नारी शक्ति वंदन विधेयक और उसके छह अनुच्छेद गुरुवार को राज्यसभा से भी पास हो गए। जैसी सर्वानुमति इसे मिली है, वैसी बहुत कम कानूनों को संसद में मिली है। 1996 से 2008 तक संसद में चार बार महिला आरक्षण विधेयक पेश किए गए, पर राजनीतिक दलों ने उन्हें पास होने नहीं दिया। 2010 में यह राज्यसभा से पास जरूर हुआ, फिर भी कुछ नहीं हुआ। ऐसे दौर में जब एक-एक विषय पर राय बँटी हुई है, यह आमराय अपूर्व है। पर इसे लागू करने के साथ दो बड़ी शर्तें जुड़ी हैं। जनगणना और परिसीमन। इस वजह से आगामी चुनाव में यह लागू नहीं होगा, पर चुनाव का एक मुद्दा जरूर बनेगा, जहाँ सभी पार्टियाँ इसका श्रेय लेंगी।
इसकी सबसे बड़ी वजह है, महिला वोट। महिला पहले ‘वोट बैंक’ नहीं हुआ करती थीं। 2014 के चुनाव के बाद से वे ‘वोट बैंक’ बनती नज़र आने लगी हैं। केवल शहरी ही नहीं ग्रामीण महिलाएं भी ‘वोट बैंक’ बन रही हैं। ज़रूरी नहीं है कि इसका श्रेय किसी एक पार्टी या नेता को मिले। सबसे बड़ी वजह है पिछले दो दशक में भारतीय स्त्रियों की बढ़ती जागरूकता और सामाजिक जीवन में उनकी भूमिका। राजनीति इसमें उत्प्रेरक की भूमिका निभाएगी।
रोका किसने?
इस विधेयक को लेकर इतनी जबर्दस्त सर्वानुमति है, तो इसे फौरन लागू करने से रोका किसने है? कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में कहा, जब सरकार नोटबंदी जैसा फैसला तुरत लागू करा सकती है, तब इतने महत्वपूर्ण विधेयक की याद साढ़े नौ साल बाद क्यों आई? बात तो बहुत मार्के की कही है। पर जब दस साल तक कांग्रेस की सरकार थी, तब उन्हें किसने रोका था? सोनिया गांधी ने लोकसभा में सवाल किया, मैं एक सवाल पूछना चाहती हूं। भारतीय महिलाएं पिछले 13 साल से इस राजनीतिक ज़िम्मेदारी का इंतज़ार कर रही हैं। अब उन्हें कुछ और साल इंतज़ार करने के लिए कहा जा रहा है। कितने साल? दो साल, चार साल, छह साल, या आठ साल?
संसद में इसबार हुई बहस के दौरान कुछ सदस्यों ने जनगणना और सीटों के परिसीमन की व्यवस्थाओं में संशोधन के लिए प्रस्ताव रखे, पर वे ध्वनिमत से इसलिए नामंजूर हो गए, क्योंकि किसी ने उनपर मतदान कराने की माँग नहीं की। सीधा अर्थ है कि ज्यादातर सदस्य मानते हैं कि जब सीटें बढ़ जाएंगी, तब महिलाओं को उन बढ़ी सीटों में अपना हिस्सा मिल जाएगा। कांग्रेस ने भी मत विभाजन की माँग नहीं की। जब आप दिल्ली-सेवा विधेयक पर मतदान की माँग कर सकते हैं, तो इस विधेयक को फौरन लागू कराने के लिए मत-विभाजन की माँग क्यों नहीं कर पाए? खुशी की बात है कि मंडलवादी पार्टियों ने इसे स्वीकार कर लिया। कांग्रेस ने ओबीसी कोटा की माँग की, जबकि इसके पहले वह इसके लिए तैयार नहीं थी।