Monday, April 18, 2016

विदेशी विश्वविद्यालयों की एक और दस्तक

विदेशी शिक्षा संस्थान फिर से दस्तक दे रहे हैं. खबर है कि नीति आयोग ने देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैम्पस खोले जाने का समर्थन किया है. आयोग ने पीएमओ और मानव संसाधन मंत्रालय के पास भेजी अपनी रपट में सुझाव दिया है कि विश्व प्रसिद्ध विदेशी शिक्षा संस्थाओं को भारत में अपने कैम्पस खोलने का निमंत्रण देना चाहिए. खास बात यह है कि आयोग ने यह रपट अपनी तरफ से तैयार नहीं की है. मानव संसाधन मंत्रालय और पीएमओ की यह पहल है.

Sunday, April 17, 2016

बाधा दौड़ में मोदी

मोदी सरकार आने के बाद से असहिष्णुता बढ़ी है, अल्पसंख्यकों का जीना हराम है, विश्वविद्यालयों में छात्र परेशान हैं और गाँवों में किसान। यह बात सही है या गलत, विपक्ष ने इस बात को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक अभी तक उनके साथ हैं। उनकी खुशी के लिए पिछले हफ्ते राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चों से एकसाथ कई खबरें मिलीं हैं, जो सरकार का हौसला भी बढ़ाएंगी। पहली खबर यह कि इस साल मॉनसून सामान्य से बेहतर रहेगा। यह घोषणा मौसम दफ्तर ने की है। दूसरी खबर यह है कि खनन, बिजली तथा उपभोक्ता सामान के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन से औद्योगिक उत्पादन में फरवरी के दौरान 2.0% की वृद्धि हुई है। इससे पिछले तीन महीनों में इसमें गिरावट चल रही थी।

Wednesday, April 13, 2016

प्रगति करनी है तो बैंकों को बदलिए

पहले इस खबर को पढ़ें
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को व्यक्तियों और इकाइयों पर बैंकों के बकाया कर्ज के बारे में रिजर्व बैंक की ओर दी गई जानकारी सार्वजनिक करने की मांग के पक्ष में  नजर आया। पर आरबीआई ने गोपनीयता के अनुबंध का मुद्दा उठाते हुए इसका विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमती के पीठ ने कहा- इस सूचना के आधार पर एक मामला बनता है। इसमें उल्लेखनीय राशि जुड़ी है। मालूम हो कि रिजर्व बैंक ने मंगलवार को सील बंद लिफाफे में उन लोगों के नाम अदालत के समक्ष पेश किए जिन पर मोटा कर्ज बाकी है। इस सूचना को सार्वजनिक करने की बात पर भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से इसका विरोध किया गया। केंद्रीय बैंक ने कहा कि इसमें गोपनीयता का अनुबंध जुड़ा है और इन आँकड़ों को सार्वजनिक कर देने से उसका अपना प्रभाव पड़ेगा। पीठ ने कहा कि यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण है, लिहाजा अदालत इसकी जांच करेगी कि क्या करोड़ों रुपए के बकाया कर्ज का खुलासा किया जा सकता है। साथ ही इसने इस मामले जुड़े पक्षों से विभिन्न मामलों को निर्धारित करने को कहा जिन पर बहस हो सकती है। पीठ ने इस मामले में जनहित याचिका का दायरा बढ़ा कर वित्त मंत्रालय और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन को भी इस मामले में पक्ष बना दिया है। इस पर अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी। याचिका स्वयंसेवी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने 2003 में दायर की थी। पहले इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के आवास एवं नगर विकास निगम (हडको) द्वारा कुछ कंपनियों को दिए गए कर्ज का मुद्दा उठाया गया था। याचिका में कहा गया है कि 2015 में 40000 करोड़ रुपए के कर्ज बट्टे-खाते में डाल दिए गए थे। अदालत ने रिजर्व बैंक से छह हफ्ते में उन कंपनियों की सूची मांगी है जिनके कर्जों को कंपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत पुनर्निर्धारित किया गया है। पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि पैसा न चुकाने वालों से वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।

 
हम विजय माल्या को लेकर परेशान हैं। वे भारत आएंगे या नहीं? कर्जा चुकाएंगे या नहीं? नहीं चुकाएंगे तो बैंक उनका क्या कर लेंगे वगैरह। पर समस्या विजय माल्या नहीं हैं। वे समस्या के लक्षण मात्र हैं। समस्या है बैंकों के संचालन की। क्या वजह है कि सामान्य नागरिक को कर्ज देने में जान निकल लेने वाले बैंक प्रभावशाली कारोबारियों के सामने शीर्षासन करने लगते हैं? उन्हें कर्ज देते समय वापसी के सुरक्षित दरवाजे खोलकर नहीं रखते। बैंकों के एक बड़े पुनर्गठन का समय आ गया है। यह मामला इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में उठ रहा है। चार रोज पहले इस काम के लिए गठित बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) ने अपनी पहली बैठक में जरूरी पहल शुरू कर दी है।

Sunday, April 10, 2016

भारतीय राष्ट्र-राज्य ‘फुटबॉल’ नहीं है

एनआईटी श्रीनगर की घटना सामान्य छात्र की समस्याओं से जुड़ा मामला नहीं है। जैसे जेएनयू, जादवपुर या हैदराबाद की घटनाएं राजनीति से जोड़ी जा सकती हैं, श्रीनगर की नहीं। देश के ज्यादातर दलों के छात्र संगठन भी हैं। जाहिर है कि युवा वर्ग को किसी उम्र में राजनीति के साथ जुड़ना ही होगा, पर किस तरीके से? हाल में केरल के पलक्कड़ के सरकारी कॉलेज के छात्रों ने अपनी प्रधानाचार्या की सेवानिवृत्ति पर उन्हें कब्र खोदकर प्रतीक रूप से उपहार में दी। संयोग से छात्र एक वामपंथी दल से जुड़े थे। सामाजिक जीवन से छात्रों को जोड़ने के सबसे बड़े हामी वामपंथी दल हैं, पर यह क्या है?

संकीर्ण राष्ट्रवाद को उन्मादी विचारधारा साबित किया जा सकता है। खासतौर से तब जब वह समाज के एक ही तबके का प्रतिनिधित्व करे। पर भारतीय राष्ट्र-राज्य राजनीतिक दलों का फुटबॉल नहीं है। वह तमाम विविधताओं के साथ देश का प्रतिनिधित्व करता है। आप कितने ही बड़े अंतरराष्ट्रीयवादी हों, राष्ट्र-राज्य के सवालों का सामना आपको करना होगा। सन 1947 के बाद भारत का गठन-पुनर्गठन सही हुआ या नहीं, इस सवाल बहस कीजिए। पर फैसले मत सुनाइए। जेएनयू प्रकरण में भारतीय राष्ट्र-राज्य पर हुए हमले को सावधानी के साथ दबा देने का दुष्परिणाम श्रीनगर की घटनाओं में सामने आया है। भारत के टुकड़े करने की मनोकामना का आप खुलेआम समर्थन करें और कोई जवाब भी न दे।

चुनावी राजनीति ने हमारे सामाजिक जीवन को पहले ही काफी हद तक तोड़ दिया है। हमारे साम्प्रदायिक, जातीय और क्षेत्रीय अंतर्विरोधों को खुलकर खोला गया है। पर अब भारत की अवधारणा पर हमले के खतरों को भी समझ लेना चाहिए। यह सिर्फ संयोग नहीं था कि जेएनयू का घटनाक्रम असम, बंगाल और केरल के चुनावों से जुड़ गया? और अब कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सरकार की सुगबुगाहट के साथ ही एनआईटी श्रीनगर में आंदोलन खड़ा हो गया। संघ और भाजपा के एकांगी राष्ट्रवाद से असहमत होने का आपको अधिकार है, पर भारतीय राष्ट्र-राज्य किसी एक दल की बपौती नहीं है। वह हमारे सामूहिक सपनों का प्रतीक है। उसे राजनीति का खिलौना मत बनाइए।

Tuesday, April 5, 2016

‘फेसबुक’ हैक कर लेने का क्या अर्थ है?

फेसबुक इंटरनेट पर एक निःशुल्क सामाजिक नेटवर्किंग सेवा है, जिसके माध्यम से 13 वर्ष से ऊपर की उम्र के इसके सदस्य अपने मित्रों, परिवार और परिचितों से संपर्क रखते हैं। इसे फेसबुक इनकॉरपोरेटेड नामक कंपनी संचालित करती है। इसके प्रयोक्ता कई तरह के नेटवर्कों में शामिल हो सकते हैं और आपस में विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। फेसबुक अकाउंट हैक करने का मतलब है किसी तरीके से आपके पासवर्ड को हासिल करके अकाउंट का दुरुपयोग करना। मसलन आपके नाम से गलत संदेश दिए जा सकते हैं। इससे भी ज्यादा आपके बैंकिंग पासवर्ड वगैरह का पता लगाया जा सकता है। साथ ही आपके अकाउंट की मदद से आपके मित्रों के अकाउंट भी हैक किए जा सकते हैं।

‘लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ तथा ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ की मान्यता क्या है? ये दोनों ‘रिकॉर्ड्स बुक्स’ कैसे और कहां से प्राप्त कर सकते हैं?

पहले तो इन दोनों रिकॉर्ड्स की पृष्ठभूमि को समझ लें। गिनीज़ बुक मूलतः बहुत व्यापक पुस्तक है और अनोखे रिकॉर्डों के लिए खुद में मानक बन गई है। लिम्का बुक की परिधि में केवल भारत है। यह भारत का प्रकाशन है जो गिनीज़ बुक से प्रभावित है। इसकी विषय वस्तु भी भारत है। गिनीज़ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड्स (अंग्रेजी: Guinness World Records) को सन 2000 तक 'गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' के नाम से जाना जाता था। यह पुस्तक 'सर्वाधिक बिकने वाली कॉपीराइट पुस्तक' के रूप में स्वयं एक रिकार्ड धारी है। लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स सबसे पहले सन 1990 में प्रकाशित हुई थी। इसे शीतल पेय बनाने वाले पार्ले समूह ने शुरू किया था, जिसके पास लिम्का ब्रांड भी था। बाद में यह ब्रांड कोका कोला को बेच दिया गया, जो अब इस किताब का प्रकाशन करता है। दोनों की मान्यता उनकी साख है। लिम्का बुक के तीन भाषाओं में 25 संस्करण निकल चुके हैं और गिनीज़ बुक के 20 भाषाओं में 50. अजब-गजब रिकॉर्ड बनाने वाले इन किताबों में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं ताकि उन्हें मान्यता मिले। गिनीज़ बुक अब केवल किताब ही नहीं है, बल्कि टीवी प्रोग्राम, इंटरनेट हर जगह छाई है।

जम्हाई (उबासी) क्यों आती है?

जम्हाई लेने के अनेक कारण बताए जाते हैं। यह थकान, ऊब, नींद और तनाव से जुड़ी क्रिया है। मोटे तौर पर दिमाग को ठंडा रखने की कोशिश। सोने के ठीक पहले और उठने के फौरन बाद जम्हाई सबसे ज्यादा आती है। इसमें व्यक्ति पहले गहरी साँस लेता है, फिर साँस छोड़ता है। इस दौरान पूरे शरीर में खिंचाव आता है। यह शरीर को सामान्य दशा में लाने वाली क्रिया है। इसकी मदद से शरीर में जमा अनावश्यक कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकलती है और ऑक्सीजन दिमाग फेफड़ों और खून में मिलती है जो अंततः दिमाग तक जाती है, जिससे व्यक्ति चैतन्य और चौकन्ना हो जाता है। जब व्यक्ति थका हुआ या बोरियत महसूस करता है तो उसकी साँस लेने की गति धीमी हो जाती है। खून में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए उबासी आती है। इससे फेफड़ों और इनके टिश्यू का व्यायाम भी हो जाता है। मनुष्य ही नहीं चिम्पांजी और कुत्ते और दूसरे जानवर भी जम्हाई लेते हैं।

सार्क देशों के अंतर्गत किन-किन देशों की गणना की जाती है उनका भारत से क्या संबंध है?

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में आठ सदस्य देश हैं। इसकी स्थापना 8 दिसम्बर 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और भूटान ने मिलकर की थी। अप्रैल 2007 में इसके 14 वें शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य बन गया। इसके पर्यवेक्षक हैं ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ, ईरान, जापान, मॉरिशस, म्यांमार, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका।