Tuesday, October 18, 2016

पाकिस्तान अलग-थलग नहीं पड़ा

डीएनए में मंजुल का कार्टून। मोदी- आतंक का मदरशिप। शी-बहुत आकर्षक।
एलओसी पर भारत के सर्जिकल स्ट्राइक्स से देश के भीतर मोदी सरकार को राजनीतिक रूप से ताकत मिली है। हालांकि इसके राजनीतिक दोहन की भाजपा विरोधियों ने निन्दा की है, पर वे सरकार को इसका श्रेय लेने से रोक भी नहीं सकते। बावजूद इसके पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय राजनय में अलग-थलग करने की मोदी सरकार की कोशिशों को उस हद तक सफलता भी नहीं मिली है, जितना दावा किया जा रहा है।

नरेन्द्र मोदी को ब्रिक्स देशों के गोवा में हुए सम्मेलन में पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद करने का मौका मिला भी। उन्होंने कहा कि हमारा पड़ोसी आतंकवाद की जन्मभूमि है। दुनिया भर के आतंकवाद के मॉड्यूल इसी (पाकिस्तान) से जुड़े हैं। वह आतंकियों को पनाह देता है और आतंकवाद की सोच को भी बढ़ावा देता है। उन्होंने पाकिस्तान को आतंक का 'मदर-शिप' बताया। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिक्स को इस खतरे के खिलाफ एक सुर में बोलना चाहिए।

मोदी की इस अपील के बावजूद चीन और रूस ने जो रुख अपनाया, उससे हमें निष्कर्ष निकालना चाहिए कि ये देश हमारी समस्या को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का हिस्सा नहीं मानते है। इतना ही नहीं चीन ने गोवा सम्मेलन के दौरान और उसके बाद साफ-साफ पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिए। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मोदी के बयान के बाद कहा, “We should also address issues on the ground with concrete efforts and a multi-pronged approach that addresses both symptoms and root causes.” यह पाकिस्तान का नजरिया है कि कश्मीर की मूल समस्या का समाधान किए बगैर आतंकवाद की समस्या का समाधान सम्भव नहीं है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपने वक्तव्य में आतंकवाद का जिक्र भी नहीं किया।

ब्रिक्स 109 पैराग्राफ के गोवा घोषणापत्र में उड़ी में हमले का नाम लिए बगैर सामान्य सा हवाला दिया गया। दस्तावेज में आतंकवादी गिरोहों के नाम पर ISIL और Jabhat Al-Nursra के नाम हैं, पर लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद के नाम नहीं हैं। इसपर भारत के आर्थिक मामलों के विदेश सचिव अमर सिन्हा का कहना था कि दोनों पाकिस्तानी संगठन भारत के विरुद्ध केन्द्रित हैं, हम इन संगठनों के नाम जुड़वाने में कामयाब नहीं हो पाए।

Sunday, October 16, 2016

श्रेष्ठ ब्लॉग सूची में जिज्ञासा

Indian Top Blogs ने हिन्दी के अच्छे ब्लॉग की जो डायरेक्टरी प्रकाशित की है उसमें मेरे ब्लॉग का नाम भी है। मैं नहीं जानता कि ब्लॉग के श्रेष्ठ होने या न होने का मापदंड क्या है। अलबत्ता मुझे खुशी इस बात की है कि काफी लोग हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे हैं और पढ़ भी रहे हैं। पिछले साल मैंने अपने ब्लॉग को गूगल एडसेंस से भी जोड़ा है। इस साल मुझे पहली बार गूगल से 102 डॉलर का पहला भुगतान भी मिला तो काफी खुशी हुई। मैं चाहता था कि गम्भीर रूप से ब्लॉग लिखने वाले एक-दूसरे की सामग्री का प्रकाशन अपने ब्लॉगों में करें या किसी दूसरे तरीके से ब्लॉगों को एक साथ जोड़ें। साथ ही वे अपने उन विषयों पर व्यापक बहस को आमंत्रित करें जिनसे वे जुड़े हैं। हो सकता है कभी इसमें सफलता मिले। हालांकि इसमें दिक्कत गुटबाजी की है। मेरी दिलचस्पी किसी प्रकार की गुटबाजी में शामिल होने में नहीं है। केवल विचार का प्रसार है। बहरहाल ITB को धन्यवाद जिन्होंने मेरे ब्लॉग को अपनी सूची में रखा।

पर्सनल लॉ : बहस है, युद्ध नहीं

तीन बार बोलकर तलाक देने और समान नागरिक संहिता के मामले में बहस के दो पहलू हैं। एक पहलू भाजपाई है। भाजपा की राजनीति मुस्लिम तुष्टीकरण की अवधारणा पर टिकी है। सन 1985 के शाहबानो मामले में केन्द्र सरकार के रुख से ज़ाहिर हुआ कि सरकार कठोर फैसले नहीं करेगी। सन 1984 से 1989 के लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी की संसद में उपस्थिति बढ़ाने में मंदिर आंदोलन की भूमिका जरूर थी, पर उस मनोदशा को बढ़ाने में जिन दूसरी परिघटनाओं का हाथ था, उनमें एक मामला शाहबानो का भी था।
भारत में साम्प्रदायिक विभाजन आजादी के करीब सौ साल पहले होने लगा था। पर चुनाव की राजनीति स्वतंत्रता के बाद की देन है। राजनीतिक दलों के लिए वोट सबसे बड़ी पूँजी है। वे वोट के दीवाने हैं और उसके लिए संकीर्ण विचार को भी प्रगतिशील लिफाफे में रखकर पेश करते हैं। सामाजिक बदलाव के लिए उनकी जिम्मेदारी नहीं है। बदलाव आसानी से होते भी नहीं। उनकी प्रतिक्रिया होती है। उदाहरण दिए जाते हैं कि हमारे साथ ऐसा और उसके साथ वैसा क्यों? हमारी राज-व्यवस्था धर्म निरपेक्ष है, पर यह धर्म-निरपेक्षता धार्मिक संवेदनाओं का सम्मान करती है। इसी वजह से इसके अंतर्विरोध पैदा होते हैं। मंदिर आंदोलन ने एक दूसरे किस्म की संवेदनशीलता को बढ़ावा दिया। विश्व हिन्दू परिषद और शिवसेना जैसे संगठनों ने इसे हवा दी और नफरत की राजनीति को बढ़ावा दिया। अराजकता किसी एक तरफ से नहीं है।  

Tuesday, October 11, 2016

समस्या ‘हाथी’ से ज्यादा बड़ी है

नब्बे के दशक में जब लखनऊ में पहली बार आम्बेडकर उद्यान का निर्माण शुरू हुआ था, तब यह सवाल उठा था कि सार्वजनिक धन के इस्तेमाल को लेकर क्या राजनीतिक दलों पर मर्यादा लागू नहीं होती? जवाब था कि चुनाव के वक्त यह जनता तय करेगी कि सरकार का कार्य उचित है या नहीं? आम्बेडकर स्मारक काफी बड़ी योजना थी। उसे दलितों के लिए प्रेरणा स्थल के रूप में पेश किया गया।
देश में इसके पहले भी बड़े नेताओं के स्मारक बने हैं। सार्वजनिक धन से भी बने हैं। उसपर भी बात होनी चाहिए कि देश में एक ही प्रकार के नेताओं के स्मारकों की भरमार क्यों है। पर हाथी राजनीतिक प्रतीक है और बीएसपी का चुनाव चिह्न। यह सरासर ज्यादती है। लखनऊ में और उत्तर प्रदेश के कुछ दूसरे स्थानों पर भी हाथियों की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ खड़ी की गईं। क्या यह चुनाव प्रचार में मददगार नहीं?

मोदी को भागवत का आशीर्वाद

'मोदी पर जारी है संघ की छत्रछाया'

प्रमोद जोशी

राजनीतिक विश्लेषक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए


सरसंघचालक मोहन भागवत के इस बार के विजयादशमी सम्बोधन से कोई बड़ा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, सिवाय इस बात के कि यह मोदी सरकार पर संघ की मुहर लगाता है.

संघ प्रमुख सेना के 'सर्जिकल स्ट्राइक' से गदगद हैं. उन्होंने देश की जनता से कहा है कि कुछ देश नहीं चाहते कि भारत आगे बढ़े और कुछ स्वार्थी शक्तियाँ देश में उपद्रव फैलाना चाहती हैं.

स्वाभाविक रूप से उनके भाषण में राष्ट्रवाद, स्वाभिमान, आत्मविश्वास और स्वावलम्बन जैसे शब्दों की भरमार है. और यह भी कि 'भारत का स्वार्थ' सर्वोपरि है.

विवादास्पद बात से बचने की सावधानी भी इस वक्तव्य में दिखाई पड़ती है. बहरहाल उन्होंने इतना साफ़ कहा कि शासन पर पूरा विश्वास है. देश धीरे-धीरे आगे जाएगा.

संघ की सबसे बड़ी अपेक्षा है कि भाजपा सरकार जल्द से जल्द पूरे भारत पर अपना असर कायम करे. 'राज्य सरकारों का सहयोग भी चाहिए. देश में संघीय व्यवस्था है, जिसमें केवल केन्द्र के करने से ही सब कुछ नहीं होगा.'

हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ घोषित रूप से सांस्कृतिक संगठन है, पर भाजपा के संरक्षक के रूप में उसकी आक्रामक राजनीतिक छवि साफ़ दिखाई पड़ती है. विजयादशमी सम्बोधनों में राजनीतिक विवेचन क्रमशः बढ़ रहा है.

इस साल के सम्बोधन में स्वाभाविक रूप से कश्मीर का प्रकरण हावी रहा. सेना के सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की मोदी की कोशिशों की उन्होंने तारीफ़ की है.

कश्मीर की आंतरिक स्थिति के संदर्भ में उनका कहना है कि केन्द्र और राज्य की नीति में एक दिशा होनी चाहिए. केन्द्र की नीति में दृढ़ता है, जबकि राज्य की नीति उपद्रवियों पर नरम है.

संघ की अपेक्षा है कि घाटी में पंडितों की वापसी हो और सामरिक बल, सीमा रक्षकों और सूचना तंत्र में समन्वय हो. प्रकारांतर से यह पठानकोट और उड़ी की घटनाओं पर टिप्पणी है.

राजनीतिक रूप से वे दलितों के अलगाव पर वे इशारा करना चाहते हैं. उनका कहना था, 'अनजाने में भी समाज में भेद न होने पाए.' गो-रक्षा के नाम पर हुई घटनाओं पर उनका कहना है, 'छोटी बातों को बड़ा बनाया जा रहा है.'

संघ की अपेक्षा है कि गोरक्षा के नाम पर सक्रिय उपद्रवियों से भाजपा खुद को अलग करे. उन्होंने जाति के साथ धर्म के नाम पर प्रताड़ना को रोकने की अपील भी की है. साथ ही कहा है कि देश का 'इमोशनल इंटीग्रेशन' ख़तरे में नहीं पड़ना चाहिए.