पिछले साल नवम्बर में जब सीमा के नक्शे को लेकर नेपाल में आक्रोश पैदा हुआ था, तब काफी लोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल तो हमारा मित्र देश है, वहाँ से ऐसी प्रतिक्रिया का आना विस्मयजनक था। वह बात आई-गई हो पाती, उसके पहले ही लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबरें आने लगीं। उन खबरों के साथ ही नेपाल सरकार ने फिर से सीमा विवाद को उठाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वहाँ की संसद ने संविधान संशोधन पास करके नया नेपाली नक्शा जारी कर दिया। इस घटनाक्रम से यह जरूर स्पष्ट हुआ कि नेपाल की पीठ पर चीन का हाथ है। यह भी कि किसी योजना के तहत नेपाल सरकार ऐसी हरकतें कर रही है। प्रकारांतर से देश के सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने इशारों-इशारों में यह बात कही भी कि नेपाल किसी के इशारे पर यह सब कर रहा है।
नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।
नक्शा प्रकरण ठंडा पड़ भी नहीं पाया था कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विरुद्ध उनकी ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से आवाजें उठने लगीं। उनके प्रतिस्पर्धी पुष्प दहल कमल इस अभियान में सबसे आगे हैं, जो ओली के साथ पार्टी अध्यक्ष भी हैं। यानी ओली के पास दो पद हैं। एक प्रधानमंत्री का और दूसरे पार्टी अध्यक्ष का। उनके व्यवहार को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के भीतर हस्ताक्षर अभियान चल रहा था। संभवतः इस अभियान से जनता का ध्यान हटाने के लिए ओली ने भारत के साथ सीमा का विवाद उठाया था।