Wednesday, July 19, 2023

वैश्विक-मंच पर तेज होती जाएगी भारत-चीन स्पर्धा


पिछले तीन महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और फ्रांस की यात्राओं और एससीओ के शिखर सम्मेलन से भारतीय विदेश-नीति की दिशा स्पष्ट हो रही है. भारत पश्चिमी देशों के साथ अपने सामरिक और आर्थिक रिश्तों को मजबूत कर रहा है, पर कोशिश यह भी कर रहा है कि उसकी स्वतंत्र पहचान बनी रहे.

भारत और चीन के रिश्तों में फिलहाल पाँच फ्रिक्शन एरियाज़ माने जा रहे हैं, जो पूर्वी लद्दाख सीमा से जुड़े हैं, पर प्रत्यक्षतः दो बड़े अवरोध हैं. एक कुल सीमा-विवाद और दूसरे पाकिस्तान. पिछले शुक्रवार को भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और चीन के पूर्व विदेशमंत्री वांग यी के बीच जकार्ता में हुए ईस्ट एशिया समिट के हाशिए पर मुलाकात हुई. इसमें भी रिश्तों को सामान्य बनाने वाले सूत्रों का जिक्र हुआ, पर सीमा-विवाद सुलझ नहीं रहा है.

चीन की वैश्विक-राजनीति इस समय दुनिया को एक-ध्रुवीय बनने से रोकने की है, तो भारत एशिया को एक-ध्रुवीयबनने नहीं देगा.  भारत की रणनीति ग्लोबल साउथो एकजुट करने में है, जो विश्व-व्यवस्था को भविष्य में प्रभावित करने वाली ताकत साबित होगी. चीन भी इसी दिशा में सक्रिय है, इसलिए हमारी प्रतिस्पर्धा चीन से होगी.  

जी-20 और ब्रिक्स

सितंबर के महीने में नई दिल्ली में होने वाले जी-20 के शिखर सम्मेलन में और दक्षिण अफ्रीका में होने वाले ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में चीन के बरक्स यह प्रतिस्पर्धा और स्पष्ट होगी. चीन चाहता है कि ब्रिक्स की सदस्य संख्या बढ़ाई जाए, पर भारत चाहता है कि बगैर एक सुपरिभाषित व्यवस्था बनाए बगैर ब्रिक्स का विस्तार करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

चीन की मनोकामना जल्द से जल्द पश्चिमी देशों की बनाई विश्व-व्यवस्था के समांतर एक नई व्यवस्था खड़ी करने की है. भारत और चीन के दृष्टिकोणों का टकराव अब ब्रिक्स में देखने को मिल सकता है.   

ग्लोबल साउथ

भारत की कोशिश है कि 54 देशों के संगठन अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाया जाए. इससे इस समूह को वैश्विक प्रतिनिधित्व मिलेगा. भारत की ग्लोबल साउथ योजना का यह भी एक हिस्सा है. यों अफ्रीकन यूनियन को सभी शिखर सम्मेलनों में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है. उसकी सदस्यता को केवल औपचारिक रूप ही दिया जाना है.

जी-20 में यूरोपीय देशों का प्रभाव और दबाव है. भारत चाहता है कि इसमें विकासशील देशों की बातों को स्वर मिले. यह ऐसा समूह है, जिसमें जी-7 देशों और चीन-रूस गुट का सीधा टकराव देखने को मिल रहा है.

Monday, July 17, 2023

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में सत्तापक्ष और विपक्ष की कवायद शुरू


तकरीबन एक महीने की खामोशी के बाद इस हफ्ते राष्ट्रीय राजनीति में फिर से हलचल शुरू हो रही है। 20 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, जो 11 अगस्‍त तक चलेगा। इस सत्र में सरकार की ओर से 32 अहम बिल संसद में पेश किए जाएंगे। इस दौरान विरोधी दल सरकार को मणिपुर की हिंसा,  यूसीसी और केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर घेरने का प्रयास करेंगे। इस दौरान सदन के भीतर और बाहर दोनों जगह विरोधी एकता की परीक्षा भी होगी। सवाल यह भी है कि संसद का सत्र ठीक से चल भी पाएगा या नहीं।

राजनीतिक दृष्टि से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने गठबंधनों को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। इस दृष्टि से सत्र शुरू होने के ठीक पहले 17 और 18 को बेंगलुरु में हो रही विरोधी-एकता बैठक भी महत्वपूर्ण होगी। इस बैठक में केवल चुनावी रणनीति ही नहीं बनेगी, बल्कि संसद के सत्र में विभिन्न मसलों को लेकर समन्वय पर भी विचार होगा। इस बैठक में शामिल होने के लिए 24 दलों को निमंत्रित किया गया है। इस बैठक को कांग्रेस पार्टी कितना महत्व दे रही है, इस बात का पता इससे भी लगता है कि उसमें सोनिया गांधी भी शामिल होंगी। पटना में 23 जून की बैठक के बाद तय हुआ था कि 10 से 12 जुलाई के बीच शिमला में विपक्षी दलों की दूसरी मीटिंग होगी, जिसमें भविष्य की रणनीति पर चर्चा की जाएगी। इस बैठक की ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर सौंपी गई थी। कांग्रेस ने शिमला की जगह बेंगलुरु में बैठक बुलाई है।

इस दौरान महाराष्ट्र में एनसीपी के विभाजन, बंगाल के स्थानीय चुनावों में हुई हिंसा, पंजाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओपी सोनी की गिरफ्तारी और बिहार में राजद के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने से विरोधी-एकता को धक्का भी लगा है, पर इन पार्टियों ने अपने प्रयासों को जारी रखने, बल्कि उसे विस्तार देने का फैसला किया है। पटना में जहाँ 16 पार्टियों को बुलाया गया था (शामिल 15 ही हुई थीं) वहीं बेंगलुरु में 24 दलों को आमंत्रित किया गया है।

इस बैठक में ऐसे दलों को ही न्यौता दिया गया है जो प्रत्यक्ष रूप से भाजपा की राजनीतिक शैली और विचारधारा के खिलाफ मैदान में खड़े होते हैं। एमडीएमके, फॉरवर्ड ब्लॉक,आरएसपी और आईयूएमएल समेत आठ ऐसे दलों को बेंगलुरु बैठक में निमंत्रण दिया गया है, जिन्हें पटना में विपक्षी एकता की पहली बैठक में नहीं बुलाया गया था।

बहुत दूर तक जाएगा डॉ अल-इस्सा का सद्भावना संदेश


दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम संगठनों में एक विश्व मुस्लिम लीग के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-ईसा (या इस्सा) की भारत-यात्रा से इस्लाम को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियाँ दूर हुई हैं, साथ ही भारत और सउदी अरब के मजबूत रिश्तों की बुनियाद पड़ी है. भारत के अरब देशों के साथ हजारों साल पुराने रिश्ते हैं. 

यह दौरा इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि हाल के वर्षों में भारत को लेकर पश्चिमी देशों में काफी नकारात्मक बातों का प्रचार हुआ है. डॉ अल-इस्सा ने उस प्रचार से प्रभावित हुए बगैर कहा कि भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की शानदार मिसाल है. दुनिया को भारत से शांति के बारे में सीखना चाहिए.

उनकी बातें बेहद महत्वपूर्ण है. खासतौर से यह देखते हुए कि उनकी आवाज़ बहुत दूर तक जाती है. उनके इस दौरे को ऐतिहासिक की संज्ञा दी जा सकती है. सउदी अरब से इतने व्यापक संदेश के साथ आए सर्वाधिक प्रतिष्ठित धर्मगुरुओं में वे एक हैं. उनके संदेशों को दोहराने और समाज के भीतर तक ले जाने की जरूरत है. इसके लिए संस्थागत तरीके से काम करने की जरूरत होगी.

मुसलमानों के नाम संदेश

दुनियाभर के मुसलमान इस समय संशय में हैं. ऐसे में डॉ अल-ईसा का संदेश नया रास्ता दिखाने वाला साबित होगा. वे इस्लाम के मूल उद्देश्यों को उनके सामने रख रहे हैं. उनका संदेश केवल मुसलमानों के नाम ही नहीं है. वे सभी समुदायों, धर्मावलंबियों और सभ्यताओं-संस्कृतियों के प्रतिनिधियों के साथ संवाद कर रहे हैं, जो बहुत बड़ी और सकारात्मक गतिविधि है.

पिछले मंगलवार को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की मौजूदगी में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने भाग लिया था. इसके अलावा वे विवेकानंद फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे. इस दौरान अजित डोभाल ने डॉ अल-इस्सा की गहरी समझ की तारीफ की थी और कहा कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव का संदेश स्पष्ट है कि हमारे यहाँ सद्भाव है और शांति भी.  

अजित डोभाल इन दिनों मुस्लिम-जगत के साथ संपर्क स्थापित कर रहे हैं. उनके माध्यम से डॉ अल-ईसा को भारत बुलाना केंद्र सरकार की ओर से सद्भाव का कदम माना जा रहा है. साथ ही सउदी अरब की ओर से बदलते समय का संदेश. 

भारत की तारीफ

समाचार एजेंसी एएनआई को द‍िए इंटरव्यू में डॉ इस्सा ने कहा, भारत अपनी पूर्ण विविधता के साथ ‘केवल जुबानी तौर पर ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी सह-अस्तित्व का एक शानदार मॉडल है.’ यह हिंदू बहुल राष्ट्र है, फिर भी इसका संविधान धर्मनिरपेक्ष है. दुनिया में नकारात्मक विचार फैलाए जा रहे हैं. हमें एक समान मूल्यों को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए.

Sunday, July 16, 2023

वर्षा-बाढ़ और भूस्खलन यानी ‘विकास’ की विसंगतियाँ


दिल्ली में यमुना का पानी हालांकि उतरने लगा है, पर शुक्रवार को सहायता के लिए सेना और एनडीआरएफ को आना पड़ा। यमुना तो उफना ही रही थी, बारिश का पानी नदी में फेंकने वाले ड्रेन रेग्युलेटर में खराबी आ जाने की वजह से उल्टे नदी का पानी शहर में प्रवेश कर गया। सिविल लाइंस, रिंग रोड, आईटीओ, राजघाट और सुप्रीम कोर्ट की परिधि तक पानी पहुँच गया। तटबंध और रेग्युलेटर की मरम्मत के लिए सेना की कोर ऑफ इंजीनियर्स को बुलाना पड़ा। हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब से भी अतिवृष्टि और बाढ़ की भयावह खबरें आ रही हैं। 2013 की उत्तराखंड आपदा के बाद एक भी साल ऐसा नहीं गया जब कम से कम एक बार खतरनाक बारिश नहीं हुई हो। एक तरफ बाढ़ है, तो दूसरी तरफ बहुत से इलाके ऐसे हैं, जहाँ सूखा पड़ा है। ऐसा भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में है। इस त्रासदी में प्रकृति की भूमिका है, जिसके साथ छेड़-छाड़ भारी पड़ रही है। हमारी प्रबंध-क्षमता की खामियाँ भी उजागर हो रही हैं। पानी का प्रबंधन करके हम इसे संसाधन में बदल सकते थे, पर ऐसा नहीं कर पाए। परंपरागत पोखरों, तालाबों और बावड़ियों को हमने नष्ट होने दिया। बचा-खुचा काम राजनीति ने कर दिया। उदाहरण है ऐसे मौके पर भी दिल्ली सरकार और एलजी के बीच चल रही तकरार।

दिल्ली में संकट

दिल्ली में यमुना नदी का पानी गुरुवार को 208.6 मीटर के पार पहुंच गया। इससे पहले साल 1978 में आख़िरी बार यमुना का पानी 207.49 मीटर तक पहुंचा था। तब काफ़ी नुकसान हुआ था। दिल्ली में 1924, 1977, 1978, 1995, 2010 और 2013 में बाढ़ आई थी। लोग घबरा गए कि कहीं हालात 1978 जैसे न हो जाएं। शहर के अलावा उत्तरी दिल्ली में 30 गाँवों में बाढ़ आ गई। दिल्ली देश की राजधानी है और कुछ हफ़्तों बाद यहाँ जी-20 शिखर वार्ता होने जा रही है। बाढ़-प्रबंधन में विफलता का दुनिया के सामने अच्छा संदेश नहीं जाएगा। बरसात अभी खत्म नहीं हुई है। अगस्त और सितंबर बाक़ी है। दिल्ली में बारिश रुक जाने के बाद भी यमुना का जलस्तर बढ़ता रहा। वजह थी कि पीछे से पानी आता रहा। इसके कारणों को देखना और समझना होगा। पानी को रोकने और छोड़ने के वैज्ञानिक तरीकों पर विचार करने की जरूरत है।

नदी-प्रबंधन

विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली में वज़ीराबाद बराज से ओखला बराज के 22 किमी के हिस्से में औसतन 800 मीटर की दूरी पर 25 पुल बन गए हैं। ये पुल पानी के सामान्य बहाव को रोकते हैं और नदी की हाइड्रोलॉजी को भी प्रभावित करते हैं। यमुना के ऊपरी हिस्से में खनन और तल में जमा गाद या कीचड़ को मशीन से साफ करने की जरूरत होती है। नदी अपने आप गाद को बहा नहीं सकती। विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि यमुना के खादर (फ़्लडप्लेन) को बचाकर नहीं रखा गया,  तो संकट बढ़ जाएगा। हालांकि तटबंधों के कारण पानी फ़्लडप्लेन में सिमटा रहा, पर वह इतना चौड़ा नहीं होता तो दिल्ली शहर लोगों के घरों में पानी घुस जाता। हिमाचल में यही हुआ। हिमालय से निकलने वाली नदियों में बाढ़ आना आम बात है। यह बाढ़ नदी का जीवन है। इससे नदियों के खादर में पानी का संग्रह हो जाता है। नदियों के ऊपरी इलाकों में पानी को थामे रहने की क्षमता कम हो गई है। जंगल, ग्रासलैंड और वैटलैंड कम हो गए हैं। इससे नदियों के निचले इलाकों में पानी ज़्यादा हो जाता है। नदियों के ऊपरी इलाकों में पानी को रोकने की व्यवस्था होनी चाहिए।

हिमाचल में तबाही

जिस तरह 2013 में उत्तराखंड से भयानक बाढ़ की तस्वीरें आईं थीं, करीब-करीब वैसी ही तस्वीरें इस साल हिमाचल प्रदेश से आई हैं। ब्यास, सतलुज, रावी, चिनाब (चंद्र और भागा) और यमुना उफनने लगीं। तेज हवा और भयंकर जलधारा से ख़तरा पैदा हो गया। ब्यास नदी के पास घनी आबादी वाले कुल्लू और मनाली में भीषण तबाही हुई। ब्यास नदी की घाटी में, नदी के एकदम करीब काफी निर्माण हुए हैं। तेज रफ्तार ब्यास ने रास्ता बदला और मनाली से मंडी के बीच तमाम मकानों, वाहनों, जानवरों और सड़कों को बहाती ले गई। ब्यास की रफ़्तार इस इलाके में तेज़ होती है और वह सड़क के काफी करीब से बहती है। यह तबाही प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ का नतीजा है। राज्य के मुख्यमंत्री का अनुमान है कि चार हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी के साथ छेड़छाड़ के पहले संकेत पहाड़ों, नदियों और तालाबों से मिलते हैं। विडंबना है कि सबसे ज्यादा विनाश की खबरें उन इलाकों से आ रही हैं, जहाँ सड़कें, बाँध, बिजलीघर और होटल वगैरह बने हैं। विकास और विनाश की इस विसंगति पर ध्यान देने की जरूरत है।

Thursday, July 13, 2023

चंद्रयान-3 से जुड़ी है भारत की राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा


इस हफ्ते 14 जुलाई को भारत के चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण प्रस्तावित है. यह देश का तीसरा चंद्रयान मिशन है, जिसके साथ बहुत सी बातें जुड़ी हुई हैं. सबसे बड़ी बात राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा की है. अंतरिक्ष-विज्ञान में सफलता को तकनीकी श्रेष्ठता का मापदंड माना जाता है. एक ज़माने में रूस और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष में प्रतियोगिता थी. वैसा ही कुछ अब अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिल रहा है. अब भारत भी इस प्रतियोगिता में शामिल हो गया है.  

प्रतिष्ठा की मनोकामना, प्रतियोगिता को बढ़ाती है. लंबे समय तक भारत की छवि पोंगापंथी, गरीब, पिछड़े और अराजक देश के रूप में रही या बनाई गई, पर अब उसमें तेजी से बदलाव आ रहा है. बेशक हम गरीब हैं, पर हमारे लोगों ने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है. भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और अंतरिक्ष-विज्ञानियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित की है. 

उपहास और तारीफ़

2014 में भारत के मिशन मंगलयान की सफलता पर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्समें एक कार्टून छपा, जिसमें भारतीय कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था. कार्टून में दिखाया गया था कि एक किसान, बैल को लेकर मंगल ग्रह पर पहुंचकर दरवाज़ा खटखटा रहा है और अंदर तीन-चार विकसित, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक बैठे हुए हैं और लिखा हुआ है एलीट स्पेस क्लब.

इस कार्टून को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स को काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी और कई पाठकों ने इसे भारत जैसे विकासशील देशों के प्रति पूर्वग्रह से ग्रस्त बताया. पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अखबार ने माफ़ी माँग ली.  

उसी न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले हफ्ते 6 जुलाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की तारीफ की है. ‘विश्व के अंतरिक्ष व्यवसाय में आश्चर्यजनक प्रयास’ शीर्षक आलेख में अखबार ने लिखा है कि जिस तरह से भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में छलांग लगा रहा है, उससे लगता है कि वह चीन को टक्कर देने की स्थिति में आ गया है.

चीन को टक्कर

अखबार ने लिखा, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से स्टार्ट-अप विकसित हो रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि वह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है तथा चीन को भी ‘बराबर की टक्कर’ देने वाली ताकत के रूप में उभर सकता है.

भारत में कम से कम 140 पंजीकृत अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप हैं, जिनमें एक स्थानीय अनुसंधान क्षेत्र भी शामिल है. यह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है. अमेरिका ने भारत को ‘नवोन्मेष का एक संपन्न केंद्र’ और ‘दुनिया में सबसे प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण स्थलों में से एक’ माना है.