कांग्रेस के पास अब
कोई विकल्प नहीं है। राहुल गांधी की सफलता या विफलता भविष्य की बात है, पर उन्हें अध्यक्ष बनाने के
अलावा पार्टी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। सात साल से ज्यादा समय से पार्टी उनके
नाम की माला जप रही है। अब जितनी देरी होगी उतना ही पार्टी का नुकसान होगा। हाल के
चुनावों में असम और केरल हाथ से निकल जाने के बाद ‘डबल’ नेतृत्व से चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। सोनिया गांधी
अनिश्चित काल तक कमान नहीं सम्हाल पाएंगी। राहुल गांधी के पास पूरी कमान होनी ही चाहिए।
राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद अब प्रियंका गांधी को
लाने की माँग भी नहीं उठेगी। शक्ति के दो केन्द्रों का संशय नहीं होगा। कांग्रेस
अब ‘बाउंसबैक’ करे तो श्रेय राहुल को और
डूबी तो उनका ही नाम होगा। हालांकि कांग्रेस की परम्परा है कि विजय का श्रेय
नेतृत्व को मिलता है और पराजय की आँच उसपर पड़ने से रोकी जाती है। सन 2009 की जीत
का श्रेय मनमोहन सिंह के बजाय राहुल को दिया गया और 2014 की पराजय की जिम्मेदारी
सरकार पर डाली गई।