Thursday, October 21, 2021

पाकिस्तानी विदेशमंत्री काबुल क्यों गए?

पाकिस्तानी विदेशमंत्री का काबुल में स्वागत

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी एक दिन की तालिबान यात्रा पर गुरुवार को क़ाबुल पहुंचे। ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख जनरल फ़ैज़ अहमद भी इस दौरे पर कुरैशी के साथ गए हैं। अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद किसी पाकिस्तानी मंत्री का यह पहला अफ़ग़ानिस्तान दौरा है, पर जनरल फ़ैज़ का यह दूसरा दौरा है।

क्या वजह है इस दौरे की? खासतौर से जब मॉस्को में तालिबान के साथ रूस की एक बैठक चल रही है? इसे 'मॉस्को फॉर्मेट' नाम दिया गया है। इस बैठक में चीन और पाकिस्तान समेत 10 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं लेकिन अमेरिका इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है। भारत ने इसमें हिस्सा लिया है और कहा है कि हम मानवीय सहायता देने को तैयार हैं, पर सम्भवतः भारत भी तालिबान सरकार को मान्यता देने के पक्ष में नहीं है।

पाकिस्तानी विदेशमंत्री का दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई नेता तालिबान से एक समावेशी सरकार बनाने और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने की अपील कर रहे हैं। क्या पाकिस्तानी विदेशमंत्री तालिबानियों को समझाने गए हैं कि अपने तौर-तरीके बदलो?

पंजशीर-प्रतिरोध

फिलहाल मुझे एक बात समझ में आती है। पंजशीर में प्रतिरोध तेज हो गया है और काफी बड़े इलाके से तालिबानियों को खदेड़ दिया गया है। पिछली बार जब जनरल फ़ैज़ वहाँ गए थे, तब भी पंजशीर का मसला खड़ा था। उसके बाद कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने पंजशीर पर कब्जे के लिए तालिबान की मदद की थी। अगले कुछ दिन में बातें ज्यादा साफ होंगी। तालिबान की ताकत घटती जा रही है। उसके सामने एक तरफ आईसिस का खतरा है, दूसरी तरफ पंजशीर में उसके पैर उखड़ रहे हैं।

इन सब बातों के अलावा अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक चुनौतियां आने वाले दिनों में और भी गंभीर हो सकती हैं। अमेरिका ने फिर साफ़ कर दिया है कि उसका तालिबान के 'फ़्रीज़ फंड' को रिलीज़ करने का कोई इरादा नहीं है। अमेरिका ने मॉस्को वार्ता में हिस्सा भी नहीं लिया। बेशक अफगानिस्तान की जनता की परेशानियाँ बढ़ गई हैं, उनके भोजन और स्वास्थ्य के बारे में दुनिया को सोचना चाहिए, पर जिन देशों ने तालिबान को बढ़ने का मौका दिया, उनकी भी कोई जिम्मेदारी है। पाकिस्तान, चीन और रूस को सबसे पहले मदद के लिए आगे आना चाहिए।

आर्थिक संकट

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि अफ़ग़ानिस्तान को तुरंत सहायता नहीं मिली तो स्थिति 'बेहद गंभीर' हो जाएगी। अफ़ग़ानिस्तान के आर्थिक संकट का असर पाकिस्तान, ताजिकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से लेकर तुर्की और यूरोप तक की मुश्किल बढ़ा देगा। अफ़ग़ानिस्तान को बड़ी मात्रा में विदेशी सहायता मिलती थी। ब्रिटेन की सरकार का अनुमान है कि ओईसीडी (ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट) देशों ने साल 2001 से 2019 के बीच अफ़ग़ानिस्तान को 65 अरब अमेरिकी डॉलर का दान किया था।

Wednesday, October 20, 2021

अफगान महिला खिलाड़ी का सिर कलम

घेरे में अफ़ग़ान महिला खिलाड़ी माहज़बीं

खबर है कि तालिबान हुक्मरां के आदेश से अफगानिस्तान की जूनियर महिला वॉलीबॉल टीम की खिलाड़ी माहज़बीं हकीमी का सिर कलम कर दिया गया है। यह खबर टीम के कोच को उधृत करते हुए इंडिपेंडेंट अखबार के फारसी संस्करण ने दी है। यह काम इसी महीने कुछ समय पहले हुआ है। महाज़बीं हकीमी अपने देश की जूनियर वॉलीबॉल टीम की ओर से खेल चुकी हैं। टीम के कोच के अनुसार यह खबर दुनिया तक इसलिए नहीं पहुँची, क्योंकि हत्या करने वालों ने उनके परिवार के सदस्यों को धमकी दी थी कि इसके बारे में कोई बात कही तो उनके लिए खराब होगा। अशरफ ग़नी प्रशासन के पतन के पहले तक महाज़बीं काबुल म्युनिसिपैलिटी वॉलीबॉल क्लब की ओर से खेलती थीं।

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर उनके कटे हुए सिर की फोटो वायरल हुई थी। अब टीम के कोच ने, जिनके नाम को छिपाया गया है, कहा कि हत्या माहज़बीं की हुई थी। वैबसाइट ने कोच का नाम सुरैया अफ़ज़ली लिखा है, साथ ही यह भी लिखा है कि यह असली नाम नहीं है। कोच ने यह भी बताया कि टीम की केवल दो सदस्य ही देश से बाहर जा पाईं थीं। महाज़बीं उन अभागी खिलाड़ियों में शामिल थीं, जो देश में ही रह गईं।

प्रशासन पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने देश की महिला खिलाड़ियों की तलाश शुरू कर दी है। उन्होंने खासतौर से वॉलीबॉल टीम की खिलाड़ियों की तलाश की, जो देश के बाहर जाकर खेल चुकी हैं और मीडिया के कार्यक्रमों में भी शामिल हुई हैं। कोच के अनुसार देश में महिला खिलाड़ियों की दशा खराब है। या तो वे देश छोड़कर भाग रही हैं या छिप रही हैं।

अफगानिस्तान की राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम 1978 में बनी थी। देश में लड़कियों के सशक्तीकरण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अफगान खिलाड़ियों की सहायता के लिए पर्याप्त वैश्विक समर्थन तैयार नहीं हो पाया है। पिछले सप्ताह फुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय संगठन फीफा और कतर सरकार ने करीब 100 महिला फुटबॉल खिलाड़ियों को देश से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है। इनमें राष्ट्रीय टीम की खिलाड़ी और उनके परिवारजन शामिल हैं। देश में महिला खेल पूरी तरह बन्द हैं। माध्यमिक विद्यालयों तक में लड़कियों की शिक्षा बन्द है।

 

 

क्या उत्तर प्रदेश के वोटर को पसंद आएगी प्रियंका गांधी की ‘नई राजनीति’?

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कुछ अलग नजर आने और चुनाव के मुद्दों को विस्तार देने के इरादे से उतर रही है। पार्टी ने मंगलवार को घोषणा की कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव पार्टी के 40 फीसदी टिकट महिला उम्मीदवारों को दिए जाएंगे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस बात की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि पार्टी टिकट पाने के आवेदन के लिए तारीख 15 नवम्बर तक बढ़ा दी गई है। इस चुनाव में पार्टी का नारा है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’

कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस लेने की शिद्दत से तलाश है। सन 2017 के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई थी और राज्य में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की पूरी कोशिश कर रही है। वह भी तब, जब उत्तर प्रदेश के चुनाव में ‘जाति’ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कांग्रेस यह कदम उठा कर महिला मतदाताओं को अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है। उसके पहले 2012 के चुनाव में पार्टी को बहुत उम्मीदें थीं। तब राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा किया गया था।

सन 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सफलता से प्रेरित कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सफलता की आशा थी। उस वक्त समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के भीतर राज्य के वोटर को नई ऊर्जा दिखाई पड़ी थी। कांग्रेस को लगता था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के कारण सफलता मिली है। वस्तुतः कांग्रेस की सफलता के पीछे उसे प्राप्त हमदर्दी थी, जो वाममोर्चा के हाथ खींचने के कारण पैदा हुई थी।

प्रियंका गांधी मानती हैं कि महिलाएं नफरत की राजनीति का विकल्प प्रदान करेंगी। महिलाओं को राजनीति का केन्द्रीय विषय बनाने का विचार अपने आप में रोचक और प्रभावशाली है। लोकसभा के पिछले दो चुनावों से यह बात साबित हुई है कि देश में महिला वोटर निर्णायक भूमिका निभाती हैं। बावजूद इसके सवाल है कि कांग्रेस पार्टी के पास क्या यूपी में दो सौ के आसपास ऐसी महिला प्रत्याशी हैं, जो मजबूती के साथ उतर सकें। यदि हैं भी, तो क्या वे पुराने कांग्रेसी नेताओं के परिवारों से आएंगी या अपनी सामर्थ्य पर राजनीति में उतरी महिलाएं होंगी?

अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाएंगे


जिस बात की उम्मीद काफी दिन से थी, वह मूर्त रूप लेती दिखाई पड़ रही है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी बनाने जा रहे हैं। हालांकि पार्टी का नाम, ध्वज और चिह्न अभी सामने नहीं आए हैं, पर इरादे साफ हैं। वे कांग्रेस छोड़ेंगे और नई पार्टी बनाएंगे। मंगलवार की शाम उन्होंने घोषणा की कि मैं नई पार्टी बनाऊँगा और सम्भवतः अकाली दल के एक धड़े और बीजेपी के साथ गठबंधन भी करूँगा। इस गठजोड़ में शिरोमणि अकाली दल (बादल) से अलग हो चुके सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत ब्रह्मपुरा के गुट को भी जोड़ेंगे।

कैप्टेन का कहना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन के पहले किसान आंदोलन का सही समाधान निकलना जरूरी है। किसान आंदोलन का समाधान उनके हित में हो जाता है तो पंजाब में भाजपा के साथ समझौते को लेकर भी वे विचार करेंगे। मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की थी। तब लग रहा था कि शायद वे भाजपा में शामिल होंगे। अमरिंदर के बयान पर नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी नेता और पंजाब के मंत्री परगट सिंह ने कहा कि मैं पहले से कहता रहा था कि उनकी बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के साथ साठगाँठ है। यह बात अब खुलकर सामने आ रही है।

किसान आंदोलन

अमरिंदर ने एक इंटरव्यू में संकेत दिए हैं कि दिल्ली में सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन जल्दी ही एक प्रस्ताव की तरफ आगे बढ़ सकता है। इसमें केन्द्र सरकार किसानों से बात करेगी। उन्होंने कहा कि कृषि सुधार कानूनों का मसला हल होने के बाद ही हम बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे। किसान आंदोलन से पहले पंजाब में मोदी सरकार का कोई विरोध नहीं था। उन्होंने खुलासा किया कि किसान आंदोलन खत्म करवाने के लिए भी कोशिशें चल रही हैं।

अमरिंदर ने कहा कि उनका फोकस 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर पंजाब में सरकार बनाने पर रहेगा। भाजपा से किसी तरह के वैचारिक दिक्कत के मामले में अमरिंदर सिंह ने कहा कि मैं पंजाब के साथ खड़ा हूँ और मेरे लिए पंजाब का हित सबसे ऊपर हैं। साथ ही यह भी कहा कि बीजेपी सांप्रदायिक पार्टी नहीं है। उन्होंने भाजपा के एंटी मुस्लिम होने को भी गलत करार दिया।

Tuesday, October 19, 2021

कश्मीर में आतंकियों की नई रणनीति का उद्देश्य है हालात को सामान्य बनने से रोकना

 


जम्मू-कश्मीर में अक्तूबर के महीने में आतंकी घटनाओं ने रफ्तार पकड़ ली है। इस माह के पहले 18 दिनों में आतंकियों की तरफ से काफी नुकसान किया गया है। अभी तक इस माह में आतंकियों की तरफ से 12 नागरिकों की हत्या की गई है, जिसमें बाहर के नागरिक भी शामिल हैं। इसके अलावा नौ जवान मुठभेड़ों में शहीद हुए हैं। इनके अलावा कुल 13 मुठभेड़ों में 14 आतंकियों को मार गिराया गया है। इन आतंकी घटनाओं को देखते हुए पूरे प्रदेश में सुरक्षा को कड़ा किया गया है। जाँच एजेंसियाँ इस बात की पड़ताल भी कर रही हैं कि पाकिस्तानी आईएसआई क्या इस्लामिक स्टेट खुरासान की आड़ में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने का प्रयास तो नहीं कर रही है। आईएसकेपी की पत्रिका में एक गोलगप्पे वाले को गोली मारने की तस्वीर प्रकाशित की गई है। हाल में राज्य में बाहर से आए लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। प्रशासन ने एहतियातन कश्मीर के कुछ इलाकों में इंटरनेट पर फिर से रोक लगा दी है।

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की नई रणनीति का उद्देश्य राज्य में सामान्य होते हालात की प्रतिक्रिया और फिर से अशांति और अराजकता की स्थिति पैदा करने की कोशिश है। राज्य में औद्योगिक गतिविधियों को तेज करने और कई श्रेणियों के नागरिकों को राज्य का स्थायी निवासी घोषित करने की प्रक्रिया चल रही है। इससे न केवल उन्हें, बल्कि राज्य के लोगों को रोजगार हासिल करने में आसानी होगी। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी एनआईए का कहना है कि आतंकवादी इसे विफल करना चाहते हैं।  

आतंकवादियों के इस इरादे की जानकारी एक ब्लॉग पोस्ट से मिली है, जिसे अब ब्लॉक कर दिया गया है। इस पोस्ट में बताया गया था कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने और राज्य के विभाजन के बाद आतंकवादियों क्या करेंगे। इस ब्लॉग पोस्ट को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेशों के बाद ब्लॉक कर दिया गया है।