Wednesday, August 30, 2023

लद्दाख के गतिरोध को खत्म करने में चीनी आनाकानी


भारत और चीन के बीच पिछले तीन साल से चले आ रहे गतिरोध को तोड़ने की कोशिश में पिछले हफ्ते हुई दो बड़ी गतिविधियों के बावजूद समाधान दिखाई पड़ नहीं रहा है. जोहानेसबर्ग में ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच संवाद ने उम्मीदों को जगाया था, पर लगता नहीं कि समाधान होगा.

कहना मुश्किल है कि अब सितंबर में दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले जी-20 के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर दोनों नेताओं की मुलाकात होगी भी या नहीं. दोनों नेता उसके पहले 5 से 7 सितंबर तक जकार्ता में होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन में भी शामिल होने वाले हैं. वैश्विक घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में भी दोनों देशों के बीच का तनाव कम होता दिखाई नहीं पड़ रहा है.  

चीनी आनाकानी 

भारत की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि जबतक सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी, दोनों देशों के रिश्तों में स्थिरता नहीं आ सकेगी. दूसरी तरफ 1977 के बाद से लगातार चीनी दृष्टिकोण रहा है कि किसी एक कारण से पूरे रिश्तों पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

Tuesday, August 29, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की मुंबई बैठक के मुद्दे


हाल में बने नए राजनीतिक गठबंधन इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस) की इस हफ्ते मुंबई में होने वाली तीसरी बैठक एक तरफ इसके राजनीतिक विचार को स्पष्ट करने और संगठनात्मक आधार को मजबूत करने का काम करेगी, वहीं इसके अंतर्विरोध भी खुलेंगे। 31 अगस्त और 1 सितंबर को दो दिन चलने वाली इस महाबैठक में गठबंधन के लोगो को लॉन्च करने की योजना भी है। गठबंधन के नाम के बाद इस गतिविधि का महत्व प्रचारात्मक ज्यादा है। ज्यादा बड़ा काम अभी तक नेपथ्य में ही है। वह है उस गणित की रूपरेखा, जिसपर यह गठबंधन खड़ा होने वाला है।

दो महत्वपूर्ण सवालों के जवाब भी इस बैठक में मिलेंगे। क्या यह गठबंधन राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में एक होकर उतरेगा या यह गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए बन रहा है? दूसरे चुनाव में अलग-अलग चुनाव-चिह्नों के साथ इसकी एकरूपता किस प्रकार से व्यक्त होगी? कुछ पहेलियाँ और हैं। मसलन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्ते। क्या आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में उतरेगी? अकेले या कांग्रेस के सहयोगी दल के रूप में? क्या लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी गुजरात में उसे सीटें देगी? ऐसे ही सवाल बंगाल की राजनीति को लेकर हैं। महाराष्ट्र में एनसीपी खुद पहेली बनी हुई है।

Monday, August 28, 2023

दुनिया ने माना भारत को ‘स्पेस-पावर’

 


चंद्रयान अभियान-2

चंद्रयान-3 की सफलता ने देश-विदेश में करोड़ों भारतीयों को खुशी का मौका दिया है। इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी आते हैं, जब इस तरह करोड़ों भावनाएं एकाकार होती हैं। इस अभियान का एक लाभ यह भी होगा कि कभी भविष्य में हम चाँद पर बस्तियाँ बसाना चाहेंगे, तो इसमें बहुत मदद मिलेगी। उसके पहले सुदूर अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए चंद्रमा पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा सकती है। भारत ने इसमें पहल ले ली है, जो भविष्य में फलदायी होगी।

प्रतिष्ठा की मनोकामना, प्रतियोगिता को बढ़ाती है। लंबे समय तक भारत की छवि पोंगापंथी, गरीब, पिछड़े और अराजक देश के रूप में रही या बनाई गई, पर अब उसमें तेजी से बदलाव आ रहा है। दुनिया ने भारत को स्पेस-पावर के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि रूस और अमेरिका पाँच दशक पहले चंद्रमा पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी भारत की यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के संसाधनों को देखते हुए हमारी उपलब्धि हल्की नहीं है।

तकनीकी कौशल

बेशक हम गरीब हैं, पर हमारे लोगों ने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है। भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और अंतरिक्ष-विज्ञानियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित की है। चंद्रयान की इस सफलता के चार दिन पहले ही रूस को चंद्रमा पर निराशा का सामना करना पड़ा। भारत ने जिस तकनीक और किफायत से इस उपलब्धि को हासिल किया, उसपर गौर करने की जरूरत है। किफायती हाई-टेक के क्षेत्र में भारत ने अपने झंडे गाड़े हैं।

चंद्रयान-2 की विफलता से हासिल अनुभव का इसरो ने फायदा उठाया और उन सारी गलतियों को दूर कर दिया, जो पिछली बार हुई थीं। उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को आकार देने के लिए 21 उप-प्रणालियों को बदला गया। ऐसी व्यवस्था की गई कि यदि किसी एक पुर्जे या प्रक्रिया में खराबी आ जाए, तो दूसरा उसकी जगह काम संभाल लेगा। लैंडिंग की प्रक्रिया को मिनटों और सेकंडों के छोटे-छोटे कालखंडों में बाँटकर इस तरह से संयोजित किया गया कि अभियान के विफल होने की संभावना ही नहीं बची।

Sunday, August 27, 2023

चंद्रमा पर हमारे प्रतिनिधि विक्रम और प्रज्ञान

 


चंद्रयान अभियान-1

चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद अब कुछ सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल है कि लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान अब अगले कुछ दिनों तक क्या काम करेंगे? वे कब तक चंद्रमा पर रहेंगे और कितने समय तक सक्रिय रहेंगे?  चंद्रयान-3 का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना महत्वपूर्ण क्यों है? अभी तक किसी देश ने वहाँ अपना यान क्यों नहीं उतारा? भारत ने अपना यान उतारने का फैसला क्यों किया?  दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आने वाले कुछ समय में भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ी परियोजनाएं क्या हैं? तीसरा सवाल है कि इस अभियान से वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक और राजनयिक क्षेत्र में भारत के रुतबे और रसूख पर क्या फर्क पड़ने वाला है?

ये तीन अलग विषय हैं, पर चंद्रयान-3 के कारण एक-दूसरे से जुड़े हैं। सबसे पहले चंद्रयान-3 की संरचना पर ध्यान दें। चंद्रयान का जब प्रक्षेपण किया गया था, तब रॉकेट पर चंद्रयान-3 दो भागों में उससे जुड़ा हुआ था। एक था प्रोपल्शन मॉड्यूल और दूसरा, दूसरा लैंडर विक्रम। लैंडर विक्रम के भीतर रखा गया था रोवर प्रज्ञान, जो सॉफ्ट लैंडिंग के बाद बाहर निकल कर अब चंद्रमा की सतह पर भ्रमण कर रहा है।

प्रणोदन (प्रोपल्शन) मॉड्यूल 100 किमी चंद्र कक्षा तक लैंडर और रोवर विन्यास को लेकर गया और वहाँ से वह अलग हो गया। पर उसका काम इतना ही नहीं था। चंद्र कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवीय मीट्रिक मापों का अध्ययन करने के लिए उसमें स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (एसएचएपीई) नीतभार (पेलोड) है। इससे वह चंद्रमा की कक्षा में परावर्तित प्रकाश के जरिए पृथ्वी का अध्ययन करेगा।

चंद्रयान-3 ने खोले संभावनाओं के द्वार


चंद्रयान-3 की सफलता ने देश-विदेश में करोड़ों भारतीयों को खुशी का मौका दिया है। इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी आते हैं, जब इस तरह करोड़ों भावनाएं एकाकार होती हैं। दुनिया ने भारत को स्पेस-पावर के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि रूस और अमेरिका पाँच दशक पहले चंद्रमा पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी भारत की यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के संसाधनों को देखते हुए हमारी उपलब्धि हल्की नहीं है। चंद्रयान की इस सफलता के चार दिन पहले ही रूस को चंद्रमा पर निराशा का सामना करना पड़ा। भारत ने जिस तकनीक और किफायत से इस उपलब्धि को हासिल किया, उसपर गौर करने की जरूरत है। किफायती हाई-टेक के क्षेत्र में भारत ने अपने झंडे गाड़े हैं। चंद्रयान-2 की विफलता से हासिल अनुभव का इसरो ने फायदा उठाया और उन सारी गलतियों को दूर कर दिया, जो पिछली बार हुई थीं। उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को आकार देने के लिए 21 उप-प्रणालियों को बदला गया। ऐसी व्यवस्था की गई कि यदि किसी एक पुर्जे या प्रक्रिया में खराबी आ जाए, तो दूसरा उसकी जगह काम संभाल लेगा। लैंडिंग की प्रक्रिया को मिनटों और सेकंडों के छोटे-छोटे कालखंडों में बाँटकर इस तरह से संयोजित किया गया कि अभियान के विफल होने की संभावना ही नहीं बची।

14 दिन का कार्यक्रम

चंद्रयान-3 के तीन बड़े लक्ष्य हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चंद्रयान के पास 14 दिन का समय है। पहला, चंद्र सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग की क्षमता प्रदर्शित करना। दूसरा, रोवर प्रज्ञान का चंद्रमा की सतह पर भ्रमण और तीसरा वैज्ञानिक प्रयोगों को पूरा करना। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लैंडर व रोवर में सात पेलोड लगे हैं। विक्रम और प्रज्ञान दोनों ही सौर ऊर्जा से संचालित हैं। जिस इलाके में ये उतरे हैं, वहाँ सूरज की रोशनी तिरछी पड़ती है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए इनमें लंबवत यानी खड़े सोलर पैनल लगे हैं। भविष्य में चंद्रमा को डीप स्पेस स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिहाज से 14 दिन के ये प्रयोग अहम साबित होंगे। इन क्रेटरों में इंसान भविष्य में टेलिस्कोप लगाकर सुदूर अंतरिक्ष का अध्ययन कर सकता है। यहाँ से बहुमूल्य खनिजों को हासिल किया जा सकता है।