Wednesday, February 23, 2011

लड़कियों की मदद करें



गिरिजेश कुमार ने इस बार लड़कियों के विकास और उनके सामने खड़ी समस्याओं को उठाया है। मेरे विचार से भारतीय समाज में सबसा बड़ा बदलाव स्रियों से जुड़ा है। यह अभी जारी । दो दशक पहले के और आज के दौर की तुलना करें तो आप काफी बड़ा बदलाव पाएंगे। लड़कियाँ जीवन के तकरीबन हर क्षेत्र में आगे आ रहीं हैं। शिक्षा और रोजगार में जैसे-जैसे इनकी भागीदारी बढ़ेगी वैसे-वैसे हमें बेहतर परिणाम मिलेंगे। बावजूद इसके पिछले नवम्बर में जारी यूएनडीपी की मानव विकास रपट के अनुसार महिलाओं के विकास के मामले में भारत की स्थित बांग्लादेश और पाकिस्तान से पीछे की है। हम अफ्रीका के देशों से भी पीछे हैं। इसका मतलब यह कि हम ग्रामीण भारत तक बदलाव नहीं पहुँचा पाए हैं। बदलाव के लिए हमें अपने सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक सोच में बदलाव भी करना होगा। 

आधुनिकता की इस दौड में कहाँ हैं लड़कियां?
गिरिजेश कुमार
आज के इस वैज्ञानिक युग में जहाँ हम खुद को चाँद पर देख रहे हैं वहीँ इस 21 वीं शताब्दी की कड़वी सच्चाई यह भी है कि हमारे  देश में  लडकियों के साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है | आखिर हम किस युग में जी रहे हैंआधुनिकता की चादर ओढ़े इस देश में आधुनिकता कम फूहड़ता ज्यादा दिखती है किस आधुनिकता  की दुहाई देते हैं हम जब देश की आधी आबादी इससे वंचित है?

परीक्षा में लड़कियों के सफल होने का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा है यह सुनकर अच्छा लगता है,यह जानकर तो और  भी अच्छा लगता है की पहले 10 स्थानों में ज्यादा संख्या लड़कियों की है लेकिन हम यह नहीं समझ पाते  कि यही लड़कियां आखिर जिंदगी की जंग में कहाँ पीछे रह जाती हैं? खुद को विकसित देश की श्रेणी में देखने वाला यह देश अपने खुद की इस मानसिकता को नहीं बदल पाया है जहाँ लडकियों को जुर्म की जंजीरों में कैद रखा जाता है यूँ तो हम 21 वीं शताब्दी में जी रहे हैं लेकिन लोगों की मानसिकता अभी भी मुगलकालीन विचारों पर आधारित है आम भारतीय परिवारों में ज्यादातर की सोच यह रहती है की लडकियां दूसरे के घर के लिए ही बनी है उनका काम पति,बच्चे और परिवार वालों की सेवा करना मात्र है | इस कहानी का सबसे दुखद पहलू यह है कि लड़कियों ने खुद को भी इसी मानसिकता में ढाल लिया है जिसका परिणाम हमारी आँखों के सामने है लडकियां खुद के अधिकार के लिए भी नहीं लड़ पाती और इस तथाकथित आधुनिक समाज का शिकार  बन जाती है |

मर्यादा,लज्जा और ना जाने कितने शब्द लड्कियों के लिए ही उपयोग किए जाते हैं | उसे समाज के द्वारा बनाये  गए नियमों की चक्की में पिसना पड़ता है| यह स्थिति किसी एक जगह की नही है देश के अधिकांश हिस्सों में इस विपरीत परिस्थितियों से उन्हें दो-चार होना पड़ता है | आश्चर्य की बात ये कि इस तथाकथित सभ्य समाज में अगर कोई लड़की हवस के दरिंदों की शिकार होती है तो लड़की को ही दोषी ठहराया जाता और उसके खिलाफ बदचलन, चरित्रहीन जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता है| जिससे आहत होकर लडकियां आत्महत्या तक करने को  मजबूर होती हैं |

दरअसल पश्चिमी सभ्यता, बाजारवाद और फैशन प्रतियोगिता जैसे आयोजनों ने भारत जैसे अविकसित देशों में, जहाँ लोगों को अपने आप को स्थापित करने के लिए जूझना पड़ता है, लड़कियों को पीछे धकेलने में आग में घी का काम किया है| पुरुषप्रधान मानसिकता की जद में यह समाज पहले से ही जकडा हुआ था इनके आने से भोगविलासिता की प्रवृत्ति में और भी बढोत्तरी हुई है और लडकियां सिर्फ़ उपभोग करने की वस्तु बन के रह गई है | ऐसे में सामाजिक समानता और लैंगिक भेदभाव का दावा खोखला साबित हो जाता है |
  
इसके लिए दोषी सिर्फ माँ बाप ही नहीं हैं,इसके लिए दोषी वह व्यवस्था है जिसने माँ बाप को भी इस ढंग से सोचने को मजबूर किया है ज़रूरत इस बात की  है कि हम अपनी मानसिकता बदलें ताकि समाज में लडकियां भी आगे बढ़ पाए जब कभी भी लड़कियों को ऐसा माहौल मिला उसने अपने आप को साबित किया तो क्या हम लड़कियों के लिए थोड़ी सी जगह नहीं दे सकते इस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है |   
गिरिजेश कुमार

5 comments:

  1. आपका हर शब्द विचारणीय है और अम्ल किये जाने की मांग करता है
    कुछ सरकारी अधिकारी जो सोर्स और फ़ोर्स से पद हथिया लेते हैं,मनोवृती से महिला विरोधी होते है ;महिलाओं को पिछड़ा बनाये रखने के हर जातां हर प्रकार करते रहते हैं.उन पर अंकुश लगाने की महती आवश्यकता है.तभी महिलाओं को वास्तविक बराबरी हासिल हो पायेगी.

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  2. From ancient history girls and women in our country are always neglected. Our constitution give equal rights to women. In my opinion until we will not make girls equal partner in ancestral property, their position can not be upgraded.Why only sons of a family get share in parents assets?
    Until women are not real partner in Property, Political system and professions, they will remain second grade citizen.

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  3. विजय जी बहुत बहुत शुक्रिया अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराने के लिए|
    dr. ravindra s mann ji,Definitely we should think. thank you for your comment.

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  4. सामाजिक सोच में आमूलचूल परिवर्तन की दरकार है...... कई तरह बातें हैं जो इस आलेख में वर्णित हैं निश्चित रूप से लड़कियों के विकास में बाधा बनती हैं .......... सार्थक पोस्ट

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  5. Anonymous6:39 PM

    Thanks for sharing your info. I truly appreciate your
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    thank you once again.
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