Saturday, August 21, 2010

पाँच नगर : प्रतीक- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

दिल्ली
कच्चे रंगों में नफ़ीस
चित्रकारी की हुई , कागज की एक डिबिया
जिसमें नकली हीरे की अंगूठी
असली दामों के कैश्मेमो में लिपटी हुई रखी है ।

लखनऊ
श्रृंगारदान में पड़ी
एक पुरानी खाली इत्र की शीशी
जिसमें अब महज उसकी कार्क पड़ी सड़ रही है ।

बनारस
बहुत पुराने तागे में बंधी एक ताबीज़ ,
जो एक तरफ़ से खोलकर
भांग रखने की डिबिया बना ली गयी है ।

इलाहाबाद
एक छूछी गंगाजली
जो दिन-भर दोस्तों के नाम पर
और रात में कला के नाम पर
उठायी जाती है ।

बस्ती
गाँव के मेले में किसी
पनवाड़ी की दुकान का शीशा
जिस पर अब इतनी धूल जम गई है
कि अब कोई भी अक्स दिखाई नहीं देता ।
( बस्ती सर्वेश्वर का जन्म स्थान है । )

2 comments:

  1. बहुत ही दिलचस्प, नयी परिभाषा - पुराने शहरों की.

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  2. सर सर्वेश्वर जी के बारे में सुना था। ज्यादा मालूमात नहीं था। जब गुलजार साहब ने इब्नेबतूता बगल में जूता लिखा तब कई लेख पढऩे को मिले। उस समय सर्वेश्वर जी के बारे में कुछ जानकारी मिली थी। अब आपने उनकी कुछ कविताएं यहां डाल कर बताया। आपका बहुत बहुत शुक्रिया। सर्वेश्वर जी बाकई महान हैं।

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