Sunday, July 12, 2020

जनता के रोष को पढ़िए

विकास दुबे की मौत की खबर आने के फौरन बाद एक पत्रकार ने ट्वीट किया, विकास दुबे नहीं मरता तो शायद ये होता, 1.डर के मारे कोई उसके खिलाफ गवाही नहीं देता, 2.अपने समाज का बड़ा नेता बन जाता, 3.सन 2022 में विधायक/मंत्री होता, 4.जो पुलिस उसे पकड़ के ला रही थी, वो उसकी सुरक्षा में होती, 5.और हमलोग उसके बंगले के गेट पर उसकी बाइट लेने खड़े होते इस ट्वीट का जवाब एक और पत्रकार ने दिया, प्रक्रिया हमें थकाती है, फ्रस्ट्रेट करती है, निराश भी करती है लेकिन किसी नागरिक को हमेशा क़ानूनी प्रक्रिया के साथ ही होना चाहिए क्योंकि वही प्रक्रिया उसकी सुरक्षा भी करती है…।
दोनों बातों में ज्यादा बड़ा सच क्या है? किसी ने लिखा, पकड़ा जाता तो कुछ लोगों के नाम बताता। इसके जवाब में किसी ने लिखा, सैयद शहाबुद्दीन, गाजी फकीर, मुन्ना बजरंगी और अतीक अहमद ने किसका नाम बताया? सच तो यह भी है कि विकास दुबे ने थाने में घुस कर एक राज्यमंत्री की सरेआम हत्या कर दी थी। तीस पुलिस वालों में से एक ने भी गवाही नहीं दी। जमानत पर छूटकर बाहर आ गया।
यूपी के इस डॉन की मौत किन परिस्थितियों में हुई, यह विचार का अलग विषय है। सच यह है कि बड़ी संख्या में लोग इस कार्रवाई से खुश हैं। उन्हें लगता है कि जब कुछ नहीं हो सकता, तो यही रास्ता है। पिछले साल के अंत में जब हैदराबाद में चार बलात्कारियों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई, तब जनता ने पुलिस वालों का फूल मालाओं से स्वागत किया था। क्यों किया था? ऐसा नहीं कि लोग फर्जी मुठभेड़ों को सही मानते हैं। सब मानते हैं कि कानून का राज हो, पर कैसे? न्याय-व्यवस्था की सुस्ती और उसके भीतर के छिद्र उसे नाकारा बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारें पुलिस सुधार से बच रही हैं। राजनीतिक कारणों से मुकदमे वापस लिए जाते हैं और राजनीतिक कारणों से मुकदमे चलाए भी जाते हैं। सिर्फ न्यायपालिका को दोष देना भी गलत है। सरकार समझती है कि अपराधियों को ठोकने से काम चल जाएगा, तो वह गलत सोचती है।

Saturday, July 11, 2020

चीन का खुफिया हथियार, सायबर तलवार

जून के आखिरी हफ्ते में सायबर इंटेलिजेंस फर्म सायफर्मा के हवाले से खबर थी कि पिछले एक महीने में चीन से होने वाले सायबर हमलों में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। आमतौर पर चीनी हमलों के निशाने पर अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया होते हैं, पर गलवान के टकराव के बाद चीनी हमलों का निशाना भारत के सार्वजनिक रक्षा उपक्रम और कुछ संवेदनशील ठिकाने हैं। जून के आखिरी हफ्ते की खबर थी कि चीनी हैकरों ने पाँच दिन में भारत पर 40,000 सायबर हमले किए। चीनी हैकर विदेश और रक्षा जैसे संवेदनशील मंत्रालयों, बड़े उद्योगों के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को टार्गेट कर रहे हैं। बैंकों, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन और एचएएल जैसी संस्थाओं के डेटा में सेंध लगाने का प्रयास भी।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के इस दौर में चीनी हैकर वैक्सीन रिसर्च की चोरी भी कर रहे हैं। अमेरिका ने इस सिलसिले में अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया है। हाल में ऑस्ट्रेलिया में हुए सायबर हमलों का आरोप भी अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो ने चीन पर लगाया है। अमेरिका के संघीय जाँच ब्यूरो ने भी चीन का नाम लेकर आलोचना की है। भारत में चीन के 59 एप पर पाबंदियाँ लगने के पीछे के कारण आर्थिक से ज्यादा सुरक्षा-सम्बद्ध हैं और अमेरिका भी चीनी एप पर पाबंदियाँ लगाने पर विचार कर रहा है।

भारतीय चेतावनी

भारतीय कंप्यूटर इमर्जेंसी रेस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) ने गत 21 जून को एडवाइज़री जारी की कि देश के लाखों व्यक्ति सायबर हमले के शिकार हो सकते हैं। पिछले साल हमारी थलसेना, वायुसेना और नौसेना के साथ नई सायबर और स्पेस कमांड जोड़ी गई हैं। पिछले साल अगस्त में सेना की नॉर्दर्न कमांड के एक वरिष्ठ ऑफिसर के कंप्यूटर में सायबर घुसपैठ हुई थी। इसका पता इसलिए लग पाया, क्योंकि अब सेना सायबर हमलों की निगहबानी कर रही है।

Thursday, July 9, 2020

अपने ही बुने जाल में फँसे नेपाली प्रधानमंत्री ओली

China's Desperate Efforts To Save Nepal PM Oli May Bear Fruit, But ...

पिछले साल नवम्बर में जब सीमा के नक्शे को लेकर नेपाल में आक्रोश पैदा हुआ था, तब काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल तो हमारा मित्र देश है, वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया का आना विस्मयजनक था। वह बात आई-गई हो पाती, उसके पहले ही लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें आने लगीं। उन खबरों के साथ ही नेपाल सरकार ने फिर से सीमा विवाद को उठाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वहाँ की संसद ने संविधान संशोधन पास करके नया नेपाली नक्शा जारी कर दिया। इस घटनाक्रम से यह जरूर स्पष्ट हुआ कि नेपाल की पीठ पर चीन का हाथ है। यह भी कि किसी योजना के तहत नेपाल सरकार ऐसी हरकतें कर रही है। प्रकारांतर से देश के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने इशारों-इशारों में यह बात कही भी कि नेपाल किसी के इशारे पर यह सब कर रहा है।

नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।

Monday, July 6, 2020

भारत क्या नए शीतयुद्ध का केंद्र बनेगा?


लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात हुए हिंसक संघर्ष के बाद दुबारा कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, पर समाधान के लक्षण भी नजर नहीं आ रहे हैं। सन 1962 के बाद पहली बार लग रहा है कि टकराव रोकने का कोई रास्ता नहीं निकला, तो वह बड़ी लड़ाई में तब्दील हो सकता है। दोनों पक्ष मान रहे हैं कि सेनाओं को एक-दूसरे से दूर जाना चाहिए, पर कैसे? अब जो खबरें मिली हैं, उनके अनुसार टकराव की शुरूआत पिछले साल सितंबर में ही हो गई थी, जब पैंगांग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, जिसमें भारत के दस सैनिक घायल हुए थे।

शुरूआती चुप्पी के बाद भारत सरकार ने औपचारिक रूप से 25 जून को स्वीकार किया कि मई के महीने से चीनी सेना ने घुसपैठ बढ़ाई है। गलवान घाटी में पेट्रोलिंग पॉइंट-14 (पीपी-14) के पास हुई झड़प के बाद यह टकराव शुरू हुआ है। लगभग उसी समय पैंगांग झील के पास भी टकराव हुआ। दोनों घटनाएं 5-6 मई की हैं। उसी दौरान हॉट स्प्रिंग क्षेत्र से भी घुसपैठ की खबरें आईं। देपसांग इलाके में भी चीनी सैनिक जमावड़ा है।

Sunday, July 5, 2020

लद्दाख से मोदी की गंभीर चेतावनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लद्दाख यात्रा जितनी सांकेतिक है, उससे ज्यादा सांकेतिक है उनका वक्तव्य। यदि हम ठीक से पढ़ पा रहे हैं, तो यह क्षण भारतीय विदेश-नीति के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। मोदी के प्रतिस्पर्धियों को भी उनके वक्तव्य को ठीक से पढ़ना चाहिए। यदि वे इसे समझना नहीं चाहते, तो उन्हें कुछ समय बाद आत्ममंथन का मौका भी नहीं मिलेगा। बहरहाल पहले देखिए कि यह लद्दाख यात्रा महत्वपूर्ण क्यों है और मोदी के वक्तव्य की ध्वनि क्या है।

प्रधानमंत्री की इस यात्रा के एक दिन पहले रक्षामंत्री लद्दाख जाने वाले थे। वह यात्रा अचानक स्थगित कर दी गई और उनकी जगह अगले रोज प्रधानमंत्री खुद गए। सवाल केवल सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने का ही नहीं है, बल्कि देश की विदेश-नीति में एक बुनियादी मोड़ का संकेतक भी है। अप्रेल के महीने से लद्दाख में शुरू हुई चीनी घुसपैठ के बाद से अब तक भारत सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी के बयानों में तल्खी नहीं रही। ऐसा लगता रहा है कि भारत की दिलचस्पी चीन के साथ संबंधों को एक धरातल तक बनाए रखने की है। भारत चाहता था कि किसी तरह से यह मसला सुलझ जाए।