गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की चिट्ठी हाल के
वर्षों में कांग्रेस के अंतर्विरोधों का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसलिए
महत्वपूर्ण यह देखना है कि इस पत्र पर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया क्या है। उस
प्रतिक्रिया से ही पता लगेगा कि पत्र में जो लिखा गया है,
वह
किस हद तक सही है और किस हद तक एक दिलजले की भड़ास। यह पत्र सोनिया गांधी को लिखा
गया है और इसमें राहुल गांधी को निशाना बनाया गया है। उन्होंने लिखा है, ‘
पार्टी के सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया है,
अब अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी चला रही है।’ दूसरी तरफ कहा
जा रहा है कि गुलाम नबी को कांग्रेस ने हीरो बनाया। संगठन-सरकार में कई पदों से
नवाजा। दो बार लोकसभा सांसद बनाया,
जम्मू-कश्मीर का सीएम बनाया। चुनाव की
हार से बचाकर पाँच बार राज्यसभा सांसद बनाया। उन्होंने मलाई काटी, आज दगाबाजी कर
रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इतना सीनियर नेता पार्टी क्यों
छोड़ रहा है। क्या इसलिए कि उसे राज्यसभा की सीट नहीं मिली और दिल्ली में रहने
के लिए उसे बंगला चाहिए? राज्यसभा की सीट तो अब की बात है, गुलाम नबी कम
से कम तीन साल से तो अपनी बात कह ही रहे हैं। यह बात उन्होंने पार्टी के फोरम पर
ही की है। वे अपने विचार पार्टी अध्यक्ष को लिखे पत्रों में व्यक्त करते रहे हैं। उनकी
बात सुनने के बजाय उनपर आरोपों की बौछार क्यों लगी?
परिवार खामोश
सोनिया, राहुल
और प्रियंका की कोई प्रतिक्रिया इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं आई है। बाकी
सीनियर नेताओं के स्वर वैसे ही हैं, जैसे 1969 में
इंदिरा कांग्रेस बनने के बाद से रहे हैं। शुक्रवार को दिन में पार्टी ने अजय माकन
की एक प्रेस कांफ्रेंस रखी थी, पर उसका एजेंडा दिल्ली की आम आदमी
पार्टी को निशाना बनाने का था। गुलाब नबी के इस्तीफे की खबर आने के बाद वह प्रेस
कांफ्रेंस रद्द कर दी गई, क्योंकि स्वाभाविक रूप से सवाल इस
इस्तीफे को लेकर ही होते। आज 28 अगस्त को कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक
का विषय पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के कार्यक्रम को तय करना है। क्या उसमें कांग्रेस
के आंतरिक प्रश्नों पर खुलकर विचार-विमर्श होगा? इस
बैठक के विमर्श से भी आपको पार्टी की सोच-समझ का अंदाज लगेगा।
संकट या नया दौर?
कांग्रेस के लिए यह संकट की घड़ी है या नहीं है,
यह अलग-अलग दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। पिछले नौ वर्षों में,
यानी मोदी के आने के बाद, काफी लोग पार्टी
छोड़कर गए हैं। हरबार कहा जाता है कि अच्छा हुआ, गंध
गई। यानी कि अब ताजगी का नया दौर शुरू होगा। इस नजरिए से कहा जा सकता है कि गुलाम
नबी का जाना, अच्छा ही हुआ। अब पार्टी का नया दौर शुरू होगा।
पार्टी को अगले तीन हफ्तों में अपने अध्यक्ष का चुनाव करना है। साल के अंत में
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वले हैं।
अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य
प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं। दूसरे कई राज्यों में भी चुनाव हैं,
पर पाँच में पहले चार राज्यों में कांग्रेस के महत्वपूर्ण हित जुड़े
हुए हैं। राजनीति की निगाहें इससे आगे हैं, वह
2024 और 2029 के चुनावों तक देख रही है। गुलाम नबी के रहने या जाने से कांग्रेस की
सेहत पर भले ही बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं हो, फिर
भी उनके इस्तीफे से धक्का जरूर लगेगा। ऐसी परिघटनाओं से कार्यकर्ता का मनोबल गिरता
है। उनके इस्तीफे के पहले पार्टी-प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने इस्तीफा दिया है। दोनों
ने बदहाली के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार माना है। इसके पहले भी जो लोग पार्टी
छोड़कर गए हैं, सबका निशाने पर राहुल गांधी रहे हैं।
वरिष्ठों की उपेक्षा
पाँच पेज के पत्र में गुलाम नबी आजाद ने सोनिया
गांधी की तारीफ़ की है और कहा है कि उन्होंने यूपीए-1 और यूपीए-2 को शानदार तरीके
से चलाया जिसकी वजह थी कि तब वरिष्ठ और अनुभवी लोगों की सलाह मानी जाती थी। उनके
अनुसार पार्टी के शीर्ष पर एक ऐसा आदमी थोपा गया जो गंभीर नहीं है। राहुल गांधी का
रवैया 2014 में कांग्रेस पार्टी की पराजय का कारण बना। अब पार्टी के अहम फ़ैसले
राहुल गांधी की चाटुकार मंडली कर रही है और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया
है। फ़ैसले राहुल गांधी के सिक्योरिटी गार्ड और पीए कर रहे हैं। इसी चाटुकार मंडली
के इशारे पर जम्मू में मेरा जनाज़ा निकाला गया। जिन्होंने यह हरकत की उनकी तारीफ़
पार्टी के महासचिवों और राहुल गांधी ने की। इसी मंडली ने कपिल सिब्बल पर भी हमला
किया, जबकि आपको और आपके परिवार को बचाने के लिए वे
क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी के अध्यादेश फाड़ने के कृत्य को
बचकाना बताया। पार्टी अब इस हाल में पहुँच गई है कि वहाँ से वापस नहीं लौट सकती।