सोलिह और मुइज़्ज़ु |
दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों के साथ
रिश्ते बनाने की भारतीय कोशिशों में सबसे बड़ी बाधा चीन की है. पाकिस्तान के अलावा
उसने बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव में काफी पूँजी निवेश किया
है. पूँजी निवेश के अलावा चीन इन सभी देशों में भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का
काम भी करता है.
इसे प्रत्यक्ष रूप से हिंद महासागर के छोटे से
देश मालदीव में देखा जा सकता है. चीन अपनी नौसेना को तेजी से बढ़ा रहा है. वह
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस जगह पर अपनी पहुंच बनाना चाहेगा, उसे भारत रोकना चाहता है. चीन यहां अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा
चाहता है, जो इसी रास्ते से होकर गुजरता है.
आज मालदीव में राष्ट्रपति पद की निर्णायक चुनाव
है, जिसे भारत
और चीन की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जा रहा है. करीब 1,200 छोटे द्वीपों
से मिल कर बना मालदीव पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना है. यहां के बीच दुनिया के
अमीरों और मशहूर हस्तियों को पसंद आते हैं. सामरिक दृष्टि से भी हिंद महासागर के
मध्य में बसा यह द्वीप समूह काफी अहम है, जो पूरब और पश्चिम के बीच कारोबारी
जहाजों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता है.
चीन-समर्थक मुइज़्ज़ु
चुनाव में आगे चल रहे मोहम्मद मुइज़्ज़ु की
पार्टी ने पिछले कार्यकाल में चीन से नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ा ली हैं. चीन की
बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए खूब सारा धन बटोरा
गया. 45 साल के मुइज़्ज़ु माले के मेयर रहे हैं. पिछली सरकार में मालदीव के मुख्य
एयरपोर्ट से राजधानी को जोड़ने की 20 करोड़ डॉलर की चीन समर्थित परियोजना का
नेतृत्व उन्हीं के हाथ में था.
मालदीव में चीन के पैसे से बनी इसी परियोजना की
सबसे अधिक चर्चा है. यह 2.1 किमी लंबा चार लेन का एक पुल है. यह
पुल राजधानी माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ता है. यह हवाई अड्डा एक अलग
द्वीप पर स्थित है. इस पुल का उद्घाटन 2018 में किया गया
था. उस समय यामीन राष्ट्रपति थे.
9 सितंबर को हुए पहले दौर में उन्हें 46 फीसदी वोट मिले. दूसरी तरफ निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को 39 फीसदी वोट ही मिल सके. सोलिह ने भारत से रिश्तों को सुधारने में अपना ध्यान लगाया था.
भारत-विरोध
मुइज़्ज़ु के सहयोगियों का कहना है कि उनका
चुनाव देश को विदेशी दखलंदाजी से छुटकारा दिलाएगा. यामीन की तरह मुइज़्ज़ु चीन के
प्रति प्रेम को खुले रुप से जाहिर करते हैं. पिछले साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी
के एक प्रतिनिधि के साथ ऑनलाइन मीटिंग में उन्होंने कहा कि अगर पीपीएम सत्ता में
वापस आई तो, दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों का एक और
अध्याय लिखा जाएगा.
2013 से लेकर 2018 तक पूर्व राष्ट्रपति यामीन
के दौर में मालदीव में भारत-विरोधी ताकतों ने खुलकर खेला. उसी दौरान मालदीव चीनी
राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल हुआ.
इस परियोजना के तहत चीन और दुनिया के अन्य देशों के बीच सड़क, रेल और समुद्री संबंध स्थापित किया जाना है. शी चिनफिंग उसी दौरान
मालदीव भी आए थे.
सोलिह ने रोका
2018 में सोलिह ने यामीन को हराकर उस खेल को
रोका. मुइज़्ज़ु के सहयोगी यामीन फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में 11 साल के कैद
की सजा काट रहे हैं. उन्हें निरंकुश नेता भी कहा जाता है. सोलिह ने आरोप लगाया था
कि यामीन ने बुनियादी ढाँचे के लिए भारी कर्ज लेकर देश को चीनी कर्जों के दलदल में
फँसा दिया. पिछले पाँच साल से वहाँ भारत-समर्थक सरकार थी, पर अब चीन फिर से वहाँ
की राजनीति में अपने पैर जमाने का प्रयास कर रहा है. गत 9 सितंबर को मालदीव में
हुए राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत ज़रूरी वोट नहीं मिल सके.
अब आज वहाँ दूसरे दौर का चुनाव हो रहा है. पहले
चरण के दौरान सबसे ज़्यादा वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों-प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ
मालदीव (PPM) एवं पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) के बीच गठजोड़ से बने प्रोग्रेसिव अलायंस के मोहम्मद मुइज़्ज़ु और
मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के नेता एवं मौजूदा राष्ट्रपति
इब्राहिम सोलिह के बीच चुनाव होगा. चुनाव का नतीजा भारत और चीन से मालदीव के
रिश्तों को एक बार फिर परिभाषित करेगा. दोनों देशों में मालदीव पर अपने असर को
लेकर काफी होड़ रहती है.
निराश मतदाता
चुनाव के पहले दौर के नतीजों से कुछ महत्वपूर्ण
निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं. चुनाव के पहले दौरा में देश के 79 प्रतिशत मतदाताओं
ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जो मालदीव में 2008 में लोकतंत्र की स्थापना के
बाद सबसे कम है. 2008, 2013 और 2018 के पिछले चुनावों में
क्रमश: 86 प्रतिशत, 87 प्रतिशत और 89 प्रतिशत वोट डाले गए
थे. इससे एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जनता की दिलचस्पी चुनाव में कम हो रही
है.
राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में पहली बार आठ
उम्मीदवारों की भागीदारी देखी गई. ज्यादातर दल पुराने दलों के भीतर से निकले हैं. जम्हूरी
पार्टी (JP) से अलग होकर मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) बनी और MDP से अलग होकर डेमोक्रेट्स का गठन हुआ.
राजनीतिक दलों में बढ़ते इस विभाजन से मतदाताओं की निराशा और संशय बढ़ा है. राजनीतिक
बँटवारे ने मालदीव में स्विंग मतदाताओं यानी किसी भी पार्टी से असंबद्ध वोटरों
संख्या में बढ़ोतरी की है. देश में 2,82,395 मतदाता हैं जिनमें से 1,55,821
किसी-न-किसी पार्टी के साथ रजिस्टर्ड हैं जबकि बाकी 1,26,574 स्विंग वोटर्स हैं.
अस्थिरता की संभावना
इस तरह से धीरे-धीरे भविष्य में राजनीतिक
अस्थिरता का रास्ता तैयार हो रहा है. बढ़ता विभाजन और गुटबाज़ी मालदीव के आने वाले
चुनाव में एक महत्वपूर्ण रुझान है. वैसे प्रोग्रेसिव अलायंस और MDP अपने वैचारिक और ऐतिहासिक मतभेदों के बावजूद दूसरे उम्मीदवारों को
अपने साथ लाने की कोशिशों में जुटी हुई है.
चुनाव का दूसरा महत्वपूर्ण रुझान है नए
किंगमेकर के तौर पर डेमोक्रेट्स का उदय. राजनीतिक मुकाबले में बढ़ोतरी के साथ इस
चुनाव में आठ में से पाँच उम्मीदवार 3 प्रतिशत वोट पाने में भी नाकाम रहे. लेकिन डेमोक्रेट्स-एक
पार्टी जिसका गठन पूर्व राष्ट्रपति नशीद की अगुवाई में चुनाव से कुछ ही महीने पहले
हुआ था-न सिर्फ़ अपने रजिस्टर्ड सदस्यों की तुलना में तीन गुना से ज़्यादा
मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही, बल्कि दूसरी पार्टियों के चुनावी भविष्य को
भी नुकसान पहुंचाने में कामयाब रही. ये स्थिति तब है जब डेमोक्रेट्स के प्रमुख
नेता नशीद ये चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. 7 प्रतिशत वोट के साथ डेमोक्रेट्स कासिम की
जम्हूरी पार्टी को पीछे छोड़ते हुए नए किंगमेकर के तौर पर उभरी है.
डेमोक्रेट्स की भूमिका
डेमोक्रेट्स ने गठबंधन के लिए अपने विकल्प खुले
रखे हैं. शायद वह प्रोग्रेसिव अलायंस से संसदीय प्रणाली की तरफ बदलाव और भारत
विरोधी रवैये में कमी के वादे की उम्मीद का इंतज़ार कर रही है. वहीं MDP से डेमोक्रेट्स शायद इस बात का इंतज़ार कर रही है कि सोलिह मेल-मिलाप
की कोशिश करें और उसे ज़्यादा राजनीतिक लाभ एवं सत्ता में भागीदारी और संसदीय
प्रणाली की तरफ बदलाव का वादा करें.
पहले दौर के चुनाव से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष
यह भी है कि देश में एंटी-इनकंबैंसी ज़ोर पकड़ रही है. प्रोग्रेसिव अलायंस का ‘इंडिया
आउट अभियान’ सोशल मीडिया, मीडिया
संगठनों, राजनीतिक दलों और चीन के दुष्प्रचार का उदाहरण
है. एंटी-इनकंबैंसी का दूसरा स्तर राजनीतिक पार्टियों और विरोधियों के बीच है.
चुनाव के दौरान देखा गया है कि ज़्यादातर दल सरकार को घेरने के लिए आपस में तालमेल
और सहयोग करते हैं.
मौजूदा सरकार के मामले में उसके गठबंधन के
साझेदार- डेमोक्रेट्स, JP और MRM- अलग
हो गए और उन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. इन दलों ने प्रोग्रेसिव
अलायंस के साथ मिलकर सरकार की राजनीति और साझेदारी की आलोचना की. इन पार्टियों के
एकजुट होने से सरकार को नुकसान हुआ. विपक्ष की पार्टियां सरकार को सत्ता से बेदखल
करने के लिए कई महीनों से एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रही थीं.
उत्तेजक दुष्प्रचार
चुनाव का एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष है उत्तेजक
दुष्प्रचार. 2018 में यामीन के सत्ता से बेदखल होने के साथ हाल के वर्षों में
दुष्प्रचार की सीमा और इसके इकोसिस्टम में काफी बढ़ोतरी हुई है. प्रोग्रेसिव
अलायंस का ‘इंडिया आउट अभियान’ एक उदाहरण है. यह ऐसा रुझान है जो आने
वाले वर्षों में मालदीव की राजनीति के भविष्य को तय करता रहेगा.
मालदीव की विदेश नीति का राजनीतिकरण अब स्थायी
विषय बन गया है. राजनीतिक दलों ने विदेशी किरदारों के साथ सरकार के करीबी संबंधों
की आलोचना करके और सरकार पर भारत या चीन के हाथों संप्रभुता बेचने का आरोप लगाकर
राष्ट्रवादी भावनाओं का सहारा लिया है. इससे उन्हें अक्सर राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काने
और उनका चुनावी फायदा उठाने में मदद मिली है.
‘इंडिया आउट अभियान’
यह प्रवृत्ति 2008 में मालदीव के लोकतांत्रिक
बदलाव के समय से ही मौजूद रही है, ख़ास तौर पर चुनाव के दौरान, लेकिन समय-समय पर यह रुझान आता था और फिर गायब भी हो जाता था. पर पिछले
पांच वर्ष संकेत देते हैं कि विदेश नीति का राजनीतिकरण ऐसा रुझान हो गया है जो आगे
भी बना रहेगा. ‘इंडिया आउट अभियान’ की शुरुआत आधिकारिक तौर पर अक्टूबर
2020 में हुई थी यानी चुनाव के लगभग तीन साल पहले.
राष्ट्रपति चुनाव की रेस में हर उम्मीदवार ने
भारत और सोलिह की विदेश नीति की आलोचना करके दूसरे उम्मीदवार को पीछे छोड़ने की
कोशिश की है. भारत के लिए दोस्ताना राय रखने वाले डेमोक्रेट्स, अतीत में तटस्थ रहने वाली MNP एवं
JP और भारत विरोधी गुट जैसे कि उमर नसीर और
प्रोग्रेसिव अलायंस ने भारत पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता और मालदीव की संप्रभुता
से समझौता करने का आरोप लगाकर सरकार की आलोचना की है.
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