Wednesday, February 24, 2021

राष्ट्रीय विकास के लिए जरूरी है महिला सशक्तीकरण

नल से जल

अपने दो कमरों वाले घर से महज कुछ ही गज़ की दूरी पर स्थित अपने छोटे से खेत में काम कर रही हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के बल्लही गांव की निवासी एकदम खुश है. अब से पहले करीब दो दशक तक फूलकली अपने परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नजदीकी सप्लाई पॉइंट से बाल्टियां भरकर पानी लाती थी, जो कि उसके घर से 400 मीटर दूरी पर है.

भले ही यह दूरी बहुत ज्यादा न रही हो लेकिन दो बच्चों की मां फूलकली कहती है कि केंद्र के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नल से जल ’ के तहत प्रशासन द्वारा उसके घर तक जलापूर्ति उपलब्ध कराए जाने से तीन महीने के अंदर उसके जीवन में कितना बदलाव आ गया है इस बात को केवल वही समझ सकता है जो पिछले दो दशकों से लगातार हर दिन दो बार पानी की बाल्टियां भरकर ला रहा हो.

फूलकली ने दिप्रिंट से कहा, ‘बाल्टी छूट गई. आप नहीं जानते कि यह कितनी बड़ी नियामत है. हर एक दिन, चाहे बारिश हो या फिर सर्दी मुझे पानी लाने के लिए बाहर जाना ही पड़ता था.’

द प्रिंट में पढ़ें पूरा आलेख

उपरोक्त प्रकरण मैंने सिर्फ इसलिए उधृत किया है, ताकि मैं बता सकूँ कि महिला सशक्तीकरण कैसे होता है। भारत सरकार की पत्रिका कुरुक्षेत्र में लिखने का आनंद यह है कि इसे बहुत ज्यादा लोग पढ़ते हैं। सरकारी सेवाओं की तैयारी करने वाले युवा इसे और योजना को पढ़ते हैं। मेरा यह लेख कुरुक्षेत्र के फरवरी 2021 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्त्री-शक्ति के कारगर इस्तेमाल से देश की आर्थिक संवृद्धि को तेजी से बढ़ाया जा सकता है।  महिलाओं को सशक्त बनाने का अर्थ है समूचे समाज को समर्थ बनाना। भारत में स्त्री-सशक्तीकरण के चार प्रमुख आधार हैं। 1.शिक्षा, 2.स्वास्थ्य, 3.रोजगार और 4.सामाजिक परिस्थितियाँ। पहली तीन बातों के लिए सरकारी कार्यक्रम मददगार हो सकते हैं, पर चौथा आधार सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अलबत्ता सामाजिक परिवर्तनों पर भी शिक्षा और आधुनिक संस्कृति में आ रहे परिवर्तनों, खासतौर से बदलती तकनीक की भी, भूमिका होती है।

हाल में जब नेशनल फैमिली हल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के पाँचवें दौर के परिणाम प्रकाशित हुए, तब एक नई तरह की जानकारी की ओर हमारा ध्यान गया। इस सर्वेक्षण में पहली बार यह पूछा गया था कि क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है? बिहार में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे कम था, जिनकी इंटरनेट तक पहुंच है (20.6%) और सिक्किम में सबसे ज्यादा (76.7%)। एनएफएचएस के ये आंकड़े अधूरे हैं, क्योंकि इनमें केवल 22 राज्यों के परिणाम हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों के परिणाम इसमें शामिल नहीं हैं, फिर भी जो विवरण सामने आए हैं, वे बताते हैं कि स्त्रियों के सशक्तीकरण के संदर्भ में हमें परंपरागत बातों के अलावा कुछ नई बातों की तरफ भी ध्यान देना होगा। मसलन इंटरनेट की भूमिका।  

Tuesday, February 23, 2021

कांग्रेस हाईकमान ने पुदुच्चेरी की अनदेखी की

निवर्तमान मुख्यमंत्री वी नारायणसामी और राज्यपाल तमिलसाई सौंदरराजन

पुदुच्चेरी में कांग्रेस सरकार गिर गई है। वहाँ किसी नए गठबंधन की सरकार बनेगी या नहीं, यह बात कुछ दिन में स्पष्ट होगी। कांग्रेसी पराजय के बाद कहा जा रहा है, हालांकि पार्टी को भरोसा है कि आगामी चुनाव में उसे हमदर्दी का लाभ मिलेगा, पर मुख्यमंत्री वी नारायणसामी तथा हाईकमान ने पार्टी के भीतर असंतोष की अनदेखी की। इंडियन एक्सप्रेस में मनोज सीजी ने लिखा है कि कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष और कुछ विधायकों की कमजोरी को लेकर नारायणसामी और हाईकमान के मन में अतिशय आत्मविश्वास था और उन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं पहचाना। पार्टी ने पिछले साल मध्य प्रदेश में बनी बनाई सरकार को खोया है और उससे पहले 2019 में कर्नाटक में जेडीएस के साथ बनी गठबंधन सरकार गिरी थी।

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि पुदुच्चेरी में उसके विधायकों को चारा डालने का काम 2018 में ही शुरू हो गया था। विधायक ई थीप्पैंथन और विज़ियावैनी वी ने तत्कालीन स्पीकर वी वैदिलिंगम से शिकायत की थी कि अद्रमुक के दो और एनआर (नमतु राज्यम) कांग्रेस के एक विधायक ने दल बदलने के लिए धन देने की पेशकश की है। स्पीकर को ऑडियो रिकॉर्डिंग सौंपी गई थीं।

सम्पर्क करने पर वैदिलिंगम ने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें शिकायत मिली थी। उन्होंने जाँच की, तो वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए। सन 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उनके बाद स्पीकर बने वीपी सिवकोलुन्दु ने इस मामले को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। एक नेता का कहना है कि हम जानते थे कि कोशिशें हुई थीं…हमारे कुछ विधायक और पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री ए नमस्सिवायम परेशान भी थे। पर हम इस मामले में कुछ कर नहीं पाए।

पार्टी हाईकमान से जुड़े एक नेता ने कहा, नमस्सिवायम जैसे नेताओं को महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो दिया गया था। और क्या देते? यदि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, तो उन्हें विधायकों का समर्थन हासिल करना चाहिए था। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी का अद्रमुक और एनआर कांग्रेस के साथ गठबंधन होगा। एनआर कांग्रेस के नेता एन रंगासामी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। वे पहले भी मुख्यमंत्री रहे हैं। नमस्सिवायम को क्या मिलेगा? नमस्सिवायम के ससुर रंगासामी के बड़े भाई हैं।

किसानों की आड़ में अपने-अपने खेल


देखते ही देखते किसान आंदोलन खेती से जुड़ी माँगों को छोड़कर तीन अलग-अलग रास्तों पर चला गया है। जिस आंदोलन के नेताओं ने शुरू में खुद को गैर-राजनीतिक बताया था और जिसके शुरुआती दिनों में राजनीतिक दलों के नेता उसके पास फटक नहीं रहे थे, वह राजनीतिक शक्ल ले रहा है। दूसरा रास्ता भारतीय किसान यूनियन के टिकैत ग्रुप ने पकड़ा है, जिसने इसे जाट-अस्मिता का रंग देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में खाप-महापंचायतों और रैलियों की धूम मचा दी है। तीसरे जिस खालिस्तानी साजिश का संदेह शुरू में था, उसकी भी परतें खुल रही हैं।

आंदोलनों की वैश्विक मशीनरी भी इसमें शामिल हो गई है। आमतौर पर यह मशीनरी पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और संधारणीय विकास के सवालों को लेकर चलती है। संयोग से इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में पराली जलाने और उत्तर भारत के पर्यावरण प्रदूषण में खेती की भूमिका से जुड़े सवाल भी थे। वे इस आंदोलन के साथ गड्ड-मड्ड हो गए हैं।

पीछे रह गए खेती के सवाल

इस पूरी बहस में भारतीय कृषि की बदहाली और आर्थिक सुधारों की बात लगभग शून्य है। कोई यह समझने का प्रयास नहीं कर रहा कि भविष्य की अर्थव्यवस्था और खासतौर से रोजगार सृजन में किस किस्म की कृषि-व्यवस्था की हमें जरूरत है। खेती से जुड़े नए कानून कृषि-कारोबार और उसकी बाजार-व्यवस्था के उदारीकरण की दीर्घकालीन प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं और उन आर्थिक सुधारों का हिस्सा हैं, जो पूरे नहीं हो पाए। सन 1950 में हमारी अर्थव्यवस्था में खेती की हिस्सेदारी 55 फीसदी से ज्यादा थी। आज 16 फीसदी से कुछ कम है। खाद्य सुरक्षा के लिए खेती की भूमिका है और हमेशा रहेगी। खासतौर से भारत जैसे देश में जहाँ गरीबी बेइंतहा है।

हमारी खेती की उत्पादकता कम है। कम से कम चीन या दूसरे ऐसे देशों के मुकाबले कम है, जिनकी तुलना हम खुद से करते हैं। खेती में पूँजी निवेश और दलहन, तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है, जिसका हमें आयात करना पड़ता है। यह काम कैसे होगा और उसके लिए किस प्रकार की नीतियाँ अपनानी होंगी, यह समझने के लिए हमें विशेषज्ञों की शरण में जाना होगा।

Monday, February 22, 2021

महाभियोग के बाद क्या अमेरिका को फिर से ‘महान’ बनाने के अभियान में जुटेंगे ट्रंप?


महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अमेरिकी राजनीति पटरी पर वापस आ रही है। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन राजनेता भविष्य की योजनाएं तैयार कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप पर चलाए गए दूसरे महाभियोग की नाटकीय परिणति ने एक तो रिपब्लिकन पार्टी के भीतर एक किस्म की दरार पैदा कर दी है, साथ ही पार्टी और ट्रंप की भावी राजनीति को लेकर कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। सीनेट में हुए मतदान में रिपब्लिकन पार्टी के सात सदस्यों ने ट्रंप के खिलाफ वोट देकर इन सवालों को जन्म दिया है, पर इस बात की संभावनाएं बनी रह गई हैं कि राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव में ट्रंप एकबार फिर से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनकर खड़े हो सकते हैं। क्या उनकी वापसी होगी?

ट्रंप के फिर से मैदान में उतरने की संभावनाएं हैं, तो यकीनन कुछ समय बाद से ही उनकी गतिविधियाँ शुरू हो जाएंगी। सीनेट के मतदान में जहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी सदस्य एकसाथ थे, वहीं रिपब्लिकन पार्टी की दरार को राजनीतिक पर्यवेक्षक खासतौर से रेखांकित कर रहे हैं।

क्या जनता माफ करेगी?

सीनेट में मेजॉरिटी लीडर और डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य चक शूमर ने ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा है कि अमेरिका के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग में इतनी बड़ी संख्या में उसकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने वोट डाले हैं। यहाँ से वे बच निकले हैं, पर अमेरिकी जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। अमेरिकी वोटर 6 जनवरी की घटना को भूलेगा नहीं। दूसरी तरफ इतनी विपरीत परिस्थितियों में रिपब्लिकन पार्टी के 43 सदस्यों ने ट्रंप को बचाने के लिए जो मतदान किया है, उससे लगता है कि पार्टी कमोबेश ट्रंप के साथ है। पार्टी के भीतर पैदा हुए मतभेद अब 2022 और 2024 के प्राइमरी चुनावों में दिखाई पड़ेंगे।

Sunday, February 21, 2021

पिछड़ा क्यों दक्षिण एशिया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले गुरुवार को चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही। इस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया। बैठक में यह भी कहा गया कि अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी। पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।

मोदी ने कहा, महामारी के दौरान देखी गई क्षेत्रीय एकजुटता की भावना ने साबित कर दिया है कि इस तरह का एकीकरण संभव है। कई विशेषज्ञों ने घनी आबादी वाले एशियाई क्षेत्र और इसकी आबादी पर महामारी के प्रभाव के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की थी, लेकिन हम एक समन्वित प्रतिक्रिया के साथ इस चुनौती सामना कर रहे हैं। इस बैठक और इस बयान के साथ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर गौर करना बहुत जरूरी है। कोविड-19 का सामना करने के लिए भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी इन दिनों खासतौर से चर्चा का विषय है।

वैक्सीन राजनय

पाकिस्तान को छोड़कर, सभी पड़ोसी देशों को भारत ने वैक्सीन दी है। पाकिस्तान को चीन से पाँच लाख खुराकें मिली हैं, पर वहाँ इन दिनों कहा जा  रहा है कि हमें भारत से वैक्सीन माँगनी चाहिए। पाकिस्तान के औषधि नियामक ने सबसे पहले भारत के सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को स्वीकृति दी है। इसका मतलब क्या है? भारत की हर पहल, हर प्रस्ताव पर सिर्फ विरोध करने की अपनी आदत में क्या पाकिस्तान बदलाव ला रहा है? क्या हम दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की उम्मीद करें? क्या हम दक्षेस को फिर से सक्रिय कर सकते हैं?