Wednesday, July 29, 2015

कैसा होगा टेक्नोट्रॉनिक दौर का युद्ध?

युद्ध की अनुपस्थिति माने शांति. दुनिया में पहले शांति आई या युद्ध? पहले शांति थी और बाद में युद्ध शुरू हुए तो क्यों? युद्ध क्यों होते हैं? क्या हथियारों और सेना की वजह से लड़ाइयाँ होती हैं? इन्हें खत्म कर दिया जाए तो क्या अमन-चैन कायम हो जाएगा? ऐसा नहीं है. जब से दुनिया बनी है इंसान युद्ध कर रहा है. उसे अपनी खुशहाली के लिए भी युद्ध करना पड़ता है, शांति के लिए भी.

लड़ाई की विनाशकारी प्रवृत्तियों के बावजूद तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा. अमेरिकी लेखक पीटर सिंगर और ऑगस्ट के ताजा नॉवेल ‘द गोस्ट फ्लीट’ का विषय तीसरा विश्व-युद्ध है, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस की हिस्सेदारी होगी. उपन्यास के कथाक्रम से ज्यादा रोचक है उस तकनीक का वर्णन जो इस युद्ध में काम आई. यह उपन्यास भविष्य के युद्ध की झलक दिखाता है. आने वाले वक्त की लड़ाई में शामिल सारे योद्धा परम्परागत फौजियों जैसे वर्दीधारी नहीं होंगे. काफी लोग कम्प्यूटर कंसोल के पीछे बैठकर काम करेंगे. काफी लोग नागरिकों के भेस में होंगे, पर छापामार सैनिकों की तरह महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करके नागरिकों के बीच मिल जाएंगे. काफी लोग ऐसे होंगे जो अराजकता का फायदा उठाकर अपने हितों को पूरा करेंगे.

यह उपन्यास आने वाले दौर के युद्ध के सामाजिक-आर्थिक और तकनीकी पहलुओं को उजागर करता है. इस उपन्यास में लेखक बताते हैं कि अमेरिका, रूस और चीन की यह लड़ाई प्रशांत महासागर में नहीं लड़ी जाएगी, बल्कि दो उन ठिकानों पर लड़ी जाएगी, जहाँ आज तक कभी लड़ाई नहीं हुई. ये जगहें हैं स्पेस और सायबर स्पेस. उपन्यास में युद्ध की शुरूआत मैरियाना ट्रेंच के पास चीन को गैस का विशाल भंडार मिलने के बाद होती है. इस लड़ाई में अमेरिकी नौसेना रेलगंस का इस्तेमाल करती है. उसके सैनिकों को सिंथेटिक ‘स्टिम्स’ दिए जाते हैं, जिनके कारण वे ज्यादा चौकस, चौकन्ने होते हैं. आकाश पर कम्प्यूटर नियंत्रित ड्रोन उड़ते हैं. सभी पक्षों के सैनिक ‘विज़ चश्मे’ पहनते हैं जिनमें गूगल ग्लास जैसे कैमरे लगे हैं.

परम्परागत सेना का दौर खत्म होगा

हालांकि ‘द गोस्ट फ्लीट’ में काफी बड़ी लड़ाई परम्परागत जमीन, सागर और आसमान में लड़ी गई है, पर स्पेस और सायबर स्पेस तक इसका विस्तार होने से नए आयाम नजर आए हैं. कहना मुश्किल है कि आने वाले समय में परम्परागत तरीकों से सैनिकों की टुकड़ियाँ देश की सीमा पार करके दूसरे देश की सीमा में घुसेंगी. आने वाले युद्ध शायद देशों के बीच हों भी नहीं. आतंकवादी गिरोहों, समुद्री डाकुओं, माफिया और संगठित गिरोहों और आर्थिक अपराधियों के बीच हों. हो सकता है राष्ट्रीय सेनाओं का इनसे मुकाबला हो या ये आपस में लड़ें.

अभी विश्व समुदाय का इतना एकीकरण नहीं हुआ है कि राष्ट्रीय टकराव खत्म हो जाए, पर युद्ध में शामिल होने के इच्छुक नए लड़ाके जरूर सामने आए हैं. ये आमने-सामने की बड़ी लड़ाई लड़ने के बजाय अचानक किसी खास इलाके में हमला करके भागने वाले और खासतौर से नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाले लोग होंगे. एक हद तक सीमा-विवादों के कारण राष्ट्रीय टकरावों का खतरा भी बना ही रहेगा, पर उन्हें टालने का मिकैनिज्म भी विकसित होता जाएगा.

हम पायलट रहित ड्रोन विमानों को युद्ध क्षेत्र में उतरते देख ही रहे हैं. भविष्य में विमानों के बीच डॉगफाइट की अवधारणा खत्म हो जाएगी. दूर बैठे पायलट विमानों का संचालन करेंगे और दूर तक नजर रखने वाले रेडारों की मदद से बियांड विजुअल रेंज मिसाइलों का इस्तेमाल करेंगे. गोला-बारूद की जगह लेजर और इलेक्ट्रो मैग्नेटिक पल्स का इस्तेमाल बढ़ेगा. इसी तरह हाथ में बंदूक थामे वर्दीधारी सैनिकों की जगह धीरे-धीरे मशीनी मानव या रोबोट ले लेंगे, जो पूरी तरह अपने कमांडर से निरंतर निर्देश लेते होंगे और जिनके माथे, सीने और पीठ पर लगे कैमरे मुख्यालय को युद्ध क्षेत्र के लाइव चित्र दिखाते रहेंगे. इस दौरान सेना का जो मानवीय तत्व है उसका रोबोटीकरण बढ़ेगा. उसकी वर्दी और उपकरणों का कम्प्यूटरीकरण बढ़ता जाएगा.

नए सैनिक सायबर मिलीशिया


‘द गोस्ट फ्लीट’ में चीन के कम्प्यूटर हैकर अपनी सेनाओं को रास्ता दिखाते हैं. वे अमेरिका के सैनिक और नागरिक प्रतिष्ठानों के नेटवर्क में ‘मैलवेयर’ डाल देते हैं. ये प्रोग्राम मोबाइल डिवाइसों और कम्प्यूटर नेटवर्कों में छिपकर बैठ जाते हैं और अमेरिका के सैनिक मुख्यालय पैंटागन का थ्री-डी मैप तैयार कर देते हैं. वे अमेरिकी ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) को अस्त-व्यस्त कर देते हैं जिनके सहारे अमेरिकी शस्त्र प्रणाली काम करती है. चीनी हैकरों में सबसे तेज है एक किशोरी जो एक इंजीनियरी कॉलेज से आई है और जो चीन की सायबर मिलीशिया यूनिट की सदस्य है.

चीन और एस्तोनिया में ऐसे सायबर मिलीशिया हैं जो सेना में शामिल हुए बगैर जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय हित के नाम पर अपना योगदान करते हैं. अमेरिका भी सैनिक काम के लिए ऐसे सिविल एक्सपर्टों को भरती करने का विचार करने लगता है. ये एक्सपर्ट हालांकि कम्प्यूटरों पर काम करेंगे, पर उनके काम का परिणाम युद्ध क्षेत्र में भयावह विध्वंसक होगा. अमेरिकी मैरीन कोर की एक लड़की इसी किस्म की एक छापामार सायबर सैनिक बनती है. अमेरिकी सैनिक भी ‘हिट एंड रन’ की रणनीति पर काम करते हैं.

इस युद्ध में भाड़े के सैनिक या मर्सिनरीज़ भी हैं, जिन्हें फ्रीलांसर कहा गया है. अमेरिका ने प्राइवेट मिलिट्री कांट्रैक्टर्स की एक नई अवधारणा तैयार की है. इसके दुष्परिणाम भी सामने आए हैं. इराक युद्ध में अमेरिका ने ऐसा प्रयोग किया था. ऐसी ही एक कम्पनी थी ब्लैकवॉटर. सन 2007 में  हुई 14 निहत्थे इराकियों की हत्या के आरोप में अप्रैल 2015 में ब्लैकवॉटर से जुड़े चार लोगों को लम्बी सजाएं दी गईं हैं.

और अदृश्य हथियार

भविष्य में ऐसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाएगा जो अदृश्य हों, जिनका पता न लगाया जा सके और जो सैटेलाइट, कंप्यूटर, रेडार और विमानों सहित सब कुछ बंद कर सकते हों. भविष्य के ये हथियार हैं इलेक्ट्रो मैग्नेटिक हथियार. इनमें इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है. ये हथियार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जाम या पूरी तरह से तबाह कर सकते हैं.

अमेरिकी नेवल ऑपरेशंस के चीफ एडमिरल जॉनेथन ग्रीनर्ट का कहना है कि इलेक्ट्रो मैग्नेटिक हथियारों के साथ साइबर हथियारों को शामिल करके देखा जाना चाहिए. इसे वे ‘इलेक्ट्रो मैग्नेटिक साइबर संसार’ कहते हैं. हाल में उन्होंने अपने एक लेख में लिखा है कि ईएम-साइबर विभाग ज़मीन, सागर और आकाश तथा अंतरिक्ष के बराबर या उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान साबित होगा.

सन 2010 में ‘स्टक्सनेट’ के बारे में दुनिया को जानकारी मिली. यह कंप्यूटर वायरस है जो किसी औद्योगिक प्रणाली को पूरी तरह ठप कर सकता है. कहा जाता है कि अमेरिका ने ईरान के यूरेनियम परिष्करण ठिकानों में इस वायरस की घुसपैठ करा दी थी. धीरे-धीरे दुनिया डिजिटल तकनीक पर जा रही है. सारे औद्योगिक और व्यापारिक काम-काज इस तकनीक के हवाले होने वाले हैं. इसलिए इनपर हमला करके किसी भी व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाई जा सकती हैं. ऐसे हथियार बनेंगे तो उनसे सुरक्षा के इंतजाम भी बनेंगे. साइबर वॉर की पूरी परिकल्पना सामने आएगी.

इलेक्ट्रो मैग्नेटिक हथियार

इसी तरह दुश्मन के क्षेत्र में काफ़ी ऊंचाई पर नाभिकीय विस्फोट करके इलेक्ट्रो मैग्नेटिक पल्स या ईएमपी तैयार किया जा सकता है, जो बिजली और संचार नेटवर्क को तबाह कर सकता है. हालांकि यह विचार अभी सिद्धांत के स्तर पर ही है, पर दुनिया ने इनकी काट के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. अमेरिकी सेना ने इलेक्ट्रो मैग्नेटिक हथियारों के विस्तार के लिए एक गेम डिज़ाइन किया है जिसे मैसिव मल्टीलेयर ऑनलाइन वॉरगेम लीवरेजिंग इंटरनेट (एमएमओडब्ल्यूजीएलआई) कहा जाता है. यह इंटरनेट पर कई खिलाड़ियों द्वारा खेले जाने वाला एक वॉरगेम है. इसे अमेरिकी नौसेना के तीन अंग- नौसेना युद्धकला विकास कमांड, नौसेना शोध कार्यालय और नौसेना स्नातकोत्तर विद्यालय मिलकर चलाते हैं.

इस खेल के माध्यम से खिलाड़ियों से सुझाव मांगे जाते हैं कि नौसेना ऐसे हथियारों का मुकाबला कैसे करे, जो अदृश्य हों और जो सैटेलाइट, रेडार, कंप्यूटर, जहाज़ को निष्क्रिय कर दें. ऐसे हथियार सैद्धांतिक रूप से, वाहनों को जाम करेंगे, हथियारों को निष्क्रिय कर देंगे. अमेरिकी सेना ने एक ‘रेडियो-फ्रीक्वेंसी ह्वीकल स्टॉपर’ के विकास के लिए धन की व्यवस्था की है. यह सैटेलाइट डिश के साइज़ का एक हथियार है जिसे जीप के ऊपर लगाया जा सकता है. यह कुछ दूरी से दुश्मन के वाहन को बेकार कर देगा.

पिछले साल अक्टूबर में बोइंग ने काउंटर-इलेक्ट्रॉनिक्स हाई पावर्ड माइक्रोवेव एडवांस्ड मिसाइल प्रोजेक्ट (चैंप) के विकास की फुटेज दिखाई थी. यह एक क्रूज़ मिसाइल है जिसपर इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वॉरहैड लगा हुआ है. बोइंग ने इस प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से बात करने से मना कर दिया लेकिन फ़िल्म में दिखाया गया था कि मिसाइल डेस्कटॉप कंप्यूटरों को बेकार निष्क्रिय कर रही है. इसी तरह अमेरिकी कंपनी रेथिऑन ने इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वॉरहैड वाली मिसाइल के विकास पर काम किया है.

भविष्य का सैनिक


उपकरण : भविष्य के युद्ध नेटवर्क सेंट्रिक होंगे. यानी सैनिक पूरी तरह सायबर स्पेस से जुड़े होंगे. इसरायली रक्षा विभाग और अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशंस कमांड ने ‘टैक्टिकल असॉल्ट लाइट ऑपरेटर सूट’ (टैलोस) तैयार किए हैं. इनके साथ जुड़े हैं ‘कॉम्बैट गॉगल’ जो सैनिक पहनेंगे. सैनिक के सामने जो कुछ भी आएगा उसे ये गॉगल रिकॉर्ड करते जाएंगे. इनकी मदद से मार्फत दिशाज्ञान होगा, शत्रु पक्ष की खुफिया जानकारी होगी और लोकल भाषा का तुरत अनुवाद भी होता जाएगा.

सुरक्षा कवच : अभी वे ज्यादा से ज्यादा भारी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनते हैं. आयरनमैन जैसे भारी और दिक्कत-तलब. अगली पीढ़ी के एक्सोस्कैलेटन हल्के और परतदार होंगे, जैसे मछली की खाल होती है. अमेरिका के एमआईटी और इसरायल के टेक्नियन संस्थान ऐसा मैटीरियल तैयार कर रहे हैं जो सॉफ्ट हल्का और मजबूत होगा. सीने और पीठ पर यह ज्यादा मोटा और जोड़ों पर महीन होगा.

अमेरिका की डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डारपा) भारत के डीआरडीओ जैसी संस्था है. उसने जो एक्सोस्कैलेटन तैयार किया है उसमें जोड़ों के पास खास तरह के स्प्रिंग लगाए गए हैं, जिनसे दौड़ने-भागने में मदद मिले. इन्हें वर्दी के नीचे भी पहना जा सकेगा. इनका परीक्षण चल रहा है. लक्ष्य यह है कि इन्हें पहनने के बाद भी सैनिक 4 मिनट में एक मील की दूरी तय कर सके.

टोही उपकरण : अमेरिका की सेना पीडी-100 ब्लैक हॉर्नेट नाम के एक पॉकेट ड्रोन का परीक्षण कर रही है. हमिंगबर्ड के साइज का यह तकरीबन एक किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है और यह फुल-मोशन वीडियो और चित्र भेज सकता है.

गोली-बारूद : सैनिकों की बंदूकों में ऐसी बुलेट लगेंगी जो रास्ते में दिशा बदल सकें. इनमें छोटे सेंसर लगे होंगे, जो निर्देश पाने पर अपना लक्ष्य बदल सकें या निशाने का पीछा कर सकें. इस साल फरवरी में डारपा ने .50 कैलिबर की स्मार्ट बुलेट पर परीक्षण किए हैं.

नई राइफ़ल : दुनियाभर में अभी सबसे लोकप्रिय राइफ़ल एके-47 है. ऐसी 10 करोड़ से ज्यादा राइफलें बनाई जा चुकी हैं. अब एके-12 नाम से राइफ़ल बनने जा रही है, जो भविष्य के युद्धों में काम आएगी. इसमें विशेष दूरबीन होगी, बैरल निकाल कर उसकी जगह दूसरा बैरल लगाया जा सकेगा, ग्रेनेड लांचर होगा और फोल्ड करके रखा जा सकेगा. यह एक मिनट में 1000 गोलियाँ दाग सकेगी.

हवाई युद्ध
अनमैन्ड डॉगफाइट : दुनिया के 80 से ज्यादा देश ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनकी अगली पीढ़ी तैयार हो रही है. ये ड्रोन जेट इंजन चालित होंगे और हवाई युद्ध में कुशल होंगे. अमेरिकी नौसेना के एक्स-472 बी ने विमानवाहक पोत पर उतर कर दिखा भी दिया है. यूके के बीएई सिस्टम्स का टैरेनिस स्टैल्थ विमान (रेडार की नजरों में न आने वाला) है. चीन भी कम से कम तीन ड्रोन कार्यक्रमों पर काम कर रहा है.

पाँचवीं पीढ़ी के विमान : स्टैल्थ डिजाइन, एडवांस एवियॉनिक्स और इंटीग्रेटेड कम्प्यूटिंग के साथ अमेरिकी एफ-35 पाँचवीं पीढ़ी का विमान है. चीन का जे-31 भी इससे मिलता-जुलता विमान है. कहा जाता है कि चीनी हैकरों ने इसका डिजाइन उड़ाया है. रूसी टी-50 पाक एफए भी ऐसा बी विमान है, जिसमें भारत भी सहयोगी है.

स्टैल्थ हंटर : चीन एक ऐसा ड्रोन विकसित कर रहा है जो एक साथ अलग-अलग किस्म के सात रेडार अपने साथ ले जा सकता है. इससे वह स्टैल्थ विमानों का पहचान करके उन्हें काफी दूरी से गिरा सकेगा.

स्पेस में


धरती के चारों और हर वक्त 1200 से ज्यादा सक्रिय उपग्रह चक्कर लगाते रहते हैं. इस साल मई में अमेरिका ने 5 अरब डॉलर के खर्च से एक विशेष अंतरिक्ष में ऑफेंसिव और डिफेंसिव शस्त्रास्त्र कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है. अमेरिका, रूस और चीन तीनों ने एंटी सैटेलाइट सिस्टम विकसित किए हैं. सन 2020 के आसपास तियानगोंग-3 स्पेस स्टेशन को स्थापित करने के बाद चीन अकेला ऐसा देश होगा, जिसका अपना स्पेस स्टेशन होगा.

और समुद्री युद्ध


स्टैल्थ और रेलगन
: सन 1945 के बाद से दुनिया के समुद्रों में कोई बड़ी लड़ाई नहीं हुई है, पर भविष्य में हो सकती है. अमेरिका, रूस, चीन, जापान और भारत की ज्यादातर तैयारियाँ समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित हैं. इसकी एक वजह यह है कि भविष्य का व्यापार समुद्री रास्तों से ही होगा. पानी के जहाज भी अब स्टैल्थ बनाए जा रहे हैं. पिछले आठ सौ साल से समुद्री जहाजों पर लगी तोपें बारूद का इस्तेमाल करती थीं. अब अमेरिकी नौसेना रेलगन का परीक्षण कर रही है. यह इलेक्ट्रो मैग्नेटिक गोला छोड़ेगी. यानी बिजली का गोला. पर इसके लिए पावर तैयार करने वाली विधि विकसित करनी होगी. तकरीबन 25 हजार मैगावॉट बिजली. यह तोप 100 किलोमीटर तक मार करेगी और इसके गोले बंदूक की गोली से दुगनी गति से चलेंगे. यह क्रूज मिसाइल के मुकाबले कहीं सस्ते होंगे. दूसरी बात जहाँ एक जहाज पर कुछ सौ क्रूज मिसाइल होते हैं रेलगन के हजारों गोले होंगे.

रोबोट का इस्तेमाल

भविष्य के युद्धों में फौजियों की जगह ज्यादा से ज्यादा रोबोटों का इस्तेमाल होगा. ड्रोन विमानों ने आसमान में जैसे जगह बनाई है वैसे ही सिपाहियों की जगह कल ये रोबोट लेंगे. खासतौर से जोखिम भरे काम करने के लिए रोबोटों का इस्तेमाल होगा.

प्रभात खबर नॉलेज में प्रकाशित

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