Friday, November 11, 2022

क्या ट्रंप के ‘ग्रहण’ से बाहर निकलेगी रिपब्लिकन पार्टी


अमेरिका के मध्यावधि चुनाव परिणाम हालांकि पूरी तरह आए नहीं हैं, पर उनसे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. जैसा अनुमान था इस चुनाव में उस तरह की लाल लहर नहीं थी, पर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में रिपब्लिकन मामूली बहुमत जरूर हासिल करेंगे. सीनेट में स्थिति कमोबेश पहले जैसी रहेगी, बल्कि रिपब्लिकन्स ने एक सीट खोई है. जॉर्जिया में 6 दिसंबर को फिर से मतदान होगा, जिसके बाद पलड़ा किसी तरफ झुक सकता है.

डेमोक्रेट्स को वैसी पराजय नहीं मिली, जिसका अंदेशा था. इस चुनाव के साथ 2024 के राष्ट्रपति चुनाव का आग़ाज़ भी हो गया है. ऐसा लगता है कि जो बाइडन अगले चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी नहीं होंगे, पर यह स्पष्ट नहीं है कि रिपब्लिकन पार्टी डोनाल्ड ट्रंप को उतारेगी या नहीं. 2020 का चुनाव हारने के बाद से ट्रंप इस बात को कई बार कह चुके हैं कि मैं 2024 का चुनाव लड़ सकता हूँ. इसमें दो राय नहीं कि पार्टी के लिए धन-संग्रह करने की क्षमता ट्रंप के पास है, पर केवल इतने भर से वे प्रत्याशी नहीं बन सकते. मध्यावधि चुनाव के परिणामों से लगता है कि उनके नाम का जादू अब खत्म हो रहा है.  

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में रिपब्लिकन पार्टी का क्षीण सा ही सही, पर बहुमत हो गया है. सीनेट में बराबरी की स्थिति है. प्रतिनिधि सदन में रिपब्लिकन पार्टी सरकारी विधेयकों में रोड़ा अटकाने की स्थिति में आ गई है. इससे बाइडन प्रशासन पर दबाव बढ़ेगा. अमेरिकी संसद में सभी प्रस्तावों पर दलीय आधार पर वोट नहीं पड़ते, कुछ महत्वपूर्ण मामलों में ही दलीय प्रतिबद्धता की परीक्षा होती है. इसका मतलब है कि बड़े प्रस्तावों पर वोट के समय रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व संभव है, पर इसके लिए पार्टी को एकजुट रखने के लिए जतन भी करने होंगे.

Wednesday, November 9, 2022

पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान के रहस्य क्या कभी खुलेंगे?


 देश-परदेस

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि इमरान खान ने अपने ऊपर हुए हमले के बाबत जो आरोप लगाए हैं, उनकी जाँच के लिए आयोग बनाया जाए. इमरान खान ने उनके इस आग्रह का समर्थन किया है. पाकिस्तानी सत्ता के अंतर्विरोध खुलकर सामने आ रहे हैं. पर बड़ा सवाल सेना की भूमिका को लेकर है. उसकी जाँच कैसे होगी? एक और सवाल नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति से जुड़ा है. यह नियुक्ति इसी महीने होनी है.

पाकिस्तानी सेना, समाज और राजनीति के तमाम जटिल प्रश्नों के जवाब क्या कभी मिलेंगे? इमरान खान के पीछे कौन सी ताकत? जनता या सेना का ही एक तबका? सेना ने ही इमरान को खड़ा किया, तो फिर वह उनके खिलाफ क्यों हो गई? व्यवस्था की पर्याय बन चुकी सेना अब राजनीति से खुद को अलग क्यों करना चाहती है?

पाकिस्तान में शासन के तीन अंगों के अलावा दो और महत्वपूर्ण अंग हैं- सेना और अमेरिका. सेना माने एस्टेब्लिशमेंट. क्या इस बात की जाँच संभव है कि इमरान सत्ता में कैसे आए? पिछले 75 साल में सेना बार-बार सत्ता पर कब्जा करती रही और सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस काम को गैर-कानूनी नहीं ठहराया. क्या गारंटी कि वहाँ सेना का शासन फिर कभी नहीं होगा?  

अमेरिका वाले पहलू पर भी ज्यादा रोशनी पड़ी नहीं है. इमरान इन दोनों रहस्यों को खोलने पर जोर दे रहे हैं. क्या उनके पास कोई ऐसी जानकारी है, जिससे वे बाजी पलट देंगे? पर इतना साफ है कि वे बड़ा जोखिम मोल ले रहे हैं और उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है.

लांग मार्च फिर शुरू होगा

हमले के बाद वज़ीराबाद में रुक गया लांग मार्च अगले एक-दो रोज में उसी जगह से फिर रवाना होगा, जहाँ गोली चली थी. इमरान को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है, पर वे मार्च में शामिल नहीं होगे, बल्कि अपने जख्मों का इलाज लाहौर में कराएंगे. इस दौरान वे वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मार्च में शामिल लोगों को संबोधित करते रहेंगे. उम्मीद है कि मार्च अगले 10 से 14 दिन में रावलपिंडी पहुँचेगा.

पाकिस्तानी शासन का सबसे ताकतवर इदारा है वहाँ की सेना. देश में तीन बार सत्ता सेना के हाथों में गई है. पिछले 75 में से 33 साल सेना के शासन के अधीन रहे, अलावा शेष वर्षों में भी पाकिस्तानी व्यवस्था के संचालन में किसी न किसी रूप में सेना की भूमिका रही.

लोकतांत्रिक असमंजस

भारत की तरह पाकिस्तान में भी संविधान सभा बनी थी, जिसने 12 मार्च 1949 को संविधान के उद्देश्यों और लक्ष्यों का प्रस्ताव तो पास किया, पर संविधान नहीं बन पाया. नौ साल की कवायद के बाद 1956 में पाकिस्तान अपना संविधान बनाने में कामयाब हो पाया.

23 मार्च 1956 को इस्कंदर मिर्ज़ा राष्ट्रपति बनाए गए. उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया था, पर 7 अक्तूबर 1958 को उन्होंने अपनी लोकतांत्रिक सरकार ही बर्खास्त कर दी और मार्शल लॉ लागू कर दिया. उनकी राय में पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र मुफीद नहीं.

Sunday, November 6, 2022

पाकिस्तान पर ‘सिविल वॉर’ की छाया

इमरान खान पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में अराजकता फैल गई है। इमरान समर्थकों ने कई जगह हिंसक प्रदर्शन किए हैं। एइस हमले के पहले पिछले हफ्ते ही इमरान के एक वरिष्ठ सहयोगी ने दावा किया था कि देश में हिंसा की आंधी आने वाली है। तो क्या यह हमला योजनाबद्ध है? इस मामले ने देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को उधेड़ना
शुरू कर दिया है। कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह कहाँ तक जाएगा। अलबत्ता इमरान खान इस परिस्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। अप्रेल के महीने में गद्दी छिन जाने के बाद से उन्होंने जिस तरीके से सरकार, सेना और अमेरिका पर हमले बोले हैं, उनसे हो सकता है कि वे एकबारगी कुर्सी वापस पाने में सफल हो जाएं, पर हालात और बिगड़ेंगे। फिलहाल देखना होगा कि इस हमले का राजनीतिक असर क्या होता है।

सेना पर आरोप

गुरुवार को हुए हमले के बाद शनिवार को कैमरे के सामने आकर इमरान ने सरकार, सेना और अमेरिका के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को दोहराया है। उनका दावा है कि जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है, लेकिन कुछ लोगों को ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने ही हत्या की यह कोशिश की है। उन्होंने इस हमले के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, गृहमंत्री राना सनाउल्ला और आईएसआई के डायरेक्टर जनरल (काउंटर इंटेलिजेंस) मेजर जनरल फ़ैसल नसीर को ज़िम्मेदार बताया है। उन्हें हाल में ही बलोचिस्तान से तबादला करके यहाँ लाया गया है। फ़ैसल नसीर को सेनाध्यक्ष क़मर जावेद बाजवा का विश्वासपात्र माना जाता है। इस तरह से यह आरोप बाजवा पर भी है। इस आशय का बयान गुरुवार की रात ही जारी करा दिया था। यह भी साफ है कि यह बयान जारी करने का निर्देश इमरान ने ही दिया था।

हिंसा की धमकी

बेशक पाकिस्तानी सेना हत्याएं कराती रही है, पर क्या वह इतना कच्चा काम करती है? हमला पंजाब में हुआ है, जिस सूबे में पीटीआई की सरकार है। उन्होंने अपनी ही सरकार की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया है। हत्या के आरोप में जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह इमरान पर अपना गुस्सा निकाल रहा है। क्या वह हत्या करना चाहता था? उसने पैर पर गोलियाँ मारी हैं। हैरत की बात है कि इतने गंभीर मामले पर पुलिस पूछताछ का वीडियो फौरन सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पीटीआई के नेता फवाद चौधरी का कहना है कि यह साफ हत्या की कोशिश है। एक और नेता असद उमर ने कहा कि इमरान खान ने मांग की है कि इन लोगों को उनके पदों से हटाया जाए, नहीं तो देशभर में विरोध प्रदर्शन होंगे। माँग पूरी नहीं हुई तो जिस दिन इमरान खान बाहर आकर कहेंगे तो कार्यकर्ता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे।

सेना से नाराज़गी

2018 में इमरान को प्रधानमंत्री बनाने में सेना की हाथ था, पर पिछले डेढ़-दो साल में परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं। इस साल अप्रेल में जब इमरान सरकार के खिलाफ संसद का प्रस्ताव पास हो रहा था, तब से इमरान ने खुलकर कहना शुरू कर दिया कि सेना मेरे खिलाफ है। पाकिस्तान में सेना को बहुत पवित्र और आलोचना के परे माना जाता रहा है, पर अब इमरान ने ऐसा माहौल बना दिया है कि पहली बार सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही है। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कार्यकर्ताओं ने पेशावर कोर कमांडर सरदार हसन अज़हर हयात के घर को भी घेरा और नारेबाजी की। पाकिस्तानी-प्रतिष्ठान में सेना के बाद जो दूसरी ताकत सबसे महत्वपूर्ण रही है वह है अमेरिका। इमरान खान ने अमेरिका को भी निशाना बनाया और आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ है। वे शहबाज़ शरीफ की वर्तमान सरकार को इंपोर्टेड बताते हैं।

Wednesday, November 2, 2022

बाइडन के सिर पर ‘लाल लहर’ का खतरा


 देश-परदेस

नवंबर के पहले सोमवार के बाद पड़ने वाला मंगलवार अमेरिका में चुनाव दिवस होता है. आगामी 8 नवंबर को वहाँ मध्यावधि चुनाव होंगे. आमतौर पर भारतीय मीडिया की दिलचस्पी वहाँ के राष्ट्रपति चुनाव में होती है, पर अमेरिका की आंतरिक राजनीति में मध्यावधि चुनावों की जबर्दस्त भूमिका होती है. इसके परिणामों से पता लगेगा कि अगले दो साल देश की राजनीति और संसद के दोनों सदनों की भूमिका क्या होगी. 

अमेरिकी प्रतिनिधि सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) का कार्यकाल दो साल का होता है और सीनेट के सदस्यों का छह साल का, जिसके एक तिहाई सदस्यों का चक्रीय पद्धति से हर दो साल बाद चुनाव होता है. दोनों सदनों की भूमिका देश का राजनीतिक एजेंडा तय करने की होती है.

हालांकि अभी तक डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों सदनों से अपने काम निकाल ले रही थी, पर अब दोनों ही सदनों में उसके पिछड़ने का अंदेशा है. जो बाइडन की लोकप्रियता में भी गिरावट है. ये बातें 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम को प्रभावित करेंगी.

लोकप्रियता का पैमाना

राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता है और उसके पद संभालने के दो साल बाद चुनाव होते हैं, इसलिए इन्हें मध्यावधि चुनाव कहा जाता है. मध्यावधि चुनाव एक मायने में राष्ट्रपति की लोकप्रियता का पैमाना होता है. इन चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम होता है, पर जब राजनीतिक हवा तेज होती है, तब प्रतिशत बढ़ भी जाता है. इस साल के मतदान प्रतिशत से भी पता लगेगा कि देश का राजनीतिक माहौल कैसा है.

इसबार के चुनाव कुछ और वजहों से महत्वपूर्ण हैं. सामाजिक दृष्टि से देश बुरी तरह विभाजित है और अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है. रिपब्लिकन पार्टी फिर से सिर उठा रही है. मध्यावधि चुनावों के परिणाम आमतौर पर राष्ट्रपति की पार्टी के खिलाफ जाते हैं. इस चुनाव में हिंसा भड़कने की आशंका भी है. चुनाव के मात्र एक सप्ताह पहले 28 अक्तूबर को प्रतिनिधि सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी के पति पर हमला हुआ है.

प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में देश के 77 फीसदी पंजीकृत वोटरों ने माना कि वोट देते समय आर्थिक मसले सबसे महत्वपूर्ण होंगे. सितंबर के महीने में देश की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 8.2 फीसदी थी. देश की गन पॉलिसी भी चिंता का विषय है. आए दिन गोलियों से होने वाली मौतों के विवरण प्रकाशित होते रहते हैं.

दो सदन, दो व्यवस्थाएं

अमेरिकी संसद के दो सदन हैं. हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में 435 सदस्य होते हैं. और दूसरा है, सीनेट, जिसमें 100 सदस्य होते हैं. हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स की सभी 435 सीटों के चुनाव होंगे. सीनेट की चक्रीय व्यवस्था के तहत हर दो साल पर एक तिहाई सीटों पर चुनाव होते हैं. इसबार 34 सदस्यों का चुनाव होगा, जो छह साल के लिए चुने जाएंगे.

Monday, October 31, 2022

खड़गे के सामने दो मुख्य लक्ष्य: चुनावों में सफलता और सांगठनिक सुधार


मल्लिकार्जुन खड़गे आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष बन गए हैं। अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा है कि उदयपुर-घोषणा के अनुसार अब पार्टी में 50 फीसदी पद 50 साल से कम उम्र के लोगों को देंगे। यह घोषणा जितनी आसान लगती है, उसे लागू करना उतना ही मुश्किल होगा। सोनिया गांधी के नेतृत्व में शीर्ष पर पार्टी के जो नेता हैं, उनमें कोई भी पचास से नीचे का नहीं है। सबसे कम उम्र की हैं प्रियंका गांधी जो 50 साल से कुछ ऊपर हैं। शेष नेता इससे ज्यादा उम्र के हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे स्वयं 80 के हैं।

उनका नेतृत्व मंडल अभी गठित नहीं हुआ है, पर जैसी उन्होंने घोषणा की है, उसे लागू करने का मतलब है कि अब कम से कम आधे नेता एकदम नए होंगे। यह नई ऊर्जा होगी। उसे पुरानों के साथ मिलकर काम करना होगा। खड़गे को दोनों के बीच पटरी बैठानी होगी। खड़गे ने मुश्किल समय में पार्टी की कमान संभाली है। इस समय केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। इसके अलावा झारखंड और तमिलनाडु में पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल है, लेकिन मुख्यमंत्री दूसरे दलों के हैं।

बुधवार 26 अक्तूबर को जब उन्होंने कार्यभार संभाला, तब सोनिया गांधी के अलावा राहुल गांधी भी उपस्थित थे, जो अपनी भारत जोड़ो यात्रा को कुछ समय के लिए छोड़कर इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिल्ली आए। कांग्रेस शासित दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भूपेश बघेल भी कार्यक्रम में मौजूद थे। प्रियंका गांधी भी।

खड़गे के पास समय भी कम है। 2024 के लोकसभा चुनाव को अब सिर पर ही मानिए। लोकसभा चुनाव के पहले 11 राज्यों के और उसके फौरन बाद के चुनावों को भी जोड़ लें, तो कुल 18 विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। इनमें हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। हिमाचल और गुजरात के चुनाव तो सामने खड़े हैं और फिर 2023 में उनके गृह राज्य कर्नाटक के चुनाव हैं। अगले साल फरवरी-मार्च में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनाव हैं, मई में कर्नाटक के और नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के।