उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कुछ अलग नजर आने और चुनाव के मुद्दों को विस्तार देने के इरादे से उतर रही है। पार्टी ने मंगलवार को घोषणा की कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव पार्टी के 40 फीसदी टिकट महिला उम्मीदवारों को दिए जाएंगे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस बात की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि पार्टी टिकट पाने के आवेदन के लिए तारीख 15 नवम्बर तक बढ़ा दी गई है। इस चुनाव में पार्टी का नारा है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’
कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी खोई जमीन
वापस लेने की शिद्दत से तलाश है। सन 2017 के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 7 सीटें ही
जीत पाई थी और राज्य में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की पूरी कोशिश कर रही है। वह
भी तब, जब उत्तर प्रदेश के चुनाव में ‘जाति’ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कांग्रेस यह कदम उठा कर महिला मतदाताओं को अपने
पाले में करने का प्रयास कर रही है। उसके पहले 2012 के चुनाव में पार्टी को बहुत
उम्मीदें थीं। तब राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा किया गया था।
सन 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सफलता
से प्रेरित कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सफलता की आशा थी। उस वक्त समाजवादी
पार्टी के अखिलेश यादव के भीतर राज्य के वोटर को नई ऊर्जा दिखाई पड़ी थी। कांग्रेस
को लगता था कि 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के कारण सफलता मिली है। वस्तुतः
कांग्रेस की सफलता के पीछे उसे प्राप्त हमदर्दी थी, जो वाममोर्चा के हाथ खींचने के
कारण पैदा हुई थी।
प्रियंका गांधी मानती हैं कि महिलाएं ‘नफरत’ की राजनीति का विकल्प प्रदान करेंगी। महिलाओं को राजनीति का केन्द्रीय विषय बनाने का विचार अपने आप में रोचक और प्रभावशाली है। लोकसभा के पिछले दो चुनावों से यह बात साबित हुई है कि देश में महिला वोटर निर्णायक भूमिका निभाती हैं। बावजूद इसके सवाल है कि कांग्रेस पार्टी के पास क्या यूपी में दो सौ के आसपास ऐसी महिला प्रत्याशी हैं, जो मजबूती के साथ उतर सकें। यदि हैं भी, तो क्या वे पुराने कांग्रेसी नेताओं के परिवारों से आएंगी या अपनी सामर्थ्य पर राजनीति में उतरी महिलाएं होंगी?
एक सवाल मायावती ने किया है कि कांग्रेस को यह
इतना महत्वपूर्ण मामला लगता था, तब यूपीए सरकार ने विधायिका में 33 फीसदी सीटें
महिलाओं को देने वाले महिला आरक्षण विधेयक को पास क्यों नहीं कराया? इन सब बातों से ज्यादा उन्हें भारतीय जनता पार्टी की
सफलता के कारणों को भी समझना होगा। क्या ‘नफरत’ की राजनीति को प्रदेश की जनता का समर्थन प्राप्त है? है तो क्यों?
प्रियंका गांधी की समझ से महिलाएं जातीय,
साम्प्रदायिक राजनीति से जुड़ी नहीं हैं। उनकी बात एक हद तक सही है। महिलाओं की
समझ का दायरा अपेक्षाकृत वृहत्तर होता है, पर यह पूर्ण सत्य नहीं है। पार्टियों के
वैचारिक आधार इस तरीके से तय नहीं होते। और न यह मान लेना चाहिए कि कांग्रेस की
विफलता के पीछे उसकी पुरुष राजनीति थी। बात सिर्फ इतनी है कि प्रियंका गांधी के
पास अलग नजर आने के लिए ज्यादा बातें नहीं हैं।
उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि राजनीति में
महिलाएं सत्ता में पूर्ण भागीदार बनें। महिला राजनेता राज्य में नफरत की राजनीति
को खत्म कर देंगी। प्रियंका ने कहा कि पार्टी का टिकट सिर्फ जाति या धर्म के आधार
पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर दिया जाएगा। प्रियंका ने यह भी कहा, भारतीय राजनीति के पाठ्यक्रम को बदलने के लिए यह निर्णय किया गया है।
यह उन सभी महिलाओं के लिए है जिन्होंने मुझे प्रेरित किया है। उन्होंने कहा,
मेरा बस चलता तो महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत टिकट आरक्षित करती।
इस मौके पर उन्होंने कहा, “यह फैसला चंदौली में शहीद सिपाही की बहन वैष्णवी के लिए है,
जिन्होंने मुझसे कहा कि उनके भाई शहीद हो गए लेकिन वह पायलट बनना चाहती हैं। यह
निर्णय उन्नाव की उस लड़की के लिए है जिसे जलाया गया, मारा
गया। उसकी भाभी के लिए है जो आज भी संघर्ष कर रही हैं और उनकी 9 साल की बेटी के
लिए है, जिसे स्कूल में धमकाया गया। यह निर्णय हाथरस की उस माँ के लिए है जिसने
मुझे गले लगाकर कहा कि उसे न्याय चाहिए। यह निर्णय रमेश कश्यप की बेटी के लिए है
जो बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है।” प्रियंका ने आगे कहा कि यह निर्णय उत्तर
प्रदेश की हर महिला और बेटी के लिए है।
सामायिक! देखें ऊँठ किस करवट बैठेगा।
ReplyDeleteअब तक जातियों को लड़ाया धर्मों को लड़ाया अब लड़कियों को लड़ाएँगे, कश्मीर में, बंगला देश में, सिंगू बॉर्डर पर जो हो रहा है उस पर चुपी है. सत्ता के खेल में सब चलता है.
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