Sunday, May 14, 2023

कांग्रेस की जीत और भविष्य के संकेत


कर्नाटक में संशयों से घिरी भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण भारत में अपने एकमात्र दुर्ग में पराजय का सामना करना पड़ा है। यह आलेख लिखे जाने तक पूरे परिणाम आए नहीं थे, पर यह लगभग साफ है कि कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। गौर से देखें, तो पाएंगे कि कांग्रेस का वोट करीब 5 प्रतिशत बढ़ा है। 2018 में वह 38 प्रश था, जो अब 43 प्रश हो गया है। बीजेपी का मत कमोबेश वही 36 प्रश है, जितना 2018 में था। जेडीएस का मत 18.4 से घटकर 13.3 प्रतिशत हो गया है। उसमें करीब पाँच फीसदी की गिरावट है। जेडीएस का घटा वोट कांग्रेस को मिला और परिणामों में इतना अंतर आ गया। इन परिणामों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण संदेश छिपे हैं। बीजेपी के लिए इस हार से उबरना मुश्किल नहीं है, पर कांग्रेस हारती, तो उसका उबरना मुश्किल था। उसने स्पष्ट बहुमत हासिल करके मुकाबले को ही नहीं जीता, यह जीत उसके लिए निर्णायक मोड़ साबित होगी। ऐसा भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने चुनाव में सफलता का टेंपलेट हासिल कर लिया है, जिसे वह अब दूसरे राज्यों में दोहरा सकती है। पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के प्रति जनता के बदले हुए मूड का यह संकेत है। लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। साल के अंत में तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। मिजोरम को छोड़ दें, तो शेष सभी राज्य महत्वपूर्ण हैं। रणनीति में धार देने के कई मौके बीजेपी को मिलेंगे।   

स्थानीय नेतृत्व

इस जीत के बाद कांग्रेस का जैकारा सुनाई पड़ा है कि यह राहुल गांधी की जीत है। उनकी भारत-जोड़ो यात्रा की विजय है। यह बात मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सिद्धरमैया तक ने कही है। ध्यान से देखें, यह स्थानीय नेतृत्व की विजय है। राज्य के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होना महत्वपूर्ण साबित हुआ, पर कांग्रेस की जीत के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका सीमित है। खड़गे को भी कन्नाडिगा के रूप में देखा गया। वे राज्य के वोटरों से कन्नड़ भाषा में संवाद करते हैं। कांग्रेस ने कन्नड़-गौरव, हिंदी-विरोध नंदिनी-अमूल और उत्तर-दक्षिण भावनाओं को बढ़ाने का काम भी किया। इन बातों का असर आप देख सकते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व की भूमिका देखें। 2021 में येदियुरप्पा को जिस तरह हटाया गया, वह क्या बताता है?

कांग्रेस की उपलब्धि

हिमाचल जीतने के बाद कर्नाटक में भी विजय हासिल करना कांग्रेस की उपलब्धि है। अब वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में ज्यादा उत्साह के साथ उतरेगी। मल्लिकार्जुन खड़गे को इस बात का श्रेय मिलेगा कि उन्होंने अपने गृहराज्य में पार्टी को जीत दिलाई। कांग्रेस के पास यह आखिरी मौका था। कर्नाटक जाता, तो बहुत कुछ चला जाता। राहुल और खड़गे के अलावा कर्नाटक में कांग्रेस के सामाजिक-फॉर्मूले की परीक्षा भी थी। यह फॉर्मूला है अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी जातियाँ। इसकी तैयारी सिद्धरमैया ने सन 2015 से शुरू कर दी थी, जब उन्होंने राज्य की जातीय जनगणना कराई। उसके परिणाम घोषित नहीं हुए, पर सिद्धरमैया ने पिछड़ों और दलितों को 70 फीसदी आरक्षण देने का वादा जरूर किया। आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं किया जा सकता था, पर उन्होंने कहा कि हम इसे 70 फीसदी करेंगे। ऐसा तमिलनाडु में हुआ है, पर इसके लिए संविधान के 76 वां संशोधन करके उसे नवीं अनुसूची में रखा गया, ताकि अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके। कर्नाटक में यह तबतक संभव नहीं, जबतक केंद्र की स्वीकृति नहीं मिले।

कांग्रेसी महत्वाकांक्षा

लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस मज़बूत पार्टी के रूप में उभरना चाहती है। इसी आधार पर वह विरोधी गठबंधन का राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करना चाहती है। साथ ही वह इसे बीजेपी के पराभव की शुरूआत के रूप में भी देख रही है। इस विजय से उसके कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन हुआ है। राज्य में पार्टी सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार दोनों शीर्ष नेता अपने चुनाव जीत गए हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के कई मंत्री परास्त हुए हैं। निवृत्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई जरूर जीत गए हैं। अंतिम समय में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए जगदीश शेट्टार हार गए हैं, जबकि लक्ष्मण सावडी को जीत मिली है। देखना यह भी होगा कि इस विजय से क्या बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की संभावनाएं बेहतर होंगी? क्या शेष विरोधी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? इस प्रश्न का उत्तर लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ही मिलेगा। अभी चार राज्यों के चुनाव परिणामों का इंतजार और करें।  

Thursday, May 11, 2023

इमरान खान को सेना से पंगा लेने की सजा मिलेगी


पाकिस्तान में जिस तरह की अफरा-तफरी में इमरान खान की गिरफ्तारी हुई है और उसके बाद जैसी अराजकता देश में देखने को मिल रही है, उससे दो-तीन बातें स्पष्ट हो रही हैं. पहली बात यह कि देश को इस अराजकता से बाहर निकालना काफी मुश्किल होगा.

इमरान खान को जिस तरीके से गिरफ्तार करके ले जाया गया, वह भी खराब ऑप्टिक्स था. उसके बाद जो हुआ, वह और भी खराब था. दोनों तरफ से तलवारें खिंच गई हैं, जिसकी पऱिणति सैनिक कार्रवाई के रूप में होगी. इमरान खान को सेना से पंगा लेने की सजा मिलेगी. वे अब कानूनी शिकंजे में फँसते चले जाएंगे, जिसकी शुरुआत अल-क़ादिर ट्रस्ट और तोशाखाना केस से हो गई है. 

दूसरी तरफ खबरें यह भी हैं कि इमरान को लेकर सेना के भीतर भी मतभेद हैं. जूनियर सैनिक अफसर इमरान के समर्थक हैं. पाकिस्तानी सेना के बारे में आयशा सिद्दीका की टिप्पणियाँ विश्वसनीय होती हैं. उन्होंने लिखा है कि 9 मई को सैनिक छावनी में तोड़फोड़ करने वालों में बहुत से लोग सर्विंग कर्नल और ब्रिगेडियर रैंक के अफसरों के रिश्तेदार थे.

सेना ने 9 मई को देश के इतिहास का काला अध्याय बताया है और कहा है कि हमने बहुत ज्यादा आत्मानुशासन बरता है, पर अब सख्त कार्रवाई करेंगे. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि उपद्रवियों के साथ अब सख्ती बरती जाएगी. माना जा रहा है कि अब इमरान के समर्थकों पर शिकंजा कसा जाएगा.

अभी तक देखा गया है कि सत्ता-प्रतिष्ठान के एक तबके और अवाम के बीच इमरान खान का कद लगातार बढ़ रहा है. वे विक्टिम कार्ड खेलकर लोकप्रिय होते जा रहे हैं. उन्हें दबाने की कोशिशें उल्टी पड़ रही हैं.

देखना होगा कि सरकार अराजकता पर काबू पाने में कामयाब होती है या नहीं. अराजकता जारी रही, तो उसकी तार्किक परिणति क्या होगी? देश की संसद और न्यायपालिका के बीच भी टकराव है. क्या मार्शल लॉ की वापसी होगी? उससे क्या स्थिति सुधर जाएगी?

इमरान ही रोकें

फिलहाल इस अराजकता को रोकने में भी इमरान खान की भूमिका है. उनकी पार्टी में कोई दो नंबर का नेता नहीं है. आंदोलन का नेतृत्व अब भीड़ के हाथों में है. छिटपुट नेता है, वे आंदोलन को उकसा रहे हैं. इमरान खान ही जनता से हिंसा रोकने की अपील करें, तो कुछ हो सकता है. क्या वे ऐसा करेंगे?

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता महमूद कुरैशी ने देशवासियों से कहा है कि वे सड़कों पर उतर आएं. खैबर-पख्तूनख्वा के कुछ शहरों, कराची और लाहौर सहित दूसरे कुछ शहरों से हिंसा और आगज़नी की खबरें हैं. पूरे देश में मोबाइल इंटरनेट पर रोक लग जाने के बाद संवाद टूट गया है.

पीडीएम सरकार कोशिश कर रही है कि चुनाव फौरन नहीं होने पाएं, पर इन कोशिशों का फायदा इमरान खान को मिलेगा. लगता है कि इमरान की गिरफ्तारी के पीछे सेना का हाथ है, पर इस दौरान सेना की जैसी फज़ीहत हो रही है, वह भी अभूतपूर्व है.

Tuesday, May 9, 2023

इमरान की गिरफ्तारी से पाकिस्तान में अराजकता की लहर आने का खतरा

 


पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देश में अराजकता की लहर फैलने का अंदेशा पैदा हो गया है। इमरान की तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता महमूद कुरैशी ने देशवासियों से कहा है कि वे सड़कों पर उतर आएं। खैबर-पख्तूनख्वा के कुछ शहरों, कराची और लाहौर सहित दूसरे कुछ शहरों से हिंसा और आगज़नी की खबरें हैं।

देशभर में मोबाइल ब्रॉडबैंड सेवा स्थगित कर दी गई है। सरकार का दावा है कि हालात काबू में हैं, पर अगले कुछ दिनों में स्थिति स्पष्ट होगी। ज़ाहिर है कि जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है, इस प्रकार की अस्थिरता खतरनाक है।

इस्लामाबाद पुलिस के मुताबिक़ साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म इमरान ख़ान को नेशनल एकाउंटेबलिटी ब्यूरो (नैब) ने अल-क़ादिर ट्रस्ट केस में गिरफ़्तार किया है। देश में भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों की पकड़-धकड़ के लिए नैब एक स्वायत्त और संवैधानिक संस्था है।

नैब ने भी इस सिलसिले में बयान जारी करते हुए बताया है कि उन्हें नैब ऑर्डिनेंस और क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया है। नैब ने कहा है, नैब हैडक्वॉर्टर रावलपिंडी ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को अल क़ादिर ट्रस्ट में कदाचार करने के जुर्म में हिरासत में लिया है।

Monday, May 8, 2023

प्रशासनिक समझदारी से टाली जा सकती थी मणिपुर की हिंसा


मणिपुर में हुई हिंसा चिंतनीय स्तर तक बढ़ने के बाद हालांकि रुक गई है, पर उससे हमारे बहुल समाज की पेचीदगियाँ उजागर हुई हैं। यह हिंसा देश की बहुजातीय पहचान और सांस्कृतिक-बहुलता के लिए खतरनाक है।  राज्य के पांच जिलों में जितनी तेजी से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ, लोगों की जान गई, घरों, चर्चों, मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई, वह राज्य में लंबे अर्से से चली आ रही पहाड़ी और घाटी की पहचान के विभाजन का नतीजा है। प्रशासनिक समझदारी से उसे टाला जा सकता था। ऐसा नहीं लगता कि इस हिंसा के पीछे राजनीति है, बल्कि यह हिंसा राजनीतिक नेतृत्व की कमी को बता रही है। इसमें जनता के दो समूह आपस में लड़ रहे हैं। 

मणिपुर सरकार ने फ़रवरी में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था। लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद 3 मई से स्थिति बेकाबू हो गई, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को जनजातीय एकता मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान कई जगह हिंसा हुई। यह मार्च मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने के प्रयास के विरुद्ध हुआ था। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे, जिसमें ग़ैर-जनजाति मैती समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।

आदिवासी समूह इस मांग का विरोध कर रहे हैं। मैती समुदाय के सभी वर्गों ने भी समान रूप से आदिवासी का दर्जा देने वाली माँग का समर्थन नहीं किया है। यह शिकायत, कि मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर पहाड़ी आदिवासी समुदायों के आरक्षण लाभों को काम कर देगा, एक सीमा तक ठीक लगता है। पर उनकी यह चिंता सही नहीं है कि इससे पारंपरिक भूमि स्वामित्व बदल जाएगा। आदिवासी नेताओं ने घाटी विरोधी भावनाओं को भड़काने में जमीन खोने के दाँव का इस्तेमाल किया है।

Sunday, May 7, 2023

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गर्मा-गर्मी


विदेशमंत्रियों के गोवा सम्मेलन में पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी की उपस्थिति के कारण सारी निगाहें भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर केंद्रित हो गईं, जबकि एससीओ में द्विपक्षीय मसले उठाए नहीं जाते। इसलिए सम्मेलन में कही गई बातों और मीडिया से कही गई बातों को अलग-धरातल पर समझने की कोशिश करनी चाहिए। दोनों विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातचीत भी नहीं हुई, फिर भी प्रकारांतर से आतंकवाद और कश्मीर का मसला उठा और दोनों पक्षों ने कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा बातें कह दीं। 

शायद मीडिया, राजनीति और सीमा के दोनों ओर की जनता यही सुनना चाहती थी। सम्मेलन में चीन के विदेशमंत्री भी आए थे, और भारत-चीन सीमा पर चल रहे गतिरोध का जिक्र भी सम्मेलन के हाशिए पर हुआ, पर मीडिया का सारा ध्यान भारत-पाकिस्तान पर रहा। शायद इसीलिए दोनों नेताओं ने कुछ ऐसे जुम्ले बोले, जिनसे राजनीति और मीडिया का कारोबार भी चलता रहे। अलबत्ता सम्मेलन में उस किस्म की आतिशबाज़ी नहीं हुई, जिसकी उम्मीद काफी लोगों को थी।  

कयास ही कयास

सबको पहले से पता था कि इस दौरान दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की आमने-सामने बातें नहीं होंगी, फिर भी कयास थे कि हाथ मिलाएंगे या नहीं, एक-दूसरे से बातें करेंगे या नहीं वगैरह। इस कार्यक्रम के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इसकी कवरेज के लिए पाकिस्तान से पत्रकारों की एक टीम भी आई थी, जबकि इस सम्मेलन में द्विपक्षीय सरोकारों पर कोई बात नहीं होने वाली थी।

केवल डेढ़ दिन में बने इस माहौल से समझा जा सकता है कि भारत-पाकिस्तान रिश्तों का क्या महत्व है और जब ये ठंडे होते हैं, तब भी भीतर से कितने गर्म होते हैं। संयोग से इस सम्मेलन के समय जम्मू-कश्मीर के राजौरी में आतंकवादियों से मुठभेड़ में सेना के पाँच जवानों के शहीद होने की खबर भी आई है, जिससे यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान-परस्त लोग सक्रिय हैं और वे इस महीने श्रीनगर में हो रहे जी-20 के कार्यक्रमों पर पानी फेरना चाहते हैं।

ऐसा जवाब देंगे…

भारत-पाकिस्तान रिश्तों के ठंडे-गर्म मिजाज का पता इस सम्मेलन के दौरान बोली गई कुछ बातों से लगाया जा सकता है। मसलन श्रीनगर में हो रही जी-20 की बैठक के सिलसिले में बिलावल भुट्टो ने कहा, ‘दुनिया के किसी ईवेंट का श्रीनगर में आयोजन भारत की अकड़ (एरोगैंस) को दिखाता है। वक्त आने पर हम ऐसा जवाब देंगे कि उनको याद रहेगा।’ वहीं भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को आतंकी इंडस्ट्री का प्रवक्ता बताया। 

इन दो बयानों को अलग रख दें, तो बिलावल भुट्टो ने जयशंकर की तारीफ भी की। जयशंकर ने उनका नमस्कार से स्वागत किया, जिसपर बिलावल ने कहा, हमारे यहां सिंध में इसी तरह से सलाम किया जाता है। जयशंकर ने सबका स्वागत इसी तरीके से किया। उन्होंने किसी भी मौके पर मुझे ऐसा महसूस नहीं होने दिया कि हमारे द्विपक्षीय संबंधों का इस बैठक पर कोई असर है।