Sunday, January 13, 2019

गठबंधन राजनीति के नए दौर का आग़ाज़


उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा के गठबंधन की घोषणा के साथ सन 2019 की महागठबंधन राजनीति ने एक बड़ा मोड़ ले लिया है। इस सिलसिले में लखनऊ में हुए संवाददाता सम्मेलन की दो-तीन बातें गौर करने लायक हैं, जो गठबंधन राजनीति को लेकर कुछ बुनियादी सवाल खड़े करती हैं। इस संवाददाता सम्मेलन में मायावती ने कहा कि बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस भी तमाम खराबियों के लिए जिम्मेदार है। दूसरे यह कि जरूरत पड़ी तो अखिलेश यादव प्रधानमंत्री पद पर मायावती का समर्थन करेंगे। तीसरे इस गठबंधन में हालांकि कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ी गईं हैं, पर शेष दो सीटों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि वे किसे दी जाएंगी। एक अनुमान है कि राष्ट्रीय लोकदल को ये सीटें दी जा सकती हैं, पर क्या वह इतनी सीटों से संतुष्ट होगा?

अगले लोकसभा चुनाव में यूपी, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण के पाँचों राज्यों में गठबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ज्यादातर राज्यों में तस्वीर अभी तक साफ नहीं है। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जहाँ गठबंधन की योजना सामने आई है। देखना यह है कि यह गठबंधन क्या के चंद्रशेखर राव द्वारा प्रस्तावित फेडरल फ्रंट का हिस्सा बनेगा, जिसे ममता बनर्जी और नवीन पटनायक का समर्थन हासिल है। सीटों की संख्या के लिहाज से यूपी में सबसे बड़ा मुकाबला है। केसीआर ने हाल में अपने फेडरल फ्रंट के सिलसिले में नवीन पटनायक और ममता बनर्जी से मुलाकात की थी। उसके बाद दिल्ली में उन्होंने अखिलेश यादव और मायावती से मुलाकात की योजना बनाई थी, पर उनकी मुलाकात हो नहीं पाई। अब सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि आने वाले दिनों में उनकी मुलाकात हो सकती है। खबरें हैं कि अखिलेश यादव जल्द ही हैदराबाद जाने वाले हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में इस फेडरल गठबंधन के किसी घटक का असर नहीं है। पर यदि सपा-बसपा उसके घटक बने तो त्रिशंकु संसद बनने पर यह फ्रंट प्रभावशाली हो जाएगा। यदि परिणाम इनकी आशा के अनुकूल आए तो 2019 के चुनाव में एनडीए के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा मोर्चा होगा। यूपीए से बड़ा।

मायावती ने शनिवार को लखनऊ में हुए संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हमारा गठबंधन लोकसभा चुनाव के बाद भी चलेगा। क्या भविष्य में दोनों दल उत्तर प्रदेश में साझा सरकार बनाने के बारे में सोच रहे हैं? कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते कैसे होंगे? गत 4 जनवरी को दिल्ली में इस गठबंधन की रूपरेखा तय हो गई थी। इसमें अपनी अनदेखी को लेकर इस संवाददाता सम्मेलन के एक दिन पहले कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि बसपा-सपा गठबंधन भारी गलती कर रहा है। उत्तर प्रदेश में हमारी उपस्थिति और ताकत को कम न मानकर चलें। कांग्रेस का ध्यान अब उत्तर प्रदेश पर गया है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी 22 जनवरी को अमेठी आ रहे हैं। फरवरी में उत्तर प्रदेश के कई शहरों में वे सभाओं को सम्बोधित करेंगे। हाल में राहुल गांधी ने गल्फ न्यूज के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि हम अभी सबको हैरत में डालेंगे। हमारी अनदेखी करना गलती होगी। यूपी में कांग्रेस के साथ रालोद, पीस पार्टी और महान दल का गठबंधन भी रहा है। अभी रालोद की स्थिति स्पष्ट नहीं है।

इस संवाददाता सम्मेलन के पहले अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कन्नौज में हुए एक ट्विटर सम्मेलन में कहा था कि सपा और बसपा मिलकर लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराएंगे। हमने कई बार कहा कि समाजवादियों के पास काम भी है, उपलब्धियाँ भी हैं, लेकिन हम पे ‘ग्लू’ (गोंद) नहीं है चिपकाने का कुछ...आखिरकार वह ग्लू ढूँढ लिया हमने, जिसका संकोच करते थे। भाजपा से गठबंधन की राजनीति सीख ली और अपनी गिनती सुधार ली है। हमें भी वह ‘ग्लू’ (गोंद) मिल गया है जिससे भाजपा को हराया जा सकता है। हमारा गणित सटीक बैठेगा और भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ेगा।

दूसरी तरफ दिल्ली के रामलीला मैदान में भाजपा का दो दिन का अधिवेशन शुक्रवार और शनिवार को चला। इस सम्मेलन में अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा, 2019 में पानीपत का तीसरा युद्ध है। इसका सदियों तक असर होने वाला है। इसे जीतना बहुत अहम है। इन चुनावों के बाद हमारी पार्टी का झंडा दक्षिण में भी केरल तक लहराएगा। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों ने कहा, एक दूसरे का मुँह न देखने वाले आज हार के डर से एक साथ आ गए हैं। वे जानते हैं कि अकेले मोदी को हराना मुमकिन नहीं है। भाजपा को यूपी में पिछली बार 73 मिली थीं। इसबार वह 72 सीटें नहीं लाएगी, 74 हो सकती हैं।

गठबंधन राजनीति अचानक करवटें लेने लगी है। एनडीए और यूपीए के राष्ट्रीय गठबंधनों के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर अलग गठबंधन बनने नजर आने लगे हैं। साथ ही इन दोनों के समांतर तीसरे फेडरल फ्रंट की सम्भावनाएं भी बढ़ गईं हैं। खासतौर से यूपी के इस गठबंधन के बाद। केसीआर का कहना है कि हम जिस फ्रंट की परिकल्पना कर रहे हैं, उसमें कोई ऐसा दल नहीं है, जो सब पर हावी हो। उसमें सभी बराबर कद-काठी के होंगे। केसीआर और नवीन पटनायक उस फ्रंट में शामिल नहीं होगे, जिसमें कांग्रेस होगी। अब 19 जनवरी को कोलकाता में होने वाली बीजेपी-विरोधी रैली में पता लगेगा कि उसमें कौन से दलों की दिलचस्पी है।

एनडीए के नजरिए से इस साल तेदेपा ने उसका साथ छोड़ा है। हाल में बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को अलग होना पड़ा। दूसरी तरफ बिहार में जेडीयू की एनडीए में वापसी हुई है, जिसके कारण गणित बदला है। उत्तर प्रदेश में अपना दल के नेतृत्व ने भी शिकायत की है, पर उसे ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया। राज्य में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी बीजेपी के साथ है। बसपा-सपा गठबंधन बन जाने के बाद अब भाजपा के गठबंधनों की स्थिति भी स्पष्ट होगी। महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ उसके गठबंधन को लेकर कयास चल ही रहे हैं। शिवसेना के सामने धर्मसंकट है। तमाम गर्जन-तर्जन के बावजूद बीजेपी का साथ छोड़ना उसके लिए भारी पड़ेगा। उसे ममता बनर्जी का समर्थन भी मिल रहा है, पर शिवसेना और ममता का साथ सम्भव नहीं। ममता को शिवसेना का वोटर स्वीकार नहीं करेगा। बहरहाल चक्का अब तेजी से चलने लगा है। हो सकता है ब्रेक के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदला हुआ मिले।
हरिभूमि में प्रकाशित


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