावा और भी कई अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब मिलने की उम्मीद है। यह भी पता चल सकेगा कि धरती के भीतर धधकते ज्वालामुखी को इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है? बोसोन परमाणु में अब तक ज्ञात सबसे छोटे कण हैं। परमाणु की बनावट में न्यूक्लियस के अंदर प्रोटॉन तक पहुंच कर भी साइंटिस्ट दुनिया की बनावट का रहस्य नहीं भेद पाए। इसके बाद प्रोटॉन की बनावट को समझने की प्रक्रिया में एक खास कण का आभास हुआ जिसे बोसोन नाम दिया गया। खास बात यह कि बोसोन नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम से लिया गया था जो कि आइंस्टीन के समकालीन थे। बोस और आइंस्टीन ने एक स्टैटिस्टिकल फॉर्म्युला पेश किया था, जो एक खास तरह के कणों की प्रॉपर्टी बताता है।
1993 में नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकविद लियोन लेडरमैन ने द गॉड पार्टिकल नामक किताब लिखी थी। पर गॉड से उनका आशय ईश्वर नहीं था। उन्होंने किताब का शीर्षक बनाया ‘डैमगॉड पार्टिकल’ क्योंकि इन्हें खोजना बेहद मुश्किल था। किताब के सम्पादक ने इसे संक्षेप में करने और रोचक बनाने के लिहाज से गॉड पार्टिकल बना दिया। यह बात निरर्थक नहीं थी। इसका रिश्ता पदार्थ की रचना से था, जो सृष्टि के मूल में थी।
वैज्ञानिक एक लम्बे अरसे से जानते हैं कि ब्रह्मांड में कोई चीज़ है जिसे हम पकड़ नहीं पा रहे हैं, पर वह है। इसे ब्लैक मैटर, एंटी मैटर वगैरह के नाम भी दिए गए। हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल की अवधारणा में बताया गया कि गॉड पार्टिकल वह कण है जो पदार्थ को मास (द्रव्यमान) प्रदान करता है। हिग्स बोसोन ऐसा मूल कण है, जिसका एक फील्ड है, जो सृष्टि में हर कहीं मौजूद है। जब कोई दूसरा कण इस फील्ड से गुजरता तो रुकावट का सामना करता, जैसे कि कोई भी चीज पानी या हवा से गुजरते हुए करती है। बिग बैंग थ्योरी का स्टैंडर्ड मॉडल हिग्स बोसोन से मजबूत होता है, लेकिन उसके होने का प्रायोगिक सबूत चाहिए। फिलहाल वह मिल गया।
वैज्ञानिकों ने सृष्टि का जो मॉडल तैयार किया है उसकी कड़ी पूरी करने के लिए इस कण की खोज ज़रूरी थी, जिसकी कल्पना 1964 में छह वैज्ञानिकों ने की थी, जिनमें पीटर हिग्स भी थे। इस मॉडल को पूरा करने वाले ग्यारह पार्टिकल पहले से पहचान लिए गए थे। दरअसल यह एक बेहद शुरूआती खोज है। विज्ञान की दुनिया बहुत व्यापक है और इसमें निष्कर्ष निकालने के लिए तथ्यों की जबर्दस्त पड़ताल ज़रूरी है। इस पार्टिकल के होने की घोषणा पाँच सिग्मा स्तर तक पुष्टि होने के बाद की गई है। यानी परिणाम 99.99995 फीसदी सही हैं।
गॉड पार्टिकल का पता लगाने के लिए दुनियाभर के 111 देशों के हजारों वैज्ञानिक पिछले 40 साल से जुटे हैं। ये वैज्ञानिक फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जेनेवा में सबसे बड़ी प्रयोगशाला में काम करते हैं, जो प्रयोगशाला जमीन के 300 फुट नीचे बनी है। प्रयोग 27 किमी लंबे लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) में चल रहा है। एलएचसी प्रोजेक्ट पर 10 अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। वैज्ञानिक ‘बिग बैंग’ थ्योरी की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं। अब तक माना जाता है कि 13.7 खरब साल पहले हुए बिग बैंग से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। यह भी माना जाता है कि बिग बैंग होते ही सेकंड के एक अरबवें अंश में सृष्टि इन कणों के महासागर के रूप में थी और ये कण प्रकाश की गति से विचरण कर रहे थे। पर इन कणों में संहति या द्रव्यमान नहीं था। सवाल है कि द्रव्य नहीं था तो यह भौतिक दुनिया कैसे बनी? इसमें पदार्थ और गुरुत्व शक्ति कहाँ से आई? यह माना गया कि इनमें एक कण था, जिसे हिग्स बोसॉन का नाम दिया गया। इस कण से सभी चीजों की उत्पत्ति हुई है।
एलएचसी में कृत्रिम तरीके से महा विस्फोट की स्थिति पैदा की गई। एलएचसी में आयनों की टक्कर से 10 खरब सेल्सियस का तापमान पैदा किया गया। यह सूरज के केंद्र में मौजूद तापमान से भी लाखों गुना ज्यादा है। पर सच यह है कि इससे अरबों-अरबों गुना तापमान पैदा करके भी हम प्राकृतिक तापमान की रचना नहीं कर पाएंगे। सृष्टि के दो आयाम हैं एक विशाल और दूसरा सूक्ष्म। हिग्स बोसोन दोनों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है। अब यह हमें इससे भी सूक्ष्मतर और ब्रह्मांड के सुदूर प्रांतर में ले जाएगा।
जनवाणी में प्रकाशित
नार्लीकर बिंग बैंग थ्योरी के समर्थक नहीं हैं, पर वैज्ञानिक हैं और उन्हें भी इस उपलब्धि पर खुशी हुई होगी। वस्तुतः विज्ञान में एक खोज बीसियों नई खोजों का रास्ता खोलती है। कुछ वैज्ञानिकों को इसे गॉड पार्टिकल कहना उचित नहीं लगता, क्योंकि इससे इसके महत्व को लेकर एक अलग अवधारणा बनती है। इसके महत्व को वे लोग बेहतर समझ पाएंगे, जो विज्ञान की दृष्टि से सोचते हैं। महत्वपूर्ण है विज्ञान की दृष्टि और इनसान की सच तक पहुँचने की अदम्य आकांक्षा। इस प्रयोग के लिए जिस स्तर की प्रयोगशाला बनाई गई वह अभूतपूर्व है, पर सृष्टि के अध्ययन के लिए इससे भी बड़ी प्रयोगशालाओं की ज़रूरत होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस प्रयोग में 111 देशों के वैज्ञानिक जुड़े। यह समूची इनसानियत का एक लम्बा कदम है।
एक अरसे से हम स्विट्ज़रलैंड की सर्न प्रयोगशाला में हो रहे इस प्रयोग के बारे में सुनते थे कि दुनिया के वैज्ञानिक हिग्स बोसन नाम के कण की खोज में लगे हैं। बुधवार को वैज्ञानिकों ने दावा किया कि ऐसे कणों को पहचान लिया गया, जिनमें द्रव्यमान होता है। सामान्य व्यक्ति को यह खोज खासी रहस्यमय लगेगी। दूसरी ओर मीडिया के हाइप को देखते हुए लगेगा कि शायद सृष्टि के अंतिम सत्य का पता लग गया है। इसे अंग्रेजी में 'गॉड पार्टिकल' भी कहा जा रहा है। इसका मतलब कुछ लोगों को लगता है कि अत्यंत सूक्ष्म रूप में विचरण करने वाले ईश्वर को देख लिया गया है। जैसा कि सबसे सहज है तमाम लोगों ने अपनी धार्मिक समझ को इससे भिड़ाना शुरू कर दिया है। तमाम समझदार लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इस खोज से क्या हासिल हो गया है। और इसका पता लग जाने के बाद हमारी ज़िन्दगी में क्या बदलाव आ जाएगा।
गॉड पार्टिकल की खोज का फौरी तौर पर फायदा यह होगा कि वैज्ञानिकों का 60 साल पुराना यह असमंजस खत्म हो जाएगा कि किसी चीज को आकार और द्रव्यमान कैसे मिलता है? इसके अलावा और भी कई अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब मिलने की उम्मीद है। यह भी पता चल सकेगा कि धरती के भीतर धधकते ज्वालामुखी को इतनी ऊर्जा कहां से मिलती है? बोसोन परमाणु में अब तक ज्ञात सबसे छोटे कण हैं। परमाणु की बनावट में न्यूक्लियस के अंदर प्रोटॉन तक पहुंच कर भी साइंटिस्ट दुनिया की बनावट का रहस्य नहीं भेद पाए। इसके बाद प्रोटॉन की बनावट को समझने की प्रक्रिया में एक खास कण का आभास हुआ जिसे बोसोन नाम दिया गया। खास बात यह कि बोसोन नाम भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम से लिया गया था जो कि आइंस्टीन के समकालीन थे। बोस और आइंस्टीन ने एक स्टैटिस्टिकल फॉर्म्युला पेश किया था, जो एक खास तरह के कणों की प्रॉपर्टी बताता है।
1993 में नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकविद लियोन लेडरमैन ने द गॉड पार्टिकल नामक किताब लिखी थी। पर गॉड से उनका आशय ईश्वर नहीं था। उन्होंने किताब का शीर्षक बनाया ‘डैमगॉड पार्टिकल’ क्योंकि इन्हें खोजना बेहद मुश्किल था। किताब के सम्पादक ने इसे संक्षेप में करने और रोचक बनाने के लिहाज से गॉड पार्टिकल बना दिया। यह बात निरर्थक नहीं थी। इसका रिश्ता पदार्थ की रचना से था, जो सृष्टि के मूल में थी।
वैज्ञानिक एक लम्बे अरसे से जानते हैं कि ब्रह्मांड में कोई चीज़ है जिसे हम पकड़ नहीं पा रहे हैं, पर वह है। इसे ब्लैक मैटर, एंटी मैटर वगैरह के नाम भी दिए गए। हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल की अवधारणा में बताया गया कि गॉड पार्टिकल वह कण है जो पदार्थ को मास (द्रव्यमान) प्रदान करता है। हिग्स बोसोन ऐसा मूल कण है, जिसका एक फील्ड है, जो सृष्टि में हर कहीं मौजूद है। जब कोई दूसरा कण इस फील्ड से गुजरता तो रुकावट का सामना करता, जैसे कि कोई भी चीज पानी या हवा से गुजरते हुए करती है। बिग बैंग थ्योरी का स्टैंडर्ड मॉडल हिग्स बोसोन से मजबूत होता है, लेकिन उसके होने का प्रायोगिक सबूत चाहिए। फिलहाल वह मिल गया।
वैज्ञानिकों ने सृष्टि का जो मॉडल तैयार किया है उसकी कड़ी पूरी करने के लिए इस कण की खोज ज़रूरी थी, जिसकी कल्पना 1964 में छह वैज्ञानिकों ने की थी, जिनमें पीटर हिग्स भी थे। इस मॉडल को पूरा करने वाले ग्यारह पार्टिकल पहले से पहचान लिए गए थे। दरअसल यह एक बेहद शुरूआती खोज है। विज्ञान की दुनिया बहुत व्यापक है और इसमें निष्कर्ष निकालने के लिए तथ्यों की जबर्दस्त पड़ताल ज़रूरी है। इस पार्टिकल के होने की घोषणा पाँच सिग्मा स्तर तक पुष्टि होने के बाद की गई है। यानी परिणाम 99.99995 फीसदी सही हैं।
गॉड पार्टिकल का पता लगाने के लिए दुनियाभर के 111 देशों के हजारों वैज्ञानिक पिछले 40 साल से जुटे हैं। ये वैज्ञानिक फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जेनेवा में सबसे बड़ी प्रयोगशाला में काम करते हैं, जो प्रयोगशाला जमीन के 300 फुट नीचे बनी है। प्रयोग 27 किमी लंबे लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) में चल रहा है। एलएचसी प्रोजेक्ट पर 10 अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। वैज्ञानिक ‘बिग बैंग’ थ्योरी की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहे हैं। अब तक माना जाता है कि 13.7 खरब साल पहले हुए बिग बैंग से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। यह भी माना जाता है कि बिग बैंग होते ही सेकंड के एक अरबवें अंश में सृष्टि इन कणों के महासागर के रूप में थी और ये कण प्रकाश की गति से विचरण कर रहे थे। पर इन कणों में संहति या द्रव्यमान नहीं था। सवाल है कि द्रव्य नहीं था तो यह भौतिक दुनिया कैसे बनी? इसमें पदार्थ और गुरुत्व शक्ति कहाँ से आई? यह माना गया कि इनमें एक कण था, जिसे हिग्स बोसॉन का नाम दिया गया। इस कण से सभी चीजों की उत्पत्ति हुई है।
एलएचसी में कृत्रिम तरीके से महा विस्फोट की स्थिति पैदा की गई। एलएचसी में आयनों की टक्कर से 10 खरब सेल्सियस का तापमान पैदा किया गया। यह सूरज के केंद्र में मौजूद तापमान से भी लाखों गुना ज्यादा है। पर सच यह है कि इससे अरबों-अरबों गुना तापमान पैदा करके भी हम प्राकृतिक तापमान की रचना नहीं कर पाएंगे। सृष्टि के दो आयाम हैं एक विशाल और दूसरा सूक्ष्म। हिग्स बोसोन दोनों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है। अब यह हमें इससे भी सूक्ष्मतर और ब्रह्मांड के सुदूर प्रांतर में ले जाएगा।
जनवाणी में प्रकाशित
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