Wednesday, May 12, 2021

यरूशलम में क्या हो रहा है?



इसराइल और फ़लस्तीनी अरबों के बीच पिछले शुक्रवार से भड़का संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले सोमवार को इसराइली सेना ने अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश किया। इसके जवाब में हमस ने इसराइल पर दर्जनों रॉकेटों को छोड़ा। बीबीसी के अनुसार संघर्ष की ताज़ा घटना में फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमस ने कहा है कि उन्होंने इसराइल के शहर तेल अवीव पर 130 मिसाइलें दागी हैं। उन्होंने यह हमला गज़ा पट्टी में एक इमारत पर इसराइल के हवाई हमले का जवाब देने के लिए किया। भारत में इसराइल के राजदूत ने बताया है कि हमस के हमले में एक भारतीय महिला की भी मौत हो गई है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इसराइल ने गज़ा पट्टी में 13-मंज़िला एक अपार्टमेंट पर हमला किया। उन्होंने इससे डेढ़ घंटे पहले चेतावनी दी थी और लोगों को घरों से बाहर निकल जाने के लिए कहा था। इसराइली सेना का कहना है कि वे अपने इलाक़ों में रॉकेट हमलों के जवाब में गज़ा में चरमपंथियों को निशाना बना रहा है। 2017 के बाद से पश्चिम एशिया में दोनों पक्षों के बीच भड़की सबसे गंभीर हिंसा में अब तक कम-से-कम 31 लोगों की जान जा चुकी है। सैकड़ों लोग घायल हैं। इसराइली क्षेत्र में तीन लोगों की मौत हुई है. वहीं इसराइली हमले में अब तक कम-से-कम 28 फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं।

क्या है इसकी पृष्ठभूमि?

बीबीसी हिंदी की वैबसाइट में इस हमले की जो पृष्ठभूमि दी गई है, वह संक्षेप में इस प्रकार है: यह 100 साल से भी ज्यादा पुराना मुद्दा है। पहले विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद पश्चिम एशिया में फ़लस्तीन के नाम से पहचाने जाने वाले हिस्से को ब्रिटेन ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। इस ज़मीन पर अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब बसे हुए थे। दोनों के बीच तनाव तब शुरू हुआ जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को यहूदी लोगों के लिए फ़लस्तीन को एक 'राष्ट्रीय घर' के तौर पर स्थापित करने का काम सौंपा।

यहूदियों के लिए यह उनके पूर्वजों का घर है जबकि फ़लस्तीनी अरब भी इस पर दावा करते रहे हैं और इस क़दम का विरोध किया था। 1920 से 1940 के बीच यूरोप में उत्पीड़न और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान होलोकॉस्ट से बचकर भारी संख्या में यहूदी एक मातृभूमि की चाह में यहाँ पर पहुँचे थे। इसी दौरान अरबों और यहूदियों और ब्रिटिश शासन के बीच हिंसा भी शुरू हुई। 1947 में संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन को यहूदियों और अरबों के अलग-अलग राष्ट्र में बाँटने को लेकर मतदान हुआ और यरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया। इस योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार किया जबकि अरब पक्ष ने इसको ख़ारिज कर दिया और यह कभी लागू नहीं हो पाया।

पहला युद्ध

1948 में समस्या सुलझाने में असफल होकर ब्रिटिश शासक चले गए और यहूदी नेताओं ने इसराइल राष्ट्र के निर्माण की घोषणा कर दी। कई फ़लस्तीनियों ने इस पर आपत्ति जताई और युद्ध शुरू हो गया। अरब देशों के सुरक्षाबलों ने उस नव-सृजित इसराइल पर धावा बोल दिया। जब संघर्ष विराम लागू हुआ, तब तक इसराइल अधिकतर क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले चुका था। जॉर्डन के क़ब्ज़े वाली ज़मीन को वेस्ट बैंक (यर्दन नदी का पश्चिमी किनारा) और मिस्र के क़ब्ज़े वाली जगह को गज़ा के नाम से जाना गया। यरूशलम को पश्चिम में इसराइली सुरक्षाबलों और पूर्व को जॉर्डन के सुरक्षाबलों के बीच बाँट दिया गया। इसको लेकर कोई शांति समझौता नहीं था तो आने वाले दशकों में इस पर और युद्ध और लड़ाइयाँ लड़ी गईं।

इसके बाद 1967 में अगला युद्ध लड़ा गया, जिसमें इसराइल ने पूर्वी यरूशलम और वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़ा कर लिया। सिर्फ़ यही नहीं इसराइल ने सीरिया के गोलान हाइट्स, गज़ा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के अधिकतर हिस्सों पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया। इसराइल का अब भी वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़ा है और गज़ा से वह पीछे हट चुका है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र मानता है कि यह उसके क़ब्ज़े वाले क्षेत्र का हिस्सा है। इसराइल दावा करता है कि पूरा यरूशलम उसकी राजधानी है जबकि फ़लस्तीनी पूर्वी यरूशलम को भविष्य के फ़लस्तीनी राष्ट्र की राजधानी मानते हैं। अमेरिका उन चंद देशों में से एक है जो पूरे शहर पर इसराइल के दावे को मानता है।

संरा का प्रस्ताव

सन 1947 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के अनुसार यरूशलम को स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय नगर बनना था। पर इसराइल ने 1948 में हुए पहले युद्ध में शहर के पश्चिमी हिस्से पर कब्जा कर लिया। पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के अधीन रहा। इसी में हरम-अस-शरीफ स्थित है, जिसमें अल-अक़्सा मस्जिद भी है। यहीं पर डोम ऑफ द रॉक (कुब्बत अल-सख़रा) है। इसी परिसर में यहूदियों का टेम्पल माउंट स्थित है।

सन 1967 के युद्ध में इसराइल ने पूर्वी यरूशलम पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने अपनी बस्तियाँ पूर्वी यरूशलम में बसा दीं। अब यहाँ करीब सवा दो लाख यहूदी रहते हैं। पूर्वी यरूशलम में जन्मे यहूदियों को इसराइली नागरिक माना जाता है और फ़लस्तीनियों को कुछ शर्तों के साथ निवास की अनुमति दी जाती है। अलबत्ता वे इसराइली नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। छोटी सी संख्या में वे नागरिक हैं भी।  

गज़ा पर इस समय हमस का नियंत्रण है और उसने इसराइल से कई बार लड़ाई लड़ी है। इसराइल और मिस्र गज़ा की सीमा का कड़ाई से नियंत्रण करते हैं ताकि हमस तक हथियार न पहुँचें। गज़ा और वेस्ट बैंक में रहने वाले फ़लस्तीनियों का कहना है कि वे इसराइली कार्रवाइयों और पाबंदियों से पीड़ित हैं। वहीं, इसराइल कहता है कि वह फ़लस्तीनियों की हिंसा से ख़ुद को बचा रहा है। इस साल मुसलमानों के पवित्र महीने रमज़ान में यानी अप्रैल के मध्य से परिस्थितियाँ तेज़ी से बदलनी शुरू हुईं और 7 मई जिस दिन रमज़ान महीने का आख़िरी शुक्रवार था, उस रात को पुलिस और फ़लस्तीनियों के बीच झड़पें हुईं।

क्या हैं मुख्य समस्याएँ?

ऐसे कई मुद्दे हैं जिस पर इसराइली और फ़लस्तीनियों के बीच सहमति नहीं है। जैसे कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों के साथ क्या होना चाहिए, क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों का क्या किया जाएगा, वे हटाई जाएँगी या नहीं। यरूशलम को दोनों पक्ष कैसे बाँटेंगे और इसके साथ ही सबसे मुश्किल समस्या यह है कि फ़लस्तीनी राष्ट्र इसराइल के साथ बनाया जाएगा या कहीं और। इसराइल पूरे यरूशलम को अपना मानता है, जबकि फ़लस्तीनी मानते हैं कि पूर्वी यरूशलम में उनकी राजधानी बनेगी। ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब तलाश पाना बहुत मुश्किल है।

डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति थे तब अमेरिका ने एक शांति समझौता तैयार किया था और ट्रंप ने इसराइल प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ इसे 'सदी का सौदा' बताया था। फ़लस्तीनियों ने इसे एकतरफ़ा कहकर ख़ारिज कर दिया था और यह कभी ज़मीन पर नहीं उतर पाया। भविष्य में किसी भी शांति समझौते के लिए दोनों पक्षों को कई जटिल मुद्दों पर सहमत होना होगा।

 

 

1 comment:

  1. इसराइल,प.एशिया फलस्तीन पर आपका लेख पढा अच्छा है विश्व समुदाय को यह समस्या हल करना ही चाहिये

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