देस-परदेश
मालदीव में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन
की चीन-समर्थक ‘प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के एक नेता द्वारा राजधानी
माले में भारतीय उच्चायोग पर हमले के लिए लोगों को उकसाने की खबर ने एकबार फिर से
मालदीव में चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों की ओर ध्यान खींचा है. संतोष की बात है
कि वहाँ के काफी राजनीतिक दलों ने इस बयान की भर्त्सना की है.
पिछले दो साल से इसी पार्टी के लोग मालदीव में ‘इंडिया आउट’ अभियान चला रहे हैं. चिंता की बात यह
नहीं है कि इन अभियानों के पीछे वहाँ की राजनीति है, बल्कि ज्यादा महत्वपूर्ण यह
है कि इनके पीछे चीन का हाथ है. यह केवल आंतरिक राजनीति का मसला होता, तब उसका
निहितार्थ दूसरा होता, पर चीन और पाकिस्तान की भूमिका होने के कारण इसे गहरी साज़िश
के रूप में ही देखना होगा.
सुनियोजित-योजना
श्रीलंका और पाकिस्तान के अलावा मालदीव की
गतिविधियाँ हिंद महासागर में भारत के खिलाफ एक सुसंगत चीनी-सक्रियता को साबित कर
रही हैं. यह सक्रियता म्यांमार, बांग्लादेश और नेपाल में भी है, पर उसका
सामरिक-पक्ष अपेक्षाकृत हल्का है.
मालदीव की पार्टी पीपीएम के नेता अब्बास आदिल
रिज़ा ने एक ट्वीट में लिखा, ‘8 फरवरी को अडू में आगजनी और हिंसा भारत के
इशारे पर की गई थी. हमने अभी तक इसका जवाब नहीं दिया है. मेरी सलाह है कि हम
भारतीय उच्चायोग से शुरुआत करें.’
यह मसला दस साल पुराना है. 2012 में पहली बार
मालदीव में चीन के इशारे पर भारत-विरोधी गतिविधियों की गहराई का पता लगा था। उसी
दौरान श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का उद्घाटन हुआ था और पाकिस्तान ने ग्वादर के
विकास का काम सिंगापुर की एक कंपनी के हाथ से लेकर चीन तो सौंप दिया था.
हंबनटोटा से ग्वादर तक
ग्वादर बंदरगाह के विकास के लिए पाकिस्तान ने
सन 2007 में पोर्ट ऑफ सिंगापुर अथॉरिटी के साथ 40 साल तक बंदरगाह के प्रबंध का
समझौता किया था. यह समझौता अचानक अक्टूबर, 2012 में खत्म हो गया, और इसे एक चीनी
कम्पनी को सौंप दिया गया. इसके बाद ही चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपैक) का समझौता
हुआ.
दिसम्बर 2012 में माले के इब्राहिम नासिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की देखरेख के लिए मालदीव सरकार ने भारतीय कंपनी जीएमआर के साथ हुआ 50 करोड़ डॉलर का करार रद्द करके उसे भी चीनी कंपनी को सौंप दिया था. इसके पहले उस साल फरवरी में तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को ‘बंदूक की नोक’ पर अपदस्थ किया गया था. मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के नेता मोहम्मद नशीद चीन-विरोधी और भारत समर्थक माने जाते थे.