जम्मू-कश्मीर में गोलाबारी अब चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई
है. मंगलवार को पाकिस्तानी सेना ने लाउडस्पीकर पर घोषणा करके केरन सेक्टर के एक
आदर्श गाँव में कम्युनिटी हॉल का निर्माण रुकवा दिया. सन 2003 में दोनों देशों ने
नियंत्रण रेखा के आसपास के गाँवों में जीने का माहौल बनाने का समझौता किया था.
लगता है वह खत्म हो रहा है. पिछले दस महीनों से कड़वाहट बढ़ती जा रही है. जम्मू-कश्मीर
के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान लाइन ऑफ कंट्रोल पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करना
जारी रखता है तो केंद्र सरकार को अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए. विकल्प क्या
है? उधर नवाज शरीफ ने अमेरिका से हस्तक्षेप की
माँग करके घाव फिर से हरे कर दिए हैं. नवाज शरीफ रिश्तों को बेहतर बनाने की बात
करते हैं वहीं भारत को ‘सबसे तरज़ीही मुल्क’ का दर्ज़ा देने भर को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस मामले पर भारत
के चुनाव के बाद बात होगी. क्या मौज़ूदा तनाव का रिश्ता लोकसभा चुनाव से भी जुड़ा
है? क्या पाकिस्तान को लगता है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन
होने वाला है? सत्ता-परिवर्तन हो भी गया तो क्या भारतीय
विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा?
मंगलवार को गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अचानक जम्मू पहुँचे
और उन्होंने साम्बा इलाके की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात बीएसएफ के काम-काज का
मुआयना किया. गृहमंत्री का यह अचानक दौरा बताता है कोई गम्भीर बात है. एक अटकल यह
भी है कि केन्द्र सरकार चुनाव के मद्दे नज़र इसका भावनात्मक लाभ उठाना चाहती है. इस
बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि नवाज़ शरीफ जेहादी गुटों से टकराव मोल लेना
नहीं चाहते. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की पिछली सरकार ने और उसके पहले परवेज़
मुशर्रफ ने उनसे टकराव मोल लिया था. पीपीपी के प्रधानमंत्री युसुफ गिलानी को
अलोकतांत्रिक तरीके से पद से हटना पड़ा. और चुनाव लड़ने आए मुशर्रफ जेल में हैं.
एक अवधारणा है कि अगले साल अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के
हटने के बाद जेहादी गिरोहों की मनोकामना कश्मीर में फिर से खूनी खेल खेलने की है.
हाल में किश्तवाड़ में हुई हिंसा का संकेत है कि जम्मू के इस इलाके में उसी तरह जातीय
सफाए की योजना है जैसे श्रीनगर से पंडित भगाए गए थे. इसमें पाकिस्तानी जेहादियों का
हाथ है या यह भारतीय राजनीति की अटकलबाज़ी है या दोनों बातें हैं? बताते हैं कि नरेन्द्र मोदी के उदय के बाद से जम्मू में भाजपा
की लोकप्रियता बढ़ी है.
नवाज़ शरीफ पाकिस्तानी राजनीति में पहले बड़े नेता हैं
जिनकी व्यापारी पृष्ठभूमि है. पाकिस्तानी व्यापारी भारत से रिश्ते सुधारना चाहते
हैं. भारत-पाकिस्तान चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष एसएम मुनीर ने हाल
में कहा कि हाल में दोनों देशों के बीच राजनीतिक झटकों के बावजूद यह नहीं भूलना
चाहिए दोनों देशों की समृद्धि और शांति को बढ़ाने वाला रास्ता ही सफल होगा. हमें
फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड के इतिहास से सीख लेनी चाहिए, जो तकरीबन साठ साल पहले
तक आपस में लड़ते रहे, पर अब साथ-साथ हैं. सीमा पर टकराव के बावजूद दोनों देशों ने
व्यापारियों के कई शहरों में प्रवेश का और एक साल तक का वीज़ा देना शुरू किया है.
दोनों मुल्कों के सामने विकल्प हैं कि बेवकूफों की तरह लड़ें या मिलकर समृद्धि के
रास्ते खोजें.
गुरुदत्त की फिल्म ‘साहब
बीवी और गुलाम’ में हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने हवेली की
घड़ियों में चाभी भरने वाले घड़ीसाज़ की भूमिका अदा की थी. घड़ीसाज़ कहता था, वक्त
की आवाज़ सुन ये हवेलियाँ भी नहीं रहेंगी. पाकिस्तान में भारत-विरोध सबसे बड़ा ‘वोट बैंक’ है. हाल में ‘वॉर’ नाम से एक पाकिस्तानी फिल्म रिलीज़ हुई है जो सफलता के झंडे गाड़ रही है.
फिल्म में भारत को पाकिस्तानी तालिबान का आका बताया गया है. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस
पर कमाई के रिकार्ड तोड़ रही है. एक भारतीय महिला जासूस को इस्लामाबाद में एक
पुलिस अकादमी परिसर पर आतंकी हमले का जिम्मेदार दिखाया गया है. तालिबानी हिंसा से
पीड़ित पाकिस्तानी नागरिकों को यह समझाया गया है कि जेहादी मानसिकता नहीं भारत
दोषी है. इसके विपरीत भारत में एक कॉमेडी फिल्म ‘वॉर छोड़ न
यार’ सफल हो रही है. यह युद्ध मशीनरी की निरर्थकता को
रेखांकित करती है. पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसेन हक्कानी कहते हैं कि पूरा
पाकिस्तान जेहादी नहीं है. वहाँ भी एक नया मध्य वर्ग तैयार हो रहा है.
हाल में सानिया मिर्ज़ा ने भोपाल में कहा, भारत और
पाकिस्तान की संस्कृति,
आदतें और रहन-सहन एक जैसा है. जब सब कुछ एक जैसा है तो
रिश्तों में अंतर क्यों?
इस सवाल के जवाब में फेसबुक पर किसी ने अपनी व़ॉल पर लिखा, यह
बात अपनी ससुराल वालों से कह मायके वालों से नहीं. पर ऐसे कितने लोग हैं जो दोनों
तरफ की बातों को समझते हों? दोनों देशों के रिश्ते जलेबी जैसे हैं.
मीठे और पेचदार. इस इलाके की बदहाली की एक वजह गलाकाट दुश्मनी भी है, जिसने दक्षिण
एशिया को दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में शामिल कर रखा है. जनवरी में होने वाली
हॉकी इंडिया लीग में इस बार भी पाकिस्तानी खिलाड़ी भाग नहीं लेंगे. यही हाल
क्रिकेट में है.
इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में भारतीय सैनिकों की गर्दन
काटे जाने के बाद से लगातार ऐसी घटनाएं हो रहीं हैं. अज़मल कसाब और अफज़ल गुरु की
फाँसी और पाकिस्तानी जेल में सरबजीत सिंह की हत्या और उसके बाद जम्मू के कोट भलवाल
जेल में पाकिस्तानी कैदी सनाउल्लाह की हत्या का दोनों देशों पर असर अलग-अलग पड़ा.
पाकिस्तान में यह चुनाव का साल था. अगले साल भारत में भी लोकसभा के चुनाव हैं.
पाकिस्तान की राजनीति में कश्मीर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. और भारत के लिए
प्रतिष्ठा का प्रश्न.
नवाज़ शरीफ का कहना है, ''जुलाई 1999 में करगिल युद्ध के दौरान जब मैं अमेरिका गया तो मैंने तत्कालीन राष्ट्रपति
बिल क्लिंटन से कहा था कि आप हाथ डालें तो कश्मीर मुद्दा सुलझ सकता है. अगर आप पश्चिम
एशिया पर ख़र्च होने वाले अपने वक्त का 10 फ़ीसदी भी
कश्मीर पर लगाते तो मसला सुलझ जाता.'' शरीफ़ के बयान
के बाद सलमान खुर्शीद ने कहा कि भारत कभी मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा." पर अमेरिका
की भूमिका भी है. मध्यस्थ की नहीं तो मददगार की है. सच यह है कि पिछले दस साल में
कम से कम तीन मौके आए जब दोनों देश समझौते के करीब थे. समझौता तब तक नहीं होगा जब
तक दोनों देशों की जनता और राजनीति की स्वीकृति नहीं होगी. इसके लिए संवाद जरूरी
है. खेल-कूद, गीत-संगीत, मनोरंजन और संस्कृति के रिश्ते इसमें मददगार होंगे. बेशक
कुछ लोग ऐसे हैं जो रिश्तों की बेहतरी नहीं चाहते. पर उनके पास भी विकल्प नहीं हैं.
उनकी समझ को पराजित होना है. अभी हो या कुछ सौ साल बाद हो. दुनिया भर के रिश्तों
में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है. वक्त की आवाज़ सुनिए.
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