Sunday, September 10, 2023

वैश्विक-भरोसा कायम करने में सफल जी-20


लीडर्स घोषणा पत्र पर आमराय बन जाने के साथ जी-20 का नई दिल्ली शिखर सम्मेलन पूरी तरह से सफल हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा, हमारी टीम के हार्ड वर्क से और आप सभी के सहयोग से नई दिल्ली जी-20 लीडर्स घोषणा पत्र पर आम सहमति बनी है। घोषणापत्र पर आमराय बनना और अफ्रीकन यूनियन को समूह का इक्कीसवाँ सदस्य बनाना इस सम्मेलन की उपलब्धियाँ हैं। ऐसा लगता है कि भारत की सहायता करने के लिए पश्चिमी देशों ने अपने रुख में थोड़ी नरमी भी बरती है। 

सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत हालांकि शनिवार को हुई, पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के भारत की ज़मीन पर आगमन के साथ ही समां बन गया था। हवाई जहाज से उतरते ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर पहुँचे, जो अपने आप में असाधारण गतिविधि है। देर रात हुई द्विपक्षीय-वार्ता और उसके बाद ज़ारी संयुक्त बयान से भारत-अमेरिका रिश्तों, वैश्विक-राजनीति की दिशा और जी-20 की भूमिका इन तीनों बातों पर रोशनी पड़ी है। सम्मेलन का मूल-स्वर इसी मुलाक़ात से स्थिर हुआ है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अनुपस्थिति ने कुछ अनिश्चय जरूर पैदा किए, पर सम्मेलन सफल हो गया।

चुनौती भरा समय

पिछले साल 1 दिसंबर को जब जी-20 समूह की अध्यक्षता एक साल के लिए भारत के पास आई थी, तभी स्पष्ट था कि यह अध्यक्षता बड़े चुनौती भरे समय में भारत को मिली है। दुनिया तेजी से दो ध्रुवों में बँटती जा रही है। बाली सम्मेलन में घोषणापत्र की शब्दावली को तय कर पाना मुश्किल हो गया था। अब दिल्ली शिखर सम्मेलन में वैश्विक-सर्वानुमति बना पाने में दिक्कतें हैं। ज्यादा बड़ा खतरा जी-20 के विभाजन का है। शी चिनफिंग का निशाना भारत नहीं अमेरिका है। इस सम्मेलन में भारत के राजनय की दिशा स्पष्ट हो रही है। जी-7 की तुलना में जी-20 का आधार ज्यादा बड़ा है। संयुक्त राष्ट्र को अलग कर दें, तो जी-20 ही ऐसे व्यापक आधार वाला समूह है। इसमें रूस-चीन और पश्चिमी देश आमने-सामने बैठ सकते हैं। इस प्रकृति का दूसरा कोई समूह नहीं है। ऐसे समूह से कटने का मतलब है वैश्विक-राजनय से दूर जाना। बेशक रूस और चीन की इस सम्मेलन में उपस्थिति है, पर वे शिखर-संवाद से दूर हो गए। शी चिनफिंग के स्थान पर चीन के प्रधानमंत्री ली खछ्यांग आए हैं और पुतिन के स्थान पर उनके विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव।

भारतीय दृष्टिकोण

यह सम्मेलन भारत और चीन के रिश्तों में बढ़ती कड़वाहट को भी रेखांकित कर रहा है। पूर्वी लद्दाख के घटनाक्रम के कारण रिश्ते पहले से ही बिगड़े हुए हैं। भारत के सामने दूसरी चुनौतियाँ भी हैं। इसकी वजह है शीतयुद्ध जैसी स्थितियों का बनना। फिर भी वैश्विक-घटनाचक्र पर अब भारत का दृष्टिकोण ज्यादा स्पष्ट हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में एक इंटरव्यू में कहा कि जी-20 में भारत की भूमिका की पृष्ठभूमि को समझिए। दुनिया भारत के मानव-केंद्रित विकास मॉडल पर ध्यान दे रही है। जिस देश को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह वैश्विक चुनौतियों के समाधान का हिस्सा बन गया है। भारत किसी सैनिक-गठबंधन में शामिल नहीं होगा, पर सामरिक-दृष्टि से उसका झुकाव क्रमशः पश्चिम की ओर बढ़ता जाएगा।

घोषणापत्र पर काम

फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती जी-20 के घोषणापत्र की थी, जो अब जारी हो गया है। ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका ने इस काम में सहायता की और भारत सर्वसम्मत घोषणापत्र तैयार करने में सफल रहा। अभी तक सभी शिखर सम्मेलनों के बाद घोषणापत्र जारी होते रहे हैं। पिछले साल के बाली सम्मेलन में पहली बार बगैर घोषणापत्र के सम्मेलन समाप्त होने की नौबत आ गई थी। येन-केन प्रकारेण बाली घोषणा में यूक्रेन-युद्ध का जिक्र हो गया था, पर अब रूस और चीन दिल्ली घोषणा में यूक्रेन को लेकर अडिग बताए जाते हैं। हाल में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने चीन पर आरोप लगाया था कि वह यूक्रेन सहित बहुत से मसलों पर समझौते में अड़ंगा लगा रहा है। इसपर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा है कि जी-20 शिखर सम्मेलन की सकारात्मक उपलब्धियों के लिए चीन सभी संबद्ध पक्षों के साथ काम करने को तैयार है। उधर यूरोपियन कौंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने कहा था कि नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में सर्वानुमति की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। उनका कहना है कि यूरोपियन कौंसिल चाहती है कि जी-20 खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी सुरक्षाओं पर ध्यान दें। रूस ने यूक्रेन से ब्लैक सी के रास्ते से आने वाले गेहूँ की सप्लाई की नाकेबंदी की घोषणा करके दुनिया के सामने खाद्य संकट पैदा कर दिया है।

आमराय में अड़चनें

रूस और चीन चाहते थे कि या तो यूक्रेन-युद्ध का ज़िक्र हो ही नहीं और यदि हो, तब हमारा-दृष्टिकोण भी उसमें शामिल हो। इसमें युद्ध का जिक्र हुआ, पर किसी का नाम नहीं आया। जलवायु परिवर्तन में वित्तीय सहायता और कर्ज़ भुगतान को लेकर साझा बयान के मसौदे को लेकर असहमतियाँ थीं, जिन्हें दूर कर लिया गया। भारतीय डिप्लोमेसी को एक बड़ी सफलता अफ्रीकन यूनियन को लेकर मिली है, जिसे जी-20 में शामिल करने पर सहमति बन गई है। अफ्रीका के 55 देशों का संगठन इस समूह में दूसरा क्षेत्रीय-संगठन होगा। इसके पहले यूरोपियन यूनियन इसका सदस्य है।

अफ्रीकी देश

अफ्रीका संभावनाओं का क्षेत्र है, जहाँ आने वाले वर्षों में आर्थिक-गतिविधियाँ बढ़ेंगी। इन देशों के पास संसाधन कम हैं। उन्हें अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के साथ पूँजी और तकनीकी सहायता दोनों की जरूरत है। चीन अपने बॉर्डर रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) को लेकर अफ्रीका गया है। जी-7 देशों ने बीआरआई के जवाब में 'बिल्ड बैक बैटर वर्ल्ड' (बी3डब्ल्यू) प्लान तैयार किया है। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है। करीब 40 ट्रिलियन डॉलर का यह कार्यक्रम चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का विकल्प है। चीन को अपना औद्योगिक आधार बनाए रखने के लिए सबसे बड़ी जरूरत खनिजों की है। इसके लिए चीन ने अफ्रीका को अपना ठिकाना बनाया है। खनिजों के अलावा पूँजी निवेश और सामरिक दृष्टि से भी अफ्रीका महत्वपूर्ण क्षेत्र है। चीन की नजरें सूडान/दक्षिण सूडान, अंगोला और नाइजीरिया जैसे प्रचुर तेल-भंडारों वाले देशों पर रही हैं। अफ्रीका में कोबाल्ट खनन पर चीन का एकाधिकार है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार 2040 तक स्वच्छ-ऊर्जा तकनीकों के विकास के लिए 2020 में उपलब्ध लीथियम के 40 गुना, 25 गुना ग्रेफाइट और करीब 20 गुना निकेल और कोबाल्ट की जरूरत होगी। विंड टर्बाइन मैग्नेट्स से लेकर लड़ाकू विमानों तक में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ पदार्थ की सात गुना ज्यादा जरूरत होगी।

चीन से प्रतिस्पर्धा

थिंकटैंक ब्रुकिंग्स के अनुसार 15 साल तक चीन खुलकर इस संपदा पर कब्जा करता रहा और दुनिया सोती रही। अब अमेरिका अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर इस वर्चस्व को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। नब्बे के दशक के वैश्वीकरण का सबसे बड़ा फायदा चीन को मिला। पश्चिमी देशों के पूँजी निवेश के कारण उसकी अर्थव्यवस्था का तेज विस्तार हुआ। पश्चिम को शुरुआती वर्षों में चीन का उदय अपने पक्ष में जाता नज़र आता था, पर ऐसा हुआ नहीं। सामरिक और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर चीन आज पश्चिम के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आया है।

सप्लाई-चेन

पश्चिमी पूँजी और तकनीक के सहारे खड़े हुए चीनी कारखानों का माल आज दुनिया के बाजारों में भरा पड़ा है। तमाम देशों की आर्थिक गतिविधियाँ चीनी सप्लाई-चेन पर आश्रित हैं। खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण।   पश्चिमी उद्योग जगत ने चीन की खोज दुनिया के कारखाने के रूप में की थी, जहाँ सस्ती मजदूरी और सरकारी संरक्षण की मदद से वे माल हासिल करें। अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुछ देशों को उसके विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। ये देश हैं जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फिलीपींस, ब्रूनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, सिंगापुर, बांग्लादेश और भारत। वर्तमान स्थितियों में इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्यात में ये 14 देश भी कुल मिलाकर चीन के बराबर नहीं हैं। अलबत्ता यह कारोबार अब चीन से निकलकर दूसरे देशों में जा रहा है। ताइवान की फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन ने, जो एपल के गैजेट्स को असेंबल करती हैं, भारत में काफी निवेश किया है।

ग्लोबल-साउथ

भारतीय राजनय की सफलता तभी साबित होगी, जब भारत को ग्लोबल-साउथ की आवाज़ मान लिया जाएगा। ग्लोबल-साउथ का मतलब है अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील और अल्प-विकसित देश। सबसे बड़ी चुनौती इन देशों को आर्थिक-विकास की धारा से जोड़ने की है। चीन की दिलचस्पी भी ग्लोबल-साउथ का राजनीतिक दोहन करने की है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने पत्रकारों से कहा, चीन पहला देश है, जिसने अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल करने के लिए खुलकर समर्थन किया था। अमेरिका और जापान जैसे देश चाहते हैं कि ग्लोबल-साउथ को वैश्विक-राजनीति के केंद्र में लाने का श्रेय भारत को मिले।

भारत-अमेरिका संवाद

जोसफ बाइडन के साथ शुक्रवार की रात करीब 52 मिनट तक चली मुलाक़ात के बाद पीएम मोदी ने बताया, हमारी बैठक फलदायी थी। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में 28 बिंदुओं को समेटा गया है। राष्ट्रपति बाइडन ने भारत की जी-20 अध्यक्षता की सराहना की कि कैसे एक मंच के रूप में जी-20 महत्वपूर्ण परिणाम दे रहा है। दोनों ने स्वतंत्र, खुले, समावेशी और लचीले हिंद-प्रशांत क्षेत्र का समर्थन करने में क्वाड के महत्व की पुष्टि की। और यह भी कि प्रधानमंत्री मोदी 2024 में भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति बाइडन का स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं। इस मुलाकात में भी अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सीट देने का समर्थन किया। चंद्रयान-3 और सौर मिशन आदित्य की सफलता और दोनों देशों के समानव अंतरिक्ष-कार्यक्रम और सेमीकंडक्टर की वैश्विक सप्लाई-चेन का उल्लेख भी इस बयान में है।

हरिभूमि में प्रकाशित

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