हाल में भिंड में ईवीएम मशीन को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ उसके पीछे जो बात सामने आ रही है, वह यह कि एक अखबार की अस्पष्ट खबर के कारण संदेश गया कि ईवीएम का कोई भी बटन दबाया गया तब हर बार कमल की पर्ची बाहर निकली। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि ऐसा नहीं हुआ था। बात का बतंगड़ बना था। इसके लिए प्रत्यक्षतः वह अखबार भी जिम्मेदार है, जिसने विवाद बढ़ जाने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं किया कि उसके संवाददाता ने क्या देखा।
Monday, April 10, 2017
ईवीएम नहीं, निशाने पर चुनाव आयोग की साख है
Sunday, April 9, 2017
क्या ‘आप’ के अच्छे दिन गए?
पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जिस पार्टी के प्रदर्शन का इंतजार था वह है आम आदमी पार्टी। इंतजार इस बात का था कि पंजाब और गोवा में उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा। सन 2015 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उसकी अभूतपूर्व जीत के बाद सम्भावना इस बात की थी कि यह देश के दूसरे इलाकों में भी प्रवेश करेगी। हालांकि बिहार विधानसभा के चुनाव में उसने सीधे हिस्सा नहीं लिया, पर प्रकारांतर से महागठबंधन का साथ दिया। उत्तर प्रदेश में जाने की शुरूआती सम्भावनाएं बनी थीं, पर अंततः उसका इरादा त्याग दिया। इसकी एक वजह यह थी कि वह पंजाब और गोवा से अपनी नजरें हटाना नहीं चाहती थी।
सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे पंजाब में अपेक्षाकृत सफलता मिली थी। यदि उस परिणाम को आधार बनाया जाए तो उसे 33 विधानसभा क्षेत्रों में पहला स्थान मिला था। इस दौरान उसने अपना आधार और बेहतर बनाया था। बहरहाल पिछले महीने आए परिणाम उसके लिए अच्छे साबित नहीं हुए। और अब इस महीने होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनावों में इस बात की परीक्षा भी होगी कि सन 2015 की जीत का कितना असर अभी बाकी है। पंजाब में उसकी जीत हुई होती तो दिल्ली में उससे उत्साह बढ़ता। ऐसा नहीं हुआ।
सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे पंजाब में अपेक्षाकृत सफलता मिली थी। यदि उस परिणाम को आधार बनाया जाए तो उसे 33 विधानसभा क्षेत्रों में पहला स्थान मिला था। इस दौरान उसने अपना आधार और बेहतर बनाया था। बहरहाल पिछले महीने आए परिणाम उसके लिए अच्छे साबित नहीं हुए। और अब इस महीने होने वाले दिल्ली नगर निगम चुनावों में इस बात की परीक्षा भी होगी कि सन 2015 की जीत का कितना असर अभी बाकी है। पंजाब में उसकी जीत हुई होती तो दिल्ली में उससे उत्साह बढ़ता। ऐसा नहीं हुआ।
Sunday, April 2, 2017
राजनीति का बूचड़खाना
उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई होने के बाद से देश में गोश्त की राजनीति फिर से चर्चा का विषय है. प्रत्यक्षतः उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई न्यायसंगत है, क्योंकि इसके पीछे मई 2015 के राष्ट्रीय ग्रीन ट्रायब्यूनल (एनजीटी) के एक आदेश का हवाला दिया गया है. राज्य के पिछले प्रशासन ने इस निर्देश पर कार्रवाई नहीं की थी. एनजीटी ने निर्देश दिया था कि राज्य में चल रहे सभी अवैध बूचड़खानों को तत्काल बंद किया जाए. यदि यह केवल बूचड़खानों के नियमन का मामला है तो इसे कुछ समय लगाकर ठीक किया जा सकता है. पर यह राजनीति का, खासतौर से धार्मिक भावनाओं से जुड़ी राजनीति का, विषय बन जाने के बाद काफी टेढ़ा मसला बन गया है.
भारत में मांसाहार अवैध नहीं है और न मांस का कारोबार. पर इसके साथ स्वास्थ्य और पर्यावरण के मसले जुड़े हैं, कई तरह की शर्तें भी. उनका पालन होना भी चाहिए. चूंकि हिन्दू धर्म और संस्कृति का शाकाहार से सम्बंध है, इसलिए इस मसले के सांस्कृतिक पहलू भी हैं. देश के अनेक राज्यों में गोबध निषेध है. इन अंतर्विरोधों के कारण इन दिनों उत्तर प्रदेश में मांस के कारोबार को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. अब भाजपा शासित कुछ और राज्य बूचड़खानों को लेकर कार्रवाई करने का मन बना रहे हैं.
भारत में मांसाहार अवैध नहीं है और न मांस का कारोबार. पर इसके साथ स्वास्थ्य और पर्यावरण के मसले जुड़े हैं, कई तरह की शर्तें भी. उनका पालन होना भी चाहिए. चूंकि हिन्दू धर्म और संस्कृति का शाकाहार से सम्बंध है, इसलिए इस मसले के सांस्कृतिक पहलू भी हैं. देश के अनेक राज्यों में गोबध निषेध है. इन अंतर्विरोधों के कारण इन दिनों उत्तर प्रदेश में मांस के कारोबार को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. अब भाजपा शासित कुछ और राज्य बूचड़खानों को लेकर कार्रवाई करने का मन बना रहे हैं.
प्रश्न प्रदेश में योगी का प्रवेश
आदित्यनाथ योगी की सरकार बनने के बाद से दो या तीन बातों के लिए उत्तर प्रदेश का नाम राष्ट्रीय मीडिया में उछल रहा है। एक, ‘एंटी रोमियो अभियान’, दूसरे बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई और तीसरे बोर्ड की परीक्षा में नकल के खिलाफ अभियान। तीनों अभियानों को लेकर परस्पर विरोधी राय है। एक समझ है कि यह ‘मोरल पुलिसिंग’ है, जो भाजपा की पुरातनपंथी समझ को व्यक्त करती है। पर जनता का एक तबका इसे पसंद भी कर रहा है। सड़क पर निकलने वाली लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ की शिकायतें हैं। पर क्या यह अभियान स्त्रियों को सुरक्षा देने का काम कर रहा है? मीडिया में जो वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि घर से बाहर जाने वाली लड़कियों को भी अपमानित होना पड़ रहा है। यह तो वैसा ही है जैसे वैलेंटाइन डे पर हुड़दंगी करते हैं।
इस अभियान को लेकर मिली शिकायतों के बाद प्रशासन ने पुलिस को आगाह किया है कि चाय की दुकानों में खाली बैठे नौजवानों के साथ सख्ती बरतने और मुंडन करने या मुर्गा बनाने जैसी कार्रवाई से बचे। यह मामला हाईकोर्ट तक गया है और लखनऊ खंडपीठ ने इसे सही ठहराया है। अदालत ने कहा-प्रदेश के नागरिकों के लिए संकेत है कि वे भी अनुशासन के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करें। उत्तर प्रदेश से प्रेरणा पाकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने यहाँ भी ऐसा ही अभियान चलाने की घोषणा की है।
क्या उत्तर देगा योगी का प्रश्न प्रदेश?
सन 2014 के चुनाव से साबित हो गया कि दिल्ली की सत्ता का दरवाजा उत्तर प्रदेश की जमीन पर है। दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस के सफाए की शुरुआत उत्तर प्रदेश से ही हुई थी। करीब पौने तीन दशक तक प्रदेश की सत्ता गैर-कांग्रेसी क्षेत्रीय क्षत्रपों के हवाले रही। और अब वह भाजपा के हाथों आई है। क्या भाजपा इस सत्ता को संभाल पाएगी? क्या यह स्थायी विजय है? क्या अब गैर-भाजपा राजनीतिक शक्तियों को एक होने का मौका मिलेगा? क्या उनके एक होने की सम्भावना है? सवाल यह भी है कि क्या उत्तर प्रदेश के सामाजिक चक्रव्यूह का तोड़ भाजपा ने खोज लिया है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक योगी को बैठाकर बहुत बड़ा प्रयोग किया है। क्या यह प्रयोग सफल होगा? पार्टी अपनी विचारधारा का बस्ता पूरी तरह खोल नहीं रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने उसका मनोबल बढ़ाया है। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव और होने वाले हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक में होंगे। योगी-सरकार स्वस्थ रही तो पार्टी एक मनोदशा से पूरी तरह बाहर निकल आएगी। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि इस प्रयोग का फौरी परिणाम क्या होगा? क्या उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव महसूस करेगी?
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक योगी को बैठाकर बहुत बड़ा प्रयोग किया है। क्या यह प्रयोग सफल होगा? पार्टी अपनी विचारधारा का बस्ता पूरी तरह खोल नहीं रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने उसका मनोबल बढ़ाया है। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव और होने वाले हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक में होंगे। योगी-सरकार स्वस्थ रही तो पार्टी एक मनोदशा से पूरी तरह बाहर निकल आएगी। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि इस प्रयोग का फौरी परिणाम क्या होगा? क्या उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव महसूस करेगी?
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