मेरी बात पढ़ने के पहले बीबीसी हिंदी की इस रिपोर्ट को पढ़ें:
पहले से सब
जानते थे कि ये इस सदी का अनोखा बजट होगा। संकट से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था को
इस बजट से ढेरों उम्मीदें थीं। सवाल थे कि आर्थिक गतिविधियों को एक बार फिर पटरी
पर कैसे लाया जाएगा? संसाधनों
और जीडीपी कम होने को देखते हुए और राजकोषीय घाटे के बीच संतुलन बनाकर कैसे कोई
बोल्ड कदम लिया जाएगा? ज़्यादातर
अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि ये एक बोल्ड बजट होना चाहिए, खपत पर ख़ास तौर से ध्यान होना चाहिए,
खर्च पर विशेष ध्यान होना
चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा पैसों का आवंटन किया जाए, चाहे उसके लिए कर्ज़ या घाटे की सीमा का
उल्लंघन करना पड़े। उन्हें ये भी अपेक्षा थी कि रोज़गार बढ़ाने के लिए और
अर्थव्यवस्था को तेज़ गति देने के लिए सरकार को एक साहसिक कदम लेना पड़ेगा। इस
परिप्रेक्ष्य में इस बजट को देखा जा रहा था और वित्त मंत्री ने उसी के अनुसार
सोमवार को ये बजट पेश किया। बीबीसी
हिंदी में पढ़ें यह रिपोर्ट विस्तार से
खर्चों की
भरमार
वर्ष 2020-21 के बजट में जहाँ पूँजीगत व्यय (कैपेक्स एक्सपेंडिचर) 4.12 लाख करोड़ रुपये था, वहीं इसबार वह 5.54 लाख करोड़ रुपये है, जो इस बजट का 15.91 प्रतिशत है। पिछले साल के बजट में यह परिव्यय बजट का 13.55 प्रतिशत था। पूँजीगत परिव्यय का मतलब होता है, वह धनराशि जो भविष्य में इस्तेमाल के लिए परिसम्पदा के निर्माण पर खर्च होती है। जैसे कि सड़कें और अस्पताल वगैरह। राजस्व परिव्यय में सूद चुकाना, कर्मचारियों का वेतन देना और इसी प्रकार के भुगतान जो सरकार करती है। हाल के वर्षों में सरकार का पूँजीगत व्यय कम होता जा रहा था। सन 2004-05 के बजट में यह 19.3 फीसदी की ऊँचाई तक जा पहुँचा था। सन 2019-20 में यह न्यूनतम स्तर 12.11 प्रतिशत पर पहुँच गया था। इस बजट के पहले का उच्चतम स्तर 2007-08 के बजट में 18.02 प्रतिशत था। इसका मतलब है कि इस साल इंफ्रास्ट्रक्चर तथा निर्माण कार्यों पर भारी परिव्यय होगा। 2020-21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.5% रहने का अनुमान है। वित्तमंत्री के अनुसार 2021-22 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.8% रहने का अनुमान है, जबकि 2025-26 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5% लाने का लक्ष्य है। पिछले बजट में इस साल का लक्ष्य 3.5 प्रतिशत का था, पर कोरोना के कारण सारे अनुमान गलत साबित हुए। इतने भारी राजकोषीय घाटे के बावजूद भारी खर्च का जोखिम मोल लेना साहस की बात है और इसका दीर्घकालीन लाभ इस साल देखने को मिलेगा।
आर्थिक सुधार
पिछले कई वर्षों
से देखा जा रहा है कि वित्तमंत्री का बजट भाषण खत्म होते-होते देश का शेयर बाजार
धड़ाम से गिरने लगता है। इस बार ऐसा नहीं हुआ, बल्कि उसमें जबर्दस्त उछाल आया। किसी
वित्तमंत्री ने निजीकरण की बात बहुत खुलकर कही है। उन्होंने कहा कि बीमा कंपनियों
में एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49% से बढ़ाकर 74% करने का प्रावधान
किया गया है। उन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के शेयर बाज़ार में उतारे
जाने की घोषणा की। साल 2021-22 में जीवन बीमा निगम का आईपीओ लेकर आएँगे, जिसके लिए इसी सत्र में ज़रूरी संशोधन किए
जा रहे हैं। राज्य सरकारों के उपक्रमों के विनिवेश की अनुमति दी जाएगी।
लंबे समय से घाटे
में चल रही कई सरकारी कंपनियों का निजीकरण होगा। इनमें बीपीसीएल (भारत पेट्रोलियम
कॉर्पोरेशन लिमिटेड), एयर
इंडिया, आईडीबीआई, एससीआई (शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया),
सीसीआई (कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया),
बीईएमएल और पवन हंस के निजीकरण की
घोषणा की गई है। अगले दो वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की
बात भी है ताकि राजस्व बढ़ाया जा सके। इन सभी कंपनियों के विनिवेश की प्रक्रिया
साल 2022 तक पूरी कर ली जाएगी।
सीतारमण ने कहा, बेकार एसेट्स आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान नहीं करते हैं। मेरा अनुमान है कि विनिवेश से साल 2021-22 तक हमें 1.75 लाख करोड़ रुपए मिलेंगे। घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों के विनिवेश से उन्हें घाटे से तो उबारा ही जा सकेगा, साथ ही रेवेन्यू भी बढ़ाया जा सकेगा। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारें लगभग हर बजट में विनिवेश का ऐलान ज़रूर करती हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि बेचने में कामयाब हो ही जाए। एयर इंडिया इसका ताज़ा उदाहरण है।