Tuesday, February 22, 2011

ऊपर से आने का, नीचे दबाने का...पेप्सी आहा

पेप्सी का यह कैम्पेन खासा लोकप्रिय हो रहा है। आपको यह कैसा लगा? फूहड़, रोचक , रचनात्मक या कुछ और? इसके लोकप्रिय होने की कोई वजह होगी। क्या है वह वजह? बेहतर हो कि हम लोकप्रियता की संस्कृति और उसके सामाजिक संदर्भों पर भी बात करें। इसकी भर्त्सना करना आसान है, पर क्या हम इसकी उपेक्षा कर सकते हैं? 

पेप्सी का कैम्पेन चेंज द गेम।

ऊपर से आने का

नीचे दबाने का

पीछे उठाने का हा..

हा...हा...हा



सहवाग ने इस शॉट को नाम दिया है ऊपर कट




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और यहाँ है धोनी का हैलिकॉप्टर शॉट


ओए सट अप.....

नजर सामने

और पैर हियर...



कस के पकड़


जम के जकड़


लगा...




और केविन पीटरसन का अल्टी-पल्टी दे घुमा के





टेक तरबूजा पुट इनसाइड, 


अल्टी-पल्टी दे घुमा के


क्लिक करें

भज्जी का उंगली में टिंगली, टिंगली में उंगली 

4 comments:

  1. हाँ द्विअर्थी संवाद को विज्ञापन जगत बखूबी प्रयोग कर रहा है....लेकिन लेकिन पेप्सी और कोला जैसी कम्पनियाँ समाजहित में नहीं हैं....ये एकदम स्पष्ट है....

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  2. हमें तो अब मालूम पड़ा इसका कुछ दूसरा अर्थ भी है।

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  3. मैने इसके अर्थ की ओर ध्यान नहीं दिया था। दरअसल यह विज्ञापन द्विअर्थी होने के कारण महत्वपूर्ण नहीं हैं। भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों जगह इस तरह के विज्ञापन बने हैं। तीनों में अपने खिलाडियों को किसी रोचक तरीके से खेलने की हिदायत दी गई है। यह मुझे रोचक लगा।

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  4. बिलकुल!विज्ञापन बनाने में मॉस अपील और रोचकता का खास ध्यान दिया जाता है. ऐसे विज्ञापन लोकप्रिय भी बहुत जल्दी होते हैं जैसे ठंडा मतलब कोका कोला ...एक समय सब की जुबान पर था.
    ऐसे विज्ञापनों की उपेक्षा तो कतई नहीं की जा सकती बल्कि ये हमें बदलते सामजिक परिवेश के बारे में सोचने को मजबूर भी करते हैं.खिलाड़ियों से अगर रोचकता से खेलने को कहा जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

    सादर

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