Thursday, January 30, 2020

वैश्विक-विमर्श का ज़रिया बनेंगे जनांदोलन


नए साल की शुरुआत आंदोलनों से हो रही है। शिक्षा संस्थानों के परिसर आंदोलनों की रणभूमि बने हैं। मोहल्लों और सड़कों में असंतोष और विरोध के स्वर हैं। देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षितिज पर आए बदलावों के अंतर्विरोध मुखर रहे हैं। असंतोष के पीछे व्यवस्था के प्रति नाराजगी है। यह विश्वव्यापी नाराजगी है। वैश्वीकरण केवल आर्थिक अवधारणा नहीं है, वैचारिक भी है।
जनवरी 2011 में हमें मिस्र और ट्यूनीशिया के मध्यवर्ग में असंतोष की खबरें मिलीं थीं। उसी साल गांधी के निर्वाण दिवस यानी 30 जनवरी को भारत में बगैर किसी योजना के अनेक शहरों में भ्रष्टाचार-विरोधी रैलियाँ में भीड़ उमड़ पड़ी। उसी साल सितम्बर में अमेरिका में ऑक्युपाई वॉलस्ट्रीट आंदोलन शुरू हुआ। वह नौजवानों के प्रतिरोध का आंदोलन था। यूरोप के अनेक शहरों में ऐसे आंदोलन खड़े हो गए। चिली, ब्रिटेन, अल्जीरिया, अमेरिका, फ्रांस, कैटालोनिया, इराक, लेबनॉन से लेकर हांगकांग की सड़कों पर आंदोलनकारी नौजवानों के जुलूस निकल रहे हैं।  

आंतरिक उमड़-घुमड़, जो हमारी वैश्विक छवि को बनाती या बिगाड़ती है


अमेरिकी विदेश विभाग ने जम्मू-कश्मीर में 15 देशों के राजदूतों की यात्रा को महत्वपूर्ण कदम बताया है। साथ ही यह भी कहा है कि राज्य के राजनीतिक नेताओं का जेल में रहना और इलाके में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदियाँ परेशान करती हैं। पिछले साल 5 अगस्त के बाद पहली बार 15 देशों के राजनयिकों ने 9 जनवरी को जम्मू-कश्मीर यात्रा की जिसमें अमेरिकी राजदूत कैनेथ आई जस्टर भी शामिल थे। इन राजनयिकों ने कश्मीर में कई राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों, नागरिक संस्थाओं के सदस्यों और सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ मुलाकात की। इस यात्रा को लेकर सरकार पर आरोप लगे हैं कि यह ‘गाइडेड टूर’ है। बहरहाल अमेरिका की दक्षिण एवं मध्य एशिया की कार्यवाहक सहायक सचिव एलिस जी वेल्स ने 11 जनवरी को उम्मीद जताई कि इस क्षेत्र में स्थिति सामान्य होगी।
वेल्स इस हफ्ते 15 से 18 जनवरी तक भारत में थीं और उन्होंने रायसीना संवाद में भी भाग लिया, जो विदेश-नीति के संदर्भ में भारत का सबसे महत्वपूर्ण अनौपचारिक मंच बनता जा रहा है। इस मंच में ईरानी विदेशमंत्री जव्वाद जरीफ भी शामिल हुए। स्वाभाविक है कि इस वक्त दुनिया का ध्यान अमेरिका-ईरान मामलों पर है, पर जम्मू-कश्मीर के बरक्स भी घटनाक्रम बदल रहा है। एलिस वेल्स भारत-यात्रा पूरी करने के बाद पाकिस्तान जाने वाली हैं।

Monday, January 27, 2020

बजट जो भरोसा बहाल करे


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को जो बजट पेश करेंगी, वह मोदी सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण बजट होगा। हरेक क्षेत्र को कुछ फैसलों की आशा है। औद्योगिक माहौल ठंडा है, गाँवों में निराशा है और नौजवान चेहरों की चमक गायब हो रही है। फिर भी देश को आशा है। बेशक अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी नहीं है, पर उसकी गति भरोसा पैदा करने वाली भी नहीं है। अर्थशास्त्री कहते हैं कि माँग और निवेश दोनों बढ़ाने की जरूरत है। दोनों ही मोर्चों पर संकट है।
बावजूद इसके निराश होने और हारकर बैठ जाने की जरूरत भी नहीं है। बजट ऐसा होना चाहिए जो देश की अर्थव्यवस्था में भरोसा बहाल करे और निवेशकों तथा देश के उद्यमी जगत को आश्वस्त करे। उन्हें भरोसा होना चाहिए कि सुधार सरकार की प्राथमिकता में हैं। चिंता इसलिए बढ़ी, क्योंकि हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष की आर्थिक संवृद्धि दर का अपना अनुमान घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है। यह अनुमान भारत सरकार के आधिकारिक अग्रिम वृद्धि अनुमान 5 प्रतिशत से भी कम है। भारत की संवृद्धि में कमी के असर से विश्व की संवृद्धि दर नीचे जा रही है।  

Wednesday, January 22, 2020

जीडीपी को लेकर बढ़ती चुनौतियाँ


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि दर का अपना अनुमान घटाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है. यह अनुमान भारत सरकार के आधिकारिक अग्रिम वृद्धि अनुमान 5 प्रतिशत से भी कम है. इतना ही नहीं यह अनुमान आईएमएफ के ही पहले के अनुमान की तुलना में 1.3 प्रतिशत कम है. मुद्रा कोष के अनुसार भारत की आर्थिक वृद्धि कम होने का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और विश्व की संवृद्धि दर नीचे चली जाएगी. आईएमएफ ही नहीं भारत सरकार समेत देश के अर्थशास्त्री पहले से मान रहे हैं कि संवृद्धि दर गिरेगी, पर सवाल है कि कितनी और यह गरावट कब तक रहेगी?
मुद्राकोष के अनुसार आगामी वित्त वर्ष में भारत की संवृद्धि दर का अनुमान 5.8 प्रतिशत है, जो उसके पहले के अनुमान की तुलना में 1.2 प्रतिशत कम है. एजेंसी के अनुसार उसके अगले वर्ष यानी 2021-22 में संवृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहेगी, जो उसके पहले के अनुमान की तुलना में 0.9 प्रतिशत अंक कम है. आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट के पीछे प्रमुख भूमिका भारत की है, जहां गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में दबाव और कमजोर ग्रामीण आर्थिक वृद्धि के कारण दबाव बढ़ा है. घरेलू मांग बहुत तेजी से गिरी है.

Sunday, January 19, 2020

शाहीन बाग और दिल्ली का चुनाव


दिल्ली का शाहीन बाग राष्ट्रीय सुर्खियों में है। पिछले महीने की 15 तारीख से वहाँ दिन-रात एक धरना चल रहा है। यह धरना नागरिकता कानून और जामिया मिलिया और अलीगढ़ विवि के छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के विरोध में शुरू हुआ था। इसे नागरिकता कानून के खिलाफ सबसे बड़ा शांतिपूर्ण प्रदर्शन बताया जा रहा है। इस आंदोलन के साथ प्रतिरोध से जुड़ी कविताएं, चित्र, नाटक और तमाम तरह की रचनात्मक अभिव्यक्तियाँ देखने को मिल रही हैं। दूसरी तरफ इस धरने के कारण दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण मार्ग बंद है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। संयोग से दिल्ली विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं और लगता नहीं कि यह आंदोलन चुनाव परिणाम आने से पहले खत्म होगा।
यह धरना 14-15 दिसम्बर को इस इलाके में रहने वाली 15-20 महिलाओं ने शुरू किया था। देखते ही देखते यह राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया है। दिल्ली पुलिस ने पिछले शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों से अनुरोध किया कि वे सार्वजनिक हित में इस रास्ते को खाली कर दें, ताकि यातायात शुरू हो सके। यह रास्ता दिल्ली को नोएडा से जोड़ता है। स्कूली बच्चों, रोज कामकाज और दूसरे जरूरी काम के लिए आने-जाने लोगों को परेशानी है। इस क्षेत्र में काफी बड़े शो रूम हैं, जो एक महीने से ज्यादा समय से बंद पड़े हैं। काम करने वाले कर्मचारियों की दिहाड़ी की समस्या खड़ी हो गई है। सरिता विहार रेज़ीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने इस रास्ते को खुलवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की तो शुक्रवार को अदालत ने दिल्ली पुलिस से कहा कि वह रास्ता बंद होने की समस्या की ओर ध्यान दे।