दिल्ली रेप कांड को केवल रेप तक सीमित करने से इसके अनेक पहलुओं की ओर से ध्यान हट जाता है। यह मामला केवल रेप का नहीं है। कम से कम जैसा पश्चिमी देशों में रेप का मतलब है। हाल में एक रपट में पढ़ने को मिला कि पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में रेप कम है। पर उस डेटा को ध्यान से पढ़ें तो यह तथ्य सामने आता है कि रिपोर्टेड केस कम हैं। यानी शिकायतें कम हैं। दूसरे पश्चिम में सहमति और असहमति के सवाल हैं। वहाँ स्त्री की असहमति और उसकी रिपोर्ट बलात्कार है।हमारे यहाँ के कानून कितने ही कड़े हों, एक तो उनका विवेचन ठीक से नहीं हो पाता, दूसरे पीड़ित स्त्री अपने पक्ष को सामने ला ही नहीं पाती। इसका कारण यह है कि हमारे देश में स्त्रियाँ पश्चिमी स्त्रियों की तुलना में कमज़ोर हैं। इसके अलावा हमारी पुलिस और न्याय व्यवस्था स्त्रियों के प्रति सामंती दृष्टिकोण रखती है। रेप का मतलब उनके जीवन को तबाह मानती है, उन्हें ठीक से रहने का प्रवचन देती है वगैरह।
Tuesday, December 25, 2012
Monday, December 24, 2012
मध्य वर्ग के युवा को क्या नाराज़ होने का हक नहीं है?
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
अरुंधती रॉय ने बलात्कार की शिकार लड़की को अमीर मध्य वर्ग की लड़की बताया है। वे किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँची कहना मुश्किल है, पर यदि वे दिल्ली की सड़कों पर काम के लिए खाक छानते बच्चों को अमीर मध्य वर्ग मानती हैं तो उनकी समझ पर आश्चर्य होता है।
किराए के रोने वाले और हमारे शोक के वास्तविक सवाल
गुजरात में नरेन्द्र मोदी की विजय के ठीक पहले दिल्ली में चलती बस में बलात्कार को लेकर युवा वर्ग का आंदोलन शुरू हुआ। और इधर सचिन तेन्दुलकर ने एक दिनी क्रिकेट से संन्यास लेने का फैसला किया। तीनों घटनाएं मीडिया की दिलचस्पी का विषय बनी हैं। तीनों विषयों का अपनी-अपनी जगह महत्व है और मीडिया इन तीनों को एक साथ कवर करने की कोशिश भी कर रहा है, पर इस बात को रेखांकित करने की ज़रूरत है कि हम सामूहिक रूप से विमर्श को ज़मीन पर लाने में नाकामयाब हैं। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद से एक ओर हम मीडिया की अत्यधिक सक्रियता देख रहे हैं वहीं इस बात को देख रहे हैं कि लोग बहुत जल्द एक बात को भूलकर दूसरी बात को शुरू कर देते हैं। बहरहाल सी एक्सप्रेस में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ें:-
फेसबुक
पर वरिष्ठ पत्रकार चंचल जी ने लिखा, “दिल्ली में अपाहिज मसखरों
का एक संगठित गिरोह है। बैंड पार्टी की तरह, उन्हें किराए पर
बुला लो जो सुनना चाहो उन लो। बारात निकलते समय, बच्चे की पैदाइश
पर, मारनी पर करनी पर,
खतना पर हर जगह वे उसी सुर में आएंगे जो प्रिय लगे। और यह जोखिम का काम
भी नहीं है। बस कुछ चलते फिरते मुहावरे हैं उसे खीसे से निकालेंगे और जनता जनार्दन
के सामने परोस देंगे। गुजरात पर चलेवाली बहस देखिए। मोदी को जनता ने जिता दिया। इतनी
सी खबर मोदी को जेरे बहस कर दिया। वजनी-वजनी शब्द, जीत के असल कारण, उनका नारा, वगैरह-वगैरह इन बुद्धिविलासी बहसी आत्माओं
का सोहर बन गया है। और अगर मोदी हार गया होता तो यही लोग ऐसे-ऐसे शब्द उसकी मैयत पर
रखते कि वह तिलमिला कर भाग जाता।” उन्होंने यह बात गुजरात के
चुनाव परिणामों की मीडिया कवरेज के संदर्भ में लिखी है, पर इस बात को व्यापक संदर्भों
में ले जाएं तो सोचने समझने के कारण उभरते हैं।
Tuesday, December 18, 2012
लुक ईस्ट, लुक एवरीह्वेयर
डिफेंस मॉनिटर का दूसरा अंक प्रकाशित हो गया है। इस अंक में पुष्पेश पंत, मृणाल पाण्डे, डॉ उमा सिंह, मे जन(सेनि) अफसिर करीम, एयर वाइस एडमिरल(सेनि) कपिल काक, कोमोडोर रंजीत बी राय(सेनि), राजीव रंजन, सुशील शर्मा, राजश्री दत्ता और पंकज घिल्डियाल के लेखों के अलावा धनश्री जयराम के दो शोधपरक आलेख हैं, जो बताते हैं कि 1962 के युद्ध में सामरिक और राजनीतिक मोर्चे पर भारतीय नेतृत्व ने जबर्दस्त गलतियाँ कीं। धनश्री ने तत्कालीन रक्षामंत्री वीके कृष्ण मेनन और वर्तमान रक्षामंत्री एके एंटनी के व्यक्तित्वों के बीच तुलना भी की है। सुरक्षा, विदेश नीति, राजनय, आंतरिक सुरक्षा और नागरिक उड्डयन के शुष्क विषयों को रोचक बनाना अपने आप में चुनौती भरा कार्य है। हमारा सेट-अप धीरे-धीरे बन रहा है। इस बार पत्रिका कुछ बुक स्टॉलों पर भेजी गई है, अन्यथा इसे रक्षा से जुड़े संस्थानों में ही ज्यादा प्रसारित किया गया था। हम इसकी त्रुटियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरे अंक में भी त्रुटियाँ हैं, जिन्हें अब ठीक करेंगे। तीसरा अंक इंडिया एयर शो पर केन्द्रत होगा जो फरवरी में बेंगलुरु में आयोजित होगा। बहरहाल ताज़ा अंक में मेरा लेख भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी पर केन्द्रत है, जो मैं नीचे दे रहा हूँ। इस लेख के अंत में मैं डिफेंस मॉनीटर के कार्यालय का पता और सम्पर्क सूत्र दे रहा हूँ।
Monday, December 17, 2012
एक और 'गेम चेंजर', पर कौन सा गेम?
गुजरात में मतदान का आज दूसरा दौर है। 20 दिसम्बर को हिमाचल और गुजरात के नतीजे आने के साथ-साथ राजनीतिक सरगर्मियाँ और बढ़ेंगी। इन परिणामों से ज्यादा महत्वपूर्ण है देश की राजनीति का तार्किक परिणति की ओर बढ़ना। संसद का यह सत्र धीरे-धीरे अवसान की ओर बढ़ रहा है। सरकार के सामने अभी पेंशन और बैंकिंग विधेयकों को पास कराने की चुनौती है। इंश्योरेंस कानून संशोधन विधेयक 2008 को राज्यसभा में पेश हुआ था। तब से वह रुका हुआ है। बैंकिंग कानून संशोधन बिधेयक, माइक्रो फाइनेंस विधेयक, सिटीजन्स चार्टर विधेयक, लोकपाल विधेयक शायद इस सत्र में भी पास नहीं हो पाएंगे। महिला आरक्षण विधेयक वैसे ही जैसे मैजिक शो में वॉटर ऑफ इंडिया। अजा, जजा कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण का विधेयक राजनीतिक कारणों से ही आया है और उन्हीं कारणों से अटका है। संसद के भंडारागार में रखे विधेयकों की सूची आप एक बार देखें और उनके इतिहास पर आप जाएंगे तो आसानी से समझ में आ जाएगा कि इस देश की गाड़ी चलाना कितना मुश्किल काम है। यह मुश्किल चाहे यूपीए हो या एनडीए या कोई तीसरा मोर्चा, जब तक यह दूर नहीं होगी, प्रगति का पहिया ऐसे ही रुक-रुक कर चलेगा।
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