Sunday, January 11, 2015

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं तो कोई भी स्वतंत्रता सम्भव नहीं

पेरिस की कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो पर हुए हमले के बाद आतंकवाद की निंदा करने के अलावा कुछ लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा क्या हो? क्या किसी की धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुँचाई जानी चाहिए? फ्री स्पीच के माने क्या कुछ भी बोलने की स्वतंत्रता है? कार्टून और व्यंग्य को लेकर खासतौर से यह सवाल है। भारत में हाल के वर्षों में असीम त्रिवेदी के मामले में और फिर उसके बाद आम्बेडकर के कार्टून को लेकर यह सवाल उठा था। कुछ लोगों की मान्यता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती। उसकी सीमा होनी चाहिए। सवाल यह भी है कि क्या यह सीमा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ही लागू होती है? क्या धार्मिक या आस्था की स्वतंत्रता की सीमा भी नहीं होनी चाहिए? हाल में सिडनी के एक कैफे और पाकिस्तान के पेशावर में बच्चों की हत्या से जुड़े सवाल भी हमें इसी दिशा में लाते हैं? सवाल है कितनी आजादी? और किसकी आज़ादी?

Saturday, January 10, 2015

कब तक चलेगी मोदी की अध्यादेशी नैया?

भूमि अधिग्रहण कानून देश की राजनीति और प्रशासन की पोल खोलता है। लम्बे अरसे तक लटकाए रखने के बाद इसे जब पास किया गया तभी ज़ाहिर था कि कारोबार जगत को इसे लेकर अंदेशा है। जयराम रमेश ने ग्रामीण विकास मंत्रालय का पद भार ग्रहण करने के तुरंत बाद भूमि अधिग्रहण के कानून में किसानों के पक्ष में पैरवी की थी, पर जब कानून पास हो रहा था तब उन्हें भी लगने लगा था कि आर्थिक विकास की दर को तेज़ करने के लिए इसकी कड़ी शर्तें कम करनी होंगी। निवेशकों को माफिक आने वाला भूमि अधिग्रहण विधेयक लाना होगा। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार इसमें बदलाव लाना चाहती है, पर जब यह कानून पास हो रहा था तब पार्टी ने ये सवाल नहीं उठाए थे। फिलहाल इस मामले से जुड़े कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं:-

· सरकार शीतकालीन सत्र में ही कानून में संशोधन कराने में सफल क्यों नहीं हुई? इसी सत्र में सरकार श्रम कानूनों से सम्बद्ध कानूनी बदलाव कराने में सफल रही थी।

· क्या अध्यादेश के अधिकार का दुरुपयोग हो रहा है? अध्यादेश के बजाय सरकार ने संसद में इसे पेश क्यों नहीं किया? राज्यसभा में पास नहीं होता तो संयुक्त अधिवेशन का रास्ता था।

· आर्थिक उदारीकरण के मामले में कांग्रेस पार्टी की नीति भी भारतीय जनता पार्टी की नीतियों जैसी है। इस मामले में अड़ंगा लगाकर क्या वह अपनी छवि उदारीकरण विरोधी की बनाना चाहेगी?

· मामला केवल भूमि अधिग्रहण कानून तक सीमित नहीं है। अभी सरकार को कई कानूनों को बदलना है। क्या इसके बारे में कोई रणनीति भाजपा के पास है?

Friday, January 9, 2015

रोमन हिन्दी को लेकर असगर वजाहत का एक पुराना लेख

“रोमन” हिंदी खिल रही है, “नागरी” हिंदी मर रही है

यह लेख मार्च 2010 में जनसत्ता में छपा था। इसे यहाँ फिर से लगाया है ताकि सनद रहे। इस सिलसिले में मैं कुछ और सामग्री खोजकर यहाँ लगाता जाऊँगा। 

मुंबई से फिल्म निर्देशक का फोन आया कि फिल्म के संवाद रोमन लिपि में लिखे जाएं। क्यों? इसलिए कि अभिनेताओं में से कुछ हिंदी बोलते-समझते हैं लेकिन नागरी लिपि नहीं पढ़ सकते। कैमरामैन गुजरात का है। वह भी हिंदी समझता-बोलता है लेकिन पढ़ नहीं सकता… इसी तरह… फिल्म से जुड़े हुए तमाम लोग हैं। फिल्मी दुनिया में गहरी पैठ रखने वालों ने बाद में बताया कि फिल्म उद्योग में तो हिंदी आमतौर पर रोमन लिपि में लिखी और पढ़ी जाती है। एनडीटीवी के हिंदी समाचार विभाग में बड़े ओहदे पर बरसों काम कर चुके एक दोस्त ने बताया कि टीवी चैनलों पर हिंदी समाचार आदि रोमन लिपि में लिखे जाते हैं। वजह केवल यह नहीं है कि समाचार पढ़ने वाला नागरी लिपि नहीं जानता है बल्कि यह भी है कि समाचार की जांच-पड़ताल करने वाले नागरी लिपि के मुकाबले रोमन लिपि ज्यादा सरलता से पढ़ सकते हैं।

Thursday, January 8, 2015

रोमन हिन्दी के बारे में चेतन भगत की राय

आज यानी 8 जनवरी के दैनिक भास्कर में चेतन भगत ने रोमन हिन्दी के बारे में एक लेख लिखा है। इस लेख को पढ़कर अनेक लोगों की प्रतिक्रिया होगी कि चेतन भगत के लेख को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए। यह प्रतिक्रिया या दंभ से भरी होती है या नादानी से भरी। जो वास्तव में उपस्थित है उससे मुँह मोड़कर आप कहाँ जाएंगे? भाषा अपने बरतने वालों के कारण चलती या विफल होती है, विशेषज्ञों के कारण नहीं। विशेषज्ञता वहाँ तक ठीक है जहाँ तक वह वास्तविकता को ठीक से समझे। बहरहाल आपकी जो भी राय हो, यदि आप इस लेख को पढ़ना चाहें तो यहाँ पेश हैः-

हमारे भारतीय समाज में हमेशा चलने वाली एक बहस हिंदी बनाम अंग्रेजी के महत्व की रही है। वृहद स्तर पर देखें तो इस बहस का विस्तार किसी भी भारतीय भाषा बनाम अंग्रेजी और किस प्रकार हमने अंग्रेजी के आगे स्थानीय भाषाओं को गंवा दिया इस तक किया जा सकता है। यह राजनीति प्रेरित मुद्‌दा भी रहा है। हर सरकार हिंदी के प्रति खुद को दूसरी सरकार से ज्यादा निष्ठावान साबित करने में लगी रहती है। नतीजा ‘हिंदी प्रोत्साहन’ कार्यक्रमों में होता है जबकि सारे सरकारी दफ्तर अनिवार्य रूप से हिंदी में सर्कुलर जारी करते हैं और सरकारी स्कूलों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में रखी जाती है।

इस बीच देश में अंग्रेजी लगातार बढ़ती जा रही है। बिना प्रोत्साहन कार्यक्रमों और अभियानों के यह ऐसे बढ़ती जा रही है, जैसी पहले कभी नहीं बढ़ी। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसमें कॅरिअर के बेहतर विकल्प हैं, समाज में इसे अधिक सम्मान प्राप्त है और यह सूचनाओं व मनोरंजन की बिल्कुल नई दुनिया ही खोल देती है तथा इसके जरिये नई टक्नोलॉजी तक पहुंच बनाई जा सकती है। जाहिर है इसके फायदे हैं।



नव संवत्सर और नवरात्र आरम्भ के मौके पर सुबह से मोबाइल फोन पर शुभकामना संदेश आने लगे। पहले मकर संक्रांति, होली-दीवाली, ईद और नव वर्ष संदेश आए। काफी संदेश हिन्दी में हैं, खासकर मकर संक्रांति और नवरात्रि संदेश तो ज्यादातर हिन्दी में हैं। और ज्यादातर हिन्दी संदेश रोमन लिपि में।
मोबाइल फोन पर चुटकुलों, शेर-ओ-शायरी और सद्विचारों के आदान-प्रदान का चलन बढ़ा है। संता-बंता जोक तो हिन्दी में ही मज़ा देते हैं। रोमन के इस्तेमाल से हिन्दी और अंग्रेजी की मिली-जुली भाषा भी विकसित हो रही है। क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?

Tuesday, January 6, 2015

संरचनात्मक निरंतरता की देन है ‘नीति आयोग’

नीति आयोग बन जाने के बाद जो शुरुआती प्रतिक्रियाएं हैं उनके राजनीतिक आयाम को छोड़ दें तो ज्यादातर राज्य अभी इसके व्यावहारिक स्वरूप को देखना चाहते हैं। इस साल वार्षिक योजनाओं पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है। असम सरकार ने छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों के लिए साधनों को लेकर चिंता व्यक्त की है। वहीं आंध्र सरकार अपनी नीति आयोग बनाने की योजना बना रहा है। तेलंगाना सरकार की समझ कहती है कि अब राज्य को बगैर किसी योजना आयोग की शर्तों से बँधे सीधे धनराशि मिलेगी। देखना यह है कि नीति आयोग का नाम ही बदला है या काम भी बदलेगा। केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय में भी भारी बदलाव होने जा रहे हैं। नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम आर्थिक सर्वेक्षण का रंग-रूप पूरी तरह बदलने की योजना बना रहे हैं। अब सर्वेक्षण के दो खंड होंगे। पहले खंड में अर्थ-व्यवस्था का विश्लेषण और विवेचन होगा। साथ ही इस बात पर जोर होगा कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। दूसरा खंड पिछले वर्षों की तरह सामान्य तथ्यों से सम्बद्ध होगा।