Wednesday, February 9, 2011

स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा

मैने अपने ब्लॉग पर दूसरे लेखकों की रचनाएं भी आमंत्रित की हैं। मेरा उद्देश्य इस प्लेटफॉर्म के मार्फत विचार-विमर्श को बढ़ावा देना है। आज इस सीरीज़ में यह पहला आलेख है। इसे पटना के श्री गिरिजेश कुमार ने भेजा है। उनका परिचय नीचे दिया गया है। लेख के अंत में मैने दो संदर्भ सूत्र जोड़े हैं। बेहतर हो कि आप अपनी राय दें। 


बचपन को विकृत करने की साज़िश 
गिरिजेश कुमार
काले परदे के पीछे भूमंडलीकरण का निःशब्द कदम धीरे-धीरे सभ्यता का प्रकाश मलिन कर जिस अंधकारमय जगत की ओर लोगों को ले जा रहा है वह चित्र देखने लायक आँखऔर समझने लायक मन आज कितने लोगों में हैप्रेम जैसी सुन्दर अनुभूति को भुलाकरचकाचौंध रोशनी के बीच शरीर का विकृत प्रदर्शन और सेक्स के माध्यम से समाज को विषाक्त बनाने की कोशिश हो रही हैइसी परिकल्पित प्रयास का ही एक नाम है- स्कूल स्तर पर यौन शिक्षा|

विदित हो कि बिहार सरकार ने पिछले दिनों नौवीं कक्षा से ग्यारहवीं कक्षा के छात्रों को यौन शिक्षा देने का फैसला लिया हैइसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि इससे यौन विकृतियाँ कम होंगी तथा छात्रों के मन की जिज्ञासा शांत होगी जिससे वो  गलत काम  नही करेंगे साथ ही साथ एड्स जैसे भयावह रोगों पर भी रोक लगेगी|

कई सवाल खड़े होते हैं यहांसबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि आखिर इसकी ज़रूरत क्यों पड़ीक्या हमारा समाज इतना सशक्त है  कि हम ऐसी चीजों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैंक्या हमारी सभ्यता और संस्कृति  हमें ऐसी चीजों को खुलेआम स्वीकार करने की इज़ाज़त देती हैएक और महत्वपूर्ण सवाल कि इससे पहले जितने भी देशों ने इसे लागू किया वहाँ क्या परिणाम सामने आए? यहाँ यह जानना ज़रुरी है कि उनके भी तर्क कमोबेश यही थे जो यहां दिए जा रहे है|
 सरकार द्वारा यौन शिक्षा लागू किये जाने के पीछे दिए जा रहे आधारहीन तर्कों का दरअसल कोई मतलब नहीं है|  इससे न तो यौन विकृतियाँ कम होंगी और न ही उनके मन की जिज्ञासा शांत होगी बल्कि वो और गलत कामों में लिप्त रहेंगेऔर एड्स के रोकथाम जैसे घटिया तर्कों को देनेवाली सरकार से मैं यह पूछना चाहूँगा अभी तक कितने बच्चे एड्स से पीड़ित हैंऔर क्या एड्स बच्चों से फैलता है? कदापि नहीं|इसे फ़ैलाने वाले वही तथाकथित पूंजीपति हैं जो ऐशो आराम की जिंदगी जीने के आदि है और पश्चिमी सभ्यता को अपनी जागीर समझते हैंदूसरी बात ये कि चिकित्सा विज्ञान एड्स फैलने के ४ कारण बताता हैअसुरक्षित यौन सम्बन्ध भी उसमे से एक कारण ज़रूर  है लेकिन  इसे ही आधार बनाकर बच्चों में यौन शिक्षा देने का औचित्य क्या है?
 बच्चों को पढाने के लिए जो सिलेबस तैयार किया गया है उसमे भी  शादी से पहले सेक्स न करने पर जोर देने के बजाये सुरक्षित सेक्स पर ज्यादा जोर दिया गया है जो उनकी मंशा को स्पष्ट कर देता है कि यौन शिक्षा के नाम पर वो बच्चों में कंडोम के ग्राहक की तलाश कर रहे हैंऔर यही पूंजीवादी व्यवस्था का सबसे घिनौना चेहरा है|

मुझे नहीं लगता कि एक बच्चे की  यौन जिज्ञासाओं को उनके मा बाप को छोड़कर कोई और अच्छी तरह शांत कर सकता है|   

अमेरिकाब्रिटेन सहित कई विकसित देशों में इसे पहले से लागू किया जा चूका है|अमेरिका में स्कूल स्तर से यौन शिक्षा 1964 में लागू की गई थी और आज वहाँ आलम यह है कि हर सात में से एक लड़की 14 साल से कम उम्र में प्रेग्नेंट है और हर स्कूल में अबोर्शन सेंटर खोलना पड़ा हैक्या हम अपने देश को ऐसे ही गन्दी बस्तियों में तब्दील कर देना चाहते हैंक्या हम स्कूलों को सेक्स का अड्डा बनाना चाहते हैंयह यक्ष प्रश्न बनकर आज हमारे सामने खड़ा है|

गिरिजेश कुमार-रेशम नगरी के नाम से मशहूर भागलपुर से सम्बन्ध रखता हूँ | समाज और सामाजिक समस्याओं के प्रति दिलचस्पी ने पत्रकारिता जगत की ओर आकर्षित किया| एडवांटेज मीडिया एकेडेमी, पटना से (Bachelor Course in Mass Communication and Journalism) की पढाई कर रहा हूँ | अख़बारों में भी लिखता हूँ, अपनी सोच लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करता हूँ | लेकिन कई अख़बारों ने कई अच्छे आलेख को प्रकाशित करने में असमर्थता ज़ाहिर की| नियमित रूप से संपादक के नाम पत्र लिखता रहता हूँ। मैं ब्लॉग भी लिखता हूँ समय मिले तो विजिट करें http://nnayarasta.blogspot.com

संदर्भ

11 comments:

  1. आलेख तो पसंद आया। परन्तु इसमें लिखी कुछ बातों से मै सहमत हु और कुछ से नही। मेरे ख्याल से जानकारी कभी गलत नहीं होती इंसान की सोच गलत और सही होती है। जरा आप बताए कि नौवी से ग्यारहवी कक्षा तक कितने ऐसे छात्र है जो सेक्स जैसी जानकारी से अनभिज्ञ है। इंसान की एक फितरत होती है कि जिस चीज को वह नही जानता उसके पीछे वो पागलों की तरह व्यवहार करता है। अगर आपकी बात मान कर चला जाए कि सेक्स शिक्षा अनिर्वाय कर देने पर उनमें सेक्सुअल रिलेशनशीप बढ़ेगा तो क्या अभी उनके बीच ये रिलेशनशीप कम है। ये और बात है कि बहुत सारी जानकारियॉ हमारे सामने नहीं आ पाती। हमारे समाज में कितने ऐसे बच्चे है जो ये माता पिता से पुछने की हिम्मत रखते है कि सेक्स क्या है और कितने ऐसे माता पिता है जो ये बताने के लिए तैयार रहते है। हमारी संस्कृति में सेक्स को वर्जित रूप में देखा जाता है बिल्कुल अछुत की तरह। अगर हम इन सब चीजों से बचना चाहते है तो जरूरत है एक ऐसा नस्ल तैयार करने की जो सही और गलत में फर्क करना जानता हो और जिन्हे इस बात का इल्म हो कि सेक्स की सीमाएॅ क्या होती है।

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  2. @ehsas ji, आपको आलेख पसंद आया इसके लिए धन्यवाद| मैं आपको बता दूँ यह आलेख मैंने ही लिखा है| विचारों से सहमत और असहमत होने के लिए आप स्वतंत्र हैं|लेकिन तथ्यों को नज़रंदाज भी नहीं कर सकते| यही मैं भी जानना चाहता हूँ कि जब वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुछ भी परदे में नहीं है, समाज में खुलेपन के नाम पर भोंडापन हावी है तो फिर स्कूलों में इसे लागु करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? हमरा समाज अभी इतना परिपक्व नहीं है कि हम ऐसी चीजों को खुलेआम स्वीकार कर सकें| आपके ही अनुसार अभी क्या उनलोगों में सेक्सुअल रिलेशनशिप कम नहीं है तो जहाँ ज़रूरत इसे कम करने की थी वहीँ इसे बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? रही बात जानकारी की तो आप महापुरुषों की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल कीजिये| स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के बारे में जानकारी दीजिए लेकिन आप ऐसा नहीं कर रहे हैं उलटे उन्हें पाठ्यक्रमों से हटाया जा रहा है दूसरी तरफ आप समाज को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं इसे साज़िश नहीं तो और क्या कहा जाये?
    गिरिजेश कुमार

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  3. You are welcome Girijesh ji. You raised question on most debatable issue.Our society never accepted sex on records either in teenagers, adolescents, pre marital and even after marriages. But medical facts and criminal records shows women suffer more on sexual issues, because they have to bear pregnancies.
    Sex is a basic instinct.When in media, film industry, video songs, print media, television and internet has each and every content available about sex, then how we can say that our teenagers will not know about sex.
    But if they will not know right facts about sex desires, risks and sexually transmittable diseases, how we can protect our young generation. If we have no data about how many children have AIDS, STD's, Teenage pregnancies - that is lacuna in our medical system, it means not that only USA is facing teenage pregnancies.
    If our society is not ready to accept this change in education pattern, then how long we will wait for it? What you think is their any other way to prepare society's mind to come and discuss about sex to their children.
    Why we should fear that sex education will promote children to do sex? When each and everything about sex is already present in different media.
    I think we must change our minds first and we must open our thoughts. We must be ready to let change this society. And their is no other way to make this society more sensitive and open about sex.

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  4. डॉ रविन्द्र जी, आपके द्वारा उठाए गए सवाल बिल्कुल जायज़ हैं| लेकिन आप यह भी ध्यानं रखें कि जो सिलेबस तैयार किया गया है वह भी सवालों के घेरे में आता है| होना तो यह चाहिए था ऐसे तमाम वेबसाइटों और अश्लीलता फ़ैलाने वाले अख़बारों पत्र, पत्रिकाओं पर प्रतिबन्ध लगाया जाता जो आधी अधूरी जानकारी उपलब्ध करते हैं| लेकिन इस पूंजीवादी व्यवस्था की अपनी मजबूरियां हैं जिसमे बाजार सबसे महत्वपूर्ण होता है| इसलिए वो ऐसा नहीं करना चाहते| रही बात यौन रोगों से बचाव् की तो मुझे नहीं लगता कि माता पिता से बेहतर कोई शिक्षक हो सकता है| और जबकि उन्ही कक्षाओं में जीव विज्ञान में शरीर और उसके अन्गोंं के बारे में बताया ही जाता है तो फिर इस विषय की अलग से शुरुआत का कोई ठोस कारण नज़र नहीं आता| बेशक ये बच्चों को सेक्स के लिए बढ़ावा देगा|हमें अपनी मानसिकता ज़रूर बदलनी चाहिए लेकिन रूढिवादिता के खिलाफ, और समाज की बेहतरी के लिए न कि समाज की क्षति के लिए| हमारे देश में वयस्क होने की उम्र सीमा १८ साल है| तो इसके लिए भी एक उम्र सीमा होनी चाहिए| और फिर जिन देशों ने लागू किया वहाँ परिणाम को हम नज़रंदाज़ कैसे कर सकते हैं?

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  5. मैं आपसे सहमत नहीं हूं। कारण बहुत से हैं, सबसे बड़ा यह कि जख्म को जब तक हम छुपाते रहेगें वह नासूर बनता जाएगा। सेक्स एक ऐसी समस्या है जिसपर अब बहस की नहीं सोच बदलने की जरूरत है। यौन शिक्षा नैंवीं क्लास में दिया जाना मेरी नजर में बहुत जरूरी है। आज भी दशवीं क्लास जाते जाते गांवों में शादी कर दी जाती है और अशिक्षा की वजह से लड़कियां मां बनती है और अकाल मौत का शिकार हो जाती हैं। हम महानगरों की तुलना पूरे देश से नहीं कर सकते। एक और बड़ा कारण यह है कि गरीब मजदूर के बच्चे नवमीं दशवीं तक पढ़ाई कर प्रदेश कमाने के लिए जाते है और वहंा रेड लाइट के चक्कर मे पड़ कर एडस का रोग लेकर आते है और साथ ही साथ अपनी पत्नी को भी इसका शिकार बनाते है। कहना होगा की बिहार सरकार ने एक सार्थक और साहसिक पहल की है।

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  6. Most of the western and developed countries give sex education and in those countries sex is very common among teenagers. But it is not acceptable that sex education promoted sex desires. Sex issues, risk and safe practice is not the matter of capitalism.
    Bans on sex websites, magazines and media will not reduce wrong practice of sex. Since thousands of year sex is a Taboo subject for Indians. How parents and children will discuss this issue? There is a chance that if a student will read in school and then ask at home, then parents can answer. Otherwise i doubt that parents will discuss about sex with their children.
    Arunji has raised right concern about early marriages, early motherhood and teenagers go to work in metropolitan and come in contact with various sex related issues.
    50% of maternal deaths occur in India due to pregnancies before age of 18, anemia in girls due to heavy menstrual bleeding. Most common cause of death in women in India due to cancer is due to cervical cancer, that is the cancer of mouth of uterus due to wrong and uncleanliness conditions during sex and a simple papilloma virus infection of vagina. These are the issues of sex education and must be taken in account seriously.
    Lastly, sex education is not a moral education. It is not about either teenagers should do sex or not, but sex education will educate students that if they choose to do it then what are risks and how to do it safely.

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  7. अरुण जी आप समाज की खामियों को दिखाकर कुछ भी स्वीकार नहीं कर सकते|विचारों पर सहमती और असहमति पर मैं कुछ नहीं कहूँगा|रेड लाइट की एरिया की बात कर रहे हैं लेकिन आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि रेड लाइट एरिया उन्ही ऐशपसंद लोगों की उपज है जहाँ मज़बूरीवश कुछ लड़कियां रहने को विवश हैं|जिसे बदलने की जरुरत है| आप बिहार के है आपसे अनूरोध होगा कि एक बार सिलेबस भी देखें फिर आंकलन करें|

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  8. @Ravindra ji, I also request you to read the content of the syllabus.

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  9. गिरिजेश जी सिलेबस में आपत्तिजनक क्या है, उसका हवाला तो दिया जा सकता है। या फिर आप बताएं कि कहाँ से सिलेबस मिल सकता है।

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  10. @प्रमोद जी, वर्तमान में जो सिलेबस तैयार किया गया है उसमे महिला और पुरुष की वस्त्रहीन तस्वीरें दी गयी हैं और यह स्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि आप सुरक्षित सेक्स कैसे कर सकते हैं? जबकि उससे जयादा ज़रुरी है यह बताना की आप शादी से पहले सेक्स न करें| ये बातें मैंने आलेख में भी लिखी हैं| अभी तक हमलोग जीवविज्ञान की कक्षा में रेखाचित्र के माध्यम से पढाई करते थे ल जो कहीं से भी गलत नहीं थी लेकिन उसकी जगह तस्वीरें लगाना उचित नहीं है|इसके अलावा बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो शायद नही होनी चाहिए| यह सिर्फ़ एक उदहारण मात्र है| ये बातें उस समय निकलकर सामने आई थी जब शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा था| बिहार में अभी ८३ शिक्षकों को इसके लिए प्रशिक्षण दिया जा चुका है और पहले चरण में ९ जिलों में लागु करने की योजना है| इसके अलावा मैं बता दूँ पश्चिम बंगाल में ऐसा प्रयास किया जा चुका है और वहाँ भी तर्क यही थे और वहाँ इसी विषय की प्रायोगिक कक्षाओं के दौरान लड़के और लड़कियों की आँख पर पट्टी बाँधकर एक दूसरे के अंगों को छूने को कहा जाता था और उनसे पूछा जाता था कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं? लेकिन व्यापक विरोध के कारण तत्काल इसे हटा दिया गया है| और आपको पता ही होगा देश के कुछ राज्य जैसे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने इसे इसी रूप में लागू करने से इंकार किया है| एक और कि यह सिलेबस बिहार सरकार ने तैयार नही किया है इसे NCERT के द्वारा तैयार किया गया है जिसे बिहार में लागु किया गया है|
    अभी सिलेबस सार्वजानिक तौर पर आपको नहीं मिलेगा लेकिन जल्द ही स्कूलों में उपलब्ध हो जायेंगे| अगर किसी शिक्षक या प्रधानाध्यापक से संपर्क हो तभी मिल सकता है|
    इन्टरनेट पर अगर कोई लिंक मुझे मिले तो मैं आपको बताऊंगा, जहाँ से आप डाउनलोड कर सकेंगे|
    गिरिजेश कुमार

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