खाद्य सुरक्षा विधेयक सरकार के गले की हड्डी बन गया है। बजट
सत्र के दूसरे दौर में जब अश्विनी कुमार और पवन बंसल को हटाने का शोर हो रहा था, खाद्य
सुरक्षा विधेयक पेश होने की खबरें सुनाई पड़ीं। ऐसा नहीं हो पाया। इसके बाद सुनाई पड़ा
कि सरकार अध्यादेश लाएगी, पर वैसा भी सम्भव नजर नहीं आता। सच यह है कि इतने लम्बे अरसे
से इस कानून को बनाने की चर्चा के बावज़ूद इसके प्रावधानों को लेकर आम सहमति नहीं है।
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की असहमतियों की बात अलग है, सरकार के भीतर असहमति है। सरकार
ने विधेयक का जो रूप तैयार किया है उससे खाद्य मंत्री केवी थॉमस तक सहमत नहीं हैं।
कृषि मंत्री शरद पवार इसके पक्ष में नहीं हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इसे चाहती
हैं, पर सरकार अनमनी है।
जिस रोज़ माओवादी हमले में विद्या चरण शुक्ल के क्लिक करेंघायल होने की ख़बर मिली, काफी लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, कौन से वीसी शुक्ल इमरजेंसी वाले. वीसी शुक्ल पर इमरजेंसी का जो दाग लगा वह कभी मिट नहीं सका.
विद्याचरण शुक्ल मध्यप्रदेश के ताकतवर राजनेताओं में गिने जाते थे. उनके परिवार की ताकत और सम्मान का लाभ उन्हें मिला, पर उन्हें जिस बात के लिए याद रखा जाएगा वो ये कि वो ज्यादातर सत्ता के साथ रहे. ख़ासतौर से जीतने वाले के साथ.
इमरजेंसी के बाद शाह आयोग की सुनवाई के दौरान चार नाम सबसे ज्यादा ख़बरों में थे. इंदिरा गांधी, संजय गांधी, वीसी शुक्ल और बंसी लाल. इमरजेंसी के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा और सज़ा भी मिली, पर इमरजेंसी ने ही उन्हें बड़े कद का राजनेता बनाया.
क्लिक करेंवीसी शुक्ल का राजनीतिक जीवन शानदार रहा. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि शानदार थी. वे देश के सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक थे. 28 साल की उम्र में वे लोकसभा के सदस्य बने, राजसी ठाठ से जुड़े 'विलासों' के प्रेमी.