मोदी और सुषमाः क्या सब कुछ ठीक है?
- 35 मिनट पहले
मोदी सरकार का एक साल पूरा होने वाला है. इस दौरान उनके तौर-तरीकों को लेकर टिप्पणियाँ होने लगी हैं.
कहा जाता है कि सरकार की सारी ताकत मात्र एक व्यक्ति तक ही सीमित है. वे अपने सहयोगियों को सामने आने का मौका नहीं देते.
पार्टी के भीतर और सरकार दोनों में, सत्ता मोदी या उनके विश्वास-पात्रों तक ही सीमित है. उदाहरण के लिए सुषमा स्वराज की बात करते हैं, जो अपनी वरिष्ठता और अनुभव के लिहाज से दबकर काम करती हैं.
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शनिवार की सुबह कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया, "जिस वक्त नरेंद्र मोदी विदेश में समझौतों पर दस्तख़त कर रहे हैं, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज विदिशा, मध्य प्रदेश में मोदी की भावी उपलब्धियों का प्रचार कर रही हैं."
इसके ठीक पहले उन्होंने एक और ट्वीट किया, "जिस वक्त प्रधानमंत्री फ्रांस में हवाई जहाज़ खरीद रहे थे, उस वक्त गोवा में हमारे रक्षामंत्री मछली खरीद रहे थे! मिनिमम गवर्नमेंट एंड मैक्सीमम गवर्नेंस."
कैसा है यह धुआं?
दिग्विजय सिंह अनुभवी नेता हैं. वे शिष्टाचार को बेहतर जानते हैं. प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्री या रक्षामंत्री के होने की अनिवार्यता नहीं है. इसके पहले किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया होगा कि प्रधानमंत्रियों के दौरे में विदेश मंत्री जाते रहे हैं या नहीं.
दिग्विजय सिंह भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखा है. मोदी सरकार को असमंजस में डालने का मौका मिलेगा तो वे चूकेंगे नहीं. यह व्यावहारिक राजनीति है. सवाल उस आग का है जो इस धुएं के पीछे है.
क्या यह माने कि दिग्विजय सिंह मोदी जी से कह रहे हैं कि अपने काबिल मंत्रियों की उपेक्षा न करें? अलबत्ता यह बात सुषमा स्वराज पर लागू हो भी सकती है, मनोहर पर्रिकर पर नहीं.