इमरान खान पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में अराजकता फैल गई है। इमरान समर्थकों ने कई जगह हिंसक प्रदर्शन किए हैं। एइस हमले के पहले पिछले हफ्ते ही इमरान के एक वरिष्ठ सहयोगी ने दावा किया था कि देश में हिंसा की आंधी आने वाली है। तो क्या यह हमला योजनाबद्ध है? इस मामले ने देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को उधेड़ना
शुरू कर दिया है। कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह कहाँ तक जाएगा। अलबत्ता इमरान खान इस परिस्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। अप्रेल के महीने में गद्दी छिन जाने के बाद से उन्होंने जिस तरीके से सरकार, सेना और अमेरिका पर हमले बोले हैं, उनसे हो सकता है कि वे एकबारगी कुर्सी वापस पाने में सफल हो जाएं, पर हालात और बिगड़ेंगे। फिलहाल देखना होगा कि इस हमले का राजनीतिक असर क्या होता है।
सेना पर आरोप
गुरुवार को हुए हमले के बाद शनिवार को कैमरे के
सामने आकर इमरान ने सरकार, सेना और अमेरिका के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को
दोहराया है। उनका दावा है कि जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है,
लेकिन कुछ लोगों को ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने ही हत्या की यह कोशिश
की है। उन्होंने इस हमले के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, गृहमंत्री
राना सनाउल्ला और आईएसआई के डायरेक्टर जनरल (काउंटर इंटेलिजेंस) मेजर जनरल फ़ैसल नसीर
को ज़िम्मेदार बताया है। उन्हें हाल में ही बलोचिस्तान से तबादला करके यहाँ लाया
गया है। फ़ैसल नसीर को सेनाध्यक्ष क़मर जावेद बाजवा का विश्वासपात्र माना जाता है।
इस तरह से यह आरोप बाजवा पर भी है। इस आशय का बयान गुरुवार की रात ही जारी करा
दिया था। यह भी साफ है कि यह बयान जारी करने का निर्देश इमरान ने ही दिया था।
हिंसा की धमकी
बेशक पाकिस्तानी सेना हत्याएं कराती रही है, पर
क्या वह इतना कच्चा काम करती है? हमला पंजाब में हुआ है, जिस सूबे में
पीटीआई की सरकार है। उन्होंने अपनी ही सरकार की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया
है। हत्या के आरोप में जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह इमरान पर अपना गुस्सा निकाल
रहा है। क्या वह हत्या करना चाहता था? उसने पैर पर गोलियाँ मारी हैं। हैरत की
बात है कि इतने गंभीर मामले पर पुलिस पूछताछ का वीडियो फौरन सोशल मीडिया पर वायरल
हो गया। पीटीआई के नेता फवाद चौधरी का कहना है कि यह ‘साफ हत्या की
कोशिश’ है। एक और नेता असद
उमर ने कहा कि इमरान खान ने मांग की है कि इन लोगों को उनके पदों से हटाया जाए,
नहीं तो देशभर में विरोध प्रदर्शन होंगे। माँग पूरी नहीं हुई तो जिस
दिन इमरान खान बाहर आकर कहेंगे तो कार्यकर्ता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर
देंगे।
सेना से नाराज़गी
2018 में इमरान को प्रधानमंत्री बनाने में सेना की हाथ था, पर पिछले डेढ़-दो साल में परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं। इस साल अप्रेल में जब इमरान सरकार के खिलाफ संसद का प्रस्ताव पास हो रहा था, तब से इमरान ने खुलकर कहना शुरू कर दिया कि सेना मेरे खिलाफ है। पाकिस्तान में सेना को बहुत पवित्र और आलोचना के परे माना जाता रहा है, पर अब इमरान ने ऐसा माहौल बना दिया है कि पहली बार सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही है। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कार्यकर्ताओं ने पेशावर कोर कमांडर सरदार हसन अज़हर हयात के घर को भी घेरा और नारेबाजी की। पाकिस्तानी-प्रतिष्ठान में सेना के बाद जो दूसरी ताकत सबसे महत्वपूर्ण रही है वह है अमेरिका। इमरान खान ने अमेरिका को भी निशाना बनाया और आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ है। वे शहबाज़ शरीफ की वर्तमान सरकार को ‘इंपोर्टेड’ बताते हैं।
सब बेईमान हैं
इमरान के हिसाब से
नवाज़ शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) और बिलावल ज़रदारी की पाकिस्तान
पीपुल्स पार्टी दलालों और बेईमानों की पार्टियाँ हैं। सिर्फ मैं ईमानदार हूँ। उन्होंने
अपने पीछे अराजक भीड़ तैयार कर ली है, जो अब सड़कों पर उतर आई है। अब सवाल है कि
इन हालात पर काबू कैसे पाया जाएगा। और इमरान की अराजक राजनीति का जवाब कौन देगा। देश
की आर्थिक स्थिति खराब है। उसे दुरुस्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की
मदद और अमेरिका का सहारा चाहिए। हाल में उसे एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ से छुटकारा मिला है। पाकिस्तान एक
तरफ अमेरिका का पिट्ठू देश रहा है, वहीं चीन का सबसे गहरा मित्र भी। दो नावों की
इस सवारी को सफल बनाने के लिए भी उसे जिस समझदारी की जरूरत है, वह इमरान खान में
दिखाई नहीं दी।
सत्ता का नशा
इन सब बातों के अलावा
इमरान ने मज़हबी उन्माद का सहारा भी लिया है। उनकी राजनीति अब ऐसे मोड़ पर आ गई
है, जहाँ से वे वापस लौट भी नहीं सकते। इमरान ख़ान
बार-बार फौरन चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं, लेकिन
सरकार का कहना है कि चुनाव अपने समय से ही होंगे, जिसके लिए मुकर्रर समय अगस्त
2023 है। हाल में तोशाखाना मामले में ग़लत जानकारी देने को लेकर चुनाव आयोग ने
इमरान ख़ान को अगले पांच साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य भी करार दिया है, जिसके
खिलाफ वे अदालत में गए हैं। वर्तमान विवाद सिर्फ इतना है कि इमरान किसी तरह से
सत्ता पर वापस आना चाहते हैं और स्वाभाविक रूप से उनके विरोधी ऐसा होने नहीं देना
चाहते।
कमज़ोर लोकतंत्र
पाकिस्तान में राजनीतिक हत्याओं का इतिहास है। 1951 में एक जनसभा में देश के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली ख़ान की गोली
मारकर हत्या की गई थी। पाकिस्तान तीन बार सेना का तख़्तापलट देख चुका है। यहां
चुनाव के बावजूद कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। लोकतंत्र
की जड़ें वहाँ जम ही नहीं पाई हैं। पाकिस्तान के माध्यम से अपना उल्लू सीधा करने
वाले चीन और अमेरिका दोनों की दिलचस्पी यहाँ के लोकतंत्र में नहीं रही है। बहरहाल वर्तमान
राजनीति का प्रस्थान-बिंदु 2008 का चुनाव है, जो परवेज मुशर्रफ के हटने के बाद हुआ
था। इस चुनाव के ठीक पहले दिसंबर 2007 में प्रचार के लिए निकली बेनज़ीर भुट्टो की
हत्या हुई थी। उनपर पहली बार कराची में हमला हुआ था जिसमें वे बच गई थीं।
लांग मार्च
इमरान इस हमले को राजनीतिक रूप से भुनाएंगे। वे
पहले से कहते चले आ रहे हैं कि मेरी हत्या का प्रयास होगा। बावजूद इसके उन्होंने इतना
खुलकर लांग मार्च निकाला, बगैर विशेष-सुरक्षा के। शुक्रवार 28 मार्च से शुरू हुआ लांग
मार्च 4 नवंबर को इस्लामाबाद पहुँचना था। उसके ठीक एक दिन पहले हमला हो गया।
फिलहाल मार्च रुक गया है, पर इमरान ने कहा है कि इसे जारी रखेंगे। उनकी एक मांग
है-तुरंत चुनाव। क्या वे अपनी मुहिम में कामयाब होंगे? और कामयाब
हुए भी तो क्या वे देश को चला पाएंगे? इस साल यह दूसरा मौका है जब वे अपने
समर्थकों के साथ सड़क पर उतरे हैं। इससे पहले मई में भी उन्होंने ऐसी कोशिश की थी,
लेकिन तब सरकार ने उसे नाकाम कर दिया था। बाद में इमरान ख़ान ने कहा
था कि गृहयुद्ध की स्थिति से बचने के लिए हमने मार्च वापस ले लिया। अब लगता है कि
वे गृहयुद्ध ही चाहते हैं।
सेना की भूमिका
इमरान खान पर हुए हमले के पीछे कौन है, अभी यह
स्पष्ट नहीं है। अलबत्ता सेना पर हमलों के पीछे इमरान जरूर हैं। ऐसे में सेना की
भूमिका क्या होगी? सेना की भूमिका अब काफी महत्वपूर्ण हो गई है।
इस महीने देश के नए सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा होने वाली है। सेना बार-बार कह रही
है कि हमारी राजनीतिक भूमिका नहीं होगी, पर इस कांड के बाद उसका दृष्टिकोण क्या होगा,
पता नहीं। सेना के भीतर भी इमरान के समर्थन और विरोध में दो प्रकार की ताकतें हैं। हाल
में एक पाकिस्तानी पत्रकार की केन्या में हुई मृत्यु को लेकर सैनिक प्रवक्ता मेजर
जनरल बाबर इफ्तिकार ने आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम की ओर से प्रेस
कांफ्रेंस की। इसमें उन्होंने लोगों से सेना पर विश्वास बनाए रखने की अपील करते
हुए कहा कि पाकिस्तानी सैनिक ‘गलतियां’ कर सकते हैं, लेकिन
वे ‘देशद्रोही या साजिशकार’ नहीं हो सकते।
विघटन रेखाएं
दो सच और सामने हैं। पहला यह कि 2018 में इमरान
खान सेना की सहायता से प्रधानमंत्री बने थे। और दूसरा यह कि इस साल अप्रेल में
उन्हें हटाने के पीछे केवल राजनीतिक दलों की भूमिका ही नहीं थी, बल्कि सेना का
प्रच्छन्न समर्थन भी था। पाकिस्तान की फॉल्ट-लाइंस यानी विघटन-रेखाएं गहरी हो रही
हैं। वहाँ की प्रशासनिक संस्थाओं पर सामंती प्रभाव है। क्षेत्रीय भावनाओं का उभार
है। बलोचिस्तान, सिंध, मुहाजिर और पश्तून आक्रोश उफान पर है। दूसरी तरफ उसे बचाने
की कोशिशें भी जारी हैं। परंपरा से देश में सेना भी सत्ता की भागीदार है, खासतौर
से रक्षा और विदेश-संबंध के बारे में, इसलिए इमरान को लेकर उसके अपने संशय हैं।
हाल में पाकिस्तान की राष्ट्रीय-सुरक्षा को लेकर एक दस्तावेज जारी हुआ है, जिसमें
कहा गया है कि वास्तविक सुरक्षा आर्थिक है। इसका एक मतलब है पड़ोसी देशों के साथ
रिश्ते सुधारना। क्या वहाँ समझदारी काम करेगी? यह
बड़ा सवाल है, जिसका जवाब समय देगा।
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