Monday, February 14, 2011

मुज़फ्फरपुर जिले का एस्बेस्टस कारखाना


मेरे ब्लॉग पर गिरिजेश कुमार का यह दूसरा आलेख है। इसमें वे विकास से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को उठा रहे हैं। क्या इस कारखाने को स्वीकार करते वक्त पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी हुई है। बेहतर हो कि यदि किसी के पास और जानकारी हो तो भेजें। इस आलेख के साथ दो चित्र हैं।  ये विरोध मार्च की तस्वीरें हैं| इसी मुद्दे पर पटना में १० फ़रवरी को आयोजित इस मार्च में कई बुद्धिजीवी शामिल हुए थे|  


           एस्बेस्टस नहीं, ये मौत का कारखाना है

पर्यावरण पर मंडरा रहे संभावित खतरे के  बावजूद, जो मानव के अस्तित्व को ही लील जाने को आतुर है, सरकार के द्वारा ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना जो किसी एक नहीं जबकि पुरे समाज को नष्ट कर सकता है कहाँ तक उचित है? बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मड़वन प्रखंड के चैनपुर-विशनपुर गांव में  सीमेंट एण्ड रुफिंग लिमिटेड  कंपनी द्वारा एस्बेस्टस का कारखाना खोला जा रहा है जो आनेवाले दिनों में मौत का कारखाना बन सकता है| सबसे बड़ी बात यह कि इसके लिए किसानों की खेतीयोग्य भूमि को बंजर बताकर जबरन हड़पने की कोशिश की गई, जो किसी भी लोकतान्त्रिक प्रदेश में जनता के हितों के साथ अन्याय है| अपने ज़मीन के टुकड़े को वापस लाने और मौत के इस कारखाने को बंद कराने को लेकर वहाँ की जनता पिछले 6-7 महीनों से आंदोलनरत है लेकिन बदले में उन्हें लाठी और गोली मिल रही है| सवाल उठता है जब उद्योग आम आदमी की जिंदगी ही नर्क बना दे तो ऐसे उद्योग क्या सिर्फ मुनाफा अर्जित करने के लिए खोले जा रहे हैं?
जब इसे खोलने का प्रस्ताव पारित किया गया तो पर्यावरणीय कानून का ध्यान क्यों नहीं रखा गया? विदित हो कि केन्द्र सरकार ने 1986 में पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ‘पर्यावरण सुरक्षा कानून 1986’ बनाया था जिसकी अनदेखी कर इस कारखाने को खोला जा रहा है| आम किसानों के साथ अन्याय का इससे बड़ा उदहारण क्या होगा कि वो ज़मीन ‘एग्रोइंडस्ट्री’ खोलने के बहाने ली गई और ईआईए (इन्वायरमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट) को दी गई अपनी रिपोर्ट में कहा गया कि यह ज़मीन बंजर है | जबकि वह ज़मीन खेतीयोग्य है और आसपास घनी आबादी है|

एस्बेस्टस  के कारण कैंसर के अलावा पेट,आंत का ट्यूमर, गला, गुर्दा से सम्बंधित अनेक घातक  बीमारियाँ होती हैं| ताज़ा आंकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो दुनिया में 107000 लोग प्रतिवर्ष इससे मरते हैं| दुनिया के 55 से अधिक देशों ने इसके उद्योग और उपयोग पर  प्रतिबन्ध लगाए हैं और बांकी देशों में भी आवाजें उठ रही हैं| एस्बेस्टस के विशेषज्ञों और डाक्टरों की  भी राय  है कि इससे जानलेवा बीमारियाँ होती हैं | संयुक्त राष्ट्रसंघ पर्यावरण कार्यक्रम(यू एन ई पी), विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यू एच ओ) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आई एल ओ) के साथ-साथ पर्यावरण के विशेषज्ञों, डॉक्टरों ने इसके उद्योग और उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाने की सिफारिश की है| इस कड़ी में भारत सरकार  ने भी इसके खनन पर रोक लगा दिया है| फिर मुजफ्फरपुर में इस उद्योग को खोलने की अनुमति कैसे दी गई?

हम उद्योग के विरोधी नहीं हैं | लेकिन दुनिया के विकसित देशों में प्रतिबंधित एस्बेस्टस  का कारखाना लगाना पूरी तरह अनुचित है | फिर खेतीयोग्य ज़मीन पर कारखाना क्यों बने? क्या हमारे यहाँ बंजर ज़मीन का अभाव है? यह स्थापित सत्य है कि ऐसे प्राणघातक उद्योग गैर कृषि योग्य ज़मीन पर भी नहीं लगना चाहिए| और फिर 500 से 1000 मीटर के दायरे में हजारों की आबादी, दर्ज़न भर प्राथमिक व मध्य विद्यालय, स्वास्थ्य उपकेन्द्र के बीच इस तरह की खतरनाक बीमारी फ़ैलाने वाले कारखाने का कोई औचित्य नहीं है |

विदित हो ‘खेत बचाओ जीवन बचाओ जन संघर्ष कमिटी’ के नेतृत्व में वहाँ के लोग आंदोलनरत हैं जिसे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है | मुजफ्फरपुर जिले के अधिकांश जानेमाने बुद्धिजीवी, प्रोफ़ेसर,डॉक्टर, अधिवक्ता, सामाजिक- राजनीतिक  कार्यकर्ता सड़कों पर उतर चुके हैं| प्रख्यात गांधीवादी श्री सच्चिदानन्द सिन्हा जैसे लोग नेतृत्वकारी भूमिका में हैं | अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता व नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट की संयोजिका मेधा पाटेकर और विश्व बैंक डब्ल्यू एच ओ की पर्यावरण कंसल्टेंट बैरी कैसलमैन ने भी पत्र लिखकर  मुख्यमंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है लेकिन सरकार के कानों में जू नहीं रेंग रही है |

विरोध की आवाजें राजधानी पटना तक पहुँच चुकी है| और एस्बेस्टस विरोधी नागरिक मंच गठित कर इसे अंजाम तक पहुँचाने का प्रयास जारी है लेकिन सरकार की असंवेदनहीनता का दरअसल कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है| क्या वर्तमान सरकार  को व्यापक जनसमर्थन इसीलिए दिया गया था कि वो जनता के अरमानों का गला घोंटे? अगर आने वाले दिनों में नंदीग्राम दोहराया जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए|






गिरिजेश कुमार-रेशम नगरी के नाम से मशहूर भागलपुर से सम्बन्ध रखता हूँ | समाज और सामाजिक समस्याओं के प्रति दिलचस्पी ने पत्रकारिता जगत की ओर आकर्षित किया | एडवांटेज मीडिया एकेडेमी, पटना से (Bachelor Course in Mass Communication and Journalism) की पढाई कर रहा हूँ | अख़बारों में भी लिखता हूँ, अपनी सोच लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ | लेकिन कई अख़बारों ने कई अच्छे आलेख को प्रकाशित करने में असमर्थता ज़ाहिर की| नियमित रूप से संपादक के नाम पत्र लिखता रहता हूँ। मैं ब्लॉग भी लिखता हूँ समय मिले तो विजिट करें http://nnayarasta.blogspot.com

4 comments:

  1. कृषि योग्य जमीन को उद्योग के लिए जबरन कब्ज़ा लेना जघन्य अपराध घोषित किया जाना चाहिए....सरकार अब किसी भी जमीन को सिर्फ रेल,मेट्रो रेल और बहुत ही आवश्यक सड़क के लिए ही किसानों से ले सके इस तरह के सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है....क्योकि सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के कानून का सरकार को दलाल बना चुके भ्रष्ट मंत्री और उसके पार्टनर उद्योगपति अपने खतरनाक पैसों के लोभ लालच के लिए प्रयोग कर इस देश को नरक बना चुके हैं.....उद्योग के लिए कोई भी किसान जमीन ही नहीं बल्कि सारी सहायता भी देगा जब उसे ईमानदारी से इस उद्योग से होने वाले सामाजिक लाभ में हिस्सेदार बनाया जाय...लेकिन इस देश का आम नागरिक और किसान इन उद्योगपतियों द्वारा लूटा जा रहा है और भ्रष्ट मंत्री और उसके पार्टनर उद्योगपति 6000 करोड़ के घर बना कर रह रहें हैं.......ये लोग इस देश को अपने बाप का जागीर समझते हैं एयर किसानों तथा नागरिकों को बंधुआ मजदूर ......ऐसे सोच वाले भ्रष्ट मंत्रियों और उसके पार्टनर उद्योगपतियों को सरे आम जूते मारने की जरूरत है....

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  2. मैने इस पोस्ट को अपने फेसबुक प्रोफाइल पर स्टेटस के रूप में लगाया। इसपर जो प्रतिक्रयाएं आईं हैं, उन्हें संक्सषेप में नीचे दे रहा हूँ।

    Jaikumar Jha कृषि योग्य जमीन को उद्योग के लिए जबरन कब्ज़ा लेना जघन्य अपराध घोषित किया जाना चाहिए....सरकार अब किसी भी जमीन को सिर्फ रेल,मेट्रो रेल और बहुत ही आवश्यक सड़क के लिए ही किसानों से ले सके इस तरह के सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है....

    Gyaneshwar Vatsyayan संभव है,मेरी राय से कई न सहमत हों , पर जेहन में कुछ सवाल हैं । मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की इस राय से सहमत हुआ जा सकता है कि जब एस्‍बेस्‍टस इतना ही खतरनाक है,तो पूरे भारत में प्रोडक्‍शन क्‍यों नहीं बंद कर दिया जा रहा । अभी - अभी सुप्रीम कोर्ट ने एस्‍बेस्‍टस उत्‍पादन पर रोक संबंधी याचिका खारिज की है,आखिर क्‍यों ।

    अब चर्चा बिहार के संदर्भ में । अगले कुछ महीनों में यहां तीन एस्‍बेस्‍टस फैक्ट्रियां आ रही हैं , पर विरोध सिर्फ मुजफफरपुर में हो रहा है । आखिर क्‍यों,जबकि दो और फैक्ट्रियां जहां आ रही हैं,वह और सघन आबादी वाले इलाके में है । फर्क सिर्फ इतना हैं कि इनदोनों के प्रमोटर एस्‍बेस्‍टस इंडस्‍ट्री के पुराने प्‍लेयर हैं,जबकि मुजफफरपुर में कारखाना सूबे का माहौल बदलने के बाद बिहार लौट रहा एक उद्योगपति लगा रहा है । यह बात और समझ से इतर है कि मुजफफरपुर में आंदोलन की शुरुआत करने वाली पार्टी एसयूसीआइ का हेडर्क्‍वाटर बंगाल में है,जहां एक नहीं कई एस्‍बेस्‍टस फैक्ट्रियां चल रही हैं,फिर वे यहां इनका विरोध व बंद करा आदर्श क्‍यों नहीं प्रस्‍तुत करते ।कहीं पुराने प्‍लेयर किसी नये को रोकने को तमाम हथकंडे तो नहीं अपना रहे । ‍‍

    Grijesh Kumar ‎@Gyaneshwar Ji, उद्योग विरोधी छवि बनने की चिंता तो आपको है लेकिन उद्योग से मानव समाज के विनाश का आभास नहीं| शायद आप भी बिहार बदल रहा है , और तरक्की कर रहा है के नारों के बीच, जो सिर्फ़ सरकार तक ही सीमित है, खो गए हैं|

    Gyaneshwar Vatsyayan मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि जब वामपंथियों के गढ़ बंगाल और सोनिया जी के क्षेत्र रायबरेली में फैक्‍ट्री लग व च‍ल सकती है,तो बिहार के मुजफफरपुर में क्‍यों नहीं । क्‍या इसका आंकड़ा किसी के पास है कि कोलकाता व रायबरेली में एस्‍बेस्‍टस फैक्‍ट्री ने अब तक कितने की जान ले ली है । यदि ले ली है , तो ये आंदोलनकारी सबसे पहले वहां जाकर अपना तंबू क्‍यों नहीं गाड़ते ।

    Grijesh Kumar आप एक चीज़ स्पष्ट कीजिए कि आंदोलनकारी को आप किस नजर से देखते हैं?

    Gyaneshwar Vatsyayan गिरिजेश भाई , आपके जज्‍बे का सम्‍मान करता हूं । पर एक सवाल का जवाब तो दें कि विरोध सिर्फ मुजफफरपुर में ही क्‍यों,बिहार में और भी जगह तो एस्‍बेस्‍टस फैक्ट्रियां लग रही हैं , वह भी पुराने व घाघ प्‍लेयरों के द्वारा,आखिर ये आंदोलनकारी वहां अपना तंबू क्‍यों नहीं डाल रहे । सुप्रीम कोर्ट से प्रतिबंध की याचिका खारिज होने के बाद भी यदि यह इंडस्‍ट्री विनाशकारी है,तो ऐसा तो होगा नहीं कि मुजफफरपुर में तबाही मचायेगा व बिहार के दूसरे हिस्‍सों में विकास का पैमाना बनेगा । आखिर एक का ही विरोध क्‍यों ।

    मेरी बहस का दायरा बिहार के आंदोलन तक सीमित है । इसका जवाब कोई नहीं दे रहा कि पुराने प्‍लेयर्स के द्वारा खोले जा रहे कारखानों का कोई विरोध नहीं कर रहा,जबकि कभी भागकर कोलकाता गया उद्योगपति लौटकर बिहार में कारखाना लगा रहा है , तो रास्‍ते में रोड़े डाले जा रहे हैं ।

    Grijesh Kumar आपसे अनुरोध होगा कि आप इसकी पूरी जानकारी इमेल करें कि बिहार में कहाँ कहाँ यह खोला जा रहा है?

    Gyaneshwar Vatsyayan आपने जानना चाहा,अच्‍छी बात है । नोट करें । पहली फैक्‍ट्री भोजपुर के बिहियां में आ रही है । इसे रामको वाले ला रहे हैं, जो इस इंडस्‍ट्री के काफी पुराने प्लेयर हैं । देश के दूसरे हिस्‍सों में और कई फैक्ट्रियां हैं । जहां कारखाना लगा रहे ‍हैं,बिल्‍कुल पास में सघन आबादी है व नवोदय स्‍कूल भी । पर यहां कोई विरोध नहीं हो रहा । दूसरी फैक्‍ट्री गिद्वा में लग रही है । निभि वाले ला रहे हैं । इनकी मुखालफत भी नहीं हो रही । तीसरी फैक्‍ट्री वैशाली के महुआ में । इसे यूएल वाले लगा रहे हैं,जिनकी कई एस्‍बेस्‍टस फैक्‍ट्री देश भर में है । अकेले बंगाल में पांच । लेकिन बंगाल की सरजमीं से बढ़ने-चलने वाली एसयूसीआइ की नजरें इधर नहीं जाती । आखिर पर्दे के पीछे कुछ न कुछ तो है । बेतिया में भी एक फैक्‍ट्री का प्रोजेक्‍ट वर्क चल रहा है ।

    Swatantra Mishra vaishali me bhi..kul chah factory khul rahi hain.

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  3. Asbestos khatarnak hai, chaliye man liya. Yah bhi man liya ki Andolankari mahan log hain, jaan ki baji laga kar dusaron ki jaan bachana chahte hain magar sirf ek jagah simit kyon ho gaye hain? Gyaneshwar ka sawal bilkul sahi hai.Ek sahar ke logon ko bacha lenge aur Desh bhar ke logon ko marne denge.. Wah Re Andolan !!

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  4. Anonymous3:01 PM

    This is really very good information on asbestos.Please provide some guideline on removing asbestos safely.You can take a look at http://www.asbestosfloortiles.net .Here asbestos related information from google books are scanned and printed.Thanks a lot for valuable information.

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