Monday, October 10, 2011

अन्ना की 'राजनीति' का फैसला वोटर करेगा, उसे फैसला करने दो





अन्ना हज़ारे के लिए बेहतर होगा कि वे अपने आंदोलन को किसी एक राजनीतिक दल के फायदे में जाने से बचाएं। पर इस बारे में क्या कभी किसी को संशय था कि उनका आंदोलन कांग्रेस विरोधी है? खासतौर से जून के आखिरी हफ्ते में जब यूपीए सरकार की ओर से कह दिया गया कि हम कैबिनेट में लोकपाल विधेयक कानून का अपना प्रारूप रखेंगे। सबको पता था कि इस प्रारूप में अन्ना आंदोलन की बुनियादी बातें शामिल नहीं होंगी। रामलीला मैदान में यह आंदोलन किस तरह चला, संसद में इसे लेकर किस प्रकार की बहस हुई और किसने इसे समर्थन दिया और किसने इसका विरोध किया, यह बताने की ज़रूरत नहीं। भाजपा ने इसका मुखर समर्थन किया और कांग्रेस ने दबी ज़ुबान में सीबीआई को इसके अधीन रखने, राज्यों के लिए भी कानून बनाने और सिटीज़ंस चार्टर पर सहमत होने की कोशिश करने का भरोसा दिलाया। भाजपा से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आंदोलन का समर्थन करने की घोषणा कर दी थी। फिर भी सितम्बर के पहले हफ्ते तक आधिकारिक रूप से यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं था। और आज भी नहीं है। पर परोक्षतः यह भाजपा के पक्ष में जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि आंदोलन वोटर के सामने सीधे यह सवाल रख रहा है। चुनाव लड़ने के बजाय इस तरीके से चुनाव में हिस्सा लेने में क्या हर्ज़ है? इसका नफा-नुकसान आंदोलन का नेतृत्व समझे।



सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयदशमी के अपने वार्षिक संबोधन में अन्ना आंदोलन के समर्थन की घोषणा करके कुछ नया नहीं किया है। रामलीला मैदान में आंदोलन के दौरान खान-पान तथा अन्य व्यवस्थाएं करने में संघ की भूमिका थी। पर इससे यह संघ का आंदोलन साबित नहीं होता। इधर अन्ना हजारे ने घोषणा की है कि यदि जन-लोकपाल बिल संसद के शीत सत्र में पास नहीं होगा तो पाँच राज्यों के आगामी चुनाव में हम कांग्रेस का विरोध करेंगे। इस जगह पर आकर लग सकता है कि यह आंदोलन राजनीति खेल रहा है, जो इसे नहीं करना चाहिए।

अन्ना के जंतर-मंतर कार्यक्रम के दौरान उमा भारती और ओमप्रकाश चौटाला को वापस लौटा दिया गया था। पर मंच पर लगे भारत माता के चित्र के कारण इस आंदोलन को संघ के साथ जोड़ लिया गया। रामलीला मैदान पर हुए उपवास में पृष्ठभूमि पर गांधी और अन्य राष्ट्रीय नेता आ गए। भारत माता की जय के साथ इंकलाब का नारा भी आ गया। इससे ऐसा महसूस हुआ कि यह आंदोलन खुद को संघ के साथ जोड़ना नहीं चाहता। मोहन भागवत के वक्तव्य के बाद भी इंडिया अगेंस्ट करप्शन की वैबसाइट पर यह स्पष्ट किया गया है कि इस आंदोलन को देश के बाएं-दाएं और सेंटर हर तरह की राजनीतिक विचारधाराओं का समर्थन प्राप्त है। पर संघ न तो इसके नेतृत्व में शामिल है और न आंदोलन को चलाने में। यह भी स्पष्ट किया गया है कि वह किसी प्रकार की साम्प्रदायिक धारणाओं का समर्थन नहीं करता।

पर पाँच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस का विरोध करने की घोषणा में क्या खराबी है? आंदोलन के अ-राजनीतिक होने के माने यह नहीं हैं कि यह किसी किस्म की राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा। पूरा आंदोलन राजनीतिक है, संसद में बहस राजनीतिक है और जन-लोकपाल विधेयक के निहितार्थ राजनीतिक हैं। जनता का वोट देना भी एक राजनीतिक कर्म है। किसी पार्टी को वोट देने का अर्थ यह नहीं होता कि वोटर सदा के लिए उसके साथ बँध गया। चुनाव में विरोध की धमकी देने का अर्थ है मर्मस्थल को छूना। राजनीतिक दलों के प्राण चुनाव में बसते हैं। क्यों माना जाए कि शीत सत्र में लोकपाल विधेयक पास नहीं होगा? अन्ना की धमकी तभी तो लागू होगी।

बेशक यह सरल मामला नहीं है। कांग्रेस के पास भी साफ बहुमत नहीं है। बिल पास करने के पहले एक प्रक्रिया पूरी करना ज़रूरी है। इन मज़बूरियों को मानते हुए कांग्रेस पर ज़रूरत से ज्यादा दबाव डालना अनुचित है। पर क्या कांग्रेस पूरे मन से इस बिल को पास करना चाहती है? कांग्रेस ही नहीं सत्ता की राजनीति से जुड़े सभी दल क्या इन बातों के साथ हैं? वास्तव में भ्रष्टाचार इस कानून के बन जाने के बाद खत्म नहीं हो जाएगा। कानूनों के डर से हम ईमानदार नहीं हैं। बल्कि तमाम कानूनों के बावजूद व्यवस्था में बेईमानी है, जो बढ़ती जा रही है। उसके लिए जिस सामाजिक आंदोलन की ज़रूरत है उसका दूर-दूर तक पता नहीं है। कानून तोड़ने वालों के मन में व्यवस्था का कोई खौफ नहीं है।

अन्ना के पीछे कोई राजनीतिक पार्टी या कोई सामाजिक-आर्थिक ताकत है या नहीं इसका पता कुछ समय बाद लगेगा, पर उनके समर्थकों का व्यापक आधार व्यवस्था को पटरी पर लाने की कामना करने वालों का है। कांग्रेस ने इसे समझने में शुरू से गलती की और अब भी वह इसे सत्ता की राजनीति के रूप में प्रचारित कर रही है। बेहतर होता कि वह पहल करती और इसे अपना आंदोलन बनाती। फिलहाल निष्कर्ष यह है कि इससे फायदा भाजपा को होगा। भाजपा को फायदा पहुँचाने की पहल क्या शुरू से ही कांग्रेस ने नहीं की? अन्ना इसमें किसी राजनीतिक दल का हित साधने की कोशिश करेंगे तो जनता उन्हें भी माफ नहीं करेगी।

भ्रष्टाचार का विरोध करते वक्त लक्ष्य कांग्रेस के भ्रष्टाचार का विरोध ही नहीं, भाजपा समेत किसी भी पार्टी के भ्रष्टाचार का विरोध होना चाहिए। भाजपा के कार्यकाल में भ्रष्टाचार नहीं होता, यह मानने की कोई वजह हमारे पास नहीं है। इसे याद रखना चाहिए कि येद्दीयुरप्पा के पराभव का आधार अन्ना की टीम के महत्वपूर्ण सदस्य संतोष हेगड़े ने तैयार किया था। और उसकी तार्किक परिणति येद्दीयुरप्पा ही नहीं, एचडी देवेगौड़ा के परिवार को भी लपेटने में निहित है। माइनिंग घोटालों में तमाम नाम सामने आने वाले हैं। आंध्र में जगनमोहन की सम्पदा का हिसाब लिया जाएगा तो उनके पिता का नाम भी आएगा। इसमें ‘पिक एंड चूज़’ नहीं चलेगा। आंदोलन को तार्किक परिणति तक पहुँचने दीजिए।

3 comments:

  1. अन्ना-आंदोलन भ्राष्टाचार विरोधी था या है ऐसा मानना सच्चाई से मुंह चुराना है। कांग्रेस और भाजपा मे गुप्त सम्झौता है -चांस -बाई-चांस । यही ड्रामा चल रहा है। अन्ना आंदोलन जनता को गुमराह करने और भ्रष्टाचार का संरक्षण करने हेतु कांग्रेस के मनमोहन गुट,संघ,भाजपा,भारतीय और अमेरिकी कारपोरेट घरानों के साथ-साथ अमेरिकी प्रशासन के सहयोग से चलाया गया है।

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  2. सर, गुड़ खाने वाले गुलगुलों से परहेज कर रहे हैं। संघ का समर्थन अन्ना जी के साथ तभी तक है, जब तक इसमें भाजपा का हित छुपा है। संघ का प्लान-ए तो रामदेव जी की महत्त्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया। प्लान-बी अभी तक सक्सेसफुल है। अन्ना जी की ओर से तो संघ निश्चिंत है मगर कल को केजरीवाल और किरणबेदी के मन में कोई राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा जागती है तो माहोल बदल सकता है। अगर ये भाजपा के साथ मिलकर खेलेंगे तो सब ठीक रहेगा नहीं तो वीपी सिंह जैसा हाल जानिए। जहां तक धरना-प्रदर्शनों से भ्रष्टाचार खत्म होने की बात तो वह अपने कह ही दिया है। कल तक जो वकील धरनों पर शहर के चोराहे पर बैठे थे आज अदालतों में वे वही सब कर रहे हैं...

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  3. Anonymous12:33 PM

    किसने इसका विरोध किया, यह बताने की ज़रूरत नहीं। भाजपा ने इसका मुखर समर्थन किया और कांग्रेस ने दबी ज़ुबान में सीबीआई को इसके अधीन रखने, राज्यों के लिए भी कानून बनाने और सिटीज़ंस चार्टर पर सहमत होने की कोशिश करने का भरोसा दिलाया।
    रामलीला मैदान पर हुए उपवास में पृष्ठभूमि पर गांधी और अन्य राष्ट्रीय नेता आ गए। भारत माता की जय के साथ इंकलाब का नारा भी आ गया। इससे ऐसा महसूस हुआ कि यह आंदोलन खुद को संघ के साथ जोड़ना नहीं चाहता। मोहन भागवत के वक्तव्य के बाद भी इंडिया अगेंस्ट करप्शन की वैबसाइट पर यह स्पष्ट किया गया है

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