Sunday, October 20, 2013

राडिया टेपों की तार्किक परिणति

सुप्रीम कोर्ट ने कॉरपोरेट लॉबीस्ट नीरा राडिया के साथ प्रभावशाली लोगों की बातचीत से जुड़े छह मामलों में आगे जाँच के आदेश देकर इसे तार्किक परिणति तक पहुँचा दिया है। नीरा राडिया की नौकरशाहों, कारोबारियों और नेताओं के साथ रिकार्ड की गई बातचीत के बारे में अदालत ने कहा है कि पहली नजर में इसमें सरकारी अधिकारियों और निजी उद्यमियों की मिलीभगत से किसी गहरी साजिशका पता चलता है। बातचीत से जाहिर होता है कि प्रभावशाली लोग किसी दूसरे मकसद से निजी लाभ उठाने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं। नीरा राडिया मामला हमारी व्यवस्था के भीतर छिपे भ्रष्ट-आचरण और उसके निराकरण की सामर्थ्य का टेस्ट-केस साबित होगा। अभी तक यह मामला टू-जी के साथ पुछल्ले की तरह जुड़ा था। अब यह पूरी तरह स्वतंत्र मामलों का एक समूह बनेगा। अदालत ने इसके पहले सीबीआई को फटकार लगाई थी कि वह इसे केवल टू-जी से जोड़कर न चले। अब कोर्ट ने मिली-भगत और गहरी साजिश जैसे शब्दों का प्रयोग करके इस मामले को काफी महत्वपूर्ण बना दिया है। सम्भव है कल केवल ये टेप देश के रूपांतरण के सूत्रधार बनें।

Monday, October 14, 2013

इंटरनेशनल हैरल्ड ट्रिब्यून अब न्यूयॉर्क टाइम्स बना

अंतरराष्ट्रीय खबरों के लिए दुनिया के सबसे मशहूर अखबार इंटरनेशनल हैरल्ड ट्रिब्यून का आज आखिरी अंक प्रकाशित हुआ। कल यानी 15 अक्टूबर से यह नए नाम इंटरनेशनल न्यूयॉर्क टाइम्स नाम से निकलेगा। यह इस अखबार का पहली बार पुनर्नामकरण संस्कार नहीं हुआ ङै। न्यूयॉर्क हैरल्ड नाम के अमेरिकी अखबार ने सन 1887 में जब अपना यूरोप संस्करण शुरू किया तो उसका नाम रखा न्यूयॉर्क हैरल्ड ट्रिब्यून, जो बाद में इंटरनेशनल हैरल्ड ट्रब्यून बना।  इंटरनेशनल न्यूयॉर्क टाइम्स बनने का मतलब है कि यह अब पूरी तरह न्यूयॉर्क टाइम्स की सम्पत्ति हो गया है। कुछ साल पहले तक यह अखबार वॉशिंगटन पोस्ट के सहयोग से चल रहा था। इंटरनेशनल हैरल्ड ट्रिब्यून का एक भारतीय संस्करण हैदराबाद से निकलता था, जिसे डैकन क्रॉनिकल निकालता था। हालांकि भारत से विदेशी प्रकाशन को निकालना सम्भव नहीं है, पर कई प्रकार की जटिल जुगत करके इसे निकाला जा रहा था और इसके सम्पादक एमजे अकबर थे। यह संस्करण कल से नहीं मिलेगा। 

सन 2007 के वीडियो में देखिए किस तरह तैयार होता था इंटरनेशनल हैरल्ड ट्रिब्यून

Sunday, October 13, 2013

सरकार की ओर से जवाब तो राहुल को भी देना होगा

इंटरनेट पर पप्पू और फेंकू दो सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द हैं। जाने-अनजाने भारतीय राजनीति दो नेताओं के इर्द-गिर्द सिमट गई है। परम्परा से भारतीय जनता पार्टी व्यक्ति केन्द्रित पार्टी नहीं है। और कांग्रेस हमेशा व्यक्ति केन्द्रित पार्टी रही है। पर इस बार दोनों अपनी परम्परागत भूमिकाओं से हट गईं हैं। भाजपा का सारा जोर व्यक्तिगत नेतृत्व पर है और कांग्रेस नेतृत्व के इस सीधे टकराव से भागती नजर आती है। सच बात है कि भारतीय चुनाव अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की तरह नहीं होते जहाँ दो राष्ट्रीय नेता आमने-सामने बहस करें। यहाँ संसद का चुनाव होता है, जिसमें पार्टियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। और संसदीय दल अपने नेता का चुनाव करते हैं। वास्तव में यह आदर्श स्थिति है। इंदिरा इज़ इंडिया तो कांग्रेस का ही नारा था। सच यह भी है कि लाल बहादुर शास्त्री, पीवी नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह तीनों नेताओं को प्रधानमंत्री बनने का मौका तब मिला जब परिवार का कोई नेता तैयार नहीं था। पर आज स्थिति पूरी तरह बदली हुई है।

Thursday, October 10, 2013

अपने लिए कुआं और खाई दोनों खोदे हैं कांग्रेस ने तेलंगाना में

कांग्रेस के लिए खौफनाक अंदेशों का संदेश लेकर आ रहा है तेलंगाना. जैसा कि अंदेशा था इसकी घोषणा पार्टी के लिए सेल्फगोल साबित हुई है. इस तीर को वापस लेने और छोड़ने दोनों हालात में उसे ही घायल होना है. सवाल इतना है कि नुकसान कम से कम कितना हो और कैसे हो? इस गफलत की जिम्मेदारी लेने को पार्टी का कोई नेता तैयार नहीं है. प्रदेश की जनता, उसकी राजनीति और प्रशासन दो धड़ों में बँट चुका है. मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी इस फैसले से खुद को काफी पहले अलग कर चुके हैं. शायद 2014 के चुनाव के पहले यह राज्य बन भी नहीं पाएगा. यानी कि इसे लागू कराने की जिम्मेदारी आने वाली सरकार की होगी.

Sunday, October 6, 2013

चार चुनाव, तीन परीक्षाएं

इसे सेमीफाइनल कहें या कोई और नाम दें, पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। इनमें नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी और दिल्ली में आप की परीक्षा होगी। सन 2014 के लोकसभा चुनाव में यह तीनों बातें महत्वपूर्ण साबित होंगी। इन पाँचों राज्यों से लोकसभा की 73 सीटें हैं। हालांकि लोकसभा और विधानसभा के मसले अलग होते हैं, पर इस बार लगता है कि विधान सभा चुनावों पर स्थानीय मसलों के मुकाबले केन्द्रीय राजनीति का असर दिखाई पड़ेगा, जैसाकि दिल्ली के पालिका चुनावों में नजर आया था। पांच में फिलहाल तीन राज्य दिल्ली, मिजोरम और राजस्थान कांग्रेस के पास हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक दशक से भाजपा के मजबूत किले साबित हो रहे हैं। दोनों पार्टियों में अपनी बचाने और दूसरे की हासिल करने की होड़ है। मिजोरम को छोड़ दें तो शेष चार राज्य हिन्दी भाषी हैं और यहाँ मुकाबले आमने-सामने के हैं। दिल्ली में आप के कारण एक तीसरा फैक्टर जुड़ा है। अन्ना हजारे के आंदोलन की ओट में उभरी आम आदमी पार्टी परम्परागत राजनीतिक दल नहीं है। शहरी मतदाताओं के बीच से उभरी इस पार्टी के तौर-तरीके शहरी हैं। इसने दिल्ली के उपभोक्ताओं, ऑटो चालकों और युवा मतदाताओं की एक टीम तैयार करके घर-घर प्रचार किया है। खासतौर से मोबाइल फोन, सोशल मीडिया तथा काफी हद तक मुख्यधारा के मीडिया की मदद से। हालांकि उसी मीडिया ने बाद में इससे किनारा कर लिया। मिजोरम में कांग्रेस के सामने कोई बड़ा दावेदार नहीं है।